थावरचंद गहलोत |
ये आयोग सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिए है। इस आयोग में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होंगे। इसमें कम से कम एक महिला होगी। आयोग एक स्वायत्त संस्था के तौर पर काम करेगा।
ये आयोग पिछड़े वर्गों से जुड़ी शिकायतों की जांच करेगा। अब पिछड़ी जातियों की समस्याओं का निपटारा हो सकेगा। इस आयोग का गठन 1993 में किया गया था।ओबीसी तबके में जातियों को जोड़ने या हटाने के लिए राज्यपाल से परामर्श लेने का प्रस्ताव हटा। अब राज्य सरकारों से ही परामर्श लेने का प्रावधान।
ओबीसी के उत्थान को लेकर बनने वाली योजनाओं में आयोग की भूमिका में भी बदलाव। आयोग सलाहकार नहीं बल्कि भागीदार की भूमिका में होगा। आयोग पिछड़े वर्गो के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में भाग लेगा और सलाह देगा।
I'd like to congratulate PM Modi on behalf of people from backward classes &BJP workers.Since '55 people from backward class were longing for constitutional acknowledgement,but nobody paid heed to it:A.Shah on National Commission for Backward Classes(Repeal)Bill,2017 passed in RS
उन्होंने कहा कि आयोग को संवैधानिक दर्जा देने से समुदाय के लोगों की विभिन्न जरूरतें पूरी होंगी और कई ऐसी समस्याओं का भी समाधान हो पाएगा जिनका हल अभी तक नहीं हो सका है।
लो जी, हो गया सबका साथ, सबका विकास
2014 चुनावों से लेकर जनमानस के कान "सबका साथ, सबका विकास" सुन-सुनकर पक चुके हैं। OBC आयोग को संवैधानिक दर्जा देकर मोदी सरकार ने सिद्ध कर दिया है कि वर्तमान और पिछली सरकार में कोई अन्तर नहीं। पिछली सरकारों की भाँति वर्तमान मोदी सरकार भी अनुसूचित और ओबीसी को लुभा कर अपने वोट पक्के कर रही है। क्या इसी जातिवाद को ही "सबका साथ, सबका विकास" कहते हैं? कुछ वरिष्ठ नेता यदाकदा मुस्लिम धर्म-गुरुओं से मिल मुस्लिमों को लुभाने की कोशिश की जा रही है। और हिन्दुओं की आस्थाओं से जुड़े मसले जैसे, अयोध्या, मथुरा और काशी को लम्बित किया जा रहा है। सवर्णों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है, क्यों? क्या सवर्ण वर्ग वोट नहीं देता? जब संविधान सबको बराबरी का अधिकार देता है, फिर जातिवाद और धर्म की राजनीति क्यों? कब ऐसी छिछोड़ी राजनीती पर विराम लगेगा?
अवलोकन करें:--
किसी भी नेता के स्वर्गवासी होने पर सड़क से लेकर संसद तक उनके गुणगान किये जाते हैं, लेकिन देश का दुर्भाग्य देखिए समस्याएँ और जटिल ही होती प्रतीत हो रही हैं। आरक्षण की सीढ़ी पर बैठ सभी देशभक्त बने फिर रहे हैं। दलितों और अन्य जातियों के नाम पर इतनी पार्टियाँ बन गयी, बनाने वाले करोड़पति हो रहे हैं, लेकिन जाति वहीँ की वहीँ, ये है आरक्षण की घिनौनी राजनीती। पता नहीं कब आरक्षण की राम नाम सत होगी।
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