आर.बी.एल.निगम, फिल्म समीक्षक एक समय था जब बॉलीवुड में सिर्फ प्यार मोहब्बत और पारिवारिक थीम पर ही फिल्मे बना करती थीं। फिल्मों में लीड हीरोइनों के रोल्स भी काफी छोटे लिखे जाते थे। हर फिल्म में एक लाचार मां, एक अबला बहन और एक खौफनाक विलेन हुआ करता था। हीरो ही पूरी फिल्म में छाया रहा करता था। इसका चलन शम्मी कपूर के पदापर्ण होने से हुआ, जिसे बाद में जितेंद्र, राजेश खन्ना ने आगे बढ़ाया, लेकिन अमिताभ बच्चन के मुखरित होने पर नायिका मात्र एक शोपीस बन कर रह गयी। फिल्म में हीरो की जबरदस्त फाइड दिखाई जाती थी। पूरी फिल्म की स्क्रिप्ट इसी के इर्दगिर्द बुनी जाती थी। लेकिन अब समय परिवर्तन के साथ फिल्म निर्माता-निर्देशकों की सोंच बदलने लगी है। कल तक जो एक्शन केवल नायक तक ही सीमित था अब नायिका भी एक्शन मूड में आ गयी हैं। ऐसा नहीं है, कि नायिका आज इस तरह के रोल कर रही है, पूर्व में कई नायिकाओं ने ऐसे रोल किये हैं, लेकिन उस दौर में इन फिल्मों को "C" श्रेणी में रखा जाता था। अब न कोई A, B या C नहीं सभी फिल्में A श्रेणी में सम्मिलित हैं। आज बॉलीवुड में सोशल इशू और बायोपिक के अलावा दमदार ए...