ये वो दौर था जब सरकारी स्कूलों में गज़ब का क्वालिटी एजुकेशन होता था, ना एसी वाली क्लास रूम और न एसी वाली बस, पानी पीने को वही लाइन से लगे हुए नल, धूल मिट्टी में लोट लोट के दौड़ भाग करके खेलना, तब 15 अगस्त और 26 जनवरी को स्कूल नहीं आने की सजा भी मिलती थी, इस दौर में स्कूल में कुछ शैतानी करते पकड़े जाने पर गुरु जी तो कुटाई करते ही थे, और शिकायत कही घर तक आ गयी तो घर में जो कुटाई पड़े वो अलग से बोनस टाइप फील होता था, तब परीक्षाएं इतने हल्के में नहीं ली जाती थी, परीक्षा का नाम सु न के अजीब सी घबराहट हो जाती थी, और जी तोड़ मेहनत के साथ पढ़ाई शुरू, फिर स्कूल में अच्छे नंबर लेकर अच्छे कॉलेज में दाखिला, तब कॉलेज के प्रिंसिपल, एचओडी देश के राष्ट्रपति से भी ज्यादा पॉवरफुल लगते थे, कॉलेज में सर्वसुविधा युक्त जैसी तो कोई बात नहीं होती थी फिर भी वहां से पढ़ने को बच्चो की होड़ सी लग जाती थी, क्या गज़ब का नॉलेज होता था उन पढ़ाने वालो का, जिन्हे हम सही मायने में गुरु कहते है, वो क्लास में आके एक बच्चे से सिर्फ सब्जेक्ट का सिलेबस पूछ के बिन कोई किताब देखे शुरू से लेके आखिरी तक का हर कांसेप...