कई बार दर्शकों के बीच प्रोपेगेंडा परोसने के लिए जरूरी नहीं होता कि किसी फिल्म को पूरा प्रोपेगेंडा आधारित बनाया जाए। एक सीन, एक डायलॉग या एक रिएक्शन भी काफी होता है ये समझाने के लिए कि आखिर उसके जरिए कौन सी मंशा का प्रसार किया जा रहा है। आपने पीके, तांडव, या काली में जब हिंदू देवी देवताओं का मजाक उड़ते देखा तो आपको समझ आया कि कैसे फिल्में हिंदूविरोधी हैं। आपने ‘शिकारा’ देखी तो आपको पता चला कि कैसे नरसंहार के नाम पर दिखाई गई प्रेम कहानी कश्मीरी पंडितों का मजाक है। इसी तरह मार्केट में अब एक नया नमूना आया है। नाम है मिस मार्वल। इसमें एक मुस्लिम सुपरगर्ल कमाला खान की कहानी दिखाई गई है। जब ये सीरीज आने वाली थी उस समय इसका प्रमोशन नारीवाद जगत में आ रही क्रांति की तरह हुआ था। ‘पहली मुस्लिम सुपरगर्ल लड़की’ पर बनती सीरिज पर खूब चर्चाएँ हुईं थी। हालाँकि जब इसके एपिसोड रिलीज होने लगे तो दर्शकों को निराशा के सिवा कुछ हाथ नहीं लगा। हाँ कुछ लोगों को मार्वल का ऐसा देशी वर्जन पसंद भी आया। लेकिन वो मुस्लिम परिवार थे जो रहन-सहन से खुद को कनेक्ट कर पा रहे थे। जिन्नों की कहानी मिस मार्वल नाम की इ...