
पांच कालीदास मार्ग-सीएम आवास, छह कालिदास मार्ग- सीएम आवास में मिला दिया गया, सात कालीदास मार्ग- लोक निर्माण मंत्री शिवपाल सिंह यादव का आवास, चार विक्रमादित्य मार्ग- सीएम अखिलेश यादव का पूर्व सीएम की हैसियत से तैयार किया जा रहा आवास, पांच विक्रमादित्य मार्ग-सीएम के पिता सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में मिला आवास, दो विक्रमादित्य मार्ग-नगर विकास मंत्री मोहम्मद आजम खां का आवास, लेरोटो कॉलेज के सामने राजभवन कॉलोनी का सरकारी बंगला, जिसे बड़ी लडाई के बाद तत्कालीन मंत्री स्व राजाराम पांडेय ने लिया था, 13 माल एवेन्यू-पूर्व मुख्यमंत्री बसपा सुप्रीमो मायावती का आवास।
बीते 10 सालों के रिकॉर्ड को यदि देखें तो मौजूदा मुख्यमंत्री अपने सरकारी आवास के रख-रखाव पर उनता खर्च नहीं करते, जितना पूर्व मुख्यमंत्री के आवास पर होता है। यही कारण है कि सीएम आवास रंग रोगन में पूर्व मुख्यमंत्रियों के आवास के सामने फीका दिखता है।
पूर्व सीएम लुटाते हैं पैसा
ये सभी बंगले राज्य सम्पत्ति विभाग के अधीन आवंटित किए जाते हैं। इनका रख रखाव भी राज्य सम्पत्ति विभाग करता है। पिछले 10 सालों में इन सरकारी बंगलों में सबसे ज्यादा धन यदि खर्च हुआ है तो पूर्व सीएम के रूप में मिले बंगलों पर। ये बंगले आमतौर मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल में दुरूस्त कराते हैं क्योंकि पद से हटने के बाद राज्य सम्पत्ति विभाग किसी की नहीं सुनता। जो सीएम होता है, उसी के आदेश का पालन यह विभाग करता है। यही कारण है कि सत्ता जाने से पहले हर सीएम अपने लिए सबसे अच्छा बंगला ढूंढता है, और फिर उसे अत्याधुनिक तरीके से विकसित कराता है। उसमें भले ही चाहे जितना खर्च हो जाए।
सिर्फ 7 आवासों पर 2 अरब रुपए खर्च
यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का 13 माल एवेन्यू वाला सरकारी आवास मरम्मत के मामले में सबसे आगे है। कहने को इस आवास में मरम्मत की गई थी, लेकिन इस आवास के रखरखाव पर सरकारी दस्तावेजों में 62 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो चुका है। इसके बाद पांच कालिदास मार्ग का मुख्यमंत्री का आवास आता है। उसके रख-रखाव पर हर साल करीब 13 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। तीसरे नंबर मरम्मत के नाम पर खर्च पांच विक्रमादित्य मार्ग का है। एक दशक में सरकार उसके रख-रखाव पर 28 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है। बाकी इन सभी सात बंगलों के खर्च को यदि जोड़ लिया जाए तो इन पर करीब दो अरब रुपए मरम्मत पर खर्च हो चुका है। इतनी रकम में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले 70 हजार लोगों को स्थाई रूप से जॉब मिल गया होता। अभी तक यूपी में 19000 सालाना आय वाले ग्रामीण को बीपीएल माना जाता था और 25000 सालाना आय वाले शहरी को बीपीएल माना जाता था। अब यह राशि बढकर 56000 रुपए शहरी क्षेत्र में और ग्रामीण क्षेत्र में 46 हजार रुपए सालाना आय वाले को बीपीएल माना जाएगा। इस आय को यदि जोड़ा जाए तो करीब 70 हजार लोगों को आय मिल जाता।
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