आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
संविधान का मजाक बनाना आज एक फैशन बन गया है। चुनाव जीतने पर शपथ संविधान की खाते हैं, लेकिन राजनीति समाज को बाँटने की करते हैं। आखिर किसने अधिकार दिया इन्हे संविधान का मजाक बनाने का? जब संविधान सबको बराबर का अधिकार देता है, फिर किस अधिकार से दलित, अनुसूचित जाति के नाम पर सियासत करते हैं? क्या इसी तरह से संविधान की रक्षा होती है? समझ में नहीं आता जनता संविधान का मजाक बनाने वालों को वोट देती ही क्यों है?
हिन्दू जब अयोध्या, काशी और मथुरा की बात करते हैं, तो सबको संविधान खतरे में नज़र आने लगता हैं, लेकिन जब स्वयं जाति आधारित राजनीति करते हो, तब क्या संविधान सुरक्षित नज़र आता है?
2002 गुजरात दंगों के बाद एनडीए सबसे पहले छोड़ कर जाने वाली कौन सी पार्टी थी? सभी जानते हैं। एनडीए छोड़ते वक़्त क्या इन्होने तत्कालीन गुजरात मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से कहा "ट्रेन बोगी को आग लगाने वालों पर कहर बन टूट पड़ो, देश तुम्हारे साथ है।" लेकिन उस समय नज़र आयी कुर्सी। जो नेता अपनी कुर्सी बचाने तुष्टिकरण का सहारा लेते हों, देश का क्या भला करेंगे। ऐसे ही नेताओं और पार्टियों की वजह से देश धर्म और जातिवाद के झगड़ों में फंसा हुआ है।
क्या कारण है एनजीटी के अध्यक्ष ए के गोयल ने किस दलित पर अत्याचार किया, जो उनको को हटाने की मांग हो रही है? गैर-भाजपाई पार्टियों के राज में कुछ भी हो जाये, कोई नहीं बोलता, भाजपा शासित में जरा सा भी कुछ हो जाये सब बोलने लगते हैं। कमाल है। एक नहीं सैकड़ों उदाहरण हैं, जिन्हे अपने इस ब्लॉग पर यदाकदा प्रकाशित भी करता रहता हूँ। उत्तर प्रदेश में पिछली सरकार के चलते एक दलित हिन्दू रेहड़ी वाले को रास्ता मांगने पर पेशाब पिला दिया गया, अभी खूंटी में ईसाईयों द्वारा हिन्दुओं के साथ क्या नहीं हुआ, कौन बोला और कितने नेता बोलने का साहस कर पाए, क्या इसी को राजनीति कहते हैं? संविधान की रक्षा सबका साथ, सबके विकास से होगी, तुष्टिकरण से नहीं। गनीमत है, संविधान की रचना आज के नेताओं से बहुत पहले हो गयी थी, अन्यथा ये कुर्सी की खातिर तुष्टिकरण के पुजारी संविधान में राजनीतिज्ञ चाणक्य और पुरुषोत्तम श्रीराम का वर्णन तक नहीं होने देते। इन्हे सिर्फ और सिर्फ दलित, अनुसूचित और अल्पसंख्यक ही नज़र आते। क्या किसी नेता ने सोंचा कि तुष्टिकरण (चाहे अल्पसंख्यक के नाम पर हो या जाति के नाम पर) के कारण सवर्ण जातियों को कितनी पीड़ा झेलनी पड़ रही है ?
रामविलास पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने जुलाई 27 को कहा कि भाजपा को समर्थन मुद्दों पर आधारित है साथ ही पार्टी ने दलितों के उत्पीड़न के खिलाफ कानून में सख्त प्रावधान करने और नौ अगस्त तक एनजीटी के अध्यक्ष एके गोयल को पद से हटाने की मांग की है। पार्टी सांसद और रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान ने संवाददाताओं से कहा कि पार्टी के भीतर कई लोगों का संयम अब कमजोर हो रहा है क्योंकि दलितों एवं आदिवासियों को लेकर चिंताएं सामने आ रही हैं।
उन्होंने कहा कि साल 2014 में भाजपा और लोजपा के बीच गठजोड़ के मूल में इन समुदायों के हितों की रक्षा करने का विषय था। चिराग पासवान ने कहा कि उनकी पार्टी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम के मूल प्रावधानों को बहाल करने के लिए अध्यादेश लाने की मांग पिछले चार महीने से कर रही है लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया।
उन्होंने हालांकि भाजपा को सीधे कोई धमकी देने से बचते हुए कहा कि लोजपा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में पूरा विश्वास है क्योंकि उनकी सरकार ने दलितों के लिए काफी कुछ किया है। यह पूछे जाने पर कि अगर 9 अगस्त तक उनकी मांगें नहीं मानी जाती है तब क्या उनकी पार्टी भाजपा नीत राजग से अलग होने पर विचार करेगी, लोजपा नेता ने कहा कि जब समय आएगा तब हम कदम उठाएंगे।
We wanted centre to bring an ordinance about SC/ST Act. But it couldn't be done now so we've asked centre to reintroduce it as a bill in the Parliament on Aug 7 & restore the previous law, as Dalit protests on Aug 9 could be more aggressive than April 2 protests:Chirag Paswan,LJP
चिराग पासवान ने भाजपा को सीधेतौर पर धमकी देने से बचते हुए कहा कि हमें केंद्र सरकार और पीएम मोदी पर पूरा विश्वास है। उन्होंने कहा कि एससी-एसटी ऐक्ट में कॉमा, फुल स्टॉप कुछ भी नहीं बदलेगा। यह उसमें हमारा विश्वास बढ़ाता है।
Comments