सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने जून 27 को कहा GST को और सहज बनाने के लिए सबसे पहले 28 फीसदी के टैक्स स्लैब को हटाना होगा और समान दर से सेस लागू करना होगा। उन्होंने कहा, 'अभी जीएसटी की दरें 0 फीसदी, 3 फीसदी, 5 फीसदी, 12 फीसदी, 18 फीसदी और 28फीसदी हैं। हमें इन्हें तर्कसंगत करना होगा, मगर मेरा मानना है कि सबसे पहले 28 फीसदी वाली दर को खत्म करना होगा।' अरविंद ने यह बात इंडियन एक्सप्रेस के आइडिया एक्सचेंज प्रोग्राम में कही।
सेस में कई तरह के रेट ना हों
अरविंद से जब यह पूछा गया कि क्या सभी प्रकार के सेस को खत्म कर देना चाहिए तो उन्होंने कहा कि मैं कह रहा हूं कि एक आदर्श सिस्टम के लिए 28 फीसदी के स्लैब को जाना होगा। सेस बरकरार रह सकता है क्योंकि कुछ प्रोडक्ट पर ज्यादा रेट रखना होगा मगर तब भी कई तरह के रेट नहीं होने चाहिए। अपनी रिपोर्ट में हमने एक 18 फीसदी और दूसरा 40 फीसदी रेट रखा था। सेस दरअसल 40 फीसदी के रेट को लागू करने का एक अन्य तरीका है।
बड़े स्तर पर हो रही GST की चोरी
इस बीच GST, इंटेलिजेंस के डीजी जॉन जोसेफ का कहना है कि इन्वेस्टिगेशन विंग ने दो महीने के भीतर 2,000 करोड़ रुपए से अधिक की टैक्स चोरी का पता लगाया है, लेकिन यह बहुत कम है। डाटा विश्लेषण से पता चला है कि अब तक GST में रजिस्टर्ड 1.11 करोड़ से अधिक कारोबारियों में से केवल 1 फीसदी कारोबारी 80 फीसदी टैक्स का भुगतान करते हैं।
इस बीच GST, इंटेलिजेंस के डीजी जॉन जोसेफ का कहना है कि इन्वेस्टिगेशन विंग ने दो महीने के भीतर 2,000 करोड़ रुपए से अधिक की टैक्स चोरी का पता लगाया है, लेकिन यह बहुत कम है। डाटा विश्लेषण से पता चला है कि अब तक GST में रजिस्टर्ड 1.11 करोड़ से अधिक कारोबारियों में से केवल 1 फीसदी कारोबारी 80 फीसदी टैक्स का भुगतान करते हैं।
सिस्टम में खामियों की स्टडी जरूरी
जॉन जोसेफ, जो CBEC के सदस्य भी हैं ने कहा कि छोटे कारोबारी तो जीएसटी रिटर्न दाखिल करते समय गलतियां कर ही रहे हैं, बल्कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों और बड़े कॉरपोरेट भी गलती कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारे पास 1 करोड़ से अधिक एंटरप्राइजेज का पंजीकरण है, लेकिन यदि आप यह देखते हैं कि टैक्स कहां से आ रहा है, तो टैक्स के 80 प्रतिशत हिस्से का भुगतान करने वाले 1 लाख से भी कम लोग हैं। ऐसे में यह स्टडी करना बेहद जरूरी है कि सिस्टम में कहां खामी है।
जॉन जोसेफ, जो CBEC के सदस्य भी हैं ने कहा कि छोटे कारोबारी तो जीएसटी रिटर्न दाखिल करते समय गलतियां कर ही रहे हैं, बल्कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों और बड़े कॉरपोरेट भी गलती कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारे पास 1 करोड़ से अधिक एंटरप्राइजेज का पंजीकरण है, लेकिन यदि आप यह देखते हैं कि टैक्स कहां से आ रहा है, तो टैक्स के 80 प्रतिशत हिस्से का भुगतान करने वाले 1 लाख से भी कम लोग हैं। ऐसे में यह स्टडी करना बेहद जरूरी है कि सिस्टम में कहां खामी है।
अरविंद सुब्रमण्यन के 5 बड़े कदम, मोदी सरकार भी है इनकी मुरीद
अरविंद सुब्रमण्यन ने अपने कार्यकाल में अमीरों को सब्सिडी छोड़ने का सुझाव देने से लेकर जीएसटी दरों का कॉन्सेप्ट देने और इकोनॉमिक सर्वे को नया लुक देने तक का काम किया। हालांकि, कई जगहों पर सु्ब्रमण्यन के सुझाव प्रभावशाली नहीं रहे। फाइनेंस मिनिस्टर अरुण जेटली अपनी एक फेसबुक पोस्ट के माध्यम से सुब्रमण्यन के पद छोड़ने की जानकारी दी है।
इकोनॉमिक सर्वे का बदला अंदाज
अरविंद सुब्रमण्यन ने इकोनॉमिक सर्वे का लुक बदल दिया और उसे नए तरीके से पेश किया। उन्होंने पुराने डाटा की जगह नए मुद्दों को उठाने की कोशिश की है। उन्होंने नए आइडिया को पेश किया जिसमें क्लाइमेट चेंज, भारत की महिलाओं का योगदान, लो स्किल मैन्युफैक्चरिंग, यूनिवर्सल बेसिक इनकम, बिना एग्जिट कैपिटलिज्म आदि शामिल हैं।
जनधन योजना-आधार मोबाइल (JAM)
सुब्रमण्यन ने जनधन-योजना-आधार मोबाइल फ्रेमवर्क के लिए वित्तीय समावेश को बढ़ाने में मदद की थी।
जीएसटी
उन्होंने जीएसटी को निष्पक्ष दर के करीब पहुंचाने का फ्रेमवर्क का कॉन्सेप्ट दिया। इसके अलावा, उन्होंने जीएसटी दरों पर एक समानता लाने और संवैधानिक संशोधनों में मदद भी की।
देश की बैलेंस शीट पर नजर
अरविंद सुब्रमण्यन ने कर्ज में दबी कंपनियों और एनपीए प्रभावित बैंकों की पहचान की। इसे देखते हुए सरकार ने फाइनेंशियल ईयर 2016 बजट में पब्लिक इन्वेस्टमेंट को बढ़ा दिया।
अमीरों के लिए कोई सब्सिडी नहीं
2015 इकोनॉमिक सर्वे में इस बात की ओर इशारा किया कि अमीरों को सब्सिडी छोड़ देनी चाहिए। सब्सिडी रिफॉर्म और बेहतर टारगेट के लिए आधार तैयार किया। इसके अलावा, उन्होंने फर्टिलाइजर्स, पावर, केरोसिन, दाल और कपड़ों के लिए पॉलिसी इनपुट उपलब्ध कराया।
बैड बैंक का सुझाव
उन्होंने बैड बैंक का सुझाव दिया लेकिन सरकार ने नया दिवालिया कानून पेश किया जिसे पूरी तरह से लागू कर दिया गया।
दरों को कम करने का सुझाव
जब महंगाई दर कम थी तो इकोनॉमी को बूस्ट देने के लिए सुब्रमण्यन ने ब्याज दरों को कम करने का सुझाव दिया। लेकिन आरबीआई ने उनकी यह बात नहीं सुनी।
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