आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
एक कहावत है:--
दोस्तों से दुश्मन अच्छे हैं, जो जल कर नाम लेते हैं।
फूलों से कांटे अच्छे है, जो दामन थाम लेते हैं।।
गुजरात चुनाव 2012 की एक सार्वजनिक से प्रभावित होकर, नरेन्द्र मोदी या नरेन्द्र मोदी जैसे किसी भी व्यक्ति को भारत का प्रधानमन्त्री देखने की दिली इच्छा थी, जो 2014 में पूरी हुई। आर्गेनाइजर साप्तहिक से सेवानिर्वित होने एक हिन्दी पाक्षिक को सम्पादित करने का अवसर मिलने पर अपनी इस इच्छा को अपने लेखों में व्यक्त करता रहता था। और मोदी के प्रधानमन्त्री बनने पर "मोदी का आदमी" के नाम से सम्बोधित किया जाने लगा। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि किसी गलती को न बताया जाए। वास्तव यह दोष मोदी का नहीं, बल्कि कुछ नेता, चाहे वह किसी भी स्तर पर हो, काम उस गति और भावना से नहीं कर रहे, जो प्रधानमन्त्री मोदी चाहते हैं। ये दूसरे के कन्धे बैठ सियासतखोर केवल मोदी के करिश्में पर ही निर्भर रहते हैं।
खैर, मोदी सरकार 26 मई को चार साल पूरे कर रही है। इस मौके पर जहां मोदी सरकार अपनी उपलब्धियां गिनाने में जुटी है, वहीं कांग्रेस मोदी सरकार की नाकामियों को उजागर करने की कोशिश कर रही है. यही वजह है कि 26 मई को जहां बीजेपी और मोदी सरकार अपने 4 साल के कार्यकाल का सफलतापूर्वक जश्न मनाएगी, वहीं कांग्रेस इस दिन को ‘विश्वासघात दिवस’ के रूप में मनाएगी. यानी इस मौके पर सरकार और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का खेल चलेगा. मगर इसके इतर बात करें तो मोदी सरकार ने भले ही कई सारे काम किये हों, योजनाओं की शुरुआत की हो, मगर उनकी नाकामियों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. मोदी सरकार अब ऐसे पड़ाव पर पहुंच गई है। जहां से उसके काम-काज का अब लेखा-जोखा तैयार होगा। उनके कार्यकाल के 4 साल में कई मुद्दे हैं, जिस पर सरकार लोगों की उम्मीद पूरी तरह से खरी नहीं उतर पाई है। यानी कही न कहीं सरकार चूक गई है।
मोदी सरकार की उपलब्धियों में अगर एक से बढ़कर एक फैसले और योजनाएं शामिल हैं, तो उनकी नाकामियों की फेहरिस्त भी छोटी नहीं है.
अवलोकन करें:--
मोदी सरकार की नाकामियों का जिक्र करना यहां इसलिए भी जरूरी है क्योंकि 2014 में कांग्रेस की नाकामियों को गिनाकर और कई सारे वादे कर के ही मोदी सरकार सत्ता में आई थी. 1984 के बाद 2014 का चुनाव पहला मौका था, जब देश की जनता ने किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत दिया, और देश की आज़ादी के बाद पहला मौका था, जब किसी गैर-कांग्रेसी दल को लोकसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ. इसलिए यह जरूरी है कि इस सरकार की नाकामियों पर भी एक नजर दौड़ाई जाए ताकि लोगों को पता चले कि इन चार सालों में मोदी सरकार किन-किन मोर्चों पर विफल रही है और कई सारी उपल्बधियों के बीच भी ये नाकामियां चीख-चीख कर बोल रही हैं और मोदी सरकार की पोल खोल रही है.
एक नजर डालते हैं मोदी सरकार की इन बड़ी नाकामियों पर
पेट्रोल-डीजल का दाम सातवें आसमान पर:
पेट्रोल-डीजल के बढ़े दाम से देश में हाहाकार है. मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद पेट्रोल सबसे महंगा हुआ है. जबकि मोदी सरकार सत्ता में आने से पहले यह कहती रही कि उनकी सरकार पेट्रोल-डीजल के दाम कांग्रेस की सरकार से भी कम कर देगी. हैरान करने वाली बात ये है कि जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत कम है, बावजूद इसके भारत में तेल की कीमतें लगातार आसमान छू रही हैं. तेल की कीमतों में किस तरह से आग लगी हुई है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि महाराष्ट्र के परभणी में 24 मई को पेट्रोल 87.27 रुपये प्रतिलीटर पहुंच गया. यानी कि मोदी सरकार का महंगाई कम करने का वादा भी सिर्फ वादा ही साबित हुआ.
कश्मीर घाटी में अशांति
सत्ता में आने से पहले बीजेपी के दो सबसे बड़े हथियार थे कश्मीर मुद्दा और पाकिस्तान. इन दो मुद्दों में से एक कश्मीर घाटी में मोदी सरकार की लगातार कोशिश के बावजूद भी पिछले लंबे समय से जारी आशांति और हिंसक माहौल अब भी जारी है. कांग्रेस की सरकार से अगर तुलना करें तो मोदी सरकार के कार्यकाल में घाटी की हालत बद से बदतर हुई है. लागातार पत्थरबाजी और अशांत माहौल का मोदी सरकार ने सामना किया है. घाटी में शांति कायम करने में मोदी सरकार विफल रही है. यह नाकामी और भी बड़ी इसलिए हो जाती है क्योंकि जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ गठबंधन कर बीजेपी सरकार में है, और केंद्र के साथ-साथ राज्य में बीजेपी की सरकार होने के बाद भी अभी कुछ खास सफलता हाथ नहीं लगी है.
पाकिस्तान पर मोदी सरकार का स्टैंड
मोदी सरकार के नेताओं और खुद पीएम मोदी के तेवर पाकिस्तान के प्रति 2014 से पहले काफी सख्त हुआ करते थे. 2014 से पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने हर चुनावी भाषण में पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने की बात की. साथ ही यह वादा किया कि उनकी सरकार बनते ही पाकिस्तान के साथ बॉर्डर पर होने वाले सीजफायर उल्लघंन के मामलों में कमी आएगी, मगर ताजा हालात पर नजर दौड़ाएं तो सीजफायर उल्लंघन के मामले में कोई कमी नहीं आई है. पाकिस्तान की सीमा की ओर से लगातार सीजफायर तोड़े जा रहे हैं. पाकिस्तानी गोलीबारी में न सिर्फ आम नागरिकों की मौत हो रही है, बल्कि हमारे कई जवान भी शहीद हो रहे हैं. हालांकि, मोदी सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक कर अपने मंसूबों को जाहिर किया, मगर बावजूद इसके ठोस रणनीति के अभाव में सीमा पर लगातार गोलीबारी और हिंसक घटनाएं बढ़ रही हैं. यह बात भी सही है कि पीएम मोदी ने दोनों देश के बीच के रिश्ते को सुधारने की कोशिशों के क्रम में लाहौर भी गये, मगर उसका नतीजा सिफर ही रहा. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि पाकिस्तान के मुद्दे पर मोदी सरकार अपने एजेंडे और वादे से भटक गई है, जो वह 2014 से पहले कहा करती थी.
कालेधन पर सरकार फेल
याद कीजिए 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले के पीएम मोदी के भाषण को. चुनावी रैलियों में पीएम मोदी का एक भी भाषण ऐसा नहीं होता था, जो बिना कालेधन के जिक्र के संपन्न हो जाए. मगर आज हकीकत सबके सामने है. भारतीय जनता पार्टी ने आम चुनाव के घोषणापत्र में विदेश में जमा भारतीयों का काला धन वापस लाने का वादा किया था। मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही विदेश में जमा काले धन का पता लगाने और इसे वापस लाने के लिए स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम (एसआईटी) बनाने की घोषणा की थी। चार साल के बाद भी मोदी सरकार को विदेश में जमा काले धन का पता लगाने और उसे वापस लाने में खास सफलता नहीं मिली है। हालांकि मोदी सरकार ने देश में मौजूदा काले धन का पता लगाने ओर काला धन पैदा होने से रोकने के लिए जरूर कई कदम उठाए हैं। इन कदमों में नोटबंदी, 2 लाख रुपए से अधिक के कैश ट्रांजैक्शन पर रोक लगाने, बेनामी प्रॉपर्टी ट्रांजैक्शन अमेंडमेंट एक्ट 2016 शामिल है। पीएम मोदी अपने भाषणों में कहा करते थे कि उनकी सरकार जब सत्ता में आएगी तो विदेशों में जमा भारतीय लोगों का कालाधन वो ले आएंगे और यह कालाधन इतना अधिक होगा कि सरकार हर व्यक्ति को 15 -15 लाख रुपये देगी. मोदी सरकार के चार साल पूरे हो गये, मगर अब भी लोगों को इस बात का इंतजार है कि विदेशों से कालाधन कब आएगा और उससे अधिक तो लोगों को इस बात का इंतजार है कि उनके अकाउंट में 15 लाख रुपये कब आएंगे, जिसका वादा चुनाव से पहले पीएम मोदी ने किया था. इस मामले पर मोदी सरकार की यह सबसे बड़ी नाकामी है कि अभी तक न सरकार को पता है कि विदेशों में कितना कालाधन जमा है और वे कब तक देश में आएंगे.
इसके अलावा मोदी सरकार ने स्विटजरलैंड, सिंगापुर, मारीशस और पनामा जैसे देशों के साथ डबल टैक्स अवॉयडेंस एग्रीमेंट किए। इससे ऐसे भारतीयों के संदिग्ध ट्रांजैक्शन के बारे में सरकार को जानकारी मिल रही है जो इन देशों के बैंक अकाउंट में पैसा जमा कराते हैं और इस पैसे पर भारत में टैक्स नहीं देते हैं।
कालेधन पर नहीं लगा अंकुश
इकोनॉमिस्ट पई पनिंदकर के अनुसार एसआईटी विदेश में जमा काले धन पर अभी तक कुछ नहीं कर पाई है। इसके अलावा नोटबंदी से भी काले धन पर लगाम लगाने में सरकार को सफलता नहीं मिली है। काला धन अब भी पैदा हो रहा है और सरकार काले धन रिकवर नहीं कर पा रही है।
बेरोजगारी के मुद्दे पर मोदी सरकार बैकफुट पर
अगर मोदी सरकार आज सत्ता में है, और चार साल का सत्ता सुख भोग लिया है, तो उसकी मुख्य वजह बेरोजगारी का मुद्दा, जिसके सफल प्रयोग से बीजेपी ने कांग्रेस की सरकार को उखाड़ फेंका. मोदी सरकार ने चुनावी घोषणा पत्र में हर साल 2 करोड़ रोजगार का वादा किया था, मगर रोजगार सृजन के मामले में मोदी सरकार औंधे मुंह गिरी है. यही वजह है कि बेरोजगारी के मुद्दे पर बीजेपी और मोदी सरकार बैकफुट पर नजर आती है. बेरोजगारी के मुद्दे पर जब मोदी सरकार फंसी तो पकौड़े बेचने को भी रोजगार की श्रेणी में ले आई और अपनी उपलब्धि बताने लगी. सच तो यह है कि रोजगार के सृजन का वादा मोदी सरकार नहीं निभा पाई है.60 फीसदी कम हो गईं नई नौकरियां
साल | नई नौकरियां |
2014 | 4.21 लाख |
2015 | 1.35 लाख |
2016 | 1.35 लाख |
सोर्स- लेबर ब्यूरो
नोटबंदी से कोई फायदा नहींप्रधानमंत्री ने नोटबंदी जैसा ऐतिहासिक फैसला तो लिया, लेकिन इस फैसले का परिणाम सिफर रहा. इस फैसले से न सिर्फ आम लोगों को परेशानी हुई, बल्कि कई जिंदगियां भी इस दौरान काल के गाल में समा गईं. पीएम मोदी ने कालेधन, भ्रष्टाचार पर चोट करने के उद्देश्य से नोटबंदी जैसा बड़ा फैसला लिया. लेकिन न तो कालाधन खत्म हुआ और न ही भ्रष्टाचार में कमी देखने को मिली. नोटबंदी की विफलता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक भी कह चुका है कि मार्केट में मौजूद पुराने नोट करीब 99 फीसदी वापस आ गये हैं. तो अब इस स्थिति से देखा जाए तो बकौल मोदी सरकार मार्केट फैले में जाली नोटों का क्या हुआ और देश में छुपे कालेधन का क्या हुआ? क्या नोटबंदी से भ्रष्टाचार पर लगाम लगा, क्या इससे देश की अर्थव्यवस्था में कोई बदलाव आया?
भगवान भरोसे नमामि गंगे परियोजना
प्रधानमंत्री ने काफी उत्सुकता के साथ नमामि गंगे प्रोजेक्ट को लॉन्च किया और 20,000 करोड़ रुपये का बजट दिया. लक्ष्य 5 साल का रखा गया लेकिन मिनिस्ट्री ऑफ वॉटर रिसोर्सेज के डेटा की मानें तो नमामि गंगे प्रोजेक्ट में काफी धीमी गति से काम हुआ है. 2014 से 17 के आंकड़ों पर गौर करें तो सरकार द्वारा बीते तीन सालों में 12 हजार करोड़ रुपये का बजट देने की बात कही गई, जिसमें से वास्तव में केवल 5378 करोड़ रुपये ही बजट में दिए गए. बजट में जारी 5378 रुपये में से केवल 3633 करोड़ रुपये खर्च के लिए निकाले गए और इसमें से केवल 1836 करोड़ 40 लाख रुपये ही वास्तव में खर्च किए गए. इतना ही नहीं, इस परियोजना की बदतर के मद्देनजर इसके मंत्री का भी पदभार बदल दिया गया.
आदर्श ग्राम योजना फेल
आदर्श ग्राम योजना के तहत हर सांसदों के द्वारा पांच गावों को गोद लेने की व्यवस्था है, जिसमें 2016 तक प्रत्येक सांसद एक-एक गांव को विकसित बनाएंगे और बाद में 2019 तक दो और गांवों का विकास होगा, मगर मोदी सरकार के चार साल पूरे हो गये, लेकिन एक भी गांव आदर्श ग्राम की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाया है. जबकि अब तक बीजेपी के ही कितने सांसद एक गांव को विकसित कर पाए हैं और उसे आदर्श बना पाएं हैं, यह हकीकत किसी से छुपी नहीं है. दूसरी पार्टियों के सांसदों की बात तो बहुत दूर की है, बीजेपी के सांसद अभी तक डेटलाइन पर काम पूरा नहीं कर पाए हैं.
नेपाल से रिश्ते खराब
मधेसियों के मुद्दे पर भारत का नेपाल के साथ रिश्ते काफी तल्ख हो गये. जब नेपाल के नये संविधान में मधेसियों ने प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर आंदोलन किया, तो उस वक्त भारत ने भी उनका साथ दिया. इसका नतीजा हुआ कि नेपाल सरकार से भारत के रिश्ते खराब हो गये. मधेसी आंदोलन के समय भारत ने पेट्रोल, दवा और अन्य सामानों की आपूर्ति को भी रोक दिया था. जिसके बाद चीन को नेपाल में पैर फैलाने का मौका मिल गया. भारत ने जब जरूरी सामानों की आपूर्ति रोक दी, तब चीन ने नेपाल की मदद की. इतना ही नहीं, नेपाल के मामले में भारत की दखलअंदाजी को नेपाल ने अपनी संप्रभुता के खिलाफ माना था. यही वजह है कि नेपाल को उस वक्त न सिर्फ चीने ने सामानों से मदद की थी, बल्कि सहानुभूति भी दी थी. तभी से नेपाल का चीन के प्रति सॉफ्ट रवैया दिखता है.
देश की आंतरिक सुरक्षा भी नहीं सुधरी
मोदी सरकार आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे पर भी काफी कमजोर साबित हुई है, ये बात अलग है कि मोदी सरकार ने सत्ता में आने से पहले काफी ऊंचे स्वर में कहा कि उनकी सरकार सत्ता में आने के बाद नक्सलियों का सफाया कर देगी, नक्सलवाद का खात्मा कर देगी. मगर छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र में समय-समय पर जिस तरह से नक्सली हमले हो रहे हैं, उसने मोदी सरकार की विफलता को उजागर कर दिया है. बीते साल अप्रैल में छत्तीसगढ़ के सुकमा में एक साथ 25 सीआरपीएफ जवानों शहीद हो गये थे. साल 2010 के बाद यह बड़ा नक्सली हमला था. इतना ही नहीं, समय-समय पर मोदी सरकार के कार्यकाल में लगातार नक्सली हमले होते रहे हैं, जिसमें हमारे जवानों ने अपनी जान गंवाई है.
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