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एक साल में अब क्या कर पाएंगे पीएम मोदी

Modi four year
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
चार साल बीत गए, मोदी सरकार के पास अब सिर्फ एक साल बचे हैं। अगले साल 2019 में आम चुनाव है। इन बचे दिनों में सरकार ऐसे क्‍या कदम उठाएगी जिसका लाभ उसे चुनाव में हो। जरूरी यह भी है कि उन कदमों  का फायदा देश की अर्थव्‍यवस्‍था, विदेश नीति और विदेशी निवेश पर भी दिखाई दे।
जानकार भी मानते हैं कि मोदी सरकार अहम पड़ाव पर है। अब नई योजना लाने या लागू करने का वक्‍त नहीं है। अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर कुछ ऐसे फैक्‍टर हैं, जो सरकार के कंट्रोल में नहीं है। दूसरे देशों से रिश्‍तें भी राजनय संबंधों के साथ-साथ अर्थव्‍यवस्‍था के लिए अहम है। इन सभी चुनौतियों के बीच चुनाव अहम है, ऐसे में मोदी सरकार बचे दिनों में क्‍या करेगी?
यूपीए के 10 साल के शासन के बाद बीजेपी की अगुआई वाले एनडीए ने अच्छे दिन के वादों के साथ भारी बहुमत जीता था। भाजपा का वादा था कि उनकी सरकार बनने के बाद अच्छे दिन हर तरह से आएंगे। यानी कि लोगों को महंगाई से राहत मिलेगी, कर्ज सस्ता होगा, हर साल 2 करोड़ नौकरियां मिलेंगी। सबके पास घर होगा, बिजनेस करना आसान होगा, किसान की इनकम डबल हो जाएगी। आइए जानते हैं कि 4 साल में मोदी सरकार के काम-काज से देश की जनता जो कन्ज्यूमर भी है और उसमें से एक बड़ा वर्ग बिजनेसमैन भी है, उसके लिए अच्छे दिन का क्या मतलब रहा। 

खुद तय करें कि अच्‍छे दिन आए या नहीं

कंज्‍यूमर 
महंगाई : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब सत्‍ता संभाली थी, उस समय सबसे बड़ी चुनौती बढ़ती महंगाई थी। लेकिन अच्‍छी बरसात और क्रूड ऑयल की कीमतों में गिरावट की वजह से महंगाई में कमी आई। क्रिसिल के चीफ इकोनॉमिस्‍ट  डीके जोशी ने बताया कि साल 2013-14 में महंगाई दर 9.5 फीसदी थी, जो 2017-18 में 3.6 फीसदी तक पहुंच गई और 2018-19 में 4.6 फीसदी पहुंचने का अनुमान है। यहां यह उल्‍लेखनीय है कि पिछले कुछ दिनों से क्रूड ऑयल की कीमतों में वृद्धि की वजह से पेट्रोल डीजल की कीमतें रिकॉर्ड बढ़ोतरी तक पहुंच गई है। पिछले पांच साल के दौरान महंगाई दर इस प्रकार रही।
2013-149.5 फीसदी 
2014-15 6 फीसदी 
2015-16 5 फीसदी
2016-174.5 फीसदी 
2017-183.6 फीसदी 
2018-19 
4.6 फीसदी (अनुमानित) 
लोन चार साल के दौरान लोन भी सस्‍ता हुआ है।  क्रिसिल की रिपोर्ट के मुताबिक, चार साल के दौरान एमसीएलआर में 116 बेस प्‍वाइंट, हाउसिंग लोन रेट में 190 बेस प्‍वाइंट, ऑटो लोन रेट में 150 बेस प्‍वाइंट की कमी आई है।
बिजलीआम आदमी के लिए बिजली की उपलब्‍धता एक बड़ा मुद्दा है। मोदी सरकार ने इस ओर ध्‍यान भी दिया है। CEA के आंकड़ों के मुताबिक -
साल
कमी
2013-14
-42,428 एमयू (-4.2%)
2014-15
-38130 एमयू ( -3.6%)
2015-16
-23,522 एमयू (-2.1%)
2016-17
-7,461 एमयू (-0.7%)
2017-18
- 8,567 एमयू (1.7% 
घर : प्रधानमंत्री ने शहरों में 2 करोड़ और गांवों में 1 करोड़ घर बनाने का लक्ष्‍य रखा था। लेकिन 21 मई 2018 तक केवल 443966 घर ही बन पाए हैं। जबकि गांवों में 8,38,140 घर ही बन पाए हैं।  वहीं, प्राइवेट डेवलपर्स की नकेल कसने के लिए रियल एस्‍टेट रेग्‍युलेशन एक्‍ट (रेरा) लाया गया, लेकिन राज्‍यों ने अब तक ढंग से लागू नहीं किया, जिस कारण लगभग 30 लाख लोगों को पैसा चुकाने के बावजूद घर नहीं मिल पाया है।
बिजनेस 
ईज ऑफ डुइंग बिजनेस : किसी भी देश की अर्थव्‍यवस्‍था के लिए यह बेहद जरूरी है कि देश में बिजनेस करना आसान हो। इसी के चलते मोदी सरकार ने ईज ऑफ डुइंग बिजनेस के लिए कई महत्‍वपूर्ण फैसले लिए। जिसकी बदौलत वर्ल्‍ड बैंक की ग्‍लोबल रैंकिंग में भारत का स्‍थान 130 से घटकर 100 पर पहुंच गया है। इंटिग्रेटिड एसोसिएशन्‍स ऑफ माइक्रो, स्‍मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज के अध्‍यक्ष राजीव चावला के मुताबिक, उद्योग आधार, डिमोनि‍टाइजेशन, जीएसटी जैसे कड़े कदमों के कारण इंडस्‍ट्री को फौरी दिक्‍कतें हुई, जिसका फायदा कारोबारियों को मिलेगा।
क्रेडिट : बिजनेस के ग्रोथ में क्रेडिट की मजबूत हिस्‍सेदारी होती है। लेकिन मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान भारत की क्रेडिट ग्रोथ अब तक सबसे कम स्‍तर पर पहुंच गई। 2016-17 में इंडस्‍ट्री का क्रेडिट ग्रोथ (-)1.9 फीसदी तक पहुंच गया। बैंकर्स का कहना है कि क्रेडिट ग्रोथ कम होने की वजह दो है। एक तो बिजनेस एक्टिवटीज कम होना, दूसरा एनपीए बढ़ने की वजह से बैंकों द्वारा लोन न देना। हालांकि 2017-18 में इसमें मामूली सुधार हुआ। आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, इंडस्‍ट्री का क्रेडिट ग्रोथ इस प्रकार रहा - 
2013-14
13.1 फीसदी
2014-15
5.6 फीसदी
2015-16
2.7 फीसदी
2016-17
(-) 1.9 फीसदी
2017-18
0.7 फीसदी
रिफॉर्म : सरकार ने कई बिजनेस रिफॉर्म भी किए। क्रिेसिल की रिपोर्ट के मुताबिक, इन्‍सॉल्‍वेंसी एवं बैंकरप्‍सी कोड में बदलाव और टैक्‍सेशन (जीएसटी) दो बड़े रिफॉर्म हैं, जो बिजनेस ग्रोथ के लिए अहम साबित होंगे। इसके अलावा लेबर रिफॉर्म ने छोटे कारोबारियों का बिजनेस करना आसान कर दिया। 
स्‍टार्ट-अप्‍स : युवाओं को स्‍वरोजगार के प्रति आकर्षित करने के लिए मोदी सरकार ने कई नई योजनाएं शुरू की। इसमें स्‍टार्ट-अप इंडिया एक बड़ी मुहिम शुरू की गई। हालांकि अब तक आंकड़े बताते हैं कि अब तक 99 स्‍टार्ट-अप को ही फंड दिया गया। वहीं, सरकार के स्‍टैड अप इंडिया और मुद्रा स्‍कीम की वजह से नए एंटरप्रेन्‍योर की संख्‍या बढ़ी है। मुद्रा रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2016-17 में कुल 3.97 करोड़ कारोबारियों को मुद्रा लोन दिया गया, जिसमें से 99.89 लाख नए कारोबारी हैं। इसके अलावा अब कंपनी का रजिस्ट्रेशन टाइम 4-5 दिन से घटकर 1 पर आ गया है।
नौकरी पेशा
नौकरियों के अवसरमोदी सरकार ने वादा किया था कि हर साल 2 करोड़ नई नौकरियां दी जाएंगी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। नौकरियों के अलग-अलग आंकड़ों को लेकर विवाद जरूर गहराता रहा और नौकरियां बढ़ने की बजाय कम होने के आरोप सरकार पर लगे। हालांकि, एसबीआई के चीफ इकोनॉमिस्‍ट डॉ. सौम्‍या कांति धोष की रिपोर्ट के मुताबिक, 2017-18 में लगभग 67 लाख नई नौकरियां पैदा हुई।  वहीं, इससे पहले 2015 में 1.55 लाख और 2016 में 2.31 लाख नौकरियों के मौके पैदा कर पाई।
टैक्‍स कम हुआ कि नहीं मई 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई थी, देश में 5.17 करोड़ टैक्सपेयर थे। जो चार साल में बढ़कर 8 करोड़ हो गए हैं। भाजपा का वादा था कि वह धीरे-धीरे टैक्स रेट में कटौती करेगी। इन 4 साल में कटौती के फ्रंट पर सैलरीड क्लास को साल 2016-17 में टैक्स स्लैब में बदलाव से थोड़ी राहत दी गई। सरकार ने इसके तहत एंट्री टैक्स स्लैब के रेट को 10 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दिया था। इससे 5 लाख तक के इनकम वालों को थोड़ी राहत मिली। इसके अलावा और कोई बड़ी राहत नहीं दे पाई। हालांकि टैक्स डिडक्शन लिमिट 2 लाख से बढ़ाकर 2.5 लाख कर सेविंग बढ़ाने की जरुर कोशिश की। खुद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस बार के बजट पेश करने के बाद स्वीकार किया था, कि अभी वेतनभोगी पर टैक्स का बोझ ज्यादा है।
कितनी बढ़ी इनकम : सैलरी क्‍लास आदमी अपने अच्‍छे दिन की कल्‍पना अपने सैलरी इंक्रीमेंट से करता है। एक सर्वे में यह अनुमान लगाया गया था कि साल 2015-16 में भारतीय कंपनियां अपने कर्मचारियों को औसतन 10.7 फीसदी इंक्रीमेंट देंगी, जबकि 2018-19 में इसमें कमी आई और अनुमान लगाया गया कि औसतन 9.4 फीसदी इंक्रीमेंट होगा।
सेविंग्‍स : भारतीय परिवारों के लिए उनकी सेविंग्‍स उनकी खुशहाली का एक बड़ा आधार होता है। मोदी सरकार के कार्यकाल में सेविंग्‍स में कमी आने की रिपोर्ट्स सामने आई हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की साल 2016-17 की एनुअल रिपोर्ट के मुताबिक इस साल ग्रोस नेशनल डिस्‍पोजेबल इनकम के मुकाबले हाउसहोल्‍उ सेक्‍टर की ग्रोस सेविंग्‍स 18.7 फीसदी रही, जो साल 2014-15 में 20 फीसदी थी। 
लाइफ स्‍टाइल 
ऑटो सेल्‍स : देश में यदि कारों की संख्‍या बढ़ रही है तो अनुमान लगाया जाता है कि लोगों के पास एक्‍सट्रा इनकम आ रही है। जबकि टू-व्‍हीलर सेल्‍स बढ़ने का मतलब है कि रूरल इकोनॉमी ग्रो कर रही है, जबकि कॉमर्शियल व्‍हीकल बढ़ने का मतलब है कि इकोनॉमी बूस्‍ट कर रही है। आइए, जानते हैं कि पिछले 5 साल में व्‍हीकल्‍स की सेल्‍स कैसे बढ़ी - 
साल             कार की सेल्‍स    टू-व्‍हीलर्स की सेल्‍स      कॉमर्शियल सेल्‍स
2013-14        25 लाख           1.48 करोड़                6.32 लाख 
2014-15        26 लाख           1.52 करोड़                6.14 लाख 
2015-16        27.89 लाख      1.64 करोड़                6.85 लाख 
2016-17        30.47 लाख      1.75 करोड़                7.14 लाख 
2017-18        32.87 लाख      2.01 करोड़                8.56 लाख 
सफर : यदि आपके पास प्राइवेट व्‍हीकल नहीं है तो आप पब्लिक ट्रांसपोर्ट का सहारा लेते हैं। ऐसे में, यह जरूरी है कि आपके लिए जानना जरूरी है कि रेलवे का सफर कितना कंफर्टेबल रहा। आंकड़े बताते हैं कि रेलवे में सफर करना लोगों के लिए आसान नहीं रहा। एक स्‍टडी के मुताबिक, अकेले बिहार जाने वाली ट्रेनें जो 2015 में औसतन 80 मिनट लेट होती थी, वो 2016 में 93 मिनट और 2017 में 104 मिनट मिनट लेट रही। रेल यात्री डॉट इन की स्‍टडी के मुताबिक, 2017 में उत्‍तर प्रदेश की ओर जाने वाली ट्रेनें औसतन 95 मिनट, पंजाब में 67 मिनट, गोवा में 64 मिनट और आसाम में 62 मिनट लेट चली। जहां रेल एक्‍सीडेंट की बात है तो एक्‍सीडेंट में कमी जरूर आई है। जैसे कि साल 2014-15 में 135 एक्‍सीडेंट हुए थे, जो 2015-16 में घटकर 107 और 2016-17 में 104 हो गए। जबकि 2017-18 में केवल 73 एक्‍सीडेंट रिकॉर्ड किए गए। 
सोशल सिक्‍योरिटी 
सरकार ने सोशल सिक्‍योरिटी को लेकर तीन बड़ी योजनाएं शुरू की। जिनमें प्रधानमंत्री जीवन ज्‍योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और अटल पेंशल योजना शामिल हैं। परफॉरमेंस रिपोर्ट बताती है‍ कि प्रधानमंत्री जीवन ज्‍योति बीमा योजना और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के तहत लगभग 30 करोड़ लोगों का बीमा किया जा चुका है। जबकि 1 करोड़ से अधिक लो अटल पेंशन योजना का लाभ उठा रहे हैं।
4 साल और शेयर बाजार 
पिछले 4 साल की बात करें तो सेंसेक्स में 41 फीसदी तेजी रही है। 26 मई 2014 को सेंसेक्स 24716 के स्तर पर था, जो 25 मई 2018 को 34924 के स्तर पर पहुंच गया। 29 जनवरी 2018 को सेंसेक्स ने अपना ऑलटाइम हाई 36443 बनाया था। वहीं, इस दौरान निफ्टी ने 42 फीसदी ग्रोथ दिखाई। वहीं, जनवरी 2018 में निफ्टी ने पहली बार 11000 का स्ता भी पार किया।
तारीख                   सेंसेक्स 
26 मई 201424716  
26 मई 201527531
26 मई 201626366
26 मई 201731028
25 मई 2018
34924
क्‍या गांव-किसान-रोजगार पर ही होगा फोकस? 
अर्थशास्‍त्री प्रणब सेन का कहना है कि मोदी सरकार के पास वक्‍त अब नहीं है। अगले साल आम चुनाव है। इस बात की गुंजाइश नहीं है कि सरकार कोई नई स्‍कीम लाए क्‍योंकि उसे लागू करने और उसका असर आम लोगों तक होने में समय लगता है। ऐसे में किसी नई स्‍कीम के जरिए लोगों खासकर मतदाताओं को लुभाना संभव नहीं है। 
सेन मानते हैं कि सरकार के पास एक साल बचे हैं, इसमें वह दो स्‍तर पर बड़ी पहल कर सकती है। पहला, किसानों को लागत का डेढ़ गुना न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपी) लागू करना। एमएसपी के मसले पर सरकार देर नहीं करेगी। खरीफ की बुवाई से पहले यदि सरकार इसे लागू करती है, तभी इसका फायदा होगा।
वित्‍त मंत्री अरुण जेटली ने बजट में किसानों को इनपुट कॉस्‍ट का 150 फीसदी एमएसपी का एलान किया था। प्रधानमंत्री मोदी खुद अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में कह चुके हैं कि फसल के लिए इनपुट कॉस्‍ट का डेढ़ गुना न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (मूल्‍य) तय करने के दौरान किसान की सभी तरह की लागत और खर्चे को ध्‍यान में रखा जाएगा। 
सेन का कहना है दूसरा एक्‍शन सरकार महात्मा गांधी  राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के मामले में कर सकती है। क्‍योंकि, इसका सीधा असर ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर होगा। नौकरी के मसले पर बीते चार साल से मोदी सरकार विपक्ष के निशाने पर रही है। पीएम मोदी का हर साल 2 करोड़ युवाओं को रोजगार देने का पिछला चुनावी वादा हकीकत पर नहीं उतर पाया। इस तरह यदि शहरों के साथ-साथ कस्‍बाई या ग्रामीण वोटरों को साधना है तो एमएसपी के साथ जॉब गारंटी स्‍कीम को बूस्‍ट देना बेहतर साबित हो सकता है। 
वित्‍तमंत्री अरुण जेटली ने 2018-19 के बजट प्रस्‍तावों में मनरेगा के मद में आवंटन 55 हजार करोड़ रुपए ही रखा। इससे पिछले साल जेटली ने अपने प्रस्‍ताव में मनरेगा के लिए 48 हजार करोड़ रुपए का आवंटन किया था, जिसे बाद में बढ़ाकर 55 करोड़ रुपए किया गया था। इस तरह, मोदी सरकार बचे एक साल में मुमकिन है अपना फोकस गांव-किसान-रोजगार पर करती दिखाई दे।
क्‍या लोकलुभावन घोषणाएं होंगी? 
मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर असहमति जताते हुए अर्थशास्‍त्री मोहन गुरुस्‍वामी कहते हैं, चार साल बीते गए अब एक साल में सरकार क्‍या कर लेगी। मुझे नहीं लगता की कुछ नया दिखाई देगा। चूंकि सरकार का मकसद चुनाव जीतना है, इसलिए मुमकिन है लोकलुभावन घोषणाएं सामने आए। इसमें एक कदम पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी (एक्‍साइज घटाकर) के रूप में दिखाई दे सकता है। 
देश में पेट्रोल-डीजल के दाम रिकॉर्ड लेवल पर पहुंच गए हैं। राजधानी दिल्‍ली में पेट्रोल का भाव 77 के ऊपर और डीजल 68 रुपए के लेवल के पार चुका है। अभी केंद्र सरकार पेट्रोल पर 19.48 रुपए प्रति लीटर और डीजल पर 15.33 रुपए प्रति लीटर एक्साइस ड्यूटी वसूलती है। 
10 करोड़ परिवारों को 5 लाख रुपए तक कैशलेस स्‍वास्‍थ्‍य बीमा योजना आयुष्‍मान भारत स्‍कीम, जिसे 'मोदीकेयर' भी कहा जा रहा है, इसे चुनाव से पहले लागू कराना मुमकिन है या नहीं, इस पर गुरुस्‍वामी कहते हैं, फिलहाल इसे लागू करा पाना आसान नहीं है। इसमें सबसे बड़ा रोड़ा सरकारी तंत्र है, क्‍योंकि उसमें अभी पुराने लोग ही हैं।
विदेशी निवेश पर क्‍या सीमित है अवसर?
फॉर्च्‍यून फिस्‍कल के डायरेक्‍टर जगदीश ठक्‍कर का कहना है, बाजार में विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के मसले पर मोदी सरकार के पास अगले एक साल में करने के लिए बहुत अवसर नहीं है। सरकार के पास सीमित मौके हैं। सरकार अधिक से अधिक रिफॉर्म्‍स को तेज करने के कदम उठा सकती है। लेकिन, कच्‍चा तेल (क्रूड) और डॉलर में मजबूती जैसे फैक्‍टर ऐसे हैं, जो सरकार के कंट्रोल में नहीं है।
क्‍या कहते हैं आर्थिक मानक? 
आर्थिक मानकFY14FY15FY16FY17FY18
जीडीपी (%)6.67.28.07.16.6
महंगाई (%)9.56.05.04.53.6
सीएडी/जीडीपी (%)1.71.31.10.71.9*
वित्‍तीय घाटा/जीडीपी (%)4.64.03.93.53.5
एफडीआई (USD bn)2231363624*
सोर्स: CSO, RBI, वित्‍त मंत्रालय 
*वित्‍त वर्ष 2018 में अप्रैल-दिसंबर 2017 तक 
ठक्‍कर बताते हैं, दूसरी अहम बात है कि विदेशी निवेश का सेंटीमेंट राजनीतिक स्थिरता पर भी निर्भर करता है। हाल में हुए कर्नाटक के चुनाव केंद्र सरकार के पक्ष में नहीं रहा और 2019 में लोकसभा चुनाव है। ऐसे में कोई नया रिफॉर्म करने की गुंजाइश कम है लेकिन मौजूदा रिफॉर्म्‍स की रफ्तार तेज सकती है। 
4YearsOfModiGovtडिप्‍लोमेसी की पिच पर क्‍या कम्‍फर्ट दिखेंगे मोदी?
प्रधानमंत्री मोदी अबतक करीब 54 देशों की यात्रा कर चुके हैं। इस दौरान उन्‍होंने तकरीबन डेढ़ सौ दिन विदेश में बिताए, यानी हर दस दिन में उन्‍होंने एक दिन विदेश में गुजारे। परंपरागत विदेश नीति से हटकर मोदी ने कुछ नई पहल की। अमेरिका से रिश्‍तें मजबूत हुए तो रूस से भी नजदीकी बढ़ी। सऊदी अरब से लेकर इजराइल और फिलिस्‍तीन तक सब पर मोदी ने एक अलग बेंचमार्क बनाया। अब अगले एक साल में मोदी कैसी डिप्‍लोमेसी करेंगे। 
विदेश मामलों के जानकार और दिल्‍ली यूनिवर्सिटी में असिस्‍टेंट प्रोफेसर प्रशांत त्रिवेदी कहते हैं, पश्चिम एशिया में भारत की धाक बनी रहेगी। सीरिया समेत पूरे इलाके में उथल-पुथल होने के बाद भी भारत के सभी देशों से रिश्‍ते सबसे बेहतर हैं। भारत एक साथ इजराइल और फलस्‍तीन के साथ तालमेल बनाने में कामयाब रहा है। सऊदी अरब, यूएई, इराक, ईरान, ओमान और कतर जैसे देशों के साथ भारत के रिश्‍ते बेहतर बने रहेंगे। 
प्रशांत का कहना है, कई मसलों पर अमेरिका की ट्रम्‍स सरकार ने जिस तरह का कड़ा रुख अपनाया है, उससे और चीन के साथ इक्‍वेशन अच्‍छा होगा। अगर पाकिस्‍तान की बात करें तो भारत नगोशिएशन की टेबल पर रहेगा। दरसअल पाक के पास चीन के अलावा कोई विकल्‍प नहीं है। पाक के भीतरी राजनीतिक हालात पाकिस्‍तान को बातचीत की टेबल पर हमेशा भारत के सामने रखेंगे। 
उनका मानना है कि भारत के खिलाफ अगर चीन की बात करें तो उसके पास पास अब कोई ऑप्‍शन नहीं दिख रहा है। खासकर अमेरिका के साथ ड्रेड वॉर के बाद चीन भारत के साथ आसानी से नेगोशिएट करता दिखेगा। रूस की भी स्थिति कमोबेश वही है। 5वें साल में मोदी डिप्‍लोमेसी की पिच पर काफी कम्‍फर्ट दिखेंगे।

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