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अजीब खानदान है, बाप बेटे का नहीं, बेटा-बाप का नहीं: असदुद्दीन ओवैसी

asaduddin-owaisi1एआईएमआईएम के मुखिया और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने समाजवादी पार्टी में हो रहे विवाद पर कहा है कि यहां पर जो हो रहा है, वह ऐतिहासिक है. एक बाप ने अपने बेटे को पार्टी से निकाल दिया. ओवैसी ने कहा कि अजीब परिवार है. अजीब पार्टी है, अजीब खानदान है. जहां बाप बेटे का नहीं हुआ, बेटा-बाप का नहीं हुआ. चाचा भतीजे का नहीं हुआ और भतीजा चाचा का नहीं हुआ.
बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद समाजवादी पार्टी बनी-
लखनऊ में पार्टी की जनसभा को संबोधित करते हुए ओवैसी ने कहा किबाप-बेटे की ये लड़ाई पचीस सीटों के लिए नहीं है. हो सकता है कि इसका कारण दौलत हो या फिर कोई और कारण हो. उन्होंने आगे कहा,’बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद समाजवादी पार्टी बनी थी. मुसलमानों ने मुलायम सिंह को नेता बनाया, लेकिन उन्होंने मुसलमानों को क्या दिया?’ ओवैसी ने कहा कि समाजवादी पार्टी और बीजेपी में कोई फर्क नहीं है.
यूपी में सारी पार्टियां मुसलमानों को वोटबैंक ही समझा-
लखनऊ स्थित अपने सरकारी आवास पर पत्रकारों से वार्ता करते सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव
कांग्रेस हो या फिर बीएसपी सभी ने मुसलमानों को वोटबैंक ही समझा. विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में मुसलमानों को आबादी के हिसाब से 18 फीसदी आरक्षण का वादा किया था. आपने उनकी सरकार बनवा दी, लेकिन क्या मुसलमानों को आरक्षण मिला?’ ओवैसी ने हमलावर लहजे में कहा,’मुजफ्फरनगर दंगे में 50 हजार से ज्यादा मुसलमान परिवार बेघर हो गए.
सौ से अधिक हिन्दुओं और मुसलमानों की मौत हुई. दस मुस्लिम महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में जाकर अपने साथ रेप की जानकारी दी और न्याय मांगा. लेकिन, अखिलेश सरकार ने उन्हें न्याय नहीं दिया. बल्कि, उन महिलाओं के बयान बदलवा दिए गए. दादरी की घटना के समय भी अखिलेश ही सीएम थे, लेकिन वह वहां नहीं गए.
कहा जाता है कि किसी ज्योतिष ने कहा है कि दादरी गए तो दोबारा सत्ता में नहीं आओगे. मैं दादरी गया था और वहीं कहा था कि अखिलेश दोबारा सत्ता में नहीं आओगे. आज उसकी शुरुआत हो गई है.’ 
नोटबंदी को लेकर पीएम पर हमला-
नोटबंदी के मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी पर हमला करते हुए ओवैसी ने आरोप लगाया कि दलितों और मुस्लिमों के इलाकों में एटीएम में पैसे नहीं डाले गए. जब मैंने यह बात उठाई, तो पीएम ने इसे साम्प्रदायिक बयान करार दिया.
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सपा में एक तरफ अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा बताया जा रहा था तो दूसरी तरफ 20 अक्टूबर को होने वाली सपा कार्यकारिणी की बैठक में अखिलेश को विशेष आमंत्रित सदस्य भी नहीं बनाया गया था.
उस समय सपा के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने अखिलेश यादव के सभी करीबियों को पार्टी से अनुशासनहीन होने का इल्जाम लगाकर बाहर का रास्ता दिखा दिया . उस समय पार्टी के युवा नेताओं ने आवाज उठायी थी कि किसी पर कोई आरोप होता है तो पहले कारण बताओ नोटिस तो दिया ही जाता है. इस तरह से थोड़े ही नादिरशाही फरमान सुनाना गलत है
सपा से निर्दोषों के निष्कासन का विरोध करते हुए पार्टी के युवा नेताओं ने अखिलेश के करीबियों के नए ठिकाने पर मीटिंग कर एक बड़ा फैसला ले लिया कि वह समाजवादी पार्टी के 5 नवम्बर को होने वाले रजत जयन्ती समारोह में शिरकत नहीं करेंगे. इस फैसले के बाद कालीदास मार्ग से लेकर विक्रमादित्य मार्ग के बीच हलचल बहुत तेज़ हो गई थी. पार्टी के युवा नेताओं द्वारा पार्टी नेतृत्व को इस तरह उस समय ही अन्दरखाने में चर्चा तेज हो गई थी कि  युवा नेताओं के इस फैसले को देखते हुए सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव जल्द ही कोई बड़ा फैसला लेंगे और बहुत संभव है कि वह अखिलेश को ही पार्टी से बाहर निकाल देंगे.

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