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एम.जे. अकबर ने राजीव गाँधी ने कहकर पलटवाया था शाहबानो फैसला

m-j-akbar-make-changed-shah-bano-decision-by-rajiv-gandhi-pmसमान आचार संहिता की वकालत करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदा केंद्र सरकार में विदेश राज्यमंत्री एम. जे. अकबर ही थे जो शाह बानो मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से मिलकर अदालत का फैसला पलटवा चुके हैं। पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने अक्टूबर 18 को यह बात कही।
Image result for शाहबानो प्रकरणउल्लेखनीय है कि 1986 के इस बेहद विवादित मामले में राजीव गांधी की तत्कालीन केंद्र सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक अधिकार संरक्षण) अधिनियम पारित कर मोहम्मद खान बनाम शाह बानो मामले में सर्वोच्च अदालत द्वारा 23 अप्रैल, 1985 को दिए फैसले को पलट दिया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने तब अपने फैसले में कहा था कि अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 125, जो परित्यक्त या तलाकशुदा महिला को पति से गुजारा भत्ता का हकदार कहता है, मुस्लिम महिलाओं पर भी लागू होता है, क्योंकि सीआरपीसी की धारा 125 और मुस्लिम पर्सनल लॉ के प्रावधानों में कोई विरोधाभास नहीं है।
हालांकि तब मुस्लिम धर्मगुरुओं और कई मुस्लिम संगठनों ने अदालत के फैसले को शरिया में हस्तक्षेप कहकर इसका पुरजोर विरोध किया था और सरकार से हस्तक्षेप करने की मांग की थी।
Image result for शाहबानो प्रकरणहबीबुल्लाह उस समय प्रधानमंत्री कार्यालय में निदेशक के पद पर नियुक्त थे और अल्पसंख्यक मुद्दों को देखते थे।
समाचार-पत्र 'द हिंदू' में अक्टूबर 18 को प्रकाशित अपने स्तंभ में हबीबुल्लाह ने कहा है, "मैं अपनी मेज पर ऐसी याचिकाओं और पत्रों का अंबार पड़ा पाया, जिसमें अदालत के फैसले की आलोचना की गई थी और सरकार से हस्तक्षेप कर अदालत का फैसला पलटने की मांग की गई थी।"
वह आगे लिखते हैं, "तब मैंने सुझाव दिया था कि हर याचिकाकर्ता से कहा जाए कि वे सर्वोच्च न्यायालय में समीक्षा याचिका दायर करें। एक बार तो ऐसा लगा कि मेरा सुझाव मान लिया गया, हालांकि मुझे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।"
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हबीबुल्ला आगे कहते हैं, "तभी एक दिन जब मैंने प्रधानमंत्री राजीव गांधी के चेंबर में प्रवेश किया तो वह राजीव गांधी के सामने एम.जे. अकबर को बैठा पाया। मैंने देखा कि अकबर, राजीव गांधी इस पर राजी कर ले गए थे कि यदि केंद्र सरकार शाह बानो मामले में हस्तक्षेप नहीं करती है तो पूरे देश में ऐसा संदेश जाएगा कि प्रधानमंत्री मुस्लिम समुदाय को अपना नहीं मानते।"
उल्लेखनीय है कि पत्रकारिता से राजनीति में आए एम. जे. अकबर 1989-91 में बिहार के किशनगंज से कांग्रेस सांसद चुने गए थे। वह कांग्रेस के आधिकारिक प्रवक्ता भी रह चुके हैं। कभी नरेंद्र मोदी की भर्त्सना करने वाले एम.जे. अकबर ने बाद में दल बदल करते हुए भाजपा से हाथ मिला लिया और नरेंद्र मोदी की मौजूदा केंद्र सरकार में मंत्री पद पाया।
राजीव गांधी सरकार द्वारा तब कानून में किए गए बदलाव को कांग्रेस पार्टी की आधुनिक विचारधारा में पतन के तौर पर देखा गया था।
गौरतलब है कि मौजूदा केंद्र सरकार ने समान आचार संहिता पर नए सिरे से बहस शुरू की है, जिस पर मुस्लिम नेताओं का विरोध शुरू हो गया है और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने समान आचार संहिता पर चर्चा के लिए गठित विधि आयोग का बहिष्कार करने का फैसला किया है।
उल्लेखनीय है कि इस बीच तीन तलाक का मामला भी सर्वोच्च अदालत में विचाराधीन है।
Image result for r balashankar bjpअब प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या महिलाओं के उत्थान की बात की बात करने वाले प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी एम.जे. अकबर एवं अकबर जैसी मानसिकता वालों के दबाव में आकर न्यायालय के निर्णय को बदलने का साहस कर दूसरे राजीव गाँधी सिद्ध होंगे? लगता है न्यायाधीशों के सम्मुख एवं विचार में शाहबानो प्रकरण तो नहीं घूम रहा ?  फिर कांग्रेस में रहते जितना भाजपा का विरोध अकबर ने किया है, शायद ही किसी अन्य पत्रकार ने किया हो। और भाजपा ने अकबर के पार्टी में आते ही सिर पर बैठा अकबर का महिमा मंडन प्रारम्भ कर पार्टी में डॉ आर.बालाशंकर जैसे बाल्यकाल से संघ से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार को किनारे कर दिया। भाजपा को चाहिए कि दूसरे दल त्याग पार्टी में सम्मिलित होने वालों को न एकदम कोई पद दे और न ही चुनाव टिकट। ये जितने भी हैं, सब विलासिता की ज़िन्दगी जीने वाले है और उस विलासिता को पार्टी में कमर्ठ कार्यकर्ताओं के कन्धों पर उसी ज़िन्दगी को जी रहे हैं। 


Comments

Unknown said…
यदि एक बार कोई गलती हो और उससे गलत परिणाम निकले तो सुधारने में कोई बुराई नहीं है।

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