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एन.जी.ओ का मतलब ही भ्रष्टाचार है

अन्ना आप भी गांधीवादी हो और डॉ मनमोहन सिंह गांधीवाद की ही विरासत पर सत्तानशीं हैं, फिर झगडा किस बात का दोनों गांधीवादी एक साथ मिल जुल कर मामले को हल कर लेते लेकिन आपके आन्दोलन के पीछे जिन ताकतों का हाथ है। उन ताकतों की तरफ या तो आप देख नहीं रहे हैं या देख कर भी अनदेखी कर रहे हैं।
अन्ना जी भ्रष्टाचार तो सिर्फ बहाना है, एन.जी.ओ का मतलब ही भ्रष्टाचार है…
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश  है आपके अनशन के पीछे फोर्ड फाउण्डेशन, ब्लैक ऑथोर फाउण्डेशन सहित दुनिया के तमाम साम्राज्यवादी देशों  से सहायता  लेने वाले गैर-सरकारी संगठन (एन.जी.ओ) हैं और मीडिया अपनी खबरें बेचने का काम कर रहा है इसके अतिरिक्त कुछ नहीं है। भ्रष्टाचार तो सिर्फ बहाना है। एन.जी.ओ का मतलब ही भ्रष्टाचार है और आपके पीछे अधिकांश एन.जी.ओ वाले ही हैं। देश की बहुसंख्यक जनता का लोकपाल या जन लोकपाल से कोई लेना देना नहीं है।
ngo-delhi-anna17 मार्च 2014 को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ अन्ना की दिल्ली रैली फ्लाॅप हुई थी। उस रैली में भीड़ नहीं थी। कुर्सियां खाली पड़ी थी। अन्ना को जब मालूम हुआ भीड़ नही जमा हुई, अन्ना रामलीला ग्राउंड ही नही पहुंचे। क्योंकि उस रैली को किसी एनजीओ का समर्थन नहीं था।  उस रैली के बाद अन्ना की इतनी हैसियत नहीं थी, जिससे किसी आम आदमी का ऊपर  उठना संभव हो। लेकिन अब कौन सी ऐसी हिम्मत आ गयी कि अन्ना जंतर-मतर पर यह सोचकर आश्वस्त होकर फिर चल दिए कि भीड़ तो आनी ही है, आंदोलन सफल होना ही है। अगर इस बूते अन्ना धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं तो जो रैली 5 अप्रैल 2011 को हुई थी, उसको सफल करने में कौन सी ताकत प्रयत्नशील थी? इसमे सच्चाई भी है, अतिशीघ्र इसके ऊपर से पर्दा हटेगा, यदि मीडिया निष्ठा एवं ईमानदारी से प्रयत्न करें। क्योंकि यूपीए के शासन काल के यदि वो शक्तियां खुलकर सामने आती तो न अन्ना आंदोलन का साहस कर पाते और न ही भीड़ आ पाती। यानि अन्ना के ड्रामे की पोल ही खुल जाती, अन्ना का आंदोलन फ्लाॅप हो जाता, उसके पीछे किसकी ताकत थी? यह प्रश्न तब उठता है जब अन्ना द्वारा दुबारा आंदोलन की घोषणा की जाती है और कांग्रेस के महारथियों की चहल कदमी उसके पक्ष में हो जाती है। समस्त लामबंधियों के साथ कांग्रेस जुगलबंदी भी सामने आ जाती है, एक नही अनेक पहलू है, जिनकी यदि जांच की जाए तो अन्ना और उनके सहयोगी कटघरे में दिखेंगे।
अन्ना  ईमानदार एवं निष्ठावान गांधीवादी?
annaअन्ना यदि ईमानदार एवं निष्ठावान गांधीवादी है, तो राष्ट्र को बताएं कि जिस चार्टर्ड प्लान से अन्ना पुणे से दिल्ली आए, वह किस कम्पनी का था? किसने उनके आने का खर्चा किया? क्या यह सच नहीं कि उस चार्टर्ड प्लेन में अन्ना के साथ कौन बैठा था? वह व्यक्ति उन्हें क्या मंत्रणा पढ़ा रहा था? क्या यह सच नहीं कि अन्ना के उस प्रदर्शन  को सफल बनाने के लिए पलवल से भीड़ मंगवायी गयी? क्या यह सच नहीं कि इस आंदोलन को सफल बनाने मे कांग्रेसी उद्योगपति पानी की तरह पैसा नहीं बहा रहे थे ? क्या यह सच नहीं के एकता परिषद परिषद के पी. वी. राजगोपाल अन्ना के किसान आंदोलन से अलग हो गए हैं? केरल से गांधीवादी कार्यकर्ता गांधी शांति प्रतिष्ठान के उपाध्यक्ष एवं एकता परिषद के प्रमुख राजगोपाल ने 2011 में ही कहा था कि अन्ना टीम के निर्णयों के उन्हें नहीं पूछा जाता।
आज अमेरिका दिवालियेपन की ओर  बढ़ रहा है, फ्रांस ऋण ग्रस्त हो रहा है, भारत पूंजीवादी विकास के पथ पर एक शक्तिशाली आर्थिक ताकत के रूप में उभर रहा है। साम्राज्यवादी शक्तियां उस पूंजीवादी आर्थिक विकास को रोकने के लिये हर तरह के हथकंडे अपना रही हैं जिसका एक औजार आप भी बन गए हैं। साम्राज्यवादियों के आका अमेरिका को अब लोकतंत्र याद आने लगा है।
भारतीय दौरे पर आए अमेरिकी सीनेटर जॉन मैक्‍केन ने ट्वीट करते हुए लिखा था कि भारत में इस समय हर ओर भ्रष्टाचार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। देश के लोकतंत्र के लिए यह चिंता की बात है। उन्होंने कहा कि देश में लोकतंत्र के लिए यह शुभ  संकेत नहीं है।  उन्होंने कहा कि उनके होटल के सामने हजारों लोग भ्रष्टाचार के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। अन्ना  हजारे की गिरफ्तारी पर अमेरिका की तरफ से यह बयान आया था कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और वहां किसी को अनशन करने की इजाजत मिलने में रुकावट नहीं आनी चाहिए।
क्या अमेरिका बताएगा कि किसको अनशन करने की इजाजत होगी किसको नहीं?
क्या अब अमेरिका बताएगा कि किसको अनशन करने की इजाजत होगी किसको नहीं। ईराक से लेकर अफगानिस्तान तक लोकतंत्र का ठेका अमेरिका ने ले रखा है और इन देशों की दशा और दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। लीबिया में नाटो सेनाएं लोकतंत्र के लिये बम्बार्ड कर रही हैं। अधिकांश एशियाई व अफ्रीकी देश  अमेरिकन साम्राज्यवादियों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से गुलाम हैं। आप अनशन अवश्य करिए सिर्फ 21 दिन का नहीं 121 दिन का कर दीजिये, तो भी इस देश की मेहनतकश जनता का आपको समर्थन नहीं मिलने वाला है और न समर्थन। सिर्फ हिन्दुत्ववादी शक्तियों का आपको समर्थन प्राप्त है जो बेनकाब हो चुकी हैं और आप का लोकपाल बिल भारतीय संविधान की मूल भावना के विपरीत है। आपकी ज़िद है, ज़िद का राजनीति में कोई स्थान नहीं है अगर अमेरिकन इशारे पर यह तय होने लगेगा कि लोकतंत्र है या नहीं तो देश नहीं चलेगा। भारत अमेरिकन साम्राज्यवाद से टक्कर लेने में असमर्थ नहीं है न इस देश की जनता। लेकिन जब बात देश की आन, बान और मर्यादा की होगी तो भारत पीछे भी नहीं रहेगा।
अमेरिका को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि यदि उसने अपने एजेंटों के माध्यम से देश में गड़बड़ी करने की कोशिश की तो दुनिया के नक़्शे पर अमेरिकन साम्राज्यवाद का नामोनिशान भी मिटने में देरी नहीं होगी। यदि अन्ना को वर्तमान गांधी के नाम से सम्बोधित किया जाता है, तो यह सबसे बड़ी भूल होगी। एक आरटीआई को अपवाद को छोड़ उनका कौन सा आंदोलन सफल हुआ ?जनता से बाबा रामदेव आन्दोलन से जनता में प्रज्जवलित हो रही घोटालों एवं विदेशों में जमा काले धन ज्वाला से ध्यान परिवर्तित करने में कांग्रेस के हाथ एक कठपुतली बन एनजीओज की पीठ पर बैठ सुरमा भोपाली बनने का नाटक किया। अन्ना जी अगर साहस है तो एनजीओज को मिल रही विदेशी सहायता के विरुद्ध अनशन करो। क्योंकि  एनजीओज ही भ्रष्टाचार की जननी है।

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