
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
लगता है आम आदमी पार्टी का भविष्य अंधकारमय होने के कगार पर आ गया है। जिसका प्रमुख कारण राहुल गाँधी बताए जा रहे हैं।
जानिए क्यों?
सत्ता के गलियारों में चर्चा है कि इस पार्टी को बनाने में सोनिया गाँधी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यदि इस पार्टी के संस्थापक कर्णधारों पर दृष्टि डालने पर वास्तविकता जगजाहिर हो जाती है, क्योंकि इस पार्टी के अधिकतर संस्थापक सोनिया गाँधी की टीम के सदस्य हैं। इस पार्टी गठन सत्ता हथियाना नहीं, बल्कि मोदी लहर को बाधित करना था। लेकिन हुआ एकदम विपरीत। कांग्रेस को यदि सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाने वाली अगर कोई पार्टी है, तो आम आदमी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी नहीं। इस पार्टी को गुप्त रूप से, तन, मन एवं धन से पालन-पोषण करने पर वरिष्ठ बुद्धिजीवियों ने विरोध भी किया था। लेकिन नगाड़े की आवाज़ के आगे सोनिया गाँधी ने तूतियों की आवाज़ नहीं सुनी।
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बरहाल, राहुल गाँधी के पार्टी अध्यक्ष बनने उपरान्त पार्टी में बदलाव आने लगे हैं। जिस दिन राहुल अपनी "पप्पूगिरी" छवि से बाहर आ जायेंगे, पार्टी को सत्तारूढ़ तो नहीं, एक सशक्त विपक्ष के रूप में खड़ा कर सकते हैं। संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान बहसयोग्य मुद्दे उठा कर, पहले प्रधानमंत्री मोदी से छप्पी, फिर आंख मिचकने की "पप्पूगिरी" ने गुड़-गोबर कर दिया। खैर, अब आम आदमी पार्टी से दूरी बनाए जाने को राहुल थिंक-टैंक का ही परिणाम है कि अब केजरीवाल पार्टी अंधकार में जाते देख ही शायद आशुतोष ने पार्टी छोड़ने के साथ-साथ सियासत भी त्याग वापस पत्रकारिता का दामन थामने जा रहे हैं।
आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता आशुतोष ने अगस्त 15 को एक बड़ा कदम उठाते हुए अचानक पार्टी से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने अपने इस्तीफे की वजह 'निजी कारण' को बताया है। आशुतोष 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी से जुड़े थे। पार्टी ने उन्हें दिल्ली के चांदनी चौक सीट से उम्मीदवार बनाया था, हालांकि वे हार गए थे। उससे पहले वे लंबे समय तक पत्रकारिता करते रहे। वह कई टीवी चैनलों में अहम भूमिका निभा चुके हैं. माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर इसकी घोषणा की। अपने इस्तीफे से पहले उन्होंने गाय को मु्द्दा बनाकर बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर निशाना भी साधा।
आज स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर हर बीजेपी का सदस्य भारत माता की सौगंध खाये कि वो कम से कम तीन गायों को गोद ले कर उनको नया जीवन देगा । गाय हर बीजेपी/संघी की माँ है । वो उसे सड़क पर मरने के लिये कैसे छोड़ सकते है ? हिंदू धर्म की इससे बडी सेवा नही हो सकती ।
अवलोकन करें:--
दरअसल, उन्होंने ट्वीट में कहा है कि 'वे इस मसले पर किसी सवाल का जवाब नहीं देंगे।' आशुतोष ने कहा कि 'हर सफर का एक अंत होता है। आपके साथ यात्रा बेहद क्रांतिकारी और खूबसूरत रही। मैं इस्तीफा देते हुए पार्टी की कार्यकारिणी परिषद से आग्रह करता हूं कि वे इसे स्वीकार करें, क्योंकि मैंने विशुद्ध निजी कारणों से यह फैसला लिया है। इस यात्रा के दौरान मेरा साथ देने वाले सभी कार्यकर्ता के प्रति आभार प्रकट करता हूं.' इसके साथ ही आशुतोष ने मीडिया की कि कृपया मेरी निजता का सम्मान करें, क्योंकि मैं इस संदर्भ में किसी भी प्रकार को कोई और बयान नहीं दूंगा।

Every journey has an end. My association with AAP which was beautiful/revolutionary has also an end.I have resigned from the PARTY/requested PAC to accept the same. It is purely from a very very personal reason.Thanks to party/all of them who supported me Throughout.Thanks.
हर प्रतिभासम्पन्न साथी की षड्यंत्रपूर्वक निर्मम राजनैतिक हत्या के बाद एक आत्ममुग्ध असुरक्षित बौने और उसके सत्ता-पालित, 2G धन लाभित चिंटुओं को एक और “आत्मसमर्पित-क़ुरबानी” मुबारक हो ! इतिहास शिशुपाल की गालियाँ गिन रहा है
आज़ादी मुबारक

आम आदमी पार्टी का गठन 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए देशव्यापी आंदोलन के बाद हुआ था। यह आंदोलन समाजसेवी अन्ना हजारे के नेतृत्व हुआ था। उसके बाद अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व पार्टी का गठन हुआ। जिसमें योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, शाजिया इल्मी समेत कई बड़े नाम थे।
कांशीराम के थप्पड़ से केजरीवाल की बेरुखी तक
आशुतोष पत्रकारिता से इस्तीफा देकर आप (AAP) में गए थे और अब 'आप' से इस्तीफा देकर एकांत में जा रहे हैं। उनका पहला फैसला क्रांति की संभावनाओं से पैदा हुआ था तो दूसरा फैसला क्रांति का पटाखा फुस्स हो जाने से निकला। जब उन्हें राज्यसभा नहीं भेजा गया था, तभी से इस बात का अंदेशा था कि वे देर-सबेर उसी तरह की राजनैतिक वीरगति को प्राप्त होंगे, जैसे कि आम आदमी के बाकी संस्थापक सदस्यों को प्राप्त हुई।
पिछले कुछ दिन से वे जो ट्वीट कर रहे थे, उनमें एक किस्म की निराश या वैराग्य सा दिख रहा था। कभी वे शंकराचार्य की पुस्तक की चर्चा करते तो कभी दीन दयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद की चर्चा करते तो कभी हिटलर की मीन कैम्फ का जिक्र कर रहे थे।
किसी जमाने में नौजवान टीवी पत्रकार के तौर पर बसपा के संस्थापक कांशीराम से थप्पड़ खाने वाले आशुतोष की साख एक संवेदनशील और जुझारू पत्रकार की रही है। उनकी यही गंभीरता और पढ़ा-लिखापन उन्हें आम आदमी पार्टी तक ले गया और अंत में वहां से निकलने की वजह बना। आखिर क्या कारण था कि कांशीराम ने थप्पड़ ही नहीं मारा था, कैमरा भी तोड़ दिया था। अब वह हादसा एक इतिहास बन चुका है। लेकिन इस काण्ड के दो गवाह अभी भी जीवित हैं। शायद और भी गवाह हों। शायद कोई एम ओ मैथाई जैसा निर्भीक लेखक इस पर पुस्तक लिख जगजाहिर कर सके। हाँ, इस हादसे ने आशुतोष के पत्रकारिता जीवन को एक नया आयाम जरूर दे दिया और पत्रकारिता में नाम चमक गया। अन्ना हजारे को पार्टी से निकालने की जरूरत इसलिए नहीं पड़ी क्योंकि वह कभी पार्टी में आए ही नहीं. लेकिन पार्टी बनते ही केजरीवाल ने खुद को उनकी छाया से दूर किया. जैसे-जैसे आम आदमी पार्टी के पास ज्यादा वोटर आते गए, उसके संस्थापक सदस्य छंटते गए। सबसे पहले पार्टी छोड़ने वालों में कैप्टन गोपीनाथ शामिल हैं। गोपीनाथ भारत में लो कॉस्ट एयरलाइन्स की शुरुआत करने वाले लोगों में से थे। इसके अलावा सुरजीत दासगुप्ता, सामाजिक कार्यकर्ता मुध भादुड़ी, हरियाणा में आप के स्तंभ रहे अश्वनी उपाध्याय, प्रोफेसर आनंद कुमार, प्रोफेसर अजीत झा, सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि दमानिया, दिल्ली हाइकोर्ट के वकील और स्कूलों के मुद्दे उठाने वाले अशोक अग्रवाल, संगीतकार विशाल डडलानी ने पार्टी छोड़ी। योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण का पार्टी छोड़ना तो सबने देखा ही है। वहीं कवि कुमार विश्वास पार्टी में होते हुए भी न होने जैसी स्थिति में बने हैं। इन सब लोगों में एक बात कॉमन है कि ये सब लोग मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि के थे। यह आंदोलन की शुरुआत से आप में थे और नीति निर्धारण में अपनी बराबरी की भूमिका समझते थे। ये उन विचारों से चिपके हुए थे कि पार्टी में लोकतंत्र होगा और कोई आला कमान नहीं होगा। आखिर यही सब भाषण देकर तो अरविंद केजरीवाल दो बार दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे। लेकिन कुर्सी पर पहुंचने के बाद उन्होंने वे सारी चीजें शुरू कीं, जिनका वे आंदोलनकारी के रूप में विरोध करते थे। ऐसे में ये सोचने समझने वाले चेहरे उनके यस मैन नहीं बन पाए. मजे की बात यह है कि इनमें से कई चेहरे एक-दूसरे को पार्टी से निकालने की वजह बने। याद करें तो प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को पार्टी से अपमानित कर निकालने की कमान एक तरह से कुमार विश्वास और आशुतोष के हाथों में ही सौंपी गई थी। आशुतोष की विदाई के साथ आप का बौद्धिक सफाई अभियान पूरा हुआ दिखता है। अब आम आदमी पार्टी भारत की खांटी राजनैतिक पार्टी बन गई है. उसके ऊपर अब आंदोलनकारी होने की ‘तोहमत’ नहीं लगाई जा सकती. पार्टी के पास अब अपना एक आला कमान है और उसके इर्द-गिर्द चारण भाटों की टोली है। अब वह ठीक वैसी ही पार्टी है, जैसी पार्टियां भारत में चलती हैं।
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