आर.बी.एल.निगम
प्रधानमंत्री एक ऐसा पद होता है जहां पहुँच कर कोई भी व्यक्ति फिर से चुने जाने की जुगत बिठाने के साथ एक और फिक्र में घिरा रहता है कि इतिहास उसके बारे क्या लिखेगा।
इंदिरा गांधी ने तो भविष्य के इतिहासकारों की “सुविधा” के लिये लालकिले में कालपात्र भी गड़वाया था हालांकि चार साल बाद उसे निकाल लिया गया था। कहते हैं नरेंद्र मोदी ने भी 2010 में गांधीनगर के महात्मा मंदिर की बुनियाद में ऐसा ही कालपात्र अपने बारे में गड़वाया है। मनमोहन तो ये बयान दे ही चुके हैं कि इतिहास उनके साथ न्याय करेगा.
मोदी जब प्रधानमंत्री बन कर दिल्ली आये तब उनके सामने एक मौका था कि एक नई शुरुआत करें और भविष्य के इतिहासकारों को मजबूर करे कि उनका आकलन 2002 के कत्लेआम से ही नहीं किया जाये. लेकिन 2002 का अपराध इतना बड़ा था कि मोदी उस छवि से निकल नहीं पाए। देश विदेश जो उनकी छवि बनी उस पर गुजरात का हत्याकांड हावी रहा। वो पहले ऐसे राजनेता और मुख्यमंत्री बने जिसे अमेरिका और इंग्लैंड ने वीसा देने से मना कर दिया।
मोदी उस छवि से बाहर निकलने की जगह रीयक्ट करने लगे – उनकी तरफ से हमेशा ये कोशिश रही कि कैसे उन्हे सभ्य समाज में स्वीकार्यता मिले। ये कोशिशें इतनी फूहड़ रहीं कि अपना ही नाम लिखा सूट तक पहन लिया। डर इतना कि पत्रकारों का सामना नहीं किया – किया भी तो चाटुकारों का और उसमे भी नाकामयाब ही रहे। देश विदेश में करोड़ों खर्च करके ईवेंट भी इसी प्रायोजन का हिस्सा है।
हिंसा की हर बड़ी घटना के बाद एक उम्मीद रहती थी कि शायद अब उन्हे कोई सलाह देगा कि 2002 की छवि से बाहर निकलने का वक़्त आ गया है और एक प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय नेता की तरह उदारता दिखाई जाये। कल भी उनके सामने ये मौका आया जब उन्ही के या उनकी विचारधारा के समर्थकों ने स्वामी अग्निवेश पर जानलेवा हमला किया.
जैसा रोहित वेमुला, अखलाक, पहलू खान, ऊना कांड जैसे तमाम मौकों पर हुआ इस बार भी उन्होने निराश ही किया. मोदी अब ये यकीन दिला चुके हैं कि वो भविष्य में एक सभ्य इंसान की तरह जाने जाये इसमें उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है। इतिहास तो अपना काम करेगा ही।
यह सब मॉब लीचिंग एक षड्यंत्र के तहत की जा रही है, क्योंकि मोदी ने सांपों की बिल में जब से खौलता तेल डालना शुरू किया है सारे के सारे बहुरूपिये, ज़हरीले दो मुंहे सामने आ गये...!!
4 साल पहले कितनों को पता था JNU में भारत को टुकडे करने की और बर्बादी तक जंग लड़ने की बात कही जाती है..? ऐसा कोई पहली बार नहीं हो रहा, इसका कारण है, पहले मीडिया में यह सबकुछ दिखाने का साहस नहीं था, सरकार के इशारों पर समाचारों को प्रसारित किया जाता था। जबकि वही मीडिया है और षड्यंत्रकारियों की भी वही हरकतें, यानि केन्द्र में सत्ता परिवर्तन होते ही मीडिया ने भी गिरगिट की तरह रंग बदल लिया।
4 साल पहले कितनों को पता था JNU में आतंकियों के मौत पर शर्मिंदगी महसूस की जाती है..?
4 साल पहले कितनों को पता था भारत में सेना पर भी प्रश्न उठाने वाले लोग भारी मात्रा में उपलब्ध हैं?
4 साल पहले कितनों को पता था की बॉलीवुड पाकिस्तान परस्तों से भरा पड़ा है..!
4 साल पहले कितनों को पता था, बड़े-बड़े महान कलाकार की सोच है कि सेना का जवान मरता है तो हम क्या करें... क्यों जाते हैं मरने ..?
4 साल पहले कितनों को पता था कि कैसे-कैसे देशद्रोहीे लोगों को और किस की भक्ति करने के लिए भारत के बड़े-बड़े अवार्ड दिए गए थे..!
4 साल पहले कितनों को पता था हैदराबाद विश्वविद्यालय में भारत विरोध में क्या खेल खेला जा रहा है..!
4 साल पहले कितनों को पता था, FTTI में भारत विरोधी विचारधारा सिखाई जाती हैं..!
4 साल पहले कितनों को पता था देश में अस्थिरता और भारत विरोध के लिए NGO गैंग को कहाँ-कहाँ से पैसा आ रहा है..!
4 साल पहले कितनों को पता था कि भारत में सेना के प्रति अविश्वास और सेना द्वारा कही गई बातों को गलत बताने वाले बहुतायत में लोग हैं..!
4 साल पहले कितनों को पता था की हमारे देश में अफजल, याकूब, बुरहान वानी जैसे आतंकियों के समर्थकों की लिस्ट कितनी लंबी है..!
4 साल पहले किसको पता था कि देश मे लाखों फ़र्ज़ी कंपनियां चल रही हैं...!
4 साल पहले किसको पता था कि बड़ी बड़ी कंपनियों को लाखों करोड़ का कर्ज़ बिना गारंटी के बाँटा गया है...!
4 साल पहले किसको पता था जनता के सामने एक दूसरे से नफ़रत करने वाली पार्टियां आपस में एक ही है...!
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