आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
हैदराबाद के मक्का मस्जिद ब्लास्ट केस में सभी आरोपियों के दोष मुक्त होने पर बॉलीवुड के मशहूर फिल्म गीतकार जावेद अख्तर ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) पर तंज कसा है।
जावेद अख्तर ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि 'मिशन पूरा हुआ, मक्का मस्जिद में पाई अपार सफलता के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी 'एनआईए' की टीम को मेरी ओर से बधाई। उन्होंने लिखा कि अब उसके पास अंतरधार्मिक शादियों की जांच करने का पूरा समय होगा।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी केरल के लव जिहाद मामले की भी जांच कर रही है। इसी को लेकर जावेद अख्तर ने लिखा कि अब उसके पास अंतरधार्मिक शादियों की जांच करने का पूरा समय होगा।
जावेद अख्तर के एनआईए पर निशाना साधने पर भाजपा के प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा ने पलटवार किया। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा कि जावेद जी ऐसी ही ईमानदारी कांग्रेस के 'हिंदू टेरर' की आलोचना में दिखाते।
हैदराबाद के मक्का मस्जिद ब्लास्ट केस में सभी आरोपियों के दोष मुक्त होने पर बॉलीवुड के मशहूर फिल्म गीतकार जावेद अख्तर ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) पर तंज कसा है।
जावेद अख्तर ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि 'मिशन पूरा हुआ, मक्का मस्जिद में पाई अपार सफलता के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी 'एनआईए' की टीम को मेरी ओर से बधाई। उन्होंने लिखा कि अब उसके पास अंतरधार्मिक शादियों की जांच करने का पूरा समय होगा।
Mission accomplished !! . My congratulations to NIA for their grand success in Mecca Masjid case. Now they have all the time in the world to investigate inter community marriages !!!
जावेद अख्तर के एनआईए पर निशाना साधने पर भाजपा के प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा ने पलटवार किया। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा कि जावेद जी ऐसी ही ईमानदारी कांग्रेस के 'हिंदू टेरर' की आलोचना में दिखाते।
Javed Ji, Wish you had the honesty to condemn @INCIndia for "Hindu Terror" formulation. Seems you are in awe of @RahulGandhi for writing a fictional script like you have done so well in films. OR, is "Hindu Terror" also your brainwave as your reported idea of "Maut Ka Saudagar?" twitter.com/Javedakhtarjad…
2007 में हुआ था धमका
हैदराबाद की ऐतिहासिक मक्का मस्जिद में 18 मई 2007 को जुमे की नमाज के दौरान ब्लास्ट हुआ था। इस ब्लास्ट में 9 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 58 लोग घायल हुए थे।
शुरुआती जांच के बाद इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया गया था। इसके बाद साल 2011 में ये मामला एनआईए के पास भेजा गया। अब स्पेशल कोर्ट ने चारो आरोपियों को बरी कर दिया है।
फैसले के बाद एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी भी भाजपा पर हमला करने से नहीं चूके।
इस मामले में 10 आरोपियों में से 8 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी। इस मामले में स्पेशल एनआईए कोर्ट ने 16 अप्रैल को सभी आरोपियों को बरी कर दिया था। इसके बाद ओवैसी ने कहा कि ये पहली सरकार है जो पीड़ित के बजाय आरोपियों के साथ खड़ी है।
इस ब्लास्ट में नबाकुमार सरकार उर्फ स्वामी असीमानंद का नाम भी शामिल था। जिन 8 लोगों के खिलाफ चार्जशीट बनाई गई थी उसमें से स्वामी असीमानंद और भारत मोहनलाल रत्नेश्वर उर्फ भरत भाई जमानत पर बाहर हैं और तीन लोग जेल में बंद हैं।
2007 में हुए इस ब्लास्ट की शुरुआती छानबीन पुलिस ने की थी। फिर यह केस सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया गया। बाद में 2011 में यह मामला एनआईए को सौंपा गया। इस मामले में कुल 160 चश्मदीद गवाहों के बयान दर्ज किए गए थे, जिनमें से 54 गवाह मुकर चुके हैं।
मस्जिद ब्लास्ट मामले में दो और मुख्य आरोपी संदीप वी डांगे और रामचंद्र कलसंगरा अभी भी फरार चल रहे हैं। इस पूरी सुनवाई के दौरान 226 गवाहों से पूछताछ हुई और 411 कागजात पेश किए गए।
चाहे जावेद अख्तर हो या ओवैसी या कोई अन्य राजनीतिक नेता, क्या राजनीति करते हैं, क्या इन्हे नहीं मालूम था कि धमाके उपरान्त आतंकियों को साफ बचाने और बेकसूर हिन्दू साधु-सन्तों को जेलों में डाल किस तरह हिन्दू आतंकवाद या भगवा आतंकवाद का विष फैलाकर हिन्दुओं को बदनाम किया जा रहा था।
फिर भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी ने अपनी पुस्तक में स्पष्ट लिखा है कि "सोनिया गाँधी हिन्दू विरोधी है।" उन्हें हिन्दुओं के परमपूजनीय शंकराचार्य जितेंद्र सरस्वती को दीपावली के दिन झूठे आरोप में गिरफ्तार करने पर कांग्रेस कार्यकारी मीटिंग में गिरफ़्तारी पर तंज कसते हुए पूछा था, "क्या ईद के मौके पर किसी मौलवी को गिरफ्तार करने की हिम्मत है, जो दीपावली के दिन हिन्दुओं के पूजनीय शंकराचार्य को गिरफ्तार किया है?" ·
इसमें कोई दो राय नहीं कि सोनिया गाँधी को हिन्दू विरोधी नीति विरासत में मिली थी। डॉ श्यामा प्रसाद मुख़र्जी क्या मूर्ख थे, जो केन्द्रीय मंत्री पद त्याग, बिना परमिट के जम्मू-कश्मीर चले गए? गए थे राष्ट्रहित में। क्योकि उस समय जम्मू-कश्मीर में परमिट के बिना जाने की इजाजत नहीं थी, जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री का नाम था शेख अब्दुल्ला और शेष भारत के प्रधानमंत्री का नाम था जवाहरलाल नेहरू। यानि एक देश में दो प्रधानमंत्री। डॉ मुख़र्जी के बलिदान देश से "एक देश, दो प्रधान, एक देश दो विधान, परमिट प्रथा" तो समाप्त हो गयी, लेकिन तत्कालीन जनसंघ(वर्तमान भाजपा) पर मुस्लिम विरोधी होने दाग लग गया और हम मूर्खों ने राष्ट्रहित में काम करने वाली पार्टी को मुस्लिम विरोधी मान लिया। जम्मू-कश्मीर जब भारत का अभिन्न अंग है, फिर परमिट की क्या जरुरत? किसी विदेश में नहीं जा रहे। जबकि भारत के अन्य किसी भी प्रदेश में बिना परमिट के चाहे जब चले जाओ। लेकिन कांग्रेस ने ज़हर फैला दिया कि जनसंघ मुसलमानों की दुश्मन है, और हमने सच मान लिया।
कांग्रेस सहित जितनी भी पार्टियाँ है, क्या उनको नहीं मालूम था कि "महान हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की अस्थियाँ मोहम्मद गौरी की कब्र पर चढ़ने वाली सीढ़ी के नीचे दबी रखी हैं, जिस पर कब्र पर जाने से पहले जूते या चप्पल मारकर ही चढ़ने की प्रथा थी। यानि हिन्दू सम्राट का कितने वर्षों से अपमान हो रहा है।" किसी भी नेता ने चौहान की अस्थियों को भारत लाने का प्रयास किया, नहीं? लेकिन उन अस्थियों को भारत लाने का श्रेय जाता है, शेर सिंह राणा को, वो भी उस समय जब अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का राज था।

दूसरे, नाथूराम गोडसे को महात्मा गाँधी के कातिल के नाम से पुकारा जाता है, लेकिन किसी भी नेता में साहस नहीं, जो निष्पक्ष रूप से देश की जनता को बता सके कि "गाँधी वध देश हित में था या नहीं?" यदि 30 जनवरी को गाँधी का वध नहीं किया जाता, आज भारत की क्या स्थिति होती, गांधीभक्तों बताओ देश को। लेकिन तुष्टिकरण इन कुर्सी के भूखे नेताओं को सच्चाई नहीं बोलने देगी। ठीक इसी भाँति जितने भी सियासतखोर हैं, सभी अच्छी तरह जानते हैं कि असली कसूरवार आतंकवादियों को बचाने की खातिर बेकसूर हिन्दुओं को जेलों में सड़ाया जा रहा था। इन तुष्टिकरण उपासकों को यह भी मालूम होगा कि स्वामी असीमानंद के साथ जो अमानवीय व्यवहार हो रहा था, और जिसको तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के भी संज्ञान में लाया गया था, परन्तु वह भी चुप्पी साधे रहीं।( आर्गेनाइजर साप्ताहिक में प्रकाशित असीमानंद के वकील के माध्यम से राष्ट्रपति को प्रेषित पत्र)
क्या इन बेगुनाहों की रिहाई पर मातम करने वालों को नहीं मालूम कि साध्वी प्रज्ञा की सात्विकता तक को भंग कर दिया गया था? क्या इन मातम करने वालों को नहीं मालूम कि कर्नल पुरोहित को किस कारण से गिरफ्तार किया गया था? कर्नल पुरोहित अपने उद्देश्य में सफल होने वाले ही थे, उनको गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया और देश के विरुद्ध साज़िश रचने वाले मौज करते रहे। यदि कर्नल पुरोहित आतंकवाद को समर्थन देने वाले/वाली कद्दावर नेता तक पहुँच जाते, शायद देश में आतंकवाद का डर नहीं सता रहा होता और इन मातम करने वालों को अपनी रोजी-रोटी के लिए कोई अन्य रास्ता चुनना पड़ता। और यदि वह कद्दावर नेता पकड़ में आ गया होता, जेल से बाहर आना शायद असम्भव होता, क्योकि वह गिरफ़्तारी सेना के आदेश पर होती। पुरोहित सेना के आदेश पर काम को अंजाम दे रहे थे। क्या इन लोगों को नहीं मालूम कि भारत में रहकर पाकिस्तान और आतंकवादियों की किस तरह सहायता की जा रही थी? कर्नल पुरोहित को जिस काम को अंजाम देने के की ज़िम्मेदारी दी गयी थी, उसके अतिनिकट पहुँचने के पूर्व ही झूठे आरोप में पुरोहित को रस्ते से हटा दिया गया। उस कद्दावर नेता का नाम कई बार डॉ सुब्रमण्यम अपने भाषणों में करते रहे हैं।
ये पहली सरकार जो आरोपियों के साथ खड़ी है--असदुद्दीन ओवैसी
फैसले के बाद एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी भी भाजपा पर हमला करने से नहीं चूके। इस मामले में 10 आरोपियों में से 8 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी। इस मामले में स्पेशल एनआईए कोर्ट ने 16 अप्रैल को सभी आरोपियों को बरी कर दिया था। इसके बाद ओवैसी ने कहा कि ये पहली सरकार है जो पीड़ित के बजाय आरोपियों के साथ खड़ी है।
इस ब्लास्ट में नबाकुमार सरकार उर्फ स्वामी असीमानंद का नाम भी शामिल था। जिन 8 लोगों के खिलाफ चार्जशीट बनाई गई थी उसमें से स्वामी असीमानंद और भारत मोहनलाल रत्नेश्वर उर्फ भरत भाई जमानत पर बाहर हैं और तीन लोग जेल में बंद हैं।
2007 में हुए इस ब्लास्ट की शुरुआती छानबीन पुलिस ने की थी। फिर यह केस सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया गया। बाद में 2011 में यह मामला एनआईए को सौंपा गया। इस मामले में कुल 160 चश्मदीद गवाहों के बयान दर्ज किए गए थे, जिनमें से 54 गवाह मुकर चुके हैं।
मस्जिद ब्लास्ट मामले में दो और मुख्य आरोपी संदीप वी डांगे और रामचंद्र कलसंगरा अभी भी फरार चल रहे हैं। इस पूरी सुनवाई के दौरान 226 गवाहों से पूछताछ हुई और 411 कागजात पेश किए गए।
चाहे जावेद अख्तर हो या ओवैसी या कोई अन्य राजनीतिक नेता, क्या राजनीति करते हैं, क्या इन्हे नहीं मालूम था कि धमाके उपरान्त आतंकियों को साफ बचाने और बेकसूर हिन्दू साधु-सन्तों को जेलों में डाल किस तरह हिन्दू आतंकवाद या भगवा आतंकवाद का विष फैलाकर हिन्दुओं को बदनाम किया जा रहा था।
कांग्रेस सहित जितनी भी पार्टियाँ है, क्या उनको नहीं मालूम था कि "महान हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की अस्थियाँ मोहम्मद गौरी की कब्र पर चढ़ने वाली सीढ़ी के नीचे दबी रखी हैं, जिस पर कब्र पर जाने से पहले जूते या चप्पल मारकर ही चढ़ने की प्रथा थी। यानि हिन्दू सम्राट का कितने वर्षों से अपमान हो रहा है।" किसी भी नेता ने चौहान की अस्थियों को भारत लाने का प्रयास किया, नहीं? लेकिन उन अस्थियों को भारत लाने का श्रेय जाता है, शेर सिंह राणा को, वो भी उस समय जब अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का राज था।

दूसरे, नाथूराम गोडसे को महात्मा गाँधी के कातिल के नाम से पुकारा जाता है, लेकिन किसी भी नेता में साहस नहीं, जो निष्पक्ष रूप से देश की जनता को बता सके कि "गाँधी वध देश हित में था या नहीं?" यदि 30 जनवरी को गाँधी का वध नहीं किया जाता, आज भारत की क्या स्थिति होती, गांधीभक्तों बताओ देश को। लेकिन तुष्टिकरण इन कुर्सी के भूखे नेताओं को सच्चाई नहीं बोलने देगी। ठीक इसी भाँति जितने भी सियासतखोर हैं, सभी अच्छी तरह जानते हैं कि असली कसूरवार आतंकवादियों को बचाने की खातिर बेकसूर हिन्दुओं को जेलों में सड़ाया जा रहा था। इन तुष्टिकरण उपासकों को यह भी मालूम होगा कि स्वामी असीमानंद के साथ जो अमानवीय व्यवहार हो रहा था, और जिसको तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के भी संज्ञान में लाया गया था, परन्तु वह भी चुप्पी साधे रहीं।( आर्गेनाइजर साप्ताहिक में प्रकाशित असीमानंद के वकील के माध्यम से राष्ट्रपति को प्रेषित पत्र)क्या इन बेगुनाहों की रिहाई पर मातम करने वालों को नहीं मालूम कि साध्वी प्रज्ञा की सात्विकता तक को भंग कर दिया गया था? क्या इन मातम करने वालों को नहीं मालूम कि कर्नल पुरोहित को किस कारण से गिरफ्तार किया गया था? कर्नल पुरोहित अपने उद्देश्य में सफल होने वाले ही थे, उनको गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया और देश के विरुद्ध साज़िश रचने वाले मौज करते रहे। यदि कर्नल पुरोहित आतंकवाद को समर्थन देने वाले/वाली कद्दावर नेता तक पहुँच जाते, शायद देश में आतंकवाद का डर नहीं सता रहा होता और इन मातम करने वालों को अपनी रोजी-रोटी के लिए कोई अन्य रास्ता चुनना पड़ता। और यदि वह कद्दावर नेता पकड़ में आ गया होता, जेल से बाहर आना शायद असम्भव होता, क्योकि वह गिरफ़्तारी सेना के आदेश पर होती। पुरोहित सेना के आदेश पर काम को अंजाम दे रहे थे। क्या इन लोगों को नहीं मालूम कि भारत में रहकर पाकिस्तान और आतंकवादियों की किस तरह सहायता की जा रही थी? कर्नल पुरोहित को जिस काम को अंजाम देने के की ज़िम्मेदारी दी गयी थी, उसके अतिनिकट पहुँचने के पूर्व ही झूठे आरोप में पुरोहित को रस्ते से हटा दिया गया। उस कद्दावर नेता का नाम कई बार डॉ सुब्रमण्यम अपने भाषणों में करते रहे हैं।




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