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शेर सिंह राणा को भारतरत्न कब मिलेगा?


https://www.facebook.com/gunjanaggrawala/videos/1041165872590313/

भारतीय जनता पार्टी, शिव सेना, विश्व हिन्दू परिषद्, बजरंग दल, हिन्दू महासभा, हिन्दू वाहिनी आदि अनेकों ऐसे संगठन एवं पार्टियाँ हैं, जो "हिन्दू, हिन्दी, हिन्दुस्तान" चीखते-चीखते गला भी नहीं दुःखता, लेकिन किसी को हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की इतने वर्षों से होती दुर्गति की चिन्ता नहीं।
आज ऐसे बाहुबली के बारे में बताने जा रहा हूँ जिन्होंने गजनी (अफगानिस्तान) में विगत 800 वर्षों से पददलित हो रहे भारत के महान हिन्दू-सम्राट् पृथ्वीराज चौहान की अस्थियों को भारत वापिस लाने के दुस्साहसिक कारनामे को अंजाम दिया। यह बाहुबली  हैं : श्री शेर सिंह राणा, जिन्हें कुख्यात दस्यु-सुंदरी फूलन देवी (1963-2001) की 25 जुलाई, 2001 को हत्या के आरोप में तिहाड़ जेल में बंद किया गयाI श्री शेरसिंह राणा अगस्त, 2014 से उम्रकैद की सजा काट रहे हैं।
सेवानिर्वित उपरान्त एक हिन्दी पाक्षिक का सम्पादन करते लेख शीर्षक "क्या गोडसे और शेर सिंह राणा भारत रत्न अधिकारी नहीं?"  में स्पष्ट लिखा था, कानून की निगाह में हालाँकि अपराधी दोनों ही हैं। परन्तु देशहित में जो इन दोनों ने काम किया, उसकी तुलना नहीं की जा सकती। अगर नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी को मोहनदास करमचन्द गाँधी का वध नहीं किया होता, दो/तीन माह बाद गाँधी ने भारत के बहुत बड़े भाग को भारत से कटकर पाकिस्तान के पक्ष में जाने की नींव रख दी होती। क्योंकि जिन्ना की माँग थी कि पाकिस्तान से ईस्ट पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) जाने के लिए वाया दिल्ली 16 गज चौड़ी सड़क, जिसके दोनों तरफ केवल मुस्लिम आबादी हो की माँग रखी थी, यदि गाँधी जीवित रहते, निश्चित रूप से जिन्ना की यह माँग पूरी हो गयी होती। यानि भारत के एक और बँटवारे की आधारशिला रख दी होती और शायद आज हमारा भारत इतना विशाल नहीं होता। इसी बात को कोर्ट में दर्ज़ अपने 150 बयानोँ में कही है। अब इस बात से गणना कीजिए भारत के कितने प्रदेश भारत से कट गए होते और उन प्रदेशों में मुख्यमंत्री बन मालपुए खाते इतने मुख्यमन्त्री नहीं दिखते। प्रमाण : बंगाल, असम और केरल के आलावा जिस किसी प्रदेश में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, वहाँ हिन्दुओं की क्या स्थिति है? सबके सामने है।  
फिर विश्व को इतना ऊँचा 7 मंज़िला (वर्तमान में 5 मंजिल) सूर्य स्तम्भ बनवाया था, जिसे चंद चांदी के सिक्कों के भूखे इतिहासकारों ने कुर्सी के भूखे नेताओं के इशारे पर पाठ्य पुस्तकों में लिखवा दिया कि क़ुतुब मीनार कुतबुद्दीन ऐबक ने बनवाई। अब कोई पूछे कि पृथ्वीराज चौहान ने जो 7-मंजिला स्तम्भ बनवाया था, कहाँ है? पृथ्वी डस गयी या आसमान उड़ा ले गया?  फिर 16 बार जिस ज़ालिम मोहम्मद गोरी को शिकस्त देने उपरान्त क्षमा दान दिया था, उसी ने जयचन्दों के कन्धे बैठ अपने ही सम्राट को पराजय दिलवा उस ज़ालिम के हाथ बन्दी बनवा दिया। लेकिन बाहुबली आखिर बाहुबली ही होता है।  ज़ालिम गोरी ने अपने दरबार में चौहान की दोनों आंखें फोड़ दी, लेकिन अपने कवि चंद्रवरदाई की कविता के कारण गोरी को 17 हूरों के पास पहुंचा दिया। क्योकि चौहान शब्द-भेदी बाण चलाने में निपुण थे। 
भारत के अंतिम (अंतिम महान) हिन्दू-सम्राट् चौहानवंशीय पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 में अजमेर में हुआ था। उन्होंने 1179 से 1192 तक दिल्ली पर शासन किया थाI सन 1192 में तराइन के द्वितीय युद्ध में वह अफ़ग़ान सेनापति मुहम्मद गोरी (1173-1192) के हाथों पराजित हुए और जंजीरों में जकड़कर गजनी (दक्षिणी-पूर्वी अफगानिस्तान) ले गया।  वहां क्रूरतापूर्वक उनकी आँखें निकाल ली गईं और जेल में बंद कर दिया गया। कुछ समय बाद पृथ्वीराज चौहान के मित्र और दरबारी कवि श्री चंदबरदाई ने अफगानिस्तान जाकर गोरी से भेंट की और उसे पृथ्वीराज चौहान की "शब्दभेदी बाण" चलाने की विशेषता के बारे में बताया।  फलस्वरूप गोरी ने पृथ्वीराज की कला का तमाशा देखने का निश्चय किया। 1192 में हुए इसी तमाशे में चंदबरदाई का संकेत पाकर पृथ्वीराज चौहान ने गोरी की आवाज सुनकर शब्दभेदी बाण से उसे मार डाला। गोरी के वध के तुरंत बाद पृथ्वीराज ने चंदबरदाई के साथ आत्मबलिदान करके मृत्यु का वरण कर लिया।
गोरी को गजनी में दफनाने के बाद पृथ्वीराज चौहान और कवि चन्दबरदाई को गोरी के मकबरे से बाहर कुछ मीटर की दूरी पर दफ़न किया गया था। पृथ्वीराज चौहान के मृत शरीर पर एक कच्ची कब्र बना दी गयी और कब्र पर फारसी में एक शिलालेख उत्कीर्ण किया गया : “यहां दिल्ली का काफ़िर राजा दफन है". कब्र के समीप एक जोड़ी जूती रख दी गई ताकि गोरी की मजार देखने आए अफगानी पहले पृथ्वीराज चौहान की कब्र को जूती से मारकर अपमानित करें।
आतंकियों द्वारा 1999 में इण्डियन एयरलाइंस का हवाई जहाज-814 अपहृत कर कंधार ले जाया गया। उसे वापिस लाने के लिए तत्कालीन विदेशमंत्री जसवंत सिंह वहाँ गये और लौटकर उन्होंने देशवासियों को बताया कि अफगानिस्तान में आज भी पृथ्वीराज चौहान और चंदवरदायी की समाधि है जिस पर वहाँ के मुसलमान जूते-चप्पल मारकर न सिर्फ उस वीर शिरोमणि का अपमान करते हैं बल्कि समूचे भारत व भारत के गौरवशाली इतिहास को बेइज्जत करते हैं। सुलतान गोरी की कब्र के बाहर पृथ्वीराज चौहान तथा चंदवरदायी की समाधि पर जूता रखा रहता है। वहाँ के लोग पृथ्वीराज चौहान तथा चंदवरदायी की कब्र पर दो-दो जूते मारकर ही अंदर सुलतान गौरी की कब्र पर जियारत के लिए जाते है।
इस सनसनीखेज समाचार से देश में हडकंप मच गया। उस समाधि (कब्र) को सम्मानपूर्वक भारत लाकर उनका विधिवत अंतिम संस्कार करने के लिए आंदोलन होने लगे। उस समय ‘विश्व क्षत्रिय महासभा’ द्वारा भी दिल्ली में संसद भवन के सामने जंतर-मंतर पर धरने तथा सरकार को ज्ञापन भी दिए गए और संसद भवन में कुछ सांसदों द्वारा प्रश्न भी पुछ्वाये गए। उस समय कुछ इतिहासकारों ने बयान दिया कि पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु भारत में ही हुई है, रणभूमि में या दिल्ली अथवा अजमेर की जेल में; गजनी में नहींI परन्तु यह रहस्य पहले भी एक भारतीय विद्वान श्री एस.सी. शर्मा ने 25 अप्रैल, 1998 को ‘दि इण्डियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित अपने लेख ‘Ghazni’s best-kept secret’ में यह उद्घाटित किया था कि एक बार अफगानिस्तान में कार से कन्दहार से काबुल जाते समय रास्ते में उन्होंने पृथ्वीराज चौहान की समाधि को देखा था।  एक अन्य लेखक श्री यज्ञनारायण चतुर्वेदी ने वाराणसी के अघोर पंथ के एक महात्मा औघड़ भगवान राम की जीवनी (“औघड़ भगवान राम”, प्रकाशक : श्री सरस्वती समूह, वाराणसी, 1973) में लिखा था कि गोरी के कब्र के बाहर सम्राट् पृथ्वीराज की समाधि पर वहाँ के लोग जूते मारते है।
परन्तु इस वारदात के पक्ष-विपक्ष में लेखों का प्रकाशन काफी समय तक चलता रहा और देश भ्रमित हो गया। अत: इस विषय में निर्णय के लिए ‘विश्व क्षत्रिय महासभा’ द्वारा वाराणसी में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के इतिहास विभाग में संगोष्ठी करने के साथ ही अफगानिस्तान भी जाने के प्रयास किये गए। उस समय विश्व हिंदू परिषद के आचार्य गिरिराज किशोर, सांसद अमर सिंह तथा पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर आदि का दल भी इसके लिए अफगानिस्तान जाने के प्रयास में था। किन्तु तत्कालीन तालिबान सरकार के अनुमति न दिए जाने से बात नहीं बनी।
यह खबर शेरसिंह राणा ने पढ़ी जो फूलन देवी की हत्या के आरोप में तिहाड़ जेल में बन्द थे। खबर पढ़ते ही शेरसिंह राणा के दिल में राष्ट्र-सम्मान वापस लाने की बेचैनी बढ़ गयी। कई दिन तक वह इसी उधेड़बुन में रहे कि किस तरह पृथ्वीराज चौहान की अस्थियाँ वापस हिंदुस्तान लाई जा सकती हैं और जब उन्हें कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने जेल से भागने का फैसला किया।
सन् 2003 के अंतिम माह में  शेरसिंह राणा ने जेल से बाहर आने का खाका बनाना शुरू कर दिया और उसके बाद अपने भाई श्री विक्रम सिंह राणा को पूरी योजना समझाई। विक्रम ने पूरी दिल से अपने भाई की भावनाएँ समझीं और हर स्तर पर साथ देने का भरोसा दिया। योजनानुसार पुलिस वैन-जैसी एक बड़ी गाडी, एक हथकड़ी, कुछ पुलिस की वर्दी और भरोसेवाले कुछ लड़कों की जरूरत थी। विक्रम ने सबसे पहले इस योजना में रूडकी के श्री संदीप ठाकुर को जोड़ा। संदीप ठाकुर तिहाड़ में शेरसिंह राणा से मिला और पूरी योजना को समझा। शेरसिंह राणा से मिलने के लिए संदीप ठाकुर नकली वकील बने और उसी लिबास में अक्सर तिहाड़ जाता थे ताकि जेल का सिस्टम समझ सकें और आने-जाने का भय भी दूर हो सके। शेरसिंह संदीप को जेल की हर गतिविधि से अवगत करता ताकि संदीप अपनी योजना को फुलप्रूफ निभा सके। इस दोरान विक्रम ने तीन लड़के और योजना में जोड़ लिए और उनको उनका काम समझा दिया। 17 फरवरी, 2004 को शेरसिंह राणा जेल-नंबर 1 में ‘हाईरिस्क’ वार्ड में थे। सुबह 6 बजे हवालदार ने बताया कि आज तुम्हारी कोर्ट की तारीख है, साढ़े छः बजे तुमको जेल की ड्योढ़ी में आना है। योजनानुसार शेरसिंह राणा पहले से ही तैयार थे। उस दौरान शेरसिंह राणा ने अपने एक साथी शेखर सिंह, जो फूलन की हत्या के आरोप जेल मैं था, से कहा कि भाई आज यदि सायरन बजे तो समझ लेना कि शेरसिंह राणा तिहाड़ जेल से भाग गया, आगे हनुमान जी मेरी रक्षा करेंगेI ठीक 6:30 बजे शेरसिंह राणा जेल की ड्योडी में हवालदार के साथ पहुँचेI तभी संदीप ठाकुर पुलिस की वर्दी में अन्दर आ गया। संदीप ने नकली वारंट जेल-अधिकारियों को दिखाकर शेरसिंह राणा को हथकड़ी पहना दी और गेट पर ले आया। शेरसिंह राणा गेट पर खड़ी नकली पुलिस वैन में बैठ वहाँ से फरार हो गये। एक घंटे के बाद असली पुलिस के पहुचने पर पता चला कि शेरसिंह राणा जेल से निकल गया है। आनन-फानन में सायरन बजाया गया।  सारे जेल में तहलका मच गया, पर तब तक शेरसिंह राणा जेल की हद से बहुत दूर निकल गए थे। जेल से भागने के बाद शेरसिंह ने अपने भाई से संपर्क किया और कुछ रूपये मंगाए और रांची पहुँच गए। कुलदीप तोमर के अनुसार वहाँ उन्होंने ‘संजय गुप्ता’ के नाम से पासपोर्ट बनवाया और बंगलादेश निकल गये, क्योंकि भारत में पुलिस-प्रशासन द्वारा उन पर 50,000/- का इनाम घोषित हो गया था। बांग्लादेश पहुँचकर शेरसिंह राणा ने कुछ क्षत्रिय-नेताओं से संपर्क साधा और जेल से भागने के पीछे कारण पृथ्वीराज चौहान की समाधि वापस हिंदुस्तान लाना बताया। इस पर क्षत्रिय-नेताओं ने उन्हें पूरा साथ देने का भरोसा दिया।
बांग्लादेश में उन्होंने अफगानिस्तान का वीसा लेने का प्रयास किया किन्तु सफल नहीं हुएI अन्ततः दिसम्बर, 2004 में उन्होंने मुंबई से अफगानिस्तान का वीसा प्राप्त कर लिया और जाने की तैयारियां की। उन दिनों अफगानिस्तान सिर्फ दिल्ली, पाकिस्तान और दुबई से ही जाया जा सकता था। चूँकि दिल्ली-पुलिस शेरसिंह राणा के पीछे थी, इसलिए उन्होंने पाकिस्तान से अफगानिस्तान जाने का प्रयास किया। परन्तु इसमें सफलता नहीं मिली। पुनः उन्होंने दुबई के रास्ते अफगानिस्तान जाने का रास्ता चुना। दुबई से काबुल, काबुल से कंधार और कंधार से हेरात पहुँचे। हेरात से वापस कंधार और कंधार से गजनी। इस तरह तालिबानियों के गढ़ में शेरसिंह राणा ने एक माह गुजारा और पृथ्वीराज चौहान की समाधि को खोजते रहे।
No automatic alt text available.पृथ्वीराज चौहान साहब की समाधि गजनी में गजनी शहर से करीब बीस किलोमीटर दूर देयक गाँव में है। शेरसिंह राणा ने देयक गाँव जाकर वहां पृथ्वीराज चौहान एवं चंदवरदायी की समाधि (कब्र) पर जाकर उनका अपमान अपनी आँखों से देखाI उन्होंने अपने कैमरे से इस दृश्य की वीडियो रिकॉर्डिंग की और और मिट्टी-पत्थर खोदने के औजार आदि लेकर वहाँ पहुँचकर कब्र की अस्थियोंयुक्त मिट्टी, जूती तथा शिलापट खोदकर निकाल लियाI इस प्रकार शेरसिंह राणा 3 महीने के कठिन परिश्रम तथा जीवन को संकटों में डालकर मार्च, 2005 में सफल होकर भारत वापस आयेI शेरसिंह राणा ने अपनी अफगानिस्तान-यात्रा का पूरा वर्णन अपनी पुस्तक ‘जेल-डायरी’ में किया हैI भारत आने पर पृथ्वीराज चौहान एवं चंदवरदायी की अस्थियों का जगह-जगह प्रदर्शन होने के बाद उनको पूरी श्रद्धा के साथ समाधिस्थ किया गयाI
महान सम्राट पृथ्वी राज चौहान की कुछ महान बातेँ
''(1) पृथ्वी राज चौहान ने 12 वर्ष कि उम्र मे बिना किसी
हथियार के खुंखार जंगली शेर का जबड़ा फाड़ ड़ाला ।
(2) चौहान ने 16 वर्ष की आयु मे महाबली नाहरराय को
हराकर माड़वकर पर विजय प्राप्त करना ।
(3) चौहान ने तलवार के एक वार से जंगली हाथी का सिर
धड़ से अलग कर देना ।
(4) महान सम्राट पृथ्वी राज चौहान कि तलवार का वजन
84 किलौ होना और उसे एक हाथ से चलाना ।
(5) पशु-पक्षियो के साथ बाते करना अर्थात उनकी भाषा
का ज्ञात होना ।
(6) महान सम्राट का पुर्ण रूप से मर्द होना अर्थात उनकी
छाती पर स्तंन का न होना ।
(7) महान सम्राट की भुजाँऔ का उनके घुटनो पर लगना ।
(8) पृथ्वी राज चौहान का 1166 मे अजमेर की गद्दी पर
बैठना और दो वर्ष के बाद यानि 1168 मे दिल्ली के
सिहासन पर बैठकर समस्त हिन्दुस्तान पर राज करना ।
(10) गौरी को 16 बार हराकर जीवन दान देना और 16 बार
कुरान की कसम का खिलाना।
(11) गौरी का 17 वी बार चौहान को हराना अपने देश ले
जाना और चौहान का अपने राजदरबार मे अपनी आँखो का
फड़वा लेना पर नींचे ना करना ।
(12) गौरी द्वारा  महान सम्राट को अनेको प्रकार की पीड़ा देना और कई महिनो तक भुखा रखना पर सम्राट का न मरना।
(13) महान सम्राट की सबसे बड़ी बात जन्म से शब्द भेदी
बाण का ज्ञात होना ।
(14) चौहान का गौरी को उसी के भरे दरबार मे शब्द भेदी
बाण से मारना ।
(15) गौरी को मारने के बाद ज़ालिम गोरी के सैनिकों  के हाथो न मरना
अर्थात कवि चन्द्रवरदायी द्वारा पहले सम्राट चौहान, फिर स्वंय को खुद मार लेना ।।।

Comments

Keycardgen said…
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To write on general topics and specially on films;THE BLOGS ARE DEDICATED TO MY PARENTS:SHRI M.B.L.NIGAM(January 7,1917-March 17,2005) and SMT.SHANNO DEVI NIGAM(November 23,1922-January24,1983)

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