पायल ने केरल में आई बाढ़ को गौहत्या से जोड़ दिया है. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा कि- ‘केरल में गौहत्या को बैन नहीं किया गया था. प्यारे केरल वासियों और राजनेताओं और साथ ही हिन्दुओं को ठेस पहुंचाना सही नहीं है लेकिन अगर आप ये सब खुलेआम करते हो तो शायद आपको बुरा लगे. लेकिन भगवान ने ही आप पर आपदा बरसाई है. भगवान एक ही है लेकिन आप किसी की भी धार्मिक भावनाओं को आहत नहीं पंहुचा सकते हैं.’
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केरल में सरेआम काटी गई गाय
ये रेतना सिर्फ गाय का नहीं है। ये छटपटाहट है और एक संदेश भी है हिन्दुओं को कि तुम हिन्दू प्रतीकों को गरिया कर सेकुलर बनने की कोशिश करते रहो, और वो ख़तना को साइंटिफ़िक बताते रहेंगे। ये कन्वर्ट लोगों की छटपटाहट है जो ख़ुद को बेहतर विचारक, बेहतर ईसाई, बेहतर मुसलमान, बेहतर हिन्दू बताने के लिए अपनी जड़ों को (जो कि अंततः हिन्दू होने में ही है भले ही वो अपने दादा को सऊदी से आया बताएँ या इंग्लैंड से) काटते हुए, किसी भी हद तक हिन्दू प्रतीकों के अपमान करने हेतु गिर सकते हैं।
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केरल में गाय काटी गई, रिपोर्ट में आया कि भैंस कटी है, फिर आया कि बैल काटा गया है और अंततः कल-परसों तक इस पर चर्चा होगी कि केरल में जो पब्लिक में मुर्ग़ा कटा है उसकी इजाज़त संविधान देता है कि नहीं। गाय क्यों काटी गई? ये दिखाने के लिए केन्द्र सरकार ने जो मवेशियों के व्यापार पर रोक लगाया है वो गलत है। इसके बाद बीफ़ ईटिंग फ़ेस्टिवल का आयोजन हो रहा है।
केरल में गाय का गला रेत दिया गया। रेतने वाले राहुल गाँधी के उतने ही क़रीबी हैं जितने अंबानी हैं मोदी के। क्योंकि अगर फोटो ही आधार है क़रीबी होने का तो केरल यूथ कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी के साथ कई आयोजन में दिखते हैं। हलाँकि राहुल गाँधी ने इसकी भर्त्सना की है, और शशि थरूर ने हाँ में हाँ मिलाते हुए उसे कॉन्ग्रेस की विचारधारा से दूर कर दिया है, लेकिन बात ये है कि गौरक्षक सेनाओं को भाजपा से किस आधार पर जोड़ा जाता है? इसीलिए ना कि इनको शह मिलती है सरकारों से। फिर कॉन्ग्रेस के यूथ विंग को ये करने की शह कहाँ से मिली है। आपके ही तर्क से चलेंगे।

लेकिन हिन्दू चुप रहेगा। क्योंकि ये साइंटिफ़िक नहीं है। गाय कट रही है, जानवर कट रहा है। मूर्ति पूजना मूर्खता है, पत्थर चूमना साइंटिफ़िक है। लेकिन ये डिबेट है भी नहीं। ये चर्चा का विषय या मुद्दा नहीं है। चर्चा इस बात की है कि ये हो क्यों रहा है? क्या इसके पीछे सिर्फ राजनीतिक महात्वाकांक्षा ही है या फिर इसकी जड़ में वो मनोवैज्ञानिक पहलू भी है जिसमें किताबों के दसियों पन्नों पर किसी ना दिखाई देने वाले देवता की हुकूमत स्थापित करने के लिए किसी भी तरह की हिन्सा को ज़ायज मानना है?
क्या ये सुनियोजित षड्यंत्र नहीं है हिन्दुओं की सहिष्णुता जाँचने के लिए? हम लाउडस्पीकर जोर से बजाएँगे, जो उखाड़ना है उखाड़ो। हम गोमाँस खाएँगे, और तुमको दिखाकर खाएँगे, तुमको जो करना है कर लो। हम गाय को सरेआम बस इसलिए काट देंगे कि तुम्हें बता सके कि हम काट सकते हैं, तुम्हारी औक़ात में जो करना है कर लो।
गोमाँस बहुत लोग खाते हैं। वंदे मातरम् बहुत मुसलमान नहीं गाते हैं। ईसाई लोग जीसस को देवता बनाकर दिल्ली यूनिवर्सिटी के फ़र्स्ट ईयर के बच्चों को जीसस भजन पार्टी पर बुलाते हैं और कुकीज़ खिलाते हैं। सारी बातें ठीक हैं क्योंकि हमारे संविधान की प्रस्तावना में ‘सेकुलर’ शब्द है और धार्मिक स्वतंत्रता संविधान के दिए मौलिक अधिकारों में से एक है।
अगर आपको वंदे-मातरम् गाने पर ऐतराज़ है, आप दूसरे धर्म को उकसाने के लिए बीफ़ खाएँगे, आप एक देश में रहकर वहाँ की पुलिस से प्रोटेक्शन चाहते हों, वहाँ की नीतियों का हिस्सा हैं लेकिन क़ानून आप शरिया का मानेंगे तो फिर ये वैचारिक दोगलापन ही है। और इससे साफ़ पता चलता है कि आप किसी दूसरे धर्म का कितना सम्मान करते हैं।
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पायल के इस ट्वीट के बाद हर कही बस उन्ही के बारे में चर्चा हो रही हैं. कुछ सोशल मीडिया यूज़र्स पायल को ट्रोल भी कर रहे हैं. पायल काफी समय से फ़िल्मी पर्दे से दूर है लेकिन वो सोशल मीडिया पर हमेशा ही एक्टिव रहती हैं और फैंस के साथ जुड़ी रहती हैं.
#cowslaughter is NOT banned in #kerala. Dear Kerala people and politicians of Kerala, not good to hurt the sentiments of #Hindus. If u openly do that, sorry to sound but God also openly does it.. God is onebut u can’t hurt religious faith like this
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