राज्य में बढ़ता आतंकवाद और बिगड़ती कानून व्यवस्था समर्थन वापसी की अहम वजह है. भाजपा महासचिव राममाधव के अनुसार भाजपा ने दो अहम बिंदुओं पर सहमति के बाद जम्मू-कश्मीर में गठबंधन सरकार बनाने का फैसला किया था. इसमें पहला बिंदु जम्मू-कश्मीर के तीनों हिस्सों का सर्वांगीण विकास और दूसरा बिंदु राज्य में शांति कायम करना था. बीते तीन साल के शासनकाल में महसूस किया गया कि राज्य में कानून व्यवस्था के हालात दिन-ब-दिन बिडगते जा रहे है. राज्य में कानून व्यवस्था के हालात का अंदाजा बीते दिनों घाटी के प्रमुख समाचार पत्र के संपादक की हत्या से लगाया जा सकता है. वहीं श्रीनगर सहित कश्मीर के दूसरी हिस्सों को लगातार आतंकवाद समर्थित घटनाएं बढ़ती जा रही है. जिस पर राज्य सरकार पूरी तरह से लगाम कसने में पूरी तरह से नाकाम रही है.
ईद के दिन श्रीनगर की प्रमुख मस्जिद में आतंक का झंडा फहराए जाने से बढ़ी नाराजगी
सूत्रों के अनुसार बीती ईद में आतंकवाद समर्थित एक समूह ने जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर की प्रमुख मस्जिद में ISIS का झंडा फहराया था. इस दौरान समूह में शामिल लोगों ने मौके पर न केवल पाकिस्तान का झंडा फहराया था बल्कि भारत विरोधी नारेबाजी भी की थी. आरोप है कि स्थानीय प्रशासन ने न ही इस तरह की गंभीर घटना को रोकने का प्रयास किया और न ही देश विरोधी गतिविधि करने वाले नौजवानों पर कोई कार्रवाई की गई. सूत्रों के अनुसार यह घटना सिर्फ श्रीनगर में ही नहीं हुई, बल्कि कश्मीर के तमाम शहरों पर लगातार दोहराई जाती रही है. बावजूद इसके, स्थानीय पुलिस ने न ही इस तरह की हरकतों को रोकने की कोशिश की और न हीं किसी तरह की कार्रवाई की.
अवलोकन करें:--
शांति के लिए पीडीपी की हर बात का करते रहे समर्थन
जम्मू-कश्मीर से जुड़े सूत्रों के अनुसार शांति बहाली के लिए राज्य सरकार की हर जायज और ना जायज मांग को लगातार केंद्र मांगता आया है. यह राज्य सरकार का सुझाव था कि शांति बहाली और लोगों में विश्वास पैदा करने के लिए रमाजन में सीजफायर किया जाए. इसके अलावा, पत्थरबाजों से केस वापस लेने का दबाव पीडीपी के नेतृत्व में चलने वाली जम्मू-कश्मीर सरकार लगातार केंद्र सरकार पर बनाती रही है. इसी दबाव का नतीजा था कि केंद्र ने न चाहते हुए भी कश्मीर के पत्थरबाजों पर से केस हटाए. वहीं शांति की आशा के साथ भाजपा ने पीडीपी की सीजफायर की बात को भी मान लिया था. लेकिन इन दोनों फैसलों का पूरा खामियाजा सुरक्षाबलों को ही भुगतना पड़ा. वहीं दोनों फैसलों के बाद कश्मीर के हालात सुधरने की बजाया बिगड़ते चले गए.
सुरक्षाबलों पर दर्ज होते मामलों ने बढ़ाई थी नाराजगी
सूत्रों के अनुसार जम्मू-कश्मीर में कई ऐसी घटनाएं सामने आई थी, जिसमें सुरक्षाबलों पर गंभीर हमले किए गए. इन घटनाओं में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने हमला करने वाले पत्थरबाजों की जगह सुरक्षाबलों के खिलाफ ही मामला दर्ज किया. सुरक्षाबलों से अपराधियों की तरह पूछताछ की गई. इस तरह की घटना का ताजा उदाहरण श्रीनगर से सटे नौहट्टा का है. जहां सीआरपीएफ के कमांडेंट सहित छह बल कर्मियों को गाड़ी सहित जलाने की कोशिश की गई. स्थानीय पुलिस ने सीआरपीएफ कर्मियों पर हमला करने वाले पत्थरबाजों पर कार्रवाई करने की बजाय सीआरपीएफ कर्मियों पर हत्या का प्रयास और दंगा भड़काने जैसे मामले दर्ज कर दिए. हाल में सेना के अधिकारियों के खिलाफ दर्ज हुए मामलों से भी भाजपा और पीडीपी के बीच दूरी बनी थी.
ईद के दिन श्रीनगर की प्रमुख मस्जिद में आतंक का झंडा फहराए जाने से बढ़ी नाराजगी
सूत्रों के अनुसार बीती ईद में आतंकवाद समर्थित एक समूह ने जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर की प्रमुख मस्जिद में ISIS का झंडा फहराया था. इस दौरान समूह में शामिल लोगों ने मौके पर न केवल पाकिस्तान का झंडा फहराया था बल्कि भारत विरोधी नारेबाजी भी की थी. आरोप है कि स्थानीय प्रशासन ने न ही इस तरह की गंभीर घटना को रोकने का प्रयास किया और न ही देश विरोधी गतिविधि करने वाले नौजवानों पर कोई कार्रवाई की गई. सूत्रों के अनुसार यह घटना सिर्फ श्रीनगर में ही नहीं हुई, बल्कि कश्मीर के तमाम शहरों पर लगातार दोहराई जाती रही है. बावजूद इसके, स्थानीय पुलिस ने न ही इस तरह की हरकतों को रोकने की कोशिश की और न हीं किसी तरह की कार्रवाई की.
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शांति के लिए पीडीपी की हर बात का करते रहे समर्थन
जम्मू-कश्मीर से जुड़े सूत्रों के अनुसार शांति बहाली के लिए राज्य सरकार की हर जायज और ना जायज मांग को लगातार केंद्र मांगता आया है. यह राज्य सरकार का सुझाव था कि शांति बहाली और लोगों में विश्वास पैदा करने के लिए रमाजन में सीजफायर किया जाए. इसके अलावा, पत्थरबाजों से केस वापस लेने का दबाव पीडीपी के नेतृत्व में चलने वाली जम्मू-कश्मीर सरकार लगातार केंद्र सरकार पर बनाती रही है. इसी दबाव का नतीजा था कि केंद्र ने न चाहते हुए भी कश्मीर के पत्थरबाजों पर से केस हटाए. वहीं शांति की आशा के साथ भाजपा ने पीडीपी की सीजफायर की बात को भी मान लिया था. लेकिन इन दोनों फैसलों का पूरा खामियाजा सुरक्षाबलों को ही भुगतना पड़ा. वहीं दोनों फैसलों के बाद कश्मीर के हालात सुधरने की बजाया बिगड़ते चले गए.
सुरक्षाबलों पर दर्ज होते मामलों ने बढ़ाई थी नाराजगी
सूत्रों के अनुसार जम्मू-कश्मीर में कई ऐसी घटनाएं सामने आई थी, जिसमें सुरक्षाबलों पर गंभीर हमले किए गए. इन घटनाओं में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने हमला करने वाले पत्थरबाजों की जगह सुरक्षाबलों के खिलाफ ही मामला दर्ज किया. सुरक्षाबलों से अपराधियों की तरह पूछताछ की गई. इस तरह की घटना का ताजा उदाहरण श्रीनगर से सटे नौहट्टा का है. जहां सीआरपीएफ के कमांडेंट सहित छह बल कर्मियों को गाड़ी सहित जलाने की कोशिश की गई. स्थानीय पुलिस ने सीआरपीएफ कर्मियों पर हमला करने वाले पत्थरबाजों पर कार्रवाई करने की बजाय सीआरपीएफ कर्मियों पर हत्या का प्रयास और दंगा भड़काने जैसे मामले दर्ज कर दिए. हाल में सेना के अधिकारियों के खिलाफ दर्ज हुए मामलों से भी भाजपा और पीडीपी के बीच दूरी बनी थी.
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