Skip to main content

हिंदुओं को बांटने का काम कर रही है कांग्रेस


आर..बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 

राज्य में विधानसभा चुनावों को देखते हुए कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने मार्च 19 को लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक दर्जा देने का फैसला किया है। लेकिन सिद्धारमैया सरकार के इस फैसले पर हंगामा शुरू हो गया है। भारतीय जनता पार्टी ने इस फैसले की कड़ी आलोचना की है और इसे हिंदुओं को बांटने वाला बताया है। 

केंद्रीय मंत्री सदानंद गौड़ा ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर सीधा निशाना साधा. गौड़ा ने लिखा कि अगस्त 2014 में महाराष्ट्र की पृथ्वीराज चौहान सरकार ने भी ऐसा ही फैसला लिया था, लेकिन केंद्र में बैठी यूपीए सरकार ने उसे ठुकरा दिया था. क्या सिद्धारमैया इस बात को नहीं जानते हैं? केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यह जानते हुए भी सिद्धारमैया सरकार ने इस फैसले को किया. सरकार का ये फैसला हिंदुओं को बांटने वाला है.

कांग्रेस नीत कर्नाटक सरकार के इस फैसले का राजनीतिक प्रभाव देखने को मिल सकता है. इस समुदाय को कांग्रेस की ओर आकर्षित करने की मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की एक कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. दरअसल, भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से आते हैं.
ये समुदाय राज्य में संख्या बल के हिसाब से मजबूत और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली है. राज्य में लिंगायत/ वीरशैव समुदाय की कुल आबादी में 17 प्रतिशत की हिस्सेदारी होने का अनुमान है, इन्हें कांग्रेस शासित कर्नाटक में भाजपा का पारंपरिक वोट माना जाता है.
BJP ने बताया- ‘फूट डालो, राज करो’ वाला फैसला
भाजपा ने कैबिनेट के फैसले की आलोचना की है, जिसने सिद्धारमैया पर वोट बैंक की राजनीति के लिए आग से खेलने और अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया. भाजपा महासचिव पी मुरलीधर राव ने एक ट्वीट में कहा कि कांग्रेस भारत में अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति को आगे बढ़ा रही है. उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस चुनाव से पहले यह क्यों कर रही है? उसने चार साल पहले यह क्यों नहीं किया?’’
लिंगायतों का राजनीतिक रुझान
1980 के दशक में लिंगायतों ने राज्य के नेता रामकृष्ण हेगड़े पर भरोसा किया था. बाद में लिंगायत कांग्रेस के वीरेंद्र पाटिल के भी साथ गए. 1989 में कांग्रेस की सरकार में पाटिल सीएम चुने गए, लेकिन राजीव गांधी ने पाटिल को एयरपोर्ट पर ही सीएम पद से हटा दिया था.
अवलोकन करें:--

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कोई कसर नहीं छोेड़ना चाहती। राज्य सरकार ने लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्.....
NIGAMRAJENDRA28.BLOGSPOT.COM
इसके बाद लिंगायत समुदाय ने कांग्रेस से दूरी बना ली. इसके बाद लिंगायत फिर से हेगड़े का समर्थन करने लगे. इसके बाद लिंगायतों ने बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा को अपना नेता चुना. जब बीजेपी ने येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाया तो इस समुदाय ने बीजेपी से मुंह मोड़ लिया था.

हिंदू धर्म के खात्मे के लिए सोनिया गांधी का ‘गेमप्लान’

बांटो और राज करो की अपनी नीति के तहत कांग्रेस पार्टी ने अब हिंदुओं को टुकड़े-टुकड़े बांटने का अभियान शुरू किया है। इसके तहत कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने लिंगायतों को अलग धर्म के तौर पर मान्यता देने का एलान किया है। यूं तो इसे कांग्रेस का चुनावी दांव बताया जा रहा है, लेकिन जानकारों के मुताबिक इसके पीछे सोनिया गांधी का बरसों पुराना एजेंडा है। बताया जाता है कि हिंदू धर्म को कमजोर करने और ईसाई मिशनरियों का काम आसान करने की नीयत से सोनिया गांधी काफी समय से कुछ लिंगायत धर्म गुरुओं को उकसाने में जुटी थीं। कर्नाटक में लिंगायत समुदाय की आबादी 20 फीसदी के आसपास है। कांग्रेस को लगता है कि इस दांव से उसे कर्नाटक में ताकतवर लिंगायत समुदाय का एकमुश्त वोट मिल जाएगा और वो दूसरी बार सरकार बना लेगी।

क्या अलग धर्म चाहते हैं लिंगायत?

कुछ दिन पहले तक कर्नाटक में लिंगायतों ने अलग धर्म की मान्यता के लिए प्रदर्शन आयोजित किए थे, लेकिन ऐसा नहीं था कि उनको हिंदू धर्म से कोई शिकायत थी। दरअसल अल्पसंख्यक का दर्जा पाने की मांग के पीछे कुछ और ही कारण ता। लिंगायतों की मांग है कि उन्हें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग एक्ट 1992 के तहत अल्पसंख्यक माना जाए। मुस्लिम, सिख और ईसाई समुदाय को मिलाकर देश में अभी कुल 6 अल्पसंख्यक धर्म हैं। संविधान का अनुच्छेद 30 सभी अल्पसंख्यकों को धर्म आधारित शिक्षा संस्थान खोलने की छूट देता है। इन संस्थानों को अल्पसंख्यक संस्थान कहा जाता है। सरकार इनके कामकाज में कोई दखल नहीं दे सकती है। यही कारण है कि लिंगायतों में भी अल्पसंख्यक तबके का दर्जा पाने की मांग तेज़ हुई। कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के कई पैसे वाले लोग इंजीनियरिंग, मेडिकल और मैनेजमेंट कॉलेज चला रहे हैं। अल्पसंख्यक बनने की मांग को इसी ताकतवर लॉबी ने बढ़ावा दिया। क्योंकि अभी उनके संस्थानों में सरकारी दखलंदाजी होती रहती है।

मिशनरियों के लिए सोनिया का दांव

2005 में सोनिया गांधी के दबाव में मनमोहन सिंह सरकार ने संविधान में 93वें संशोधन के जरिए अनुसूचित जाति और जनजाति को भी यह छूट दिलवा दी। इस संशोधन का मतलब था कि सरकार किसी हिंदू के शिक्षा संस्थान को कब्जे में ले सकती है, लेकिन अल्पसंख्यकों और हिंदुओं की अनुसूचित जाति और जनजाति के संस्थानों को छू भी नहीं सकती। दलितों और आदिवासियों को हिंदू धर्म से अलग करने की सोनिया गांधी की ये सबसे बड़ी चाल थी। हैरानी इस बात की रही कि तब लालकृष्ण आडवाणी की अगुवाई वाली बीजेपी ने विरोध के बावजूद संसद में सरकार के पक्ष में वोट दिया था। इस संशोधन का असर यह हुआ कि किसी हिंदू के लिए स्कूल या कॉलेज चलाना लगभग असंभव हो गया। रही सही कसर सोनिया गांधी के ही दबाव में 2009 में लागू कराए गए शिक्षा के अधिकार कानून ने पूरी कर दी। क्योंकि आम संस्थानों को 25 फीसदी गरीब छात्रों को दाखिला देना जरूरी कर दिया गया, जबकि अल्पसंख्यक संस्थानों पर ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। यहां तक कि उन्हें अनुसूचित जाति और जनजातियों को आरक्षण देना भी जरूरी नहीं किया गया।

हिंदू विरोधी है शिक्षा का अधिकार

सोनिया-मनमोहन की सरकार ने जब शिक्षा का अधिकार लागू किया तो उसके नियमों में ऐसी चालबाजी की गई कि देश में हिंदुओं के शिक्षा संस्थान धीरे-धीरे पूरी तरह खत्म हो जाएं। इसके कानून में नए स्कूल-कॉलेज खोलने के बजाय हिंदुओं के संस्थानों पर बंदिशें लगाने और ईसाई और मुसलमानों को बढ़ावा देने पर जोर था। आज हालत ये है कि केरल में 14 में से 12 प्राइवेट मेडिकल कॉलेज मुस्लिम संस्थाओं के हैं। इन कॉलेजों के जरिए ही सैकड़ों हिंदू लड़कियों को लव जिहाद का शिकार बनाया जा रहा है। पिछले दिनों चर्चा में आया हदिया का मामला भी इसी तरह का है। देश भर में अब तक 3000 से ज्यादा हिंदुओं द्वारा संचालित शिक्षण संस्थान बंद हो चुके हैं और इससे भी ज्यादा आखिरी सांसें गिन रहे हैं। जबकि ईसाई और इस्लामी संस्थाएं फल-फूल रही हैं।

लिंगायत ‘धर्म’ तो बस शुरुआत है

दरअसल ईसाई मिशनरियों की मदद से सोनिया गांधी ने हिंदू धर्म को पूरी तरह से नष्ट करने के लिए एक रोडमैप तैयार कर रखा है। इसके तहत बारी-बारी सभी जातियों और समुदायों को हिंदू मुख्यधारा से अलग करके सभी को आपस में लड़ाने की योजना है। ताकि ये सभी आसानी से ईसाई मिशनरियों के जाल में फंस सकें। आगे चलकर कबीरपंथी, नाथ संप्रदाय, वैष्णव जैसे समुदायों को भी अलग धर्म की मान्यता देने की मांग उठ सकती है। इससे पहले कांग्रेस जैन, सिख और बौद्ध को हिंदू धर्म से अलग कर ही चुकी है।

जैसे ही कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने लिंगायत समुदाय को हिन्दू धर्म से प्रथक धर्म घोषित किया गया, सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। लोगों के गुस्से की बानगी देखिये -

हिन्दू द्रोही पार्टी का खात्मा कब होगा?

लिंगायत हिन्दू नही है। 

अगला कदम मराठा हिन्दू नही है राजपूत हिन्दू नही है जाट हिन्दू नही है ये हिन्दू नही है वो हिन्दू नही है?

इस पार्टी को नष्ट होना ही होगा अब।

टुकड़ो के खातिर इसकी चमचागिरी करने वाले भी नष्ट होंगे।लिंगायत को अलग धर्म बनाकर हिन्दुओ को तोड़ने की कोशिश का जबरदस्त असर तय है।अभी तक तो ये आरक्षण के लॉलीपॉप से जातियो को लड़वाते थे अब ये हिन्दू नही होने का फतवा देने लगे है।

कांग्रेस ने लिंगायत समाज को हिन्दू से अलग धर्म बनाने का कानून पास किया है कर्नाटक में जल्द ही ब्राह्मण कायस्थ नाई ठाकुर बनिया यादव जाट पाटीदार हरिजन धोबी को भी हिन्दू से अलग धर्म का घोषित कर देगी 2019 चुनाव जीतने के लिए। ये लोग हिन्दू जाति को अलग धर्म बनाने का प्रयास कर चुनाव जीत के सपने देख रहे हैं।

लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने दे दिया.
और राहुल गांधी ये दावा करते हैं कि हम बांटने की राजनीति नहीं करते. 
दम है तो अहमदिया और कादियान को अलग धर्म का दर्जा देकर दिखाएं.
बरेलवी मसलक को अलग माने,
देवबंदी को अलग.
शिया और सुन्नी को इस्लाम में ही
अलग दर्जा देकर दिखाएं.
सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि हिंदुत्व जीवन शैली है, मनोदशा है.
लेकिन समझे तो वो जो हिंदू हो. जिसका बपतिस्मा वेटिकन में हुआ हो, उसकी समझ से ये बाहर की बात है.
यूं भी कांग्रेस भारत को बांटने के बाद से सिर्फ बांटने का ही काम करती रही है.
अगड़े, पिछड़े, दलितों को बांटना.
भिंडरावाला को आगे लाकर सिखों को बांटना.
श्रीलंका में दखल देकर तमिलों को बांटना.
इधर राम मंदिर का ताला खुलवाना और उधर शाहबानो मामले में कानून बनाना, बांटना ही तो था.
राहुल गांधी भी अपने पापा और दादी के पदचिह्नों पर हैं.
गुजरात में पटेलों को बांटने की कोशिश.
अब राजस्थान में राजपूतों को बांटने की कोशिश.
महाराष्ट्र में दलितों को सुलगाने की कोशिश.
और अब तो हद हो गई, लिंगायत को अलग धर्म की मान्यता देना. इसमें खास बात ये है कि ये राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर की बात है.
खैर कांग्रेस को कानून, संविधान, परंपराओं, मर्यादा और क्षेत्राधिकार से कोई मतलब नहीं है. क्योंकि ये परिवार तो न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका, संविधान सबको अपनी जागीर मानता है.
लेकिन बाटने की मानसिकता वालों और उसके गुर्गों सुन लो. हिंदू नहीं बंटेगा. हिंदू के टुकड़े नहीं होंगे. इतिहास की किताब खोलकर देख लो, जिसने बांटने की कोशिश की है, टुकड़े-टुकड़े हो गया... 

और सबसे बेहतर प्रतिक्रिया है डॉक्टर डेविड फ्राले की - 

एक ओर तो कांग्रेस नेता राहुल गाँधी और शशि थरूर स्वयं को हिन्दू घोषित करते हैं, वहीं दूसरी ओर हिन्दू को विभिन्न सम्प्रदायों में बांटकर ईसाई मिशनरीयों की रणनीति का अनुशरण करते हैं | यह पांडवों जैसा नहीं, असुरों जैसा कृत्य है | 


आईये अब इस मामले की तह तक जाने की कोशिश करते हैं -
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने लिंगायत और वीरशैव लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक दर्जा देने की केंद्र से सिफारिश करने का फैसला किया है। इसके पूर्व राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस नागामोहन दास की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था, जिसने लिंगायत समुदाय के लिए अलग धर्म के साथ अल्पसंख्यक दर्जे की सिफारिश की थी | कर्नाटक सरकार ने नागमोहन समिति की सिफारिशों को स्टेट माइनॉरिटी कमीशन ऐक्ट की धारा 2डी के तहत मंजूर कर लिया |
ख़ास बात यह है कि राज्य सरकार इस मामले में स्वयं कुछ नहीं कर सकती, उसे अब ये सिफारिश केंद्र सरकार के पास भेजनी होगी और अंतिम निर्णय केंद्र सरकार ही करेगी |
स्मरणीय है कि बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से आते हैं। यह समुदाय राज्य में संख्या बल के हिसाब से मजबूत और राजनीतिक रूप से काफी प्रभावशाली है। राज्य में लिंगायत/वीरशैव समुदाय की कुल आबादी में 17 प्रतिशत की हिस्सेदारी होने का अनुमान है। इन्हें कांग्रेस शासित कर्नाटक में बीजेपी का पारंपरिक वोट माना जाता है। 
किन्तु इस निर्णय का सबसे आश्चर्यजनक पहलू यह है कि सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत और वीरशैव दोनों समुदाय को अल्‍पसंख्‍यक समुदाय का दर्जा दिए जाने के लिए केंद्र सरकार से सिफारिश की है। जबकि इसके पूर्व तक स्वयं कांग्रेस के नेता और मंत्री अक्‍सर दोनों को अलग-अलग धर्म बताते रहे हैं। लेकिन यू टर्न लेकर राज्‍य सरकार ने वीरशैव को भी लिंगायत का हिस्‍सा बना दिया।' 
वीरशैवों का नेतृत्व करने वाले एक संत एवं बलेहोनुर स्थित रम्भापुरी पीठ के श्री वीर सोमेश्वर शिवाचार्य स्वामी ने कैबिनेट के इस फैसले की निंदा की है। उन्‍होंने आरोप लगाया कि कुछ लोगों की साजिश के बाद सिफारिश स्वीकार की गई लेकिन वीरशैव मिल कर इसके खिलाफ लड़ेंगे। 
आइए जानते हैं कि क्या है यह लिंगायत और वीरशैव प्रकरण - 
लिंगायत समाज मुख्य रूप से दक्षिण भारत में है. लिंगायत समाज को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है. कर्नाटक की जनसंख्या में लिंगायत और वीरशैव समुदाय की हिस्सेदारी करीब 18 प्रतिशत है. इस समुदाय को बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है. 
कौन हैं लिंगायत और क्या हैं इनकी परंपराएं? 
लिंगायत समाज को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है. कर्नाटक की आबादी का 18 फीसदी लिंगायत हैं. पास के राज्यों जैसे महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी लिंगायतों की अच्छी खासी आबादी है. 
लिंगायत और वीरशैव कर्नाटक के दो बड़े समुदाय हैं | इन दोनों समुदायों का जन्म 12वीं शताब्दी के समाज सुधार आंदोलन के परिणाम स्वरूप हुआ जिसका नेतृत्व समाज सुधारक बसवन्ना ने किया था, जो खुद ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे किन्तु जन्म आधारित व्यवस्था की जगह कर्म आधारित व्यवस्था में विश्वास करते थे | 
लिंगायत सम्प्रदाय के लोग मूर्ति पूजा तो नहीं करते, किन्तु एक अंडाकार "इष्टलिंग" को धागे से अपने शरीर पर बांधते हैं | लिंगायत इस इष्टलिंग को आंतरिक चेतना का प्रतीक मानते हैं और निराकार परमात्मा को मानव या प्राणियों के आकार में कल्पित न करके विश्व के आकार में इष्टलिंग को मानते हैं | 
लिंगायत पुनर्जन्म में भी विश्वास नहीं करते हैं. लिंगायतों का मानना है कि एक ही जीवन है और कोई भी अपने कर्मों से अपने जीवन को स्वर्ग और नरक बना सकता है. 
लिंगायत में शवों को दफनाने की परंपरा 
लिंगायत परंपरा में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया भी अलग है. लिंगायत में शवों को दफनाया जाता है. लिंगायत परंपरा में मृत्यु के बाद शव को नहलाकर बिठा दिया जाता है. शव को कपड़े या लकड़ी के सहारे बांध जाता है. जब किसी लिंगायत का निधन होता है तो उसे सजा-धजाकर कुर्सी पर बिठाया जाता है और फिर कंधे पर उठाया जाता है. इसे विमान बांधना कहते हैं. कई जगहों पर लिंगायतों के अलग कब्रिस्तान होते हैं. 
वर्तमान में बसवन्ना के अनुयायियों की दो धाराएँ चल रही हैं | एक का मानना है कि इष्ट लिंग और भगवान बसवेश्वर के बताए गए नियम हिंदू धर्म से बिल्कुल अलग हैं जबकि अन्य लोग मानते हैं कि बसवन्ना का आंदोलन भक्ति आंदोलन की ही तरह था और उसका मकसद हिंदू धर्म से अलग होना नहीं था | 
आम मान्यता ये है कि वीरशैव और लिंगायत एक ही लोग होते हैं किन्तु वीरशैव शिव की मूर्ति पूजा भी करते हैं | भीमन्ना ऑल इंडिया वीरशैव महासभा के पूर्व अध्यक्ष भीमन्ना खांद्रे कहते हैं कि वीरशैव और लिंगायतों में कोई अंतर नहीं है |" 
कर्नाटक में लगभग 17 फीसदी लिंगायत को धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक का दर्जा देना एक लोलीपोप के समान है। कहा जा रहा है कि उन्हें अल्पसंख्यक आरक्षण का फायदा मिलेगा, किन्तु सवाल उठता है कि कैसे? क्या अन्य अल्पसंख्यक समुदाय जैसे मुसलमान, ईसाई, जैन, बौद्ध और सिख, इसे आसानी से सहन कर लेंगे कि एक अगड़ी जाति उनके हक़ पर अधिकार जमाने आ जाए? और प्रथक से देने का प्रयास किया तो कोर्ट बीच में आयेगा ही, जैसा कि अब तक होता आया है| कुल मिलाकर यह एक चुनावी शिगूफे के अलावा कुछ नहीं है | 
लिंगायतों का राजनैतिक रुझान - 
1980 के दशक में लिंगायतों ने राज्य के नेता रामकृष्ण हेगड़े पर भरोसा किया था | बाद में लिंगायत कांग्रेस के वीरेंद्र पाटिल के भी साथ गए | इसके बाद लिंगायत समुदाय ने फिर से कांग्रेस से दूरी बना ली और फिर से हेगड़े का समर्थन करने लगे | इसके बाद लिंगायतों ने बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा को अपना नेता चुना, किन्तु जब बीजेपी ने येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाया तो इस समुदाय ने बीजेपी से मुंह मोड़ लिया और नतीजा यह निकला कि कांग्रेस सत्ता में आ गई |

Comments

AUTHOR

My photo
shannomagan
To write on general topics and specially on films;THE BLOGS ARE DEDICATED TO MY PARENTS:SHRI M.B.L.NIGAM(January 7,1917-March 17,2005) and SMT.SHANNO DEVI NIGAM(November 23,1922-January24,1983)

Popular posts from this blog

राखी सावंत की सेक्सी वीडियो वायरल

बॉलीवुड की ड्रामा क्वीन राखी सावंत हमेशा अपनी अजीबो गरीब हरकत से सोशल मिडिया पर छाई रहती हैं। लेकिन इस बार वह अपनी बोल्ड फोटो के लिए चर्चे में हैं. उन्होंने हाल ही में एक बोल्ड फोटो शेयर की जिसमें वह एकदम कहर ढाह रही हैं. फोटो के साथ-साथ वह कभी अपने क्लीवेज पर बना टैटू का वीडियो शेयर करती हैं तो कभी स्नैपचैट का फिल्टर लगाकर वीडियो पोस्ट करती हैं. वह अपने अधिकतर फोटो और वीडियो में अपने क्लीवेज फ्लांट करती दिखती हैं. राखी के वीडियो को देखकर उनके फॉलोवर्स के होश उड़ जाते हैं. इसी के चलते उनकी फोटो और वीडियो पर बहुत सारे कमेंट आते हैं. राखी अपने बयानों की वजह से हमेशा सुर्खियों में रहती हैं.राखी अक्सर अपने रिलेशनशिप को लेकर हमेशा चर्चा में बनी रहतीं हैं. राखी कभी दीपक कलाल से शादी और लाइव हनीमून जैसे बयान देती हैं तो कभी चुपचाप शादी रचाकर फैंस को हैरान कर देती हैं. हंलाकि उनके पति को अजतक राखी के अलावा किसी ने नहीं देखा है. वह अपने पति के हाथों में हाथ डाले फोटो शेयर करती हैं लेकिन फोटो में पति का हाथ ही दिखता है, शक्ल नहीं. इतना ही नहीं सोशल मीडिया पर राखी जो भी शेयर करती हैं वह भी चर्चा ...

भोजपुरी एक्ट्रेस त्रिशा कर मधु का MMS…सोशल मीडिया पर हुआ लीक

सोशल मीडिया पर भोजपुरी एक्ट्रेस और सिंगर त्रिशा कर मधु का MMS लीक हो गया है, जिससे वो बहुत आहत हैं, एक्ट्रेस ने सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयां किया है, त्रिशा मधु ने इस बात को कबूल किया है कि वीडियो उन्होंने ही बनाया है लेकिन इस बात पर यकीन नहीं था कि उन्हें धोखा मिलेगा। गौरतलब है कि हाल ही में त्रिशा का सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा था जिसमें वह एक शख्स के साथ आपत्तिजनक स्थिति में नजर आ रही थीं। इस वीडियो के वायरल होने के बाद अभिनेत्री ने इसे डिलीट करने की गुहार लगाई साथ ही भोजपुरी इंडस्ट्री के लोगों पर उन्हें बदनाम करने की साजिश का आरोप लगाया। त्रिशा मधु कर ने अपने फेसबुक पेज पर एक वीडियो के साथ पोस्ट लिखा है जिसमें कहा, आप लोग बोल रहे हैं कि खुद वीडियो बनाई है। हां, हम दोनों ने वीडियो बनाया थ। पर मुझे ये नहीं मालूम था कि कल को मेरे साथ धोखा होने वाला है। कोई किसी को गिराने के लिए इतना नीचे तक गिर जाएगा, यह नहीं पता था। इससे पहले त्रिशा ने वायरल हो रहे वीडियो पर अपना गुस्सा जाहिर किया था और कहा था कि उनको बदनाम करने को साजिश की जा रही है। त्रिशा मधु कर ने सोशल मीडिया पर ए...

Netflix फैला रहा हिन्दू घृणा : ‘हल्लिलूय्याह’ बन गया ‘अनंत आनंदम्’, बच्चों का यौन शोषण करने वाला हिन्दू बाबा

                             Netflix लो वेब सीरीज 'राणा नायडू' में वेंकटेश और राणा दग्गुबती भारत में आजकल गालियों और सेक्स को ही वेब सीरीज मान लिया गया है। इसमें अगर हिन्दू घृणा का छौंक लग जाए तो फिर कहना ही क्या। चाहे ‘पाताल लोक’ में पंडित के मुँह से माँ की गाली बुलवाने वाला दृश्य हो या फिर ‘मिर्जापुर’ में ब्राह्मण को लालची बता कर उसे उठा कर भगाने का, OTT पर धड़ाधड़ रिलीज हो रहे ये वेब सीरीज इन मामलों में निराश नहीं करते। ऐसी ही एक नई वेब सीरीज Netflix पर आई है, ‘राणा नायडू’ नाम की। हिन्दू भावनाओं के प्रति जितनी जागरूकता सरकार और हिन्दुओं में देखी जा रही है, उतनी कभी नहीं। 70 के दशक में वैश्यवृत्ति पर आधारित निर्माता-निर्देशक राम दयाल की फिल्म 'प्रभात' का प्रदर्शन हुआ, जिसे विश्व हिन्दू परिषद द्वारा नायक और नायिका के राम एवं सीता होने पर आपत्ति करने राम दयाल को दोनों के नाम परिवर्तित होने को मजबूर होना पड़ा था। इसके अलावा कई फिल्में आयी जिनमें हिन्दू मंदिरो को बदनाम किया जाता रहा है। यही कारण है कि राहुल गाँधी द्वा...