ऑस्ट्रेलिया के आतंकी हमले में पाकिस्तान का हाथ निकला तो इज़रायल उसका गाज़ा बना देगा; ऑस्ट्रेलिया को मुस्लिमों के लिए उदारता छोड़ देनी चाहिए; Victim Card को पैरों में रोंदना होगा
पकिस्तानपस्त नेताओं, पार्टियों और मुस्लिम देशों को आतंकवाद पर victim card खेलना बंद करना होता। समय आ गया है कि victim card खेलने वालों को भी आतंकी माना जाए। इन्हीं बेशर्म और उपद्रवियों द्वारा इस्लामिक आतंकवाद का मकसद एक ही है।
ऑस्ट्रेलिया जैसे केवल पौने 3 करोड़ की आबादी वाले देश को अब मुस्लिमों के लिए उदारता छोड़ देनी चाहिए। वैसे तो ये उदारता दुनिया भर के देशों को छोड़ देनी चाहिए क्योंकि इस उदारता के चलते कई यूरोपीय देशों ने मुस्लिमों को शरण दी जो आज उन्हें ही आग में झोंक रहे हैं।
कल यहूदियों के हनुक्का त्योहार पर दो मुस्लिम लड़को ने 2000 यहूदियों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर 12 लोगों की हत्या कर दी। एक आतंकी मारा गया और दूसरा नावीद अकरम पाकिस्तान मूल का है जिसने पाकिस्तान में भी पढाई की है और अभी सिडनी के al-Murad Institute में पढता है। यह अल मुराद संस्थान को चलाने वाला Adam Ismail है और वो teacher है who specializes in Quran recitation/Tajweed and memorization programs, offering both Zoom and face-to-face meetings.
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हिंदी में तजवीद (Tajweed) का मतलब है पवित्र कुरान को उसके अक्षरों के सही उच्चारण (मखारीज), गुणों (सिफात) और नियमों के साथ खूबसूरती से पढ़ने का विज्ञान या कला; यह अरबी शब्द 'जौदा' से आया है, जिसका अर्थ है किसी चीज़ को उत्तम और सुंदर बनाना, और कुरान को सही ढंग से पढ़ना जरूरी है ताकि अल्लाह का पैगाम ठीक से समझ में आए और नेकी मिले, न कि गलती।
लगता है अकरम को अल्लाह का पैगाम ठीक से समझा दिया गया और उसे समझ भी आ गया जो यहूदी काफिरों को मौत के घाट उतार दिया -पढ़ते पवित्र कुरान है और काम खून बहाने का करते हैं।
लेकिन ओवैसी के कहे अनुसार ऑस्ट्रेलिया के प्रति नावीद अकरम की वफ़ादारी पर कोई शक नहीं करना चाहिए। जैसे बंदे मातरम गाना अपनी जगह है और भारत के प्रति वफ़ादारी अपनी जगह है, वैसे ही भटके हुए मुस्लिम युवक अकरम का आतंकी हमला करना अपनी जगह है और ऑस्ट्रेलिया के प्रति वफ़ादारी अपनी जगह है।
हमले के बाद ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री अल्बनीज़ ने घोषणा की है कि सभी पाकिस्तानियों के वीसा रद्द कर दिए गए हैं। ये काम तो पहले ही कर देना चाहिए। जब सऊदी अरब 5,000 पाकिस्तानियों को अपने मुल्क से निकाल सकता है तो यूरोप के ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों को क्या समस्या है उन्हें निकालने में।
ऑस्ट्रेलिया भी बहुत उदार है और आज के हादसे के लिए वह भी जिम्मेदार है। 2022 के अंत तक जिन देशों के लोगों को ऑस्ट्रेलिया ने रिफ्यूजी या शरणार्थी का दर्जा दिया, वे हैं -
-ईरान (22.76%);
-अफगानिस्तान (16.33%);
-पाकिस्तान (9.42 %);
-इराक (8.01%); और
-सीरिया (बहुत से लोगों को 2010 के मध्य special humanitarian intake के दौरान लिया गया)
2021 की जनगणना के अनुसार ऑस्ट्रेलिया में 3.2% मुस्लिम थे और 2022 में रिफ्यूजी स्टेटस पाए हुए लोग 53,523 थे और 84,950 शरण पाने के लिए आवेदन किए हुए थे। सालाना ऑस्ट्रेलिया 12,500 से 17,500 लोगो को Humanitarian Visa देता है - जाहिर है इनमें अधिकांश मुस्लिम होते हैं।
जब ऑस्ट्रेलिया ने इतने “शांतिप्रिय समुदाय” के लोगों को अपने देश में जगह दी है तो शांति की उम्मीद कैसे कर सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस आतंकी हमले की कड़ी निंदा की है लेकिन विपक्ष का शायद ही कोई ऐसा नेता हो जिसने इसकी निंदा की हो। अलबत्ता कांग्रेस की रैली में कल नारे जरूर लगाए गए “मोदी तेरी कब्र खुदेगी, आज नहीं तो कल खुदेगी” जबकि वो भूल गए कि कब्र तो ईसाई सोनिया की खुदेगी जब भी समय आएगा।
ऑस्ट्रेलिया को इज़रायल ने सख्त करवाई करने को कहा है लेकिन अगर पाकिस्तान के इसमें हाथ हुआ (जो हो सकता है) तब भी वह पाकिस्तान के खिलाफ कुछ नहीं कर पाएगा। मगर इतना अवश्य है कि अगर अकरम के पीछे पाकिस्तान का हाथ हुआ तो इज़रायल पाकिस्तान को गाज़ा बनाने पर विचार जरूर कर सकता है जिसमें उसे भारत का भी साथ मिलेगा।
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