धुरंधर फ़िल्म से जो आग लगी है न लिब्राण्डु, कठमुल्ले और काँग्रेसी गैंग में, वो बिल्कुल समझने लायक है।
यह फ़िल्म मेरे हिसाब से आधी हकीकत-आधा फसाना है, यदि इस पर लिब्राण्डु+ गैंग की छटपटाहट इतनी स्पष्ट नहीं होती तो यह एक आम एक्शन फिल्म बन सकती थी इतना इसमें स्कोप है।
लेकिन इसमें कुछ डायलॉग्स और घटनाएँ दिखाई गई हैं जो जनता की स्मरणशक्ति को, उसके घावों को ताजा कर देती हैं। कंधार विमान हाइजैक, चिदंबरम और उसके पिल्ले का भारतीय करंसी प्लेट पाकिस्तान को बेचना और 26/11 जैसी घटनाएं बिना लाग लपेट के दिखाई हैं, 26/11 को पाकिस्तानी हैंडलर और आतंकी के बीच की बातचीत की वास्तविक रेकॉर्डिंग खून जमा देती है। उस समय का मीडिया का मूर्ख रवैया कैसे आतंकियों की मदद कर रहा था यह फिर एक बार अधोरेखित करती है।
फ़िल्म में ISI- आतंकी - दिल्ली के गद्दार - हक्कानी ब्रदर्स के नेक्सस पर जमकर रोशनी डाली है। नकली करंसी से पलते आतंकी, भारत की लाचारी पर ठहाका लगाता ISI और डरपोक हिंदू, सबको लपेटा गया है।
फ़िल्म में जबरदस्त खून खराबा है, कई खामियां है, कुछ तकनीकी ग्लिच है, कहीं कहीं तो रिसर्च की कमी साफ दिखती है किंतु फ़िल्म इतनी कसी हुई है कि यह गलतियाँ बड़ी नहीं लगती। इन खामियों बाद भी लिब्रान्डुज क्यों तिलमिलाए इसके दो कारण है..
पहला.... यह फ़िल्म मार्च में आने वाली फिल्म का पूर्वार्ध है। यह फ़िल्म उस भाग की भूमि बनाती है। इस फ़िल्म में अजित डोवाल का पात्र फ्रस्ट्रेटेड दिखाया है क्योंकि यूपीए की सरकार निकम्मी थी।
किंतु... इसी पात्र का एक संवाद है... हम सरकार में सही लोग आने का इंतजार करेंगे..तब तक सबूत इकट्ठे करते रहो! अगली फिल्म में अच्छे लोग सरकार में आएंगे और शुरू होगा बदला..
दूसरा.... अगली फिल्म में काँग्रेस और पाकिस्तान के एक साथ बर्बाद होने का संयोग फिर एक बार अधोरेखित होगा। नोटबन्दी से लेकर ऑपरेशन सिंदूर तक सब कुछ होगा ऐसी अपेक्षा है। और इसीलिए लिब्राण्डु इस फ़िल्म पर इतना चीख रहें है। फ़िल्म को फिक्शन कह रहें भी, उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगा रहें हैं। निर्माता निर्देशक आदित्य धर को संघी कह रहे है।
उन्हें लगता है हम और आप अर्थात us mango peoples अभी भी इतने मूर्ख है कि उनकी झल्लाहट के कारण को समझते नहीं।
आग्रह करूंगा कि फ़िल्म देखिए। फिर से कुछ जख्म हरे हो जाएंगे, काँग्रेस से नफरत और बढ़ जाएगी, खून खराबा देखकर असहज हो जाएंगे फिर भी देखिए। एक्टिंग जबरदस्त है। मुझे नहीं लगा था रणवीर सिंह की कभी प्रशंसा करूंगा किंतु कर रहा हूँ, फ़िल्म में छा गया है। अक्षय खन्ना ने अपनी एक्टिंग के दम पर छावा के औरंगजेब से भी ज्यादा क्रूर छाप छोड़ी है।
बाकी सारे धुरंधर है ही। माधवन के पात्र का असली काम अगले भाग में दिखेगा ऐसा लगता है। इस फ़िल्म में जितना स्कोप था उन्होंने जबरदस्त निभाया।
यदि लिब्राण्डु न चीखते तो मैं इस फिल्म को कभी भी न देखता।
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