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फिल्म Siddharth में सारे कपडे उतारने वाली सिमी ग्रेवाल रावण को ‘शरारती’ बता दशहरे का मजाक उड़ा रही : हिंदू परंपराओं पर हमला और महिलाओं की पीड़ा को हल्का दिखाने का वामपंथी प्रोपेगेंडा फिर आया सामने

    सिमी ग्रेवाल ने एक ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने रावण द्वारा सीता का अपहरण करने के अपराध को 'थोड़ा शरारती' बताया (साभार - ऑपइंडिया इंग्लिश)
फिल्म 
Siddharth में शशि कपूर के सामने सारे कपडे उतारने वाली नायिका सिमी ग्रेवाल आज हिन्दू महाकाव्य "रामायण" के शारदीय नवरात्रों में विमोचन करने पर रावण को मोहरा बनाकर घिनौना खेल खेल रही है। फिल्म की पब्लिसिटी में सिमी का यही पोज़ इस्तेमाल किया गया था। ये नायिका जिस तरह हिन्दू धर्म और परम्पराओं पर हमला कर रही है क्या अन्य मजहबों पर इसी तरह हमला करने की हिम्मत कर सकती है?   
फिल्म सिद्धार्थ में वस्त्रहीन सिमी और शशि कपूर 

हर साल दशहरे पर पूरे भारत में रावण के पुतले जलाए जाते हैं। करोड़ों हिंदुओं के लिए यह सिर्फ एक तमाशा नहीं बल्कि एक ऐसा संस्कार है जो यह याद दिलाता है कि धर्म हमेशा अधर्म पर विजय पाता है। यह हमारी सभ्यता का संदेश है कि बुराई चाहे कितनी भी ताकतवर या चालाक क्यों न हो, अंततः उसे धर्म और सत्य के आगे हारना ही पड़ता है।

लेकिन इस बार अभिनेत्री और निर्माता सिमी ग्रेवाल ने इस पर सवाल उठाकर विवाद खड़ा कर दिया। उन्होंने रावण के नाम एक ‘खुले खत’ (open letter) में लिखा कि उसका व्यवहार ‘बुरा’ नहीं बल्कि ‘थोड़ी शरारत’ था। सिमी ने यहाँ तक कहा कि सीता का अपहरण करने के अलावा रावण ने उनके साथ अच्छा व्यवहार किया था, जो आज कई महिलाओं को समाज से नहीं मिलता। उन्होंने यह भी कहा कि दशहरे पर रावण का पुतला जलाना अब बस फैशन या इन-थिंग बन गया है।

Dear Ravana…
Every year, on this day, we celebrate the victory of good over evil.. But.. technically.. your behaviour should be re-classified from "Evil" to "Slightly Naughty".

After all, tumne kiya hi kya tha? I agree you kidnapped a lady in haste… But.. after that.. you… pic.twitter.com/GqIKNA2fCW

— Simi_Garewal (@Simi_Garewal) October 2, 2025

पहली नजर में सिमी ग्रेवाल का यह ट्वीट सिर्फ मजाक या व्यंग्य जैसा लग सकता है। लेकिन ध्यान से देखने पर यह एक खतरनाक सोच को दिखाता है, जो आजकल भारत के तथाकथित लिबरल एलीट में आम होती जा रही है। यह सोच हिंदू परंपराओं और रीति-रिवाजों का मजाक उड़ाती है और महिलाओं के खिलाफ हुए अपराधों को हल्का करके दिखाती है, वो भी हास्य के नाम पर।

अपहरण को तुच्छ बताना

 ग्रेवाल की पोस्ट का सबसे परेशान करने वाला पहलू यह है कि उन्होंने रावण के सबसे बड़े अपराध माता सीता का अपहरण को बहुत ही हल्के में लिया है। वह इसे ‘जल्दीबाज़ी’ में किया गया काम कहती हैं और फिर यह तर्क देती हैं कि रावण ने सीता को खाना, रहने की जगह और पहरेदार दिए, इसलिए उसके इस अपराध को अलग नजरिए से देखा जाना चाहिए।

यह कोई ‘गहराई से समझने वाली बात’ नहीं है बल्कि अपराध को सही ठहराने की कोशिश है। किसी महिला का अपहरण करना कोई ‘छोटी गलती’ नहीं हो सकती, जिसे बाद में दिए गए सुविधाओं के बहाने माफ कर दिया जाए।

अगर यही तर्क मान लिया जाए, तो फिर हर अपहरणकर्ता यह कह सकता है कि उसने अपने कैदी को अच्छा खाना और रहने की जगह दी, इसलिए उसका अपराध माफ होना चाहिए। सोचिए, अगर यही तर्क आज के समय में लागू किया जाए तो क्या हम किसी अपहरणकर्ता को इसलिए बरी कर देंगे कि उसने अपने शिकार को अच्छी रोटी और आरामदायक घर दिया? बिल्कुल नहीं।

चतुराई दिखाने के चक्कर में ग्रेवाल असल में एक स्त्री के अपने सम्मान, स्वतंत्रता और सुरक्षा के अधिकार को हल्का बना देती हैं। विडंबना यह है कि जिस नारीवाद का दावा वह शायद करती हों, वही नारीवाद माँग करता है कि अपहरण जैसे अपराध की बिना किसी शर्त के कड़ी निंदा की जाए। लेकिन हिंदू परंपरा पर कटाक्ष करने की जल्दबाजी में गरेवाल रावण को ‘गुलाबी’ चश्मे से देखने का रास्ता चुन लेती हैं।

चयनात्मक ‘नारीवाद’ और हिंदू पंचिंग बैग

सिमी ग्रेवाल के ट्वीट से एक गहरा सवाल उठता है, आखिर क्यों ऐसे व्यंग्य और पुनर्व्याख्याएँ हमेशा हिंदू प्रथाओं और रीति-रिवाजों को ही निशाना बनाती हैं? क्या सिमी गरेवाल कभी किसी अन्य धर्म के लोगों के लिए ऐसा खुले खत लिखने की हिम्मत करेंगी? क्या वह कहेंगी कि किसी अधेड़ उम्र के पुरुष का छह साल की लड़की से विवाह बुरा नहीं बल्कि सिर्फ थोड़ा अनुचित था? क्या वह इस्लामी या ईसाई इतिहास में दर्ज अत्याचारों पर ऐसे ही मजाक करेंगी?

हमने पहले नुपुर शर्मा प्रकरण में देखा कि जब किसी ने अप्रिय तथ्यों को सीधे कहा, तो उसे बहस या खंडन का सामना नहीं करना पड़ा। इसके बजाय, एक संगठित अभियान चलाया गया, जो ऑनलाइन दुनिया से सड़कों तक फैल गया। भारतीय शहरों में भीड़ ने सर तन से जुदा जैसे खौफनाक नारे लगाए, सिर्फ इसलिए कि शर्मा ने ऐसी बातें कही जो मुस्लिम समुदाय के कुछ हिस्सों ने पैगंबर मुहम्मद पर अपमान मान लिया।

इसके बावजूद, हिंदू धर्म बॉलीवुड के तथाकथित लिबरल लोगों के लिए सबसे सुरक्षित निशाना बन गया है। हिंदुओं की आलोचना करें, उनके देवताओं का मजाक उड़ाएँ, त्योहारों का उपहास करें तो इन्हें खुशी होती है। लेकिन किसी अन्य धर्म की प्रथाओं या इतिहास को छूएँ, तो वही लोग रक्षात्मक हो जाते हैं या चुप्पी साध लेते हैं।

यह चयनात्मक आक्रोश सिर्फ पाखंड नहीं, बल्कि इसे साहस का नाम देकर पेश की गई कायरता है। असली नारीवाद, असली मानवता और असली प्रगतिशीलता वही है जो अन्याय को हर जगह चुनौती दे, न कि केवल वहाँ जहाँ ऐसा करना सुरक्षित और फैशनेबल लगे।

रावण के पुतले जलाने का सभ्यतागत उद्देश्य

सिमी ग्रेवाल शायद यह समझ ही नहीं पाईं कि हिंदू हर साल रावण का पुतला क्यों जलाते हैं। यह किसी काल्पनिक पात्र के प्रति क्रूरता या बुराई दिखाने के लिए नहीं है। इसका मकसद यह सिखाना है कि घमंड, वासना और अत्याचार, चाहे कितने भी ताकतवर दिखें, अंततः हारते हैं।

हर समाज में कुछ रीति-रिवाज और प्रतीक होते हैं जो नैतिक मूल्यों को मजबूत करने का काम करते हैं। पश्चिमी देशों में भी तानाशाहों या क्रांतियों पर जीत की याद को जीवित रखने के लिए परेड, स्मारक और नाटकीय प्रस्तुतियाँ की जाती हैं।

अमेरिका में स्वतंत्रता दिवस पर आतिशबाज़ी उपनिवेशवाद पर विजय का प्रतीक है। फ्रांस में ‘बैस्टील डे’ जेल पर धावा बोलने की घटना की स्मृति है। इन परंपराओं का कोई मजाक नहीं उड़ाता, इन्हें कोई ‘चलन की चीज’ नहीं कहता। लेकिन जब हिंदू रावण दहन करते हैं, तो उसे अचानक पुराना, बेकार या यहाँ तक कि क्रूर ठहराया जाने लगता है।

महिलाओं की पीड़ा का मजाक उड़ाना

ग्रेवाल के ट्वीट का एक और परेशान करने वाला पहलू है उनका व्यंग्यपूर्ण बयान कि रावण की महिला पहरेदार ‘ज्यादा खूबसूरत नहीं थीं’। यह केवल घटिया मज़ाक नहीं है बल्कि यह दिखाता है कि ग्रेवाल का नारीवाद कितना खोखला है, जहाँ महिलाओं को उनके रूप-रंग के आधार पर नीचा दिखाया जाता है।
यह हमें स्वरा भास्कर के उस विवाद की याद दिलाता है जब उन्होंने राजपूत महिलाओं द्वारा जौहर करने पर सवाल उठाया था, ताकि वे आक्रमणकारी सेनाओं से बलात्कार से बच सकें। दोनों ही मामलों में, हिंदू महिलाओं की पीड़ा को तुच्छ बना दिया गया। ऐसे फेमिनिज्म के गलत रूप महिलाओं को सशक्त नहीं बनाते, वे उनके ऐतिहासिक संघर्ष को कमतर दिखाते और उनकी पीड़ा को सिर्फ मजाक का विषय बना देते हैं।
सीता का अपहरण कोई काल्पनिक कहानी नहीं है जिसे हँसकर टाल दिया जाए, यह यह सिखाता है कि महिलाओं की गरिमा की रक्षा हर हाल में करनी चाहिए। भगवान राम का रावण के खिलाफ युद्ध पुरुष अहंकार का नहीं, बल्कि यह सिद्धांत है कि कोई भी पुरुष किसी महिला का अपहरण या उत्पीड़न करने का हक नहीं रखता, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो। सिमी ग्रेवाल का इसे मजाक में बदलने का प्रयास इस संदेश को कमजोर करता है।

रावण: विद्वान अत्याचारी

सिमी ग्रेवाल यह भी कहती हैं कि रावण ‘हमारे संसद के आधे से ज्यादा लोगों से ज्यादा पढ़ा-लिखा था।’ यह भी एक साधारण और सतही दृष्टिकोण है। हाँ, रावण एक विद्वान था, वेदों का ज्ञाता और भगवान शिव का महान भक्त था। लेकिन ज्ञान बिना विनम्रता के खतरनाक हो सकता है। रामायण खुद यह सिखाती है कि यदि ज्ञान और बुद्धि घमंड और वासना से भ्रष्ट हो जाएँ, तो उनका कोई मूल्य नहीं रह जाता।
असल में यही वजह है कि हर साल रावण का पुतला जलाया जाता है, इसलिए नहीं कि वह अज्ञानी था, बल्कि इसलिए कि उसने अपने ज्ञान का दुरुपयोग किया। यह कहना कि उसकी शिक्षा उसे कम बुरा बनाती है, ऐसा ही है जैसे यह कहना कि तानाशाह जिन्होंने सड़कें और विश्वविद्यालय बनाए, उन्हें उनके अत्याचारों के लिए माफ कर देना चाहिए। शिक्षा और शक्ति, जब गलत तरीके से इस्तेमाल की जाएँ, तो ये गुण नहीं बल्कि उत्पीड़न के हथियार बन जाते हैं।

उदारवादियों के तानों पर रोक क्यों लगाई जानी चाहिए?

असल में, सिमी ग्रेवाल का पोस्ट सिर्फ रावण के बारे में नहीं है। यह भारत की बौद्धिक और सांस्कृतिक बहस में एक बड़ी प्रवृत्ति को दिखाता है, जहाँ हिंदू परंपराओं का नियमित रूप से मजाक उड़ाया जाता है, उन्हें कमजोर दिखाया जाता है और पश्चिमी नैतिक दृष्टिकोण के जरिए दोषी ठहराया जाता है।

रावण को थोड़ा शरारती कहकर, सिमी सभ्यतागत नैतिक संघर्ष को मजाक में बदल देती हैं। सीता के अपहरण को हल्का करके, वह उन महिलाओं का अपमान करती हैं जिन्होंने सदियों से उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाई लड़ी। रावण का पुतला जलाना सिर्फ फैशन कहना, इस रीति के गहरे नैतिक उद्देश्य को नज़रअंदाज करना है।

सच्चाई यह है कि हिंदुओं को अपनी परंपराओं और रिवाजों की व्याख्या करने के लिए बॉलीवुड हस्तियों के लेक्चर की जरूरत नहीं है। हिंदुओं को चाहिए अपने धर्म का सम्मान, वही सम्मान जो अन्य धर्मों को अपने आप दिया जाता है।

दशहरा किसका प्रतीक है?

दशहरा न तो किसी घृणा का त्योहार है और न ही किसी व्यक्तिगत दुश्मनी का। यह नैतिक स्पष्टता का त्योहार है। रावण के पुतले इसलिए जलाए जाते हैं क्योंकि समाज को यह याद दिलाना जरूरी है कि घमंड, अहंकार और अधर्म हमेशा हारेंगे। इसे फैशन कहना या रावण को एक गलत समझा गया सज्जन बताना सिर्फ अज्ञान नहीं, बल्कि इस धरती की सभ्यतागत बुद्धि का अपमान है।
सिमी ग्रेवाल का ट्वीट कोई चतुर व्यंग्य नहीं है। यह एक विकृत सोच को दर्शाता है, जो हिंदू रीति-रिवाज़ों का अपमान करती है, महिलाओं की पीड़ा को तुच्छ बनाती है और चयनात्मक व्याख्यान में लिप्त रहती है। इसी कारण हर साल रावण का पुतला जलता रहेगा। क्योंकि कुछ विचार, चाहे बॉलीवुड के तथाकथित लिबरल उन्हें कितना भी सजाएँ, अच्छाई और न्याय के लिए नष्ट किए जाने ही चाहिए।

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