आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
मां को घर से बेदखल करने वाले बेटों को कोर्ट ने सजा सुनाई है। कोर्ट ने कहा कि- हर महीने वृद्धाश्रम जाकर बेटों को बुजुर्गों की मदद करनी होगी, साथ ही इसकी फोटो खींचकर कोर्ट में पेश करना होगा। साथ ही हर महीने 5 तारीख को मां के बैंक अकाउंट में 5-5 हजार रुपए जमा करने के लिए कहा है। मां को बेदखल करने वाले इन बेटों को अपने पूरे परिवार समेत मां की देखरेख करनी होगी। मां के जन्मदिन पर उनके साथ रहना होगा और जन्मदिन मनाना होगा।
मामला मध्य प्रदेश के भोपाल का है। भोपाल में एक 66 साल की मां को तीन बेटों ने घर से निकाल दिया। इसकी शिकायत मां ने SDM मुकुल गुप्ता से की। एसडीएम ने मां की पूरी दर्द भरी कहानी सुनी और तीनों बेटों को दोषी मानते हुए 6 महीने तक हर माह एक दिन वृद्धाश्रम जाकर बुजुर्गों की सेवा करने का आदेश दिया है।एसडीएम ने कहा, ‘बेटों ने जिस प्रकार मां को एक साल तक प्रताड़ित किया, वह माफी योग्य नहीं है। इसलिए बेटों को आदेश दिया है कि वह मां की देखभाल के साथ-साथ वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्गों की भी सेवा करें। ताकि उनको इस बात का अहसास हो कि अकेले रह रहे बुजुर्ग का दर्द क्या होता है। उनको किस तरह से परेशान होना पड़ता है।’
एसडीएम ने बताया, कि पिछले सप्ताह श्यामा देवांगन ने भरण पोषण को लेकर केस दर्ज कराया था। इसमें कहा गया था कि उनके तीन बेटे हैं। एक बेटा अरुण देवांगन भेल में डीजीएम है। दूसरा दीपक देवांगन चार्टर्ड अकाउंटेंट है। तीसरा बेटा बेंगलुरू में रहता है। बेटों ने मकान के सारे जरूरी कागजात, एफडी और सोने-चांदी के जेवर रखकर उनको रायपुर भेज दिया था। कोर्ट में बेटों ने 6 लाख की एफडी, 10 तोले सोना और उनका घर किराएदार से खाली कराकर मां को सौंप दिया। इस पर बुजुर्ग ने कहा, बेटे अब उनकी सेवा कर रहे हैं। इसलिए बेटों को माफी दे दी जाए।
वहीं मां ने एसडीएम को फोन कर बताया- बेटे, बहू के साथ आएं हैं। श्यामा देवांगन ने एसडीएम को अगस्त 13 को फोन कर बताया कि उनके तीनों बेटे एक साल बाद उनके पास आए हैं। बहुओं को भी साथ लाए हैं। उनको गलती का अहसास हो गया है। इसलिए जितनी सजा मिलना थी उनको मिल चुकी है, अब जेल मत भेजना। एसडीएम का कहना है कि भरण पोषण अधिनियम की धारा-24 के तहत यह आदेश जारी किया गया है। यदि इसका पालन नहीं किया गया तो बेटों को तीन महीने जेल में रहना होगा। साथ ही 5 हजार रुपए जुर्माना भी देना होगा।
जब से भारतवासियों पर पश्चिमी सभ्यता ने सिर चढ़कर बोलना शुरू किया है, भारतीय संस्कृति धूमिल ही नहीं, बल्कि तार-तार हो गयी है। संयुक्त परिवार प्रथा लगभग समाप्त हो चुकी है। यही कारण है कि आज की युवा पीढ़ी आधुनिकता के नाम पर भारतीय संस्कृति को धकियानूसी कह कर मजाक बनाती हैं। मन्दिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों और चर्चों में जाकर खूब पूजा-पाठ करते हैं, लेकिन धरती पर जीवित अपने माता-पिता का अनादर करते रहते हैं। संस्कारों की बात करने वाले माता-पिता को जहरीला कहकर दरकिनार कर दिया जाता है। कदम-कदम पर उनकी अवहेलना की जाती हैं, और वह चुपचाप विषपान करते रहते हैं। वृद्ध आश्रम क्यों खुल रहे हैं, जबकि वृद्ध आश्रमों में रहने वालों की अपनी संतानें हैं।
आज धर्म के नाम पर डीजे पर खूब डांस आदि होते हैं, भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, लेकिन संस्कारी बातों एवं साहित्य का वितरण करना आयोजक अपनी बेइज्जती समझते हैं। यही कारण है कि आज की युवा पीढ़ी भारतीय संस्कृति और विवाह उपरान्त माता-पिता को किसी न किसी आरोप में दरकिनार कर रहे हैं। वी.शांताराम की 'दहेज़', ए.वी.एम. की 'मेहरबान', मोहन कुमार की 'अमृत', 'अवतार', देवेन्द्र गोयल की 'दस लाख' और कुछ वर्ष पूर्व बी.आर.चोपड़ा की 'बागबान', लक्ष्मी प्रोडक्शन की 'संसार' आदि फिल्में माता-पिता को उस अवस्था में दरकिनार करने पर उनकी मनोस्थिति को निर्माता-निर्देशकों ने बहुत ही विस्तृत तरीके से प्रस्तुत किया है। आज की पीढ़ी भूल जाती है कि माँ-बाप का बुढ़ापा पोते-पोती, नवासा-नवासी की बीच खेल कर हमेशा के लिए चिरनिद्रा में विश्राम करने चले जाते हैं। भोपाल एसडीएम ने अपने साहसिक निर्णय से उदाहरण प्रस्तुत किया है।
ऐसे में स्मरण होता है एक बहुत पुराना और मार्मिक गीत "ले लो दुआएँ माँ-बाप की. सिर से उतरेगी गठरी महापाप की....", क्या आधुनिकता के इस दौर में चरितार्थ हो पायेगा?
मां को घर से बेदखल करने वाले बेटों को कोर्ट ने सजा सुनाई है। कोर्ट ने कहा कि- हर महीने वृद्धाश्रम जाकर बेटों को बुजुर्गों की मदद करनी होगी, साथ ही इसकी फोटो खींचकर कोर्ट में पेश करना होगा। साथ ही हर महीने 5 तारीख को मां के बैंक अकाउंट में 5-5 हजार रुपए जमा करने के लिए कहा है। मां को बेदखल करने वाले इन बेटों को अपने पूरे परिवार समेत मां की देखरेख करनी होगी। मां के जन्मदिन पर उनके साथ रहना होगा और जन्मदिन मनाना होगा।
मामला मध्य प्रदेश के भोपाल का है। भोपाल में एक 66 साल की मां को तीन बेटों ने घर से निकाल दिया। इसकी शिकायत मां ने SDM मुकुल गुप्ता से की। एसडीएम ने मां की पूरी दर्द भरी कहानी सुनी और तीनों बेटों को दोषी मानते हुए 6 महीने तक हर माह एक दिन वृद्धाश्रम जाकर बुजुर्गों की सेवा करने का आदेश दिया है।एसडीएम ने कहा, ‘बेटों ने जिस प्रकार मां को एक साल तक प्रताड़ित किया, वह माफी योग्य नहीं है। इसलिए बेटों को आदेश दिया है कि वह मां की देखभाल के साथ-साथ वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्गों की भी सेवा करें। ताकि उनको इस बात का अहसास हो कि अकेले रह रहे बुजुर्ग का दर्द क्या होता है। उनको किस तरह से परेशान होना पड़ता है।’
एसडीएम ने बताया, कि पिछले सप्ताह श्यामा देवांगन ने भरण पोषण को लेकर केस दर्ज कराया था। इसमें कहा गया था कि उनके तीन बेटे हैं। एक बेटा अरुण देवांगन भेल में डीजीएम है। दूसरा दीपक देवांगन चार्टर्ड अकाउंटेंट है। तीसरा बेटा बेंगलुरू में रहता है। बेटों ने मकान के सारे जरूरी कागजात, एफडी और सोने-चांदी के जेवर रखकर उनको रायपुर भेज दिया था। कोर्ट में बेटों ने 6 लाख की एफडी, 10 तोले सोना और उनका घर किराएदार से खाली कराकर मां को सौंप दिया। इस पर बुजुर्ग ने कहा, बेटे अब उनकी सेवा कर रहे हैं। इसलिए बेटों को माफी दे दी जाए।
वहीं मां ने एसडीएम को फोन कर बताया- बेटे, बहू के साथ आएं हैं। श्यामा देवांगन ने एसडीएम को अगस्त 13 को फोन कर बताया कि उनके तीनों बेटे एक साल बाद उनके पास आए हैं। बहुओं को भी साथ लाए हैं। उनको गलती का अहसास हो गया है। इसलिए जितनी सजा मिलना थी उनको मिल चुकी है, अब जेल मत भेजना। एसडीएम का कहना है कि भरण पोषण अधिनियम की धारा-24 के तहत यह आदेश जारी किया गया है। यदि इसका पालन नहीं किया गया तो बेटों को तीन महीने जेल में रहना होगा। साथ ही 5 हजार रुपए जुर्माना भी देना होगा।
जब से भारतवासियों पर पश्चिमी सभ्यता ने सिर चढ़कर बोलना शुरू किया है, भारतीय संस्कृति धूमिल ही नहीं, बल्कि तार-तार हो गयी है। संयुक्त परिवार प्रथा लगभग समाप्त हो चुकी है। यही कारण है कि आज की युवा पीढ़ी आधुनिकता के नाम पर भारतीय संस्कृति को धकियानूसी कह कर मजाक बनाती हैं। मन्दिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों और चर्चों में जाकर खूब पूजा-पाठ करते हैं, लेकिन धरती पर जीवित अपने माता-पिता का अनादर करते रहते हैं। संस्कारों की बात करने वाले माता-पिता को जहरीला कहकर दरकिनार कर दिया जाता है। कदम-कदम पर उनकी अवहेलना की जाती हैं, और वह चुपचाप विषपान करते रहते हैं। वृद्ध आश्रम क्यों खुल रहे हैं, जबकि वृद्ध आश्रमों में रहने वालों की अपनी संतानें हैं।
आज धर्म के नाम पर डीजे पर खूब डांस आदि होते हैं, भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, लेकिन संस्कारी बातों एवं साहित्य का वितरण करना आयोजक अपनी बेइज्जती समझते हैं। यही कारण है कि आज की युवा पीढ़ी भारतीय संस्कृति और विवाह उपरान्त माता-पिता को किसी न किसी आरोप में दरकिनार कर रहे हैं। वी.शांताराम की 'दहेज़', ए.वी.एम. की 'मेहरबान', मोहन कुमार की 'अमृत', 'अवतार', देवेन्द्र गोयल की 'दस लाख' और कुछ वर्ष पूर्व बी.आर.चोपड़ा की 'बागबान', लक्ष्मी प्रोडक्शन की 'संसार' आदि फिल्में माता-पिता को उस अवस्था में दरकिनार करने पर उनकी मनोस्थिति को निर्माता-निर्देशकों ने बहुत ही विस्तृत तरीके से प्रस्तुत किया है। आज की पीढ़ी भूल जाती है कि माँ-बाप का बुढ़ापा पोते-पोती, नवासा-नवासी की बीच खेल कर हमेशा के लिए चिरनिद्रा में विश्राम करने चले जाते हैं। भोपाल एसडीएम ने अपने साहसिक निर्णय से उदाहरण प्रस्तुत किया है।
ऐसे में स्मरण होता है एक बहुत पुराना और मार्मिक गीत "ले लो दुआएँ माँ-बाप की. सिर से उतरेगी गठरी महापाप की....", क्या आधुनिकता के इस दौर में चरितार्थ हो पायेगा?

Comments