लिहाजा, यूएई के पीएम व दुबई के शासक शेख मोहम्मद अल मख्तूम ने 700 करोड़ रुपए की मदद की पेशकश की थी। उन्होंने स्थिति के बारे में लिखते हुए तीन ट्वीट किए। अपने पहले ट्वीट में उन्होंने उल्लेख किया कि यूएई के विकास में केरल की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। दूसरे और तीसरे ट्वीट में उन्होंने केरल के लोगों की हर संभव मदद की पेशकश की।
सदी की सबसे भयानक बाढ़ का सामना करने वाले केरल की मदद के लिए हर तरफ से मदद के हाथ आगे बढ़ रहे हैं। वहीं विदेशी चंदे को लेकर भी राजनीति जारी है। कुछ दिन पहले राज्य के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा था कि यूएई ने 700 करोड़ रुपये की मदद का ऐलान किया है, लेकिन केंद्र सरकार ने नियमों का हवाला देते हुए इसे स्वीकार करने से मना कर दिया था। जिसके बाद इसे लेकर राजनीति तेज हो गई थी।
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए भारत में यूएई के राजदूत अहमद अलबाना ने कहा कि यूएई ने रकम को लेकर अभी तक किसी भी प्रकार की अधिकारिक घोषणा नहीं की है। उन्होंने कहा, 'अभी हालात का जायज़ा लेकर कितनी मदद की जाए इसका अंदाज़ा लगाया जा रहा है। अंतिम रकम अभी तक तय नहीं की गई है।'
जब उनसे पूछा गया, 'इसका मतलब यह हुआ कि यूएई ने 700 करोड़ रुपये की मदद का ऐलान किया ही नहीं था?' जवाब देते हुए अलबाना ने कहा, 'हां यह बिल्कुल सही है। अभी तक यह फाइनल नहीं हुई है और ना ही इसकी घोषणा की गई थी।'
राजदूत ने कहा, 'हम भारत के आर्थिक मदद के नियमों से परिचित हैं इसलिए सरकार द्वारा बनाई गई कमेटी इस संबंध में भारत सरकार के अधिकारियों के साथ बात कर रही है। इसके अलावा त्वरित मदद के लिए वह कमेटी स्थानीय अधिकारियों के साथ भी बातचीत कर रही है।'
इससे पहले केरल के मुख्यमंत्री पिन्नराई विजयन ने कहा था कि आबूधाबी के प्रिंस शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बातचीत की है और उन्हें 700 करोड़ रुपए की सहायता देने की पेशकश की है. यूएई के राजदूत अल्बाना ने कहा, यूएई के उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और दुबई के शासक शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम इसके लिए एक राष्ट्रीय आपदा समिति को बनाया है. इसका मुख्य उद्देश्य केरल के लोगों के लिए फंड जुटाना, सहायता के लिए जरूरी सामान, दवाइयों आदि की व्यवस्था करना है. हम भारत के आर्थिक सहायता संबंधी नियमों को समझते हैं. हमारी फेडरल अथॉरिटी इस कमेटी के साथ कॉऑर्डिनेट कर रही है.
यूएई के राजदूत अल्बाना ने कहा, यूएई के उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और दुबई के शासक शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम इसके लिए एक राष्ट्रीय आपदा समिति को बनाया है. इसका मुख्य उद्देश्य केरल के लोगों के लिए फंड जुटाना, सहायता के लिए जरूरी सामान, दवाइयों आदि की व्यवस्था करना है. हम भारत के आर्थिक सहायता संबंधी नियमों को समझते हैं. हमारी फेडरल अथॉरिटी इस कमेटी के साथ कॉऑर्डिनेट कर रही है. केरल के बीजेपी चीफ श्रीधरन पिल्लई का कहना है कि केरल की सरकार के द्वारा ये सबसे बड़ा झूठ देश से बोला गया है. यूएई की ओर से ऐसा कोई ऑफर दिया ही नहीं गया था. यूएई ने आधिकारिक तौर पर 1 करोड़ दिरहम (करीब 19 करोड़ रुपए) की मदद की घोषणा की थी.
प्राकृतिक आपदाओं के लिए क्यों विदेशी मदद नहीं लेता है भारत?
केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने भी पीएम मोदी के पत्र लिखकर कहा था कि वह नियमों में कुछ ढील दें ताकि यूएई की मदद को स्वीकार किया जा सके। केंद्रीय मंत्री केजे अल्फोंस ने भी कहा था कि वह केंद्र सरकार से अपील करेंगे कि विदेशी मदद ली जाए।
| इन्फोसिस के को फाउंडर एनआर नारायण मूर्ति की पत्नी सुधा मूर्ति केरल और कर्नाटक के बाढ़ पीड़ितों के लिए सहायता राशि भेजती हुईं. |
कांग्रेस और माकपा सहित विपक्षी दलों ने केंद्र पर निशाना साधा था और उससे कहा कि वह वर्षा प्रभावित केरल के लिए विदेशी सहायता स्वीकार करने में बाधाएं हटाये जिसमें संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से 700 करोड़ रुपये की पेशकश शामिल है। वहीं सरकार ने अपने रूख को उचित ठहराया है।
पीएम नरेंद्र मोदी व केरल के सीएम पिनराई विजयन ने ट्विटर के जरिए इसकी प्रशंसा भी की है। मोदी ने मख्तूम की पेशकश पर धन्यवाद देते हुए कहा कि मख्तूम की यह चिंता दिखाती है कि भारत और यूएई के बीच कैसे अच्छे संबंध हैं।
मगर, विदेशी वित्तीय मदद नहीं लेने की भारत की नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। लिहाजा, कई नेताओं और लोगों ने इस कदम की आलोचना की है। मगर, यह कुछ वजहें हैं कि भारत विदेशी सहायता स्वीकार नहीं कर सकता है।
2004 से लगाई रोक
दरअसल, यूपीए के कार्यकाल के दौरान मनमोहन सिंह द्वारा बनाई गई नीति के कारण भारत विदेशी मदद नहीं लेता है। वर्ष 2004 से भारत ने किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा के लिए विदेशी आर्थिक मदद लेने की परंपरा पर रोक लगा दी थी। तब उन्होंने कहा था कि जब तक भारत समस्या से निपटने में स्वयं सक्षम है, तब तक वह कोई विदेशी मदद नहीं लेगा।
एक समय था जब देश में कोई भी प्राकृतिक आपदा आती थी, तो सरकार की कोशिश विश्व बैंक, आईएमएफ सहित अन्य विदेशी सरकारों से ज्यादा से ज्यादा आर्थिक मदद लेने की होती थी। इसका मकसद राहत कार्य तेजी लाना होता था। मगर, अब स्थितियां बदल चुकी हैं।
दूसरा कारण, यह है कि किसी भी देश से मदद लेने के बाद दूसरे देशों के लिए भी रास्ता खुल जाता है। ऐसे में किसी दूसरे देश की ओर से दी जाने वाली मदद की पेशकश को ठुकराने का कोई आधार नहीं बचता है।
विदेशों को भारत ने दी मदद
हालांकि, इस बात का ध्यान रखा गया कि भारत की तरफ से दूसरे देशों को दिए जाने वाले आर्थिक मदद में इजाफा हो। वर्ष 2004 की सुनामी में काफी क्षति उठाने के बावजूद भारत ने दूसरे किसी भी देश से वित्तीय मदद नहीं ली। इस दौरान श्रीलंका, थाइलैंड सहित अन्य देशों को आर्थिक मदद जरूर दी।
यही वजह है कि केरल में बाढ़ के बाद जब विदेशी सरकारों की तरफ से मदद का प्रस्ताव आने लगे, तो विदेश मंत्रालय ने अपने सभी दूतावासों व मिशनों को यह याद दिलाया है कि वह इसे नम्रतापूर्वक लेने से मना कर दें। भारत इस फैसले के जरिये दुनिया को यह बताना चाहता है कि वह अपनी समस्याओं से निपटने में सक्षम है।
सुनामी में भी नहीं ली थी मदद
विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि वर्ष 2004 की सुनामी में भारत को अमेरिका, जापान समेत कई देशों ने वित्तीय मदद की पेशकश की थी। मगर, भारत ने सभी को धन्यवाद देते हुए मदद लेने से मना कर दिया। इन देशों को कहा गया कि वह अपने पसंद के एनजीओ के जरिए मदद दे सकते हैं। जबकि सुनामी से प्रभावित श्रीलंका, थाइलैंड व इंडोनेशिया को संयुक्त तौर पर 2.65 करोड़ डॉलर की मदद की थी।
उसके बाद से ही भारत प्राकृतिक आपदा आने पर दूसरे देशों को बढ़-चढ़ कर वित्तीय मदद देता रहा है। वर्ष 2005 में जब कश्मीर में भूकंप आया था, तो भारत ने पाकिस्तान को 2.5 करोड़ डॉलर की मदद दी थी। वर्ष 2011 में फुकुशिमा (जापान) में आए भूकंप और उसकी वजह से वहां के परमाणु ऊर्जा संयंत्र में हुई दुर्घटना से प्रभावित लोगों को मदद पहुंचाई थी। हाल ही में भयंकर भूकंप झेल रहे नेपाल को भारत की तरफ से एक अरब डॉलर की मदद दी गई।
भारत ने अंतिम बार प्राकृतिक आपदा से लड़ने के लिए विदेशी मदद वर्ष 2004 में बिहार में आई बाढ़ के बाद राहत कार्य के लिए अमेरिका व ब्रिटेन से ली थी। उसके पहले गुजरात भूकंप (वर्ष 2001) में कई देशों ने भारत को वित्तीय मदद दी थी। सूत्रों के मुताबिक, पिछले दो दशकों में भारत ने किसी भी प्राकृतिक आपदा से लड़ने के लिए पर्याप्त क्षमता विकसित कर ली है।
केरल की बाढ़ से भी यह साफ साबित हो रहा है। जिस स्तर पर तेजी से वहां बचाव अभियान चलाया गया है, वह अपने आप में अनूठा है। यह एक बड़ी वजह है कि भारत दूसरे देशों से अब कोई मदद नहीं लेता। वैसे विदेशी निजी संस्थाएं या एनजीओ राहत कार्य या आपदा बाद पुर्नस्थापना से जुड़े कार्यों में मदद कर सकते हैं।
विदेशी चंदा स्वीकार करने के लिए नियम बदले सरकार : कांग्रेस
कांग्रेस ने विदेशी चंदा स्वीकार नहीं करने की खबरों को निराशाजनक करार दिया। पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नियम में बदलाव के लिए कदम उठाने का अनुरोध किया है। केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने कहा कि पीड़ित लोगों के लिए नियम को दरकिनार किया जा सकता है।
केरल सरकार करेगी पीएम से अनुरोध
केरल की सरकार प्रधानमंत्री मोदी से विदेशी चंदा स्वीकार करने में रुकावट खत्म करने के लिए अनुरोध करेगी, मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने अगस्त 22 को कहा।
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