राज्य में पिछले 10 साल में यह चौथी बार राज्यपाल शासन लगा है। पीडीपी और भाजपा के बीच सवा तीन साल पहले गठबंधन हुआ था। भाजपा ने मंगलवार को पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी से गठबंधन तोड़कर महबूबा मुफ्ती सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। कांग्रेस और पीडीपी ने एकदूसरे के साथ गठबंधन की संभावना से इनकार किया है। वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला ने भी किसी गठबंधन की संभावना से इनकार किया है।
जम्मू-कश्मीर में अब तक 11 चुनाव हुए, राज्य ने 8 बार राज्यपाल शासन देखा
| कब-कब लगा राज्यपाल शासन | |
| पहला | 26 मार्च, 1977 से 9 जुलाई 1977 |
| दूसरा | 6 मार्च 1986 से 7 नवंबर 1986 |
| तीसरा | 19 जनवरी 1990 से 9 अक्टूबर 1996 |
| चौथा | 18 अक्टूबर 2002 से 2 नवंबर 2002 |
| पांचवां | 11 जुलाई 2008 से 5 जनवरी 2009 |
| छठा | 8 जनवरी 2015 से 1 मार्च 2015 |
| सातवां | 7 जनवरी 2016 से 4 अप्रैल 2016 |
| आठवां | 20 जून 2018 से लागू |
1977-1982 :1977 में कांग्रेस ने समर्थन वापस लेकर अब्दुल्ला सरकार गिराई। पहली बार राज्यपाल शासन लगा। 1977 के चुनावों में नेकां जीती और शेख अब्दुल्ला दोबारा मुख्यमंत्री बनाए गए। 1982 में शेख अब्दुल्ला के निधन पर बेटे फारूक अब्दुल्ला सीएम बने। कांग्रेस की मदद से अब्दुल्ला के बहनोई गुलाम शाह ने सरकार गिरा दी। शाह दो साल सीएम रहे। 6 मार्च, 1986 से 7 नवंबर, 1986 तक राष्ट्रपति शासन रहा।
1986-2002 : 1986 में हुए चुनावों में फिर नेकां जीती और फारूख सीएम बने। 1990 में जगमोहन को राज्यपाल बनाने के विरोध में इस्तीफा दे दिया। 1996 तक राज्यपाल शासन रहा। 1996 के चुनाव में फिर नेशनल कॉन्फ्रेंस को सफलता मिली। फारूख तीसरी बार सीएम बने।
2002-2018 :2002 चुनाव में कांग्रेस-पीडीपी की सरकार बनी। मुफ्ती सईद सीएम बने। 3 साल के बाद कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद सीएम बने। पीडीपी ने सरकार गिरा दी। 2008 में हुए चुनावों में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला। नेकां-कांग्रेस की सरकार बनी। उमर अब्दुल्ला सीएम बने। 2014 में चुनाव हुए। 2015 में भाजपा-पीडीपी में गठबंधन। पीडीपी के मुफ्ती सईद फिर सीएम बने। उनके निधन के बाद महबूबा राज्य की पहली महिला सीएम बनी।
गठबंधन तोड़ने की दो वजह जो भाजपा ने बताईं : राम माधव ने कहा, ‘‘घाटी में आतंकवाद, कट्टरपंथ, हिंसा बढ़ रही है। ऐसे माहौल में सरकार में रहना मुश्किल था। रमजान के दौरान केंद्र ने शांति के मकसद से ऑपरेशंस रुकवाए। लेकिन बदले में शांति नहीं मिली। जम्मू और कश्मीर क्षेत्र के बीच सरकार के भेदभाव के कारण भी हम गठबंधन में नहीं रह सकते थे।’’
मतभेद की दो असल वजहें: पहली- रमजान के दौरान सुरक्षाबल आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन रोक दें, इसे लेकर भाजपा-पीडीपी में मतभेद थे। महबूबा के दबाव में केंद्र ने सीजफायर तो किया लेकिन इस दौरान घाटी में 66 आतंकी हमले हुए, पिछले महीने से 48 ज्यादा। ऑपरेशन ऑलआउट को लेकर भी भाजपा-पीडीपी में मतभेद था। दूसरी- पीडीपी चाहती थी कि केंद्र सरकार हुर्रियत समेत सभी अलगाववादियों से बातचीत करे। लेकिन, भाजपा इसके पक्ष में नहीं थी।
भाजपा को पता था अक्टूबर तक सरकार गिरा देगी पीडीपी
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को संकेत मिल चुके थे कि ऑपरेशन आॅल आउट के विरोध में मानवाधिकार और मुस्लिम को मुद्दा बनाकर पीडीपी सितंबर-अक्टूबर तक सरकार गिरा सकती है। इसके बाद से भाजपा इस पर मंथन कर रही थी। सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने तमाम पहलू देखने के बाद देश की अखंडता और राष्ट्रवाद के नाम पर गठबंधन से हटने का फैसला किया। राज्य, खासतौर पर जम्मू में भाजपा- संघ कैडर में नाराजगी की रिपोर्ट शाह को मिली थी।
भाजपा तीन स्तर पर नरम रही: 1)पत्थरबाजों से मुकदमे वापस लिए, ताकि मानवता और राजनीतिक दृष्टि से संदेश जाए कि भटके युवाओं को एक मौका दिया है। 2)वार्ताकार की नियुक्ति की। उन्होंने सभी पक्षों से बातचीत का बयान दिया और बाद में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी इसे दोहराया। 3) रमजान में एकतरफा सीजफायर का एेलान। केंद्र सरकार इन फैसलों के जरिये कश्मीर मसले पर संवेदनशीलता दिखाना चाहती थी।
क्या है भाजपा की भविष्य की रणनीति:उपचुनाव में हार के बाद नाकाम सीजफायर से भाजपा-संघ कैडर में नकारात्मक संदेश का जोखिम नहीं उठाना चाहती थी। ऐसे में आतंकवाद से समझौता नहीं करने का फैसला किया।
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