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स्वच्छ भारत मिशन के तहत बने इन शौचालयों का हाल देखिए

पीएम मोदी के स्वच्छता मिशन से जुड़िये, 2 लाख का इनाम जीतिए, एक समाचार 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाने के लिए यूपी की योगी सरकार युवाओं को जोड़ रही है। यूपी के सभी जिलों में पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय भारत सरकार की तरफ से स्वच्छ भारत समर इंटर्नशिप 2018 शुरू कर रही है। इस प्रोग्राम में स्टूडेंट्स अपनी पसंद के गांव में जाकर ग्रामीणों को 100 घंटे स्वच्छता का पाठ पढ़ाएंगे। इसमें स्टूडेंट्स को अवॉर्ड भी जीतने का मौका मिलेगा।
ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय व पेयजल मंत्रालय ने 1 मई से स्वच्छ भारत समर इंटर्नशिप प्रोग्राम शुरू किया है, जो 31 जुलाई तक चलेगा। बता दें कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युवाओं से 'स्‍वच्‍छ भारत समर इंटर्नश‍िप 2018' को जॉइन करने की अपील की थी। इस प्रोग्राम में बेस्ट परफॉर्मेंस वाले स्टूडेंट्स को नेशनल लेवल पर 2 लाख रुपये की इनामी राशि भी दी जाएगी। बता दें कि इसके लिए कालेज के छात्र एंव छात्राओं के साथ नेहरु युवा केंद्र से जुड़े युवाओं को 1 मई से 31 मई तक 100 घंटे पूरे करने होंगे।
जिलाधिकारी भदोही राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि इस इंटर्नश‍िप में आप दो तरीके के काम कर सकते हैं। पहला- स्वच्छता अभ‍ियान को लेकर जागरूकता फैलाना, जैसे आप अवेयरनेस कैंपेन, नुक्कड़ नाटक, स्वच्छ मेला जैसी ऐक्टिविटीज में शामिल हो सकते हैं। दूसरा- आप वेस्ट कलेक्शन ड्राइव, रास्तों की सफाई और गांव के अलग-अलग भाग की सफाई में भी हिस्सा ले सकते हैं। उन्होंने कहा कि इसका मूल उद्देश्य युवाओं का अधिक से अधिक लोगों तक स्वच्छता मिशन से जोड़ना है। यूपी के मैनपुरी जिले को ओडीएफ (खुले से शौच मुक्त) बनाने के लिए पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है। अफसर नए शौचालयों का निर्माण तो करा रहे हैं, लेकिन पुरानों की सुध नहीं ले रहे हैं।  
यही कारण है जिले में बनवाए गए सैकड़ों शौचालयों ने कबाड़ घर का रूप ले लिया है। कहीं शौचालय में बकरी बांधी जा रही हैं तो कहीं भूसा भरा गया है। 
जिले को ओडीएफ बनाने के लिए केंद्र ने दो अक्तूबर 2019 तो प्रदेश सरकार ने दो अक्तूबर 2018 की तारीख निर्धारित की है। योजना में बजट का भी कोई अभाव नहीं है। हर रोज जिले में शौचालयों का निर्माण भी हो रहा है।
दिल्ली 
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सफाई का यह हाल, वहाँ का है,जहाँ जिला चाँदनी चौक कार्यालय
बगल में है 
आखिर कब तक स्वच्छता अभियान के नाम पर जनता को भ्रमित किया जाता रहेगा? जब सफाई कर्मचारियों पर वेतन और सुविधाओं के नाम पर इतना धन खर्च किया जाता है, फिर भी गन्दगी, क्यों? महात्मा गाँधी का वध हुए इतने वर्ष बीत गए, और स्वतन्त्रता संग्राम दिनों में गाँधी ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी। तबसे लेकर आज गाँधीवादी गाँधी के स्वच्छता पर न कितने खरब धन को बर्बाद कर चुके हैं, लेकिन समस्या वहीँ की वहीँ है। जहाँ तक सड़क पर झाड़ू लगाने की बात है, दो/तीन बार तो मै स्वयं व्यक्तिगत रूप से इस अभियान का हिस्सा बना। लेकिन गन्दे इलाके इतने साफ देख, मन में शंका कोतुहल कर रही थी। कुछ ही समय पूर्व, सच्चाई सामने आ ही गयी। 
सफाई कर्मियों( आगे-आगे झाड़ू लगाती महिलाएं सफाई कर्मचारी हैं) द्वारा
 झाड़ू देने उपरान्त झाड़ू लगाते टिकट इच्छुक भाजपाई, 
जबकि दूसरे भाजपाई केवल भीड़ का हिस्सा  
जामा मस्जिद के पीछे स्टेट बैंक के पास किसी की प्रतीक्षा कर रहा था, कि देखा सफाई कर्मचारी झाड़ू लगाते आये, सोंचा कोई आ रहा होगा। मालूम हुआ कि भाजपाई सफाई ड्रामा करते आ रहे हैं। सफाई कर्मचारियों द्वारा लगाए कूड़े के ठेर के पास खड़े होकर फोटो खिंचवाई जा रही हैं। लेकिन आम जनता और दुकानदारों के ग्लानिपूर्ण कथन सुन मन बहुत परेशान हुआ। सोंचा कभी न कभी इस मुद्दे पर कुछ लिखा जाए। कहीं शौचालय के आगे, पान, गुटका बिक रहा है तो कही रेहड़ी पर खाना बिक रहा हैं। दिल्ली में ही नगर निगम सिविक सेंटर के बाहर चौक पर मूत्रालय की हालत देखी है। और तो और दूर तक कोई मूत्रालय न होने के कारण, सिविक सेंटर की ही चार-दीवारी पर मूत्र करते नज़र आ जाएँगे। 
राजनीति--पार्टी कोई भी हो-- में व्यापारी वर्ग का ही बोलबाला है। किसी भी व्यापारिक क्षेत्र में सफाई कर्मचारी सरकारी वेतन के अतिरिक्त किसी सरकारी प्रथम श्रेणी अधिकारी से अधिक महीना कमाते हैं, जो ऊपर तक सब मे विभाजित होता है। फिर भी सफाई का ड्रामा। यदि पार्टी पदाधिकारी अपने अपने क्षेत्रों में दौरा कर, वहां की समस्याओं को सुलझाएं, वह अधिक हितकारी होगा, बनिस्बत इसके झाड़ू हाथ में लेकर ड्रामा करने से। पार्टी पदाधिकारियों को चाहिए कि पार्टी के कुछ पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं द्वारा सड़क पर झाड़ू लगाते समय एक सामान्य नागरिक की भाँति जनता के बीच खड़े होकर विचार जानने का प्रयास करें, न कि बस फोटो खींच भेज दी अपने उच्च पदाधिकारियों को। चुनाव में टिकट की हो गयी तैयारी, या पार्टी में कोई पद। जबकि हर कोई हाथ में झाड़ू लेकर निकलने वाला भाजपाई अपने घर में झाड़ू भी नहीं पकड़ता होगा। घरों में झाड़ू, झूठे बर्तन साफ  करने के लिए काम वाली रखी होंगी। यह आरोप नहीं कटु सत्य है, कई नेताओं और पदाधिकारियों को अपने घर में पानी तक स्वयं लेते नहीं देखा, सड़क पर झाड़ू लेकर नेतागिरी दिखाते हैं।  क्या लाभ ऐसे स्वाँग से। पीने का पानी नहीं, सड़कें टूटी पड़ी हैं, महीनो सीवर साफ नहीं होते। यमुना पार जाइये, खुली भरी हुई नालियाँ, बहते नाले, क्या ये सब स्वास्थ्य लाभकारी हैं? किसका काम है?  
कहीं भी रेलवे लाइन के पास देखिए, लोग खुले में शौच करते नज़र आएंगे। इतना ही नहीं, विकासपुरी दिल्ली में पंचवटी और समाज कल्याण सोसाइटी के पास से बहते नाले के पास भी यही नज़ारा देखने को मिल जाएगा। 
वास्तव में गाँधी ने ब्रिटिश राज में जिस अभियान को शुरू किया था, वह था जनता का स्वतन्त्रता संग्राम से ध्यान हटाने का अभियान। ब्रिटिश काल में गाँधी द्वारा प्रारम्भ कोई भी अभियान सफल नहीं हुआ। भारत को आज़ादी गाँधी के इन आंदोलनों या चर्खा कातने से नहीं मिली थी। गांधीवादियों ने देश को पढ़ा दिया कि "गांधीजी के चर्खा और अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आदि आंदोलनों के कारण देश को आज़ादी मिली" जो सरासर झूठ है। अगर गाँधी सही होते कोई नाथूराम गोडसे गाँधी को मारने का साहस तो क्या सोंचता भी नहीं। पिताश्री एम.बी.एल.निगम बताते थे कि गाँधी के नमक आंदोलन शुरू करने से टके सेर बिकने वाला नमक एक आना सेर बिकना शुरू हो गया। 
अपने बैंगलोर और हैदराबाद प्रवास में देखा कि सफाई कर्मचारी अपने निश्चित कार्य समय तक ड्यूटी पर रहते हैं। दूसरे, जब सीवर साफ होते हैं, पहले गैस निकलने के लिए कुछ सीवरों के ठक्कन खोल दिए जाते हैं, फिर सीवर की गन्दगी बाहर निकल कर, तुरन्त उठा ली जाती है, लेकिन दिल्ली में दो/तीन दिन तक बाहर सड़क पर पड़ी रहती है, मरने दो जनता को बदबू में।  

शौचालय का नहीं हो रहा है इस्तेमाल

शौचालय बनने के बाद उनका इस्तेमाल हो रहा है या नहीं इस पर अफसर ध्यान नहीं दे रहे हैं। जिले के कई गांव ऐसे हैं जहां लोगों ने शौचालय तो बनवा लिए हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। 
वे शौचालयों का इस्तेमाल बकरी बांधने, भूसा भरने व अन्य सामान रखने में कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि करोड़ों खर्च करने के बाद भी जिला ओडीएफ कैसे होगा।
शौचालय का इस्तेमाल न करने वाले कुछ ग्रामीणों ने निर्माण की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाए हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि शौचालय निर्माण के कुछ समय बाद ही बदहाल हो गए। दीवारें चटक गईं।

इसलिए नहीं हो रहा है इस्तेमाल

मजबूरी में उन्होंने इनका इस्तेमाल बंद कर दिया। ओडीएफ योजना को लेकर सरकारों ने खजाने का मुंह खोल रखा है। निर्माण के साथ ही प्रचार-प्रसार, निरीक्षण आदि  पर लाखों रुपये का बजट खर्च किया जा रहा है। 
बावजूद इसके जिले में शत प्रतिशत शौचालयों का इस्तेमाल नहीं हो रहा है। शौचालय निर्माण के बाद अगर कोई इस्तेमाल नहीं कर रहा है तो ऐसे व्यक्ति पर कार्रवाई का कोई प्रावधान नहीं है।  

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