राज्यसभा चेयरमैन वेंकैया नायडू ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। कांग्रेस की नेतृत्व में 7 विपक्षी दलों ने उपराष्ट्रपति के सामने ये प्रस्ताव पेश किया था, लेकिन कानूनी सलाह के बाद वेंकैया नायडू ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। उपराष्ट्रपति का कहना है कि ये महाभियोग राजनीति से प्रेरित था। उन्होंने इसको लेकर अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल सहित संविधानविदों और कानूनी विशेषज्ञों के साथ प्रस्ताव पर विचार-विमर्श करने के बाद ये फैसला लिया। बता दें कि महाभियोग के प्रस्ताव के बाद से ही सभी की नज़रें वेंकैया नायडू पर टिकी थीं। शुक्रवार को राजनीतिक दलों से इस बारे में नोटिस मिलने के बाद नायडू 4 दिन की छुट्टी पर आंध्र गए थे, लेकिन मामला गंभीर होते देख वह रविवार को ही दिल्ली लौट आए थे। अप्रैल 23 को उपराष्ट्रपति ने इस बारे में फैसला किया।ध्यान देने वाली बात है कि चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय राज्यसभा के सभापति का होता है. अब कांग्रेस के पास सिर्फ सुप्रीम कोर्ट जाने का ही रास्ता बचा है। अब कांग्रेस के पास विकल्प यह है कि वह सुप्रीम कोर्ट जाए।
कांग्रेस ने सीपीएम, सीपीआई, एसपी, बीएसपी, एनसीपी और मुस्लिम लीग के समर्थन का पत्र उपराष्ट्रपति को सौंपा है। लेकिन, बिहार में पार्टी के साथ गठबंधन में शामिल लालू प्रसाद की आरजेडी और पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस उसके इस प्रस्ताव के साथ नहीं नजर आए। दोनों दलों ने महाभियोग को लेकर हुई मीटिंग में भी हिस्सा नहीं लिया। यह एक अभूतपूर्व कदम था। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ कभी भी महाभियोग का प्रस्ताव नहीं आया था। कानून के कई जानकार इसे अभूतपूर्व कदम बता रहे थे। वरिष्ठ वकील फाली नरीमन ने इसे काला दिन बताया था।
कांग्रेस चाहती है प्रधान न्यायाधीश हो जाएं न्यायिक उत्तरदायित्व से अलग
उप राष्ट्रपति को महाभियोग का नोटिस देने के बाद कांग्रेस के नेताओं की ओर से जारी एक बयान में कहा गया था कि, कांग्रेस इस उम्मीद के साथ प्रधान न्यायाधीश पर नैतिक दबाव बना रही है कि महाभियोग प्रस्ताव पेश किए जाने पर वह अपने न्यायिक उत्तरदायित्व से अलग हो जाएंगे. कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि पहले भी महाभियोग का सामना करने वाले न्यायाधीश न्यायिक कार्य से अलग हुए थे और प्रधान न्यायाधीश को भी यही करना चाहिए.
अब प्रश्न यह है, कि देश में जब में जब 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी ने आपातकाल लगाई थी, और 1977 में जब जनता पार्टी बनाकर समस्त विपक्ष के एकजुट होकर सत्ता में आया, तब इस प्रस्ताव को क्यों नहीं लाया गया? परन्तु मोदी सरकार के विरुद्ध कोई और अन्य मुद्दा न मिलने के कारण इस तरह के प्रस्ताव लाकर राज्य/लोक सभा का समय बर्बाद कर, जनता और देशहित में प्रस्ताव लाकर एक सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाते। लेकिन इनका काम लोक/राज्य सभा में शोर-शराबा कर धन की बर्बादी को रोकना है।
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