आर.बी.एल. निगम, वरिष्ठ पत्रकार
भाजपा दलित सांसदों के भीतर अपनी सरकार की नीतियों को लेकर नाराजगी बढ़ती दिख रही है। पार्टी शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ अब यूपी के बहराइच से सांसद सावित्री बाई फुले ने मोर्चा खोला है। फुले सरकार की नीतियों के खिलाफ 1 अप्रैल को लखनऊ में प्रदर्शन करेंगी और उसके बाद उनकी रैलियों का सिलसिला शुरू होगा।
हैरानी की बात यह है कि जिस पार्टी का प्रधानमन्त्री "सबका साथ, सबका विकास" का नारा लगाता हो, उसी पार्टी का सांसद जब आरक्षण समाप्त करने का विरोध करे, उससे इस बात का आभास अवश्य होता है, कि "सबका साथ, सबका विकास" केवल एक जुमलेबाज़ी है। जबकि यही नेता, चाहे वह अन्य पार्टियों से ही क्यों न हो, सब जाति के नाम पर अपनी जाति को भ्रमित कर अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार, "महामहिम राष्ट्रपति से लेकर संसद में 131 दलित और अनुसूचित जाति से हैं, और इनको इनकी जाति से अधिक वोट अन्य जातियों ने दिए हैं, ये नेता केवल वोट के अतिरिक्त अपनी जाति के लिए क्या करते हैं? यदि इनके निर्वाचन क्षेत्र में रहने वाली अन्य जातियाँ इनको वोट ही न दें, शायद ही कोई 100/ 150 से अधिक वोटों से अपनी जीत दर्ज करवाने में सक्षम हो। अन्य जातियों के वोट से लाखो में अपनी जीत के बलबूते पर पार्टी को ब्लैकमेल करने के साथ-साथ अन्य जातियों के विरुद्ध कार्य करते हैं। आरक्षण भी चाहिए और समाज में रहने के लिए सवर्ण जाति का वर्ण भी चाहिए। कोई इनकी जाति के नाम से पुकार दे, तो कानून अपना रंग दिखा देता है।
भारत से छद्दमवाद की कब अर्थी निकलेगी? ये छद्दम नेता कब तक देश को गुमराह करते रहेंगे? क्या इन छद्दम धर्म-निरपेक्ष नेताओं का अन्तरात्मा मर चुकी है? वास्तव में यदि इन छद्दम नेताओं की अन्तरात्मा मर चुकी है, तो भारतीयों को ऐसे नेताओं के सामाजिक बहिष्कार करने में लेशमात्र भी संकोच नहीं करना चाहिए। ऐसे नेता क्या देश की सेवा करेंगे जो धर्म को बदनाम कर रहे?
इस सन्दर्भ में अवलोकन करिये:--
वास्तव में सरकार की आड़ में चुनाव आयोग ही सीटें आरक्षित कर जनता में फूट डाल रही है। कहीं दलित/अनुसूचित, कहीं मुस्लिम तो कहीं महिला आरक्षित, क्या ये जनता को विभाजित करने वाले काम नहीं? वोट सबके चाहिएँ, अब इसे राष्ट्रीय एकता के नाम पर ड्रामा कहा जाए या पाखंड? जनता को विभाजित तो ये नेता खुद कर रहे हैं। दलितों के नाम पर कितनी पार्टियाँ बन चुकी हैं, फिर प्रमुख पार्टियाँ भी इन जातियों को टिकट देती हैं, तो क्या अन्य जातियाँ मूर्ख हैं? यह बहुत गम्भीर मुद्दा है, जिस पर समस्त पार्टियों को मन्थन करना चाहिए। समझदार को इशारा ही बहुत है।
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के खिलाफ बीजेपी के सहयोगी पहले ही नाराजगी जता चुके है। इनमें सुहेलदेव पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर सबसे ज्यादा मुखर है।
हालांकि बहराइच की सांसद ने किसी नेता का नाम तो नहीं लिया, लेकिन कहा कि पार्टी के भीतर आरक्षण को खत्म करने की साजिश चल रही है. सावित्रीबाई फुले राज्य की योगी सरकार और केंद्र की मोदी सरकार दोनों की नीतियों से खफा हैं और दूसरे दलों का समर्थन भी ले सकती हैं.
सावित्री बाई फुले ने कहा कि इस सरकार में गरीब लोग खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. बता दें कि ओम प्रकाश राजभर ने अपनी पार्टी की बैठक बुलाई थी और वहां भी अपनी नाराजगी जताई. राजभर कह चुके हैं वे 10 अप्रैल को अमित शाह के आने का इंतजार कर रहे हैं. ताकि वादे के मुताबिक बदलाव हो सके.
उत्तर प्रदेश में दो लोकसभा सीटों के उपचुनाव में बीजेपी की हार के बाद योगी सरकार के खिलाफ सहयोगी पार्टियों ने आवाज बुलंद की है. ओम प्रकाश राजभर ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ खुलकर अपनी निराशा जाहिर की थी और कहा था कि वे सभी को साथ लेकर चलने में नाकाम रहे हैं. राज्य में ओबीसी समुदाय के नेताओं को नजरअंदाज किया जा रहा है.
यही नहीं आजमगढ़ से बीजेपी के पूर्व सांसद रमाकांत यादव ने भी योगी सरकार पर निशाना साधा था. 2014 के लोकसभा चुनावों में आजमगढ़ से समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले रमाकांत यादव ने योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली पर सवाल उठाया है. यादव ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व ने पूजा पाठ करने वाले मुख्यमंत्री बना दिया. सरकार चलाना उनके बस का नहीं है
पूर्वांचल में बीजेपी के कद्दावर नेता एवं पूर्व सांसद ने कहा कि पिछड़ों और दलितों को उनका सम्मान मिलना चाहिए, जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नहीं दे रहे हैं. वो सिर्फ एक जाति पर ध्यान दे रहे हैं.उपचुनाव परिणामों के बाद उन्होंने कहा था, ‘पिछड़े और दलितों को जिस तरह से फेंका जा रहा है, उसका परिणाम आज ही सामने आ गया है. मैं आज भी अपने दल को कहना चाहता हूं, अगर आप दलितों और पिछड़ों को साथ लेके चलेंगे तो 2019 में संतोषजनक स्थिति बन सकती है.’
यहीं नहीं एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी के दलित सांसदों में भी रोष देखने को मिल रहा है. एनडीए सहयोगी रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा ने शीर्ष कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन दाखिल किया है. साथ ही बीजेपी के सांसदों ने समाज कल्याण मंत्री थावरचंद गहलोत से भी इस मामले पर मुलाकात की थी और मामले को प्रधानमंत्री के समक्ष उठाने की बात कही थी.
जबकि संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के परपोते सुजात अंबेडकर कहते हैं कि आर्थिक तौर पर समृद्ध हो चुके हैं एससी-एसटी समुदाय के लोगों को अब निचले दलित तबके की मदद करनी चाहिए. वह अपने पिता प्रकाश अंबेडकर की पार्टी ‘भारिपा बहुजन महासंघ’ के लिए काम करना चाहते हैं. हाल में एससी-एसटी एक्ट में बदलाव पर वह कहते हैं कि दलितों की रक्षा करने वाले इस एक्ट में किसी भी तरह से संशोधन नहीं किया जाना चाहिए. सुजात का यह भी मानना है कि राजनीति में आरक्षण की जरूरत नहीं है.
एससी-एसटी एक्ट में बदलाव को लेकर राजनीति के पटल पर घमासान मचा हुआ है. इस बीच संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के परपोते सुजात अंबेडकर का मानना है कि राजनीति में आरक्षण की जरूरत नहीं है. हालांकि सुजात इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि एससी-एसटी समुदाय में जो लोग आर्थिक तौर पर समृद्ध हो चुके हैं, उन्हें समुदाय के उन लोगों के लिए आगे आना चाहिए और उनकी मदद करनी चाहिए जो अभी भी हाशिए पर हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 26 मार्च को जब मुंबई के आजाद मैदान में हजारों की संख्या में दलित संगठनों से जुड़े लोग दक्षिणपंथी नेता संभाजी भिड़े (भीमा-कोरेगांव हिंसा के आरोपी) की गिरफ्तारी के लिए इकट्ठा हुए तो वहां एक 23 साल का लड़का अपनी बेबाकी और अपने स्टाइल से सबको आकर्षित कर रहा था. यह युवक कोई और नहीं बल्कि बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर के परपोते सुजात अंबेडकर थे. पुणे स्थित फर्ग्युसन कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएट और जर्नलिज्म में डिग्री हासिल कर चुके सुजात कहते हैं कि वह अपने पिता प्रकाश अंबेडकर की पार्टी ‘भारिपा बहुजन महासंघ’ के लिए काम करना चाहते हैं. सुजात कहते हैं कि राजनीति में आरक्षण की जरूरत नहीं है. हालांकि वह मानते हैं कि नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण जारी रहना चाहिए. सुजात के अपने पिता प्रकाश अंबेडकर से इस बारे में विचार काफी मिलते हैं. प्रकाश अंबेडकर ने साल 2013 में एक इंटरव्यू में कहा था कि चुनावी राजनीति में एससी-एसटी समुदाय के लिए आरक्षण खत्म करने का वक्त आ गया है. सुजात कहते हैं कि उन्होंने अपनी शिक्षा में कभी भी आरक्षण का लाभ नहीं लिया है. वह कहते हैं कि जिस तरह से दलितों पर अत्याचार के मामले हर दिन बढ़ते जा रहे हैं, वह चाहते हैं कि वह जल्द अपना एक पोर्टल शुरू करें जो इस तरह के मुद्दों को प्रमुखता से उजागर करे. हाल में एससी-एसटी एक्ट में बदलाव पर सुजात कहते हैं कि यही एक्ट है जो दलित समुदायों के हितों की रक्षा कर रहा है. इसमें किसी भी तरह का संशोधन नहीं किया जाना चाहिए. एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के उस बयान से सुजात असहमति जताते हैं जिसमें पवार कहते हैं कि भारत में अब जाति के आधार पर नहीं बल्कि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना चाहिए.
भाजपा दलित सांसदों के भीतर अपनी सरकार की नीतियों को लेकर नाराजगी बढ़ती दिख रही है। पार्टी शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ अब यूपी के बहराइच से सांसद सावित्री बाई फुले ने मोर्चा खोला है। फुले सरकार की नीतियों के खिलाफ 1 अप्रैल को लखनऊ में प्रदर्शन करेंगी और उसके बाद उनकी रैलियों का सिलसिला शुरू होगा।
हैरानी की बात यह है कि जिस पार्टी का प्रधानमन्त्री "सबका साथ, सबका विकास" का नारा लगाता हो, उसी पार्टी का सांसद जब आरक्षण समाप्त करने का विरोध करे, उससे इस बात का आभास अवश्य होता है, कि "सबका साथ, सबका विकास" केवल एक जुमलेबाज़ी है। जबकि यही नेता, चाहे वह अन्य पार्टियों से ही क्यों न हो, सब जाति के नाम पर अपनी जाति को भ्रमित कर अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार, "महामहिम राष्ट्रपति से लेकर संसद में 131 दलित और अनुसूचित जाति से हैं, और इनको इनकी जाति से अधिक वोट अन्य जातियों ने दिए हैं, ये नेता केवल वोट के अतिरिक्त अपनी जाति के लिए क्या करते हैं? यदि इनके निर्वाचन क्षेत्र में रहने वाली अन्य जातियाँ इनको वोट ही न दें, शायद ही कोई 100/ 150 से अधिक वोटों से अपनी जीत दर्ज करवाने में सक्षम हो। अन्य जातियों के वोट से लाखो में अपनी जीत के बलबूते पर पार्टी को ब्लैकमेल करने के साथ-साथ अन्य जातियों के विरुद्ध कार्य करते हैं। आरक्षण भी चाहिए और समाज में रहने के लिए सवर्ण जाति का वर्ण भी चाहिए। कोई इनकी जाति के नाम से पुकार दे, तो कानून अपना रंग दिखा देता है।
भारत से छद्दमवाद की कब अर्थी निकलेगी? ये छद्दम नेता कब तक देश को गुमराह करते रहेंगे? क्या इन छद्दम धर्म-निरपेक्ष नेताओं का अन्तरात्मा मर चुकी है? वास्तव में यदि इन छद्दम नेताओं की अन्तरात्मा मर चुकी है, तो भारतीयों को ऐसे नेताओं के सामाजिक बहिष्कार करने में लेशमात्र भी संकोच नहीं करना चाहिए। ऐसे नेता क्या देश की सेवा करेंगे जो धर्म को बदनाम कर रहे?
इस सन्दर्भ में अवलोकन करिये:--
वास्तव में सरकार की आड़ में चुनाव आयोग ही सीटें आरक्षित कर जनता में फूट डाल रही है। कहीं दलित/अनुसूचित, कहीं मुस्लिम तो कहीं महिला आरक्षित, क्या ये जनता को विभाजित करने वाले काम नहीं? वोट सबके चाहिएँ, अब इसे राष्ट्रीय एकता के नाम पर ड्रामा कहा जाए या पाखंड? जनता को विभाजित तो ये नेता खुद कर रहे हैं। दलितों के नाम पर कितनी पार्टियाँ बन चुकी हैं, फिर प्रमुख पार्टियाँ भी इन जातियों को टिकट देती हैं, तो क्या अन्य जातियाँ मूर्ख हैं? यह बहुत गम्भीर मुद्दा है, जिस पर समस्त पार्टियों को मन्थन करना चाहिए। समझदार को इशारा ही बहुत है।
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के खिलाफ बीजेपी के सहयोगी पहले ही नाराजगी जता चुके है। इनमें सुहेलदेव पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर सबसे ज्यादा मुखर है।
हालांकि बहराइच की सांसद ने किसी नेता का नाम तो नहीं लिया, लेकिन कहा कि पार्टी के भीतर आरक्षण को खत्म करने की साजिश चल रही है. सावित्रीबाई फुले राज्य की योगी सरकार और केंद्र की मोदी सरकार दोनों की नीतियों से खफा हैं और दूसरे दलों का समर्थन भी ले सकती हैं.
सावित्री बाई फुले ने कहा कि इस सरकार में गरीब लोग खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. बता दें कि ओम प्रकाश राजभर ने अपनी पार्टी की बैठक बुलाई थी और वहां भी अपनी नाराजगी जताई. राजभर कह चुके हैं वे 10 अप्रैल को अमित शाह के आने का इंतजार कर रहे हैं. ताकि वादे के मुताबिक बदलाव हो सके.उत्तर प्रदेश में दो लोकसभा सीटों के उपचुनाव में बीजेपी की हार के बाद योगी सरकार के खिलाफ सहयोगी पार्टियों ने आवाज बुलंद की है. ओम प्रकाश राजभर ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ खुलकर अपनी निराशा जाहिर की थी और कहा था कि वे सभी को साथ लेकर चलने में नाकाम रहे हैं. राज्य में ओबीसी समुदाय के नेताओं को नजरअंदाज किया जा रहा है.
यही नहीं आजमगढ़ से बीजेपी के पूर्व सांसद रमाकांत यादव ने भी योगी सरकार पर निशाना साधा था. 2014 के लोकसभा चुनावों में आजमगढ़ से समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले रमाकांत यादव ने योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली पर सवाल उठाया है. यादव ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व ने पूजा पाठ करने वाले मुख्यमंत्री बना दिया. सरकार चलाना उनके बस का नहीं हैपूर्वांचल में बीजेपी के कद्दावर नेता एवं पूर्व सांसद ने कहा कि पिछड़ों और दलितों को उनका सम्मान मिलना चाहिए, जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नहीं दे रहे हैं. वो सिर्फ एक जाति पर ध्यान दे रहे हैं.उपचुनाव परिणामों के बाद उन्होंने कहा था, ‘पिछड़े और दलितों को जिस तरह से फेंका जा रहा है, उसका परिणाम आज ही सामने आ गया है. मैं आज भी अपने दल को कहना चाहता हूं, अगर आप दलितों और पिछड़ों को साथ लेके चलेंगे तो 2019 में संतोषजनक स्थिति बन सकती है.’
यहीं नहीं एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी के दलित सांसदों में भी रोष देखने को मिल रहा है. एनडीए सहयोगी रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा ने शीर्ष कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन दाखिल किया है. साथ ही बीजेपी के सांसदों ने समाज कल्याण मंत्री थावरचंद गहलोत से भी इस मामले पर मुलाकात की थी और मामले को प्रधानमंत्री के समक्ष उठाने की बात कही थी.
समृद्ध दलितों का आरक्षण समाप्त हो -- सूरज अम्बेडकर, बाबा साहेब का परपोता
जबकि संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के परपोते सुजात अंबेडकर कहते हैं कि आर्थिक तौर पर समृद्ध हो चुके हैं एससी-एसटी समुदाय के लोगों को अब निचले दलित तबके की मदद करनी चाहिए. वह अपने पिता प्रकाश अंबेडकर की पार्टी ‘भारिपा बहुजन महासंघ’ के लिए काम करना चाहते हैं. हाल में एससी-एसटी एक्ट में बदलाव पर वह कहते हैं कि दलितों की रक्षा करने वाले इस एक्ट में किसी भी तरह से संशोधन नहीं किया जाना चाहिए. सुजात का यह भी मानना है कि राजनीति में आरक्षण की जरूरत नहीं है.एससी-एसटी एक्ट में बदलाव को लेकर राजनीति के पटल पर घमासान मचा हुआ है. इस बीच संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के परपोते सुजात अंबेडकर का मानना है कि राजनीति में आरक्षण की जरूरत नहीं है. हालांकि सुजात इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि एससी-एसटी समुदाय में जो लोग आर्थिक तौर पर समृद्ध हो चुके हैं, उन्हें समुदाय के उन लोगों के लिए आगे आना चाहिए और उनकी मदद करनी चाहिए जो अभी भी हाशिए पर हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 26 मार्च को जब मुंबई के आजाद मैदान में हजारों की संख्या में दलित संगठनों से जुड़े लोग दक्षिणपंथी नेता संभाजी भिड़े (भीमा-कोरेगांव हिंसा के आरोपी) की गिरफ्तारी के लिए इकट्ठा हुए तो वहां एक 23 साल का लड़का अपनी बेबाकी और अपने स्टाइल से सबको आकर्षित कर रहा था. यह युवक कोई और नहीं बल्कि बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर के परपोते सुजात अंबेडकर थे. पुणे स्थित फर्ग्युसन कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएट और जर्नलिज्म में डिग्री हासिल कर चुके सुजात कहते हैं कि वह अपने पिता प्रकाश अंबेडकर की पार्टी ‘भारिपा बहुजन महासंघ’ के लिए काम करना चाहते हैं. सुजात कहते हैं कि राजनीति में आरक्षण की जरूरत नहीं है. हालांकि वह मानते हैं कि नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण जारी रहना चाहिए. सुजात के अपने पिता प्रकाश अंबेडकर से इस बारे में विचार काफी मिलते हैं. प्रकाश अंबेडकर ने साल 2013 में एक इंटरव्यू में कहा था कि चुनावी राजनीति में एससी-एसटी समुदाय के लिए आरक्षण खत्म करने का वक्त आ गया है. सुजात कहते हैं कि उन्होंने अपनी शिक्षा में कभी भी आरक्षण का लाभ नहीं लिया है. वह कहते हैं कि जिस तरह से दलितों पर अत्याचार के मामले हर दिन बढ़ते जा रहे हैं, वह चाहते हैं कि वह जल्द अपना एक पोर्टल शुरू करें जो इस तरह के मुद्दों को प्रमुखता से उजागर करे. हाल में एससी-एसटी एक्ट में बदलाव पर सुजात कहते हैं कि यही एक्ट है जो दलित समुदायों के हितों की रक्षा कर रहा है. इसमें किसी भी तरह का संशोधन नहीं किया जाना चाहिए. एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के उस बयान से सुजात असहमति जताते हैं जिसमें पवार कहते हैं कि भारत में अब जाति के आधार पर नहीं बल्कि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना चाहिए.

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