कांग्रेस की दिक्कत
पंजाब के बाद कर्नाटक ऐसा बड़ा राज्य है जहां कांग्रेस की सरकार है. कर्नाटक समेत कुल चार राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं. ऐसे में यदि कांग्रेस के हाथ से कर्नाटक निकल जाता है तो 2019 के आम चुनावों में विपक्ष की तरफ से सबसे बड़े दल के रूप में उसकी बीजेपी से मुकाबले की मुख्य दावेदारी पर सवालिया निशान खड़ा हो जाएगा. ऐसे में विपक्ष की अगुआई के मसले का सवाल खड़ा होगा. इस हालत में कई क्षेत्रीय दल विपक्षी एकजुटता के नाम पर कांग्रेस के पीछे शायद नहीं खड़े हों.
फेडरल फ्रंट
मसलन उत्तर प्रदेश में यदि सपा-बसपा गठबंधन अगले आम चुनावों के लिहाज से होता है तो क्या ये कांग्रेस को अपना अगुआ मानेंगे? इसी कड़ी में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने गैर-कांग्रेसी, गैर-बीजेपी, फेडरल फ्रंट बनाने की बात कही है. राव ने कांग्रेस और बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि ये दोनों ही दल जनता को सक्षम सरकारें देने में नाकाम रहे हैं. ऐसे में इन दोनों दलों को छोड़कर एक फेडरल फ्रंट बनाया जाना चाहिए. हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि यह थर्ड फ्रंट नहीं होगा. उनके इस विचार का पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने समर्थन किया है. के चंद्रशेखर राव को फेडरल फ्रंट का अगुआ माना जा रहा है.
ममता बनर्जी
यदि कर्नाटक के साथ राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर नहीं रहता तो खासतौर पर ममता बनर्जी कांग्रेस के साथ खड़े होने से इनकार कर सकती हैं. विपक्षी दलों के नेताओं के साथ मंगलवार को ममता बनर्जी की मुलाकात को इसी संदर्भ में जोड़कर देखा जा रहा है. इस कड़ी में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख ममता बनर्जी ने मंगलवार को राष्ट्रीय राजधानी में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सहयोगी शिवसेना के सांसदों और साथ ही कई विपक्षी दलों के सांसदों से मुलाकात की.
ममता बनर्जी ने संसद पहुँच, शिवसेना के सांसद संजय राउत व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार से मुलाकात की. उन्होंने तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) की सांसद के.कविता से भी मुलाकात की. कविता तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की बेटी हैं. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक इन मुलाकातों से यह तो स्पष्ट है कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले गैर-बीजेपी राजनीतिक दलों के संभावित गठबंधन में ममता बनर्जी की भूमिका को प्रमुखता से देखा जा रहा है.
चुनाव का ऐलान होने के बीच आइए कर्नाटक विधानसभा में पार्टियों की स्थिति, पिछले चुनाव परिणाम, राज्य में जातीय समीकरण, प्रमुख चेहरे, प्रमुख मुद्दे आदि बातों पर एक नजर डालते हैं.
1. कर्नाटक में 4.90 करोड़ कुल मतदाता हैं.
2. कर्नाटक में कुल वोटरों में 16 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है. इस समाज के लोग करीब 40 सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं.
3. कर्नाटक में 19 फीसदी दलित हैं. इन्हें अपने पाले में करने के लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों कोशिश कर रहे हैं.
4. कर्नाटक में विधानसभा की कुल 224 सीटे हैं, जिसमें बहुमत का आंकड़ा 113 है.
5. 2013 विधानसभा चुनाव में हुई वोटिंग कांग्रेस ने 36.6 फीसदी वोटों के साथ 122 सीटों पर जीत दर्ज की थी. दूसरे नंबर पर रही जनता दल सेक्युलर (JDS) को 28.2 फीसदी वोट मिले थे, जिसमें उनके खाते में 40 सीटे गई थीं. तीसरे नंबर पर रही बीजेपी ने 19.9 फीसदी वोटों के साथ 40 सीटों पर जीत दर्ज की थी. अन्य दलों ने 23.3 फीसदी वोटों के साथ 22 सीटों पर जीत दर्ज की थी.
6. कर्नाटक में इस बार का विधानसभा चुनाव 7 चेहरों पर लड़ा जाएगा. बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और मुख्यमंत्री पद के दावेदार बीएस येदियुरप्पा हैं. वहीं कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी मुख्य चेहरा होंगे. वहीं जेडीएस की ओर से पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा और उनके बेटे एचडी कुमार स्वामी मुख्य चेहरा होंगे.
7. कर्नाटक चुनाव में इस बार सबसे बड़ा मुद्दा लिंगायत समाज होगा. दरअसल, सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत समाज को अलग धर्म का दर्जा दे दिया है. जबकि लिंगायत समाज से आने वाले बीएस येदियुरप्पा बीजेपी के मुख्यमंत्री चेहरा हैं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा है कि राहुल गांधी हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई को जोड़ने की बात करते हैं और यहां सिद्धारमैया हिंदुओं की बीच में ही भेदभाव पैदा करके उन्हें तोड़ना चाहते हैं, ऐसा दोहरा रवैया नहीं चलेगा.
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