महाराष्ट्र के भाजपा नेता एकनाथ खडसे ने अपनी ही सरकार से पूछा है कि, कोई 7 दिन में 3 लाख चूहे कैसे मार सकता है? महाराष्ट्र सरकार ने अपने सचिवालय में चूहों को मारने के लिए एक कंपनी को ठेका दिया था। कंपनी ने 7 दिन में 3 लाख से ज्यादा चूहों को मार देने का दावा किया है । अब एकनाथ खडसे इस मामले की जांच की मांग कर रहे हैं।70 के दशक में प्रदर्शित फिल्म "बहारें फिर भी आएँगी" का एक गीत "बदल जाये अगर माली, चमन होता नहीं खाली ...." जिसे आज के सन्दर्भ में अगर इस तरह "बदल जाये अगर पार्टी, घोटाले नहीं होंगे कम..." गुनगुनाया जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। प्रधानमन्त्री कहते हैं, "न खाऊंगा, न खाने दूंगा", लेकिन उन्हीं की पार्टी के मन्त्री घोटाले में लिप्त हो रहे हैं। जिस तरह अकेला चना भाड़ नहीं झोंक सकता, ठीक उसी भाँति अकेला मोदी कुछ नहीं कर सकता। और इस बात को अक्सर अपने लेखों में लिखता रहता हूँ।
उन्होंने विधानसभा में कहा कि, 3,19,400 चूहों को मारने के लिए जिस कंपनी को ठेका दिया गया था, उसने महज सात दिनों में यह काम कैसे पूरा कर लिया ?
उन्होंने बजट मांगों पर चर्चा के दौरान कहा कि, बृहन्मुंबई महानगरपालिका यानी बीएमसी ने शहर में छह लाख चूहों को मारने के लिए दो साल का समय लिया था।
खडसे ने 22 मार्च को विधान सभा में बोलते हुए सवाल उठाया था कि मंत्रालय में 3,19,400 चूहों को मारने का कॉन्ट्रैक्ट कंपनी ने केवल सात दिनों में कैसे पूरा कर दिया? जिसके जवाब में लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने कहा कि 3,19,400 जहर की गोलियां चूहों को मारने के लिए मंत्रालय में रखी गई थीं, ये चूहों के मरने की संख्या नहीं है।
खडसे ने दावा किया, ‘एक सर्वेक्षण में पाया गया कि, मंत्रालय में 3,19,400 चूहे हैं। एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट ने चूहों को मारने के लिए ठेका दिया। ठेका पाने वाली कंपनी को छह महीने का समय दिया गया। परंतु उसने महज सात दिनों में इस काम को अंजाम देने का दावा किया है।’
उन्होंने कहा,‘ इसका अर्थ है कि, एक दिन में 45,628.57 चूहे मारे गए । उनमें 0.57 अवश्य ही नवजात रहे होंगे।’ इस पर सदन में ठहाके गूंज उठे।
उन्होंने कहा कि इसका यह मतलब भी है कि कंपनी ने हर मिनट 31.68 चूहे मारे । उनका वजन लगभग 9125.57 कि.ग्रा होगा और मरे हुए चूहों को मंत्रालय से ले जाने के लिए रोजाना एक ट्रक की जरूरत पड़ी होगी । परंतु यह नहीं पता कि उन्हें कहां फेंका गया।
पूर्व राजस्व मंत्री ने हल्के फुल्के अंदाज में कहा कि सरकार किसी कंपनी को यह काम सौंपने की बजाय इस काम के लिए 10 बिल्लियों को लगा सकती थी।
उन्होंने आरोप लगाया कि मंत्रालय के परिसर में कंपनी द्वारा रखे गए जहर को खाकर धर्मा पाटिल नाम के एक किसान ने फरवरी में आत्महत्या कर ली थी। पाटिल ने भूमि अधिग्रहण को लेकर मुआवजा दिए जाने में अन्याय होने का आरोप लगाते हुए मंत्रालय में जहर खा लिया था और कुछ देर बाद उसकी मौत हो गई थी।
खडसे ने कहा कि इस बारे में कोई सूचना नहीं है कि क्या कंपनी को जहर का उपयोग करने की अनुमती थी, या नहीं। और क्या कंपनी को मंत्रालय में जहर का भंडार रखने की अनुमती थी।
उन्होंने जांच की मांग करते हुए कहा कि यह बहुत आश्चर्यजनक है कि इस कंपनी ने महज सात दिनों में तीन लाख से अधिक चूहों को मार दिया। कंपनी के दावे पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
महाराष्ट्र की चूहा कथा: चूहामार कंपनी के फंदे में फडणवीस सरकार, उठ रहे सवाल
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| खोदा पहाड़ निकला चूहा' कहावत तो आपने सुनी होगी, लेकिन 'चूहे से निकला घोटाला' |
महाराष्ट्र में चूहों को लेकर राज्य सरकार को फजीहत का सामना करना पड़ रहा है। आपको भी अपने घर में कभी न कभी चूहों से परेशान होना पड़ा होगा। हो भी क्यों न! चूहे ऐसा नुकसान कर जाते हैं, जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते। अपने आरी जैसे पैने दातों के दम पर चूहे लकड़ी तक को कुरेद देते हैं। चूहों ने महाराष्ट्र के विधानसभा भवन 'मंत्रालय' में भी कोहराम मचाया हुआ है। लेकिन यह कोहराम चूहों की वजह से नहीं, चूहों को पकड़ने और मारने को लेकर मचा है। 'खोदा पहाड़ निकला चूहा' कहावत तो आपने सुनी होगी, लेकिन 'चूहे से निकला घोटाला' महाराष्ट्र में इन दिनों सुर्खियों में है। चलिए जानें क्या है मंत्रालय की पूरी चूहा कथा...
वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व मंत्री एकनाथ खडसे ने गुरुवार 22 मार्च से शुरू हुए विधानसभा सत्र में एक सनसनीखेज खुलासा किया। इस वरिष्ठ भाजपा नेता ने दस्तावेजों के आधार पर आरोप लगाया कि सामान्य प्रशासन विभाग ने प्रति मिनट 31 की दर से चूहों का सफाया किया। बता दें कि यह विभाग मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस खुद संभालते हैं। उन्होंने विभाग पर मंत्रालय में चूहे मारने के संबंध में टेंडर जारी करने को लेकर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया।
सरकार का पक्ष भी जान लेंअपने ही नेता एकनाथ खडसे के आरोपों से आहत महाराष्ट्र सरकार के पीडब्ल्यूडी सचिव ने कहा, विभाग ने साल 2016 में मंत्रालय और इसकी एनेक्सी बिल्डिंग से चूहों को मारने या कंट्रोल करने के लिए दो टेंडर जारी किए थे। इसके तहत चूहे मारने के लिए 3,19,400 गोलियां खरीदी गईं, न कि इतने चूहे मारे गए। पीडब्ल्यूडी ने यह भी साफ किया कि प्रति गोली 1.5 रुपये खर्च हुआ और इस तरह से इस पूरे कॉन्ट्रैक्ट पर 4,79,100 रुपये खर्च हुए।
कहां है चूहामार कंपनी?विभाग से मंत्रालय में चूहे मारने के लिए जिस कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट दिया गया उसे लेकर एक के बाद एक खुलासे हो रहे हैं। 'विनायक को-ऑपरेटिव लेबर ऑर्गेनाइजेशन' ही वह कंपनी है, जिसे मंत्रालय से चूहों के सफाए का टेंडर जारी हुआ था। एक अंग्रेजी चैनल के अनुसार जब उन्होंने कंपनी के पते को खंगाला तो यह दक्षिण मुंबई के मझगांव में सूर्यकुंड को-ऑप हाउसिंग सोसाइटी का था। इस एड्रेस पर शेडगे परिवार रहता है, जिसका दावा है कि वह 45 साल से इसी पते पर रह रहा है। उनके अनुसार उनके घर का कोई भी सदस्य ऐसी किसी कंपनी से जुड़ा नहीं है। सरकार का दावा है कि चूहेमार कंपनी ने 3 लाख से ज्यादा चूहामार गोलियों का इस्तेमाल किया, लेकिन कंपनी के फर्जी पते को लेकर सरकार फंसती दिख रही है।
महाराष्ट्र सीएमओ में रोजाना पी जाती है 18, 500 कप चाय, तीन करोड़ 34 लाख बना बिल
महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री कार्यालय रोजाना 18,500 कप चाय पी जाता है।आरटीआई के माध्यम से सामने आई इस जानकारी को मुंबई कांग्रेस ने एक घोटाला करार दिया है। मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरुपम ने हुए कहा कि दो साल पहले मुख्यमंत्री कार्यालय में 57,99,000 रुपये चाय पर खर्च हुए थे। उसके अगले साल यह खर्च एक करोड़, 20 लाख हो गया. 2017-18 में मुख्यमंत्री कार्यालय ने चाय पर तीन करोड़ 34 लाख रुपये के लगभग खर्च किया। यदि एक साल में इतना खर्च होता है, तो महीने में औसतन 27 लाख रुपये और प्रतिदिन लगभग 92,000 रुपये का खर्च चाय पर हो रहा है।
पांच हजार से अधिक लोग नहीं आते हैं कार्यालय में
निरुपम ने यह भी सवाल किया है कि यदि एक आगंतुक दो कप चाय भी पीता हो, तो क्या यह संभव है कि रोज 9,000 मेहमान मुख्यमंत्री कार्यालय में आते होंगे। उन्होंने कहा कि पूरे विभाग में 5000 से ज्यादा लोग नहीं आते. तो आखिर कौन कर रहा है यह घोटाला।
चाय पर चर्चा के बाद, चाय पर खर्चा
मालूम हो कि तीन वर्ष में मुख्यमंत्री कार्यालय में चाय पर हुए खर्च में 577 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष इसे मुख्यमंत्री कार्यालय का चाय घोटाला करार देते हुए कहते हैं कि चाय नहीं पी जा रही है। चाय के नाम पर सिर्फ बिल भरकर घोटाला किया जा रहा है।मुख्यमंत्री कार्यालय पर सवाल उठाते हुए संजय निरुपम ने कहा कि ‘‘यह कैसे संभव है?उन्होंने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर सवाल उठाते हुए पूछा कि, सीएम किस प्रकार की चाय पीते हैं, क्योंकि मैंने सिर्फ ग्रीन टी, येलो टी और इसी तरह के कुछ नाम सुने हैं।’’ निरुपम ने आगे कहा कि पता नहीं सीम कौन सी चाय पीते हैं। राज्य में किसान रोज आत्महत्या कर रहा है और सरकार चाय पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं।
संजय निरुपम ने इससे पहले चूहा घोटाले की ओर इशारा करते हुए कहा कि पहले कहा गया कि मंत्रालय में बड़ी मात्रा में चूहे होने की बात कही गई थी क्या वही चूहे चाय तो नहीं पी गए!
जिस प्रकार बीजेपी के ही पूर्व मंत्री एकनाथ खडसे के अनुसार एक सप्ताह में ही 3,19,400 चूहे मंत्रालय में मार डाले गए। निरुपम ने कटाक्ष करते हुए कहा है कि बीजेपी वालों को चाय से कुछ ज्यादा ही लगाव है। मोदी खुद को चाय वाला बताकर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए। उसके बाद उन्होंने चाय पर चर्चा का आयोजन शुरू कर दिया। अब मुख्यमंत्री ने चाय पर खर्चा कर दिया। यानी चाय पर चर्चा से चाय पर खर्चा, वह भी अनाप-शनाप।
संजय निरुपम ने इससे पहले चूहा घोटाले की ओर इशारा करते हुए कहा कि पहले कहा गया कि मंत्रालय में बड़ी मात्रा में चूहे होने की बात कही गई थी क्या वही चूहे चाय तो नहीं पी गए!
जिस प्रकार बीजेपी के ही पूर्व मंत्री एकनाथ खडसे के अनुसार एक सप्ताह में ही 3,19,400 चूहे मंत्रालय में मार डाले गए। निरुपम ने कटाक्ष करते हुए कहा है कि बीजेपी वालों को चाय से कुछ ज्यादा ही लगाव है। मोदी खुद को चाय वाला बताकर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए। उसके बाद उन्होंने चाय पर चर्चा का आयोजन शुरू कर दिया। अब मुख्यमंत्री ने चाय पर खर्चा कर दिया। यानी चाय पर चर्चा से चाय पर खर्चा, वह भी अनाप-शनाप।


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