आर.बी.एल.निगम,वरिष्ठ पत्रकार
16 प्रदेशों में राज्यसभा के लिए हुए चुनावों में बीजेपी ने जबर्दस्त कामयाबी हासिल की, लेकिन इस सदन में अब भी वो बहुमत का आंकड़ा पूरा नहीं कर पाई। मतलब ये कि भले ही लोकसभा में बीजेपी के पास भारी बहुमत है, राज्यसभा में अब भी उसे कोई बिल पास करवाने के लिए दूसरी पार्टियों के भरोसे ही रहना पड़ेगा। मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव में जो वादे किए थे उनमें से कई इसी कारण अब तक पूरे नहीं हो सके हैं। राज्यसभा में कुल 245 सदस्य होते हैं। बहुमत के लिए 123 सदस्य होना जरूरी है। ताजा नतीजों के बाद अब बीजेपी के 86 सांसद हो गए हैं, जबकि एनडीए को मिला लें तो 104 सांसद हुए। यानी अब भी बहुमत से करीब 20 पीछे। दूसरी तरफ कांग्रेस के सांसदों की संख्या 38 हो गई है, जबकि उसके सहयोगियों को मिलाकर 56 हुए। बाकी अन्य पार्टियों के सांसद हैं।
2019 से पहले बहुमत के चांस नहीं
यह साफ है कि मौजूदा लोकसभा के कार्यकाल में बीजेपी को राज्यसभा में बहुमत नहीं मिलेगा। इसके लिए उसे एक बार फिर 2019 के लोकसभा चुनावों में अच्छे बहुमत से जीतना जरूरी होगा। साथ ही इस साल और अगले साल में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी अच्छा प्रदर्शन करना होगा। मतलब ये कि बीजेपी के लिए 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले अपने हिदुत्व एजेंडे को आगे बढ़ाना मुश्किल होगा। राम मंदिर, समान नागरिक कानून, कश्मीर से धारा 370 हटाने और पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने जैसे वादों को पूरा करने के लिए सरकार को संसद में संविधान संशोधन करना जरूरी होगा। इसके लिए सिर्फ लोकसभा ही नहीं, बल्कि राज्यसभा में बहुमत भी जरूरी है।
मोदी को दूसरा कार्यकाल जरूरी
जनता ने जिस काम के लिए बीजेपी की सरकार को चुना था वो इसलिए नहीं हो पा रहा है क्योंकि सरकार उनके लिए जरूरी बिलों को संसद में पास ही नहीं करवा सकती। ऐसे तमाम बिल लोकसभा में तो पास हो जाते हैं, लेकिन राज्यसभा में कांग्रेस उन्हें अटका देती है। तीन तलाक पर पाबंदी का बिल भी इन्हीं में से एक है। ऐसे में बीजेपी के लिए 2019 का चुनाव जीतना जरूरी है। क्योंकि इसके बाद ही मोदी अपने असली अंदाज में काम कर पाएंगे। फिलहाल हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, झारखंड और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव 2019 के आम चुनावों के फौरन बाद होंगे, जबकि आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, सिक्किम और तेलंगाना का चुनाव लोकसभा चुनावों के साथ होगा। इसके अलावा 2019 लोकसभा चुनावों से ठीक पहले 2018 के आखिर में छत्तीगढ़, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मिजोरम और राजस्थान के विधानसभा चुनाव होने हैं। इन सभी में बीजेपी को अच्छा प्रदर्शन करना जरूरी होगा। ताकि राज्यसभा में सांसदों की कमी पूरी हो सके।
बहुमत के बावजूद मोदी के पैरों में क्यों है बेड़ी!
बीजेपी 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ चुनी गई, लेकिन एक बदकिस्मती उसके साथ बनी रही। राज्यसभा में पार्टी का बहुमत नहीं है और ये स्थिति अभी कम से कम अगले साल फरवरी-मार्च तक बने रहने वाली है। राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार के कई बेहद अहम बिल अटके पड़े हैं। इन बिलों को लेकर कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों का रवैया अड़ंगेबाजी वाला है। बीते तीन साल में सरकार उन्हीं बिलों को राज्यसभा से पास करवा पाई है, जिनको लेकर आम सहमति बन सकी। दिक्कत यह भी है कि राज्यसभा में जब बीजेपी मजबूत होगी तो उसकी सरकार के 4 साल पूरे हो चुके होंगे। इसके बाद वो राज्यसभा में सबसे बड़ी पार्टी तो होगी, लेकिन बहुमत नहीं होगा। दरअसल इस पूरे कार्यकाल में राज्यसभा में बहुमत का आंकड़ा पूरा होने के आसार नहीं है।
राम मंदिर भी इसीलिए अटका है
2015 में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने एक बार कहा था कि राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण राम मंदिर का काम भी फंसा हुआ है। अगर केंद्र सरकार चाहे कि कानून बनाकर मंदिर का रास्ता साफ कर दे तो वो ऐसा नहीं कर पाएगी, क्योंकि राज्यसभा में वो बिल गिर जाएगा। लेकिन अप्रैल 2018 के बाद सरकार इसकी कोशिश कर सकती है। इसके अलावा घोषणापत्र में किए गए कुछ और अहम वादे जैसे कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करने वाली धारा 370 को खत्म करना और समान नागरिक संहिता भी शामिल हैं। सरकार राज्यसभा की इस पेचीदा स्थिति के बारे में हिंदू संगठनों को जानकारी भी दे चुकी है और इस बात को समझाया है कि क्यों बहुमत होने के बावजूद मोदी सरकार के पैरों में अब तक बेड़ी बंधी हुई है।
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