सीपीएम नेता रॉबिन देब पश्चिम बंगाल से राज्यसभा चुनाव में वामफ्रंट के उम्मीदवार हैं. 294 सदस्यीय विधानसभा में वामफ्रंट के फिलहाल 30 विधायक हैं. वैसे जीतकर 32 आये थे. राज्यसभा की एक सीट जीतने के लिए 49 विधायकों का वोट मिलना जरूरी है. दूसरी तरफ सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस की महेशतला से विधायक कस्तूरी दास के निधन के बाद तृणमूल कांग्रेस विधायकों की संख्या 213 है. ऐसे में तृणमूल कांग्रेस के चार उम्मीदवारों को वोट देने के बाद भी तृणमूल कांग्रेस के पास 17 वोट अतिरिक्त है. तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी पहले ही घोषणा कर चुकी हैं कि पांचवें व अंतिम सीट के लिए अतिरिक्त 17 वोट कांग्रेस उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी को दिया जाएगा. कांग्रेस विधायकों की संख्या वैसे तो 44 थी लेकिन अभी भी आधिकारिक तौर पर 42 है. इसमें भी कुछ विधायक तृणमूल कांग्रेस से संपर्क में हैं. ऐसे में कांग्रेस उम्मीदवार का जीतना भी तय है. अब सवाल है कि फिर हारी हुई बाजी क्यों लड़ रहे हैं रॉबिन देब व सीपीएम.
रॉबिन देब ही क्यों और कोई क्यों नही
राजनीतिक विश्लेषकों के जेहन में कई सवाल हैं. पहला, सीपीएम के तपन कुमार सेन रिटायर हो रहे हैं. यदि पार्टी यह सीट जीत सकती है तो तपन कुमार सेन को ही क्यों नही चुनाव में खड़ा किया गया ? दूसरा, यदि प्रतीकात्मक या नैतिक लड़ाई की ही बात है तो जब सीताराम येचुरी रिटायर हुए तो पार्टी चुनाव में क्यों नहीं गई थी ? इन सारे सवालों का जवाब ढूंढ़ने के लिए रिपब्लिक हिंदी ने रॉबिन देब से ही संपर्क किया. हालांकि वह भी सवालों का कोई जवाब नहीं दे पाए.जीत की संभावना पर भी चुप्पी साध गए. दरअसल, रॉबिन देब सीपीएम के वह नेता हैं जिन्हें पार्टी जब जहां इच्छा या जरूरत महसूस करती है, इस्तेमाल करती है. 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में कोलकाता दक्षिण से ममता बनर्जी के विरुद्ध उम्मीदवार भी बना चुकी है.
पश्चिम बंगाल से राज्यसभा में सीपीएम का बंद हो सकता है दरवाजा
राज्यसभा की 58 सीटों के लिए 23 मार्च को जब देश के 16 राज्यों में मतदान होगा. उसमें पश्चिम बंगाल की 5 सीटें भी शामिल होंगी. इन पांच सीटों में से चार पर तृणमूल कांग्रेस और एक सीट पर सीपीएम की टिकट से राज्यसभा में पहुंचे थे. हालांकि इसमें मुकुल रॉय भी शामिल हैं, जिन्होंने भाजपा जॉइन करने के पहले 11 अक्टूबर”17 को राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. सभी पांचों का कार्यकाल 2 अप्रैल”18 को समाप्त हो रहा है. इस चुनाव में तस्वीर वैसे कुछ ख़ास नहीं बदलेगी, टीएमसी विधानसभा में अपनी संख्याबल को देखते हुए इस दफे भी 4 लोगों को राज्यसभा में भेजने में कामयाब रहेगी. दूसरी तरफ सम्भव है कि सीपीएम का पश्चिम बंगाल से कोई प्रतिनिधि न रहे. सीपीएम के रिटायर हो रहे तपन कुमार सेन को दोबारा भेजने के लिये वामफ्रंट के पास संख्याबल नहीं है. हालांकि कांग्रेस और सीपीएम आपसी सहमति व तालमेल से एक सीट हासिल कर सकते हैं. बावजूद इसके पूरी संभावना है कि पश्चिम बंगाल से राज्यसभा में सीपीएम का दरवाजा बंद हो सकता है. सीताराम येचुरी पहले ही रिटायर हो चुके हैं. ऋतुब्रतो बनर्जी को पार्टी निकाल चुकी है और तपन कुमार सेन रिटायर ही हो रहे हैं.
राज्यसभा की 58 सीटों के लिए 23 मार्च को जब देश के 16 राज्यों में मतदान होगा. उसमें पश्चिम बंगाल की 5 सीटें भी शामिल होंगी. इन पांच सीटों में से चार पर तृणमूल कांग्रेस और एक सीट पर सीपीएम की टिकट से राज्यसभा में पहुंचे थे. हालांकि इसमें मुकुल रॉय भी शामिल हैं, जिन्होंने भाजपा जॉइन करने के पहले 11 अक्टूबर”17 को राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. सभी पांचों का कार्यकाल 2 अप्रैल”18 को समाप्त हो रहा है. इस चुनाव में तस्वीर वैसे कुछ ख़ास नहीं बदलेगी, टीएमसी विधानसभा में अपनी संख्याबल को देखते हुए इस दफे भी 4 लोगों को राज्यसभा में भेजने में कामयाब रहेगी. दूसरी तरफ सम्भव है कि सीपीएम का पश्चिम बंगाल से कोई प्रतिनिधि न रहे. सीपीएम के रिटायर हो रहे तपन कुमार सेन को दोबारा भेजने के लिये वामफ्रंट के पास संख्याबल नहीं है. हालांकि कांग्रेस और सीपीएम आपसी सहमति व तालमेल से एक सीट हासिल कर सकते हैं. बावजूद इसके पूरी संभावना है कि पश्चिम बंगाल से राज्यसभा में सीपीएम का दरवाजा बंद हो सकता है. सीताराम येचुरी पहले ही रिटायर हो चुके हैं. ऋतुब्रतो बनर्जी को पार्टी निकाल चुकी है और तपन कुमार सेन रिटायर ही हो रहे हैं.
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