| फोटो में लेफ्ट से (क्लॉकवाइज) - सरदार भगत सिंह, जतेंद्रनाथ दास, बटुकेश्वर दत्त, शिव वर्मा, जयदेव कपूर, किशोरी लाल, सुख देव और राजगुरु। |
23 मार्च देशभक्त भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत का दिन है। इसी दिन तीनों को अंग्रेजों ने फांसी पर लटकाया था। इस दिन को शहीद दिवस के रूप में ऑब्जर्व तो किया जाता है, लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि भारत सरकार ने शहादत के 88 साल बाद तक इन तीनों को 'शहीद' का दर्जा नहीं दिया है। दिल्ली के MLA मनजिंदर एस सिरसा ने ट्विटर पर पीएम नरेंद्र मोदी से इन्हें शहीद का दर्जा देने की रिक्वेस्ट की है।
फैसले वाले कागज पर लिखा था 'ओम'
भगत सिंह और उनके साथियों को लाहौर लेजिस्लेटिव असेंबली में बम ब्लास्ट करने के लिए फांसी की सजा सुनाई गई थी। अप्रैल 1929 में हुए लाहौर ब्लास्ट कॉन्सपिरेसी केस में कुल 8 आरोपी थे, जिनमें से तीन को फांसी, 3 को देश निकाला और एक को बरी किया गया था। एक की जेल में ही मौत हो गई थी। सजा अक्टूबर 1930 में सुनाई गई थी।
जिस कागज पर इस केस का फैसला लिखा गया था, उस पर सबसे ऊपर इंग्लिश में 'ओम' लिखा गया था।
जिस कागज पर इस केस का फैसला लिखा गया था, उस पर सबसे ऊपर इंग्लिश में 'ओम' लिखा गया था।
किस को दी गई कौन-सी सजा
सरदार भगत सिंह - फांसी
| भगत सिंह का जेलर द्वारा लिखा डेथ सर्टिफिकेट भी सोशल मीडिया पर वायरल है। इसमें फांसी की एक-एक डीटेल दी गई है। |
श्रीमान राजगुरु - फांसी
एम. सुख देव - फांसी
एम. किशोरी लाल - देश निकाला
एम. जयदेव कपूर - देश निकाला
शिव वर्मा - देश निकाला
बटुकेश्वर दत्त - केस खारिज
जतेंद्रनाथ दास - जेल में मौत
एम. सुख देव - फांसी
एम. किशोरी लाल - देश निकाला
एम. जयदेव कपूर - देश निकाला
शिव वर्मा - देश निकाला
बटुकेश्वर दत्त - केस खारिज
जतेंद्रनाथ दास - जेल में मौत
एक घंटे तक लटकाई गई थी भगत सिंह की बॉडी
तीनों को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी। फांसी देने वाले जेलर ने अपनी रिपोर्ट कुछ इस प्रकार से लिखी थी...
"मैं प्रमाणित करता हूं कि भगत सिंह को दी गई फांसी की सजा तामील कर दी गई है। 23 मार्च 1931 को लाहौर की सेंट्रल जेल में भगत सिंह को गले से जान निकलने तक रस्सी से लटकाया गया। उसकी बॉडी पूरे एक घंटे तक लटकती रही। जब तक डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित नहीं कर दिया, तब तक बॉडी को नीचे नहीं उतारा गया। इस दौरान कोई दुर्घटना या गलती नहीं हुई।"
11 घंटे पहले दी गयी फाँसी
भारत के वीर सपूत क्रांतिकारी शहीद-ए-आजम भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव 23 मार्च 1931 में देश की खातिर हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया था. 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल असेंबली में बम फेंके. घटना के बाद भगत सिंह वहां से भागने के बजाय वह खड़े रहे और खुद को अंग्रेजों के हवाले कर दिया. करीब दो साल जेल में रहने के बाद 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी पर चढ़ा दिया गया था..
केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने के जिस मामले में भगत सिंह को फांसी की सजा हुई थी उसकी तारीख 24 मार्च तय की गई थी. लेकिन इस दिन को अंग्रेजों के उस डर के रूप में भी याद किया जाना चाहिए, जिसके चलते इन तीनों को 11 घंटे पहले ही फांसी दे दी गई थी.
तीनों वीरों की फांसी की सजा पूरे देश में आग की तरह फैल गई. जिसके बाद फांसी को लेकर जिस तरह से प्रदर्शन और विरोध जारी था उससे अंग्रेजी सरकार डरी हुई थी. जिसका नतीजा रहा कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को चुपचाप तरीके से तय तारीख से एक दिन पहले ही फांसी दे दी गई थी.
जानें क्या हुआ फांसी के दिन
जिस वक्त भगत सिंह जेल में थे उन्होंने कई किताबें पढ़ीं थी. 23 मार्च 1931 को शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके दोनों साथी सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई थी. फांसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी ही पढ़ रहे थे. फांसी से पहले भगत सिंह किताब ही पढ़ रहे थे. भगत सिंह को पढ़ना बहुत पसंद था. वह एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिसके पीछे पूरी अंग्रेज हुकूमत पड़ी थी. उनकी किताबों को लेकर दीवानगी हैरान करती है. लेकिन वह अपनी जिंदगी के आखिरी वक्त तक नई-नई किताबें पढ़ते रहे. वो किताबें पढ़ते वक्त नोट्स भी बनाया करते थे, जो कि आज ऐतिहासिक दस्तावेज की शक्ल ले चुके हैं. उन नोट्स से उस वक्त के हालात और भगत सिंह की देश और समाज के लिए सोच का पता चलता है.
अवलोकन करें:--
सेंट्रल जेल, लाहौर
दस्तावेज बताते हैं कि भगत सिंह जब जेल में थे, तब भी खूब सारी किताबें पढ़ रहे थे. वो अक्सर अपने दोस्तों को चिट्ठी लिखकर किताबें मंगाते थे. ऐसी ही एक चिट्ठी उन्होंने लाहौर जेल से अपने बचपन के साथी जयदेव के नाम लिखी. ये चिट्ठी इस क्रांतिकारी की किताबों की भूख का प्रमाण है. इस पत्र से यह भी मालूम चलता है कि भगत अपने साथियों के अध्ययन के प्रति भी सचेत थे और जेल से ही यथासंभव उनकी मदद करने की कोशिश करते रहते थे.
कृपया निम्नलिखित किताबें द्वारकानाथ पुस्तकालय से मेरे नाम पर जारी करवाकर शनिचरवार को कुलबीर के हाथ भेज देना:
-Materialism( karl liebknecht)
-Why men fight (B russell)
– The Soviets At Work
– Collapse of the Second International
– Left-Wing Communism
– Field, Factories and Workshops
– Land Revolution in Russia
– Mutual Aid (Prince Kropotkin)
– Civil War in France(Marx)
– Spy (Upton Sinclair)
उन्होंने लिखा कृपया यदि हो सके तो मुझे एक और किताब भेजने का प्रबंध करना, जिसका नाम Historical Materialism (Bukharin) है. (यह पंजाब पब्लिक लाइब्रेरी से मिल जाएगी) और पुस्तकालय अध्यक्ष से मालूम करना कि कुछ किताबें क्या बोस्ट्रल जेल गई हैं? उन्हें किताबों की बहुत जरूरत है. उन्होंने सुखदेव के भाई जयदेव के हाथों एक सूची भेजी थी, लेकिन उन्हें अभी तक किताबें नहीं मिली हैं. अगर उनके (पुस्तकालय) के पास कोई सूची न हो तो कृपया लाला फिरोजचंद से जानकारी ले लेना और उनकी पसंद के अनुसार कुछ रोचक किताबें भेज देना. इस रविवार जब मैं वहां जाऊं तो उनके पास किताबें पहुंची हुई होनी चाहिए. कृपया यह काम किसी भी हालत में कर देना. इसके साथ ही Punjab Peasants in Prosperity and Debt by Darling और इसी तरह की एक दो अन्य किताबें किसान समस्या पर डा. आलम के लिए भेज देना.
आशा है तुम इन कष्टों को ज्यादा महसूस न करोगे. भविष्य के लिए तुम्हें यकीन दिलाता हूं कि तुम्हें कभी कोई कष्ट नहीं दूंगा. सभी मित्रों को मेरी याद कहना और लज्जावती जी को मेरी ओर से अभिवादन. उम्मीद है कि अगर दत्त की बहन आईं तो वो मुझसे मुलाकात करने का कष्ट करेंगी.
आदर के साथ
भगत सिंह
आखिरी दिन लेनिन को पढ़ रहे थे भगत सिंह
आपको बता दें, जिस वक्त भगत सिंह जेल में थे उन्होंने कई किताबें पढ़ीं थी. 23 मार्च 1931 को शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके दोनों साथी सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई थी. फांसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी ही पढ़ रहे थे.
जब कहां ‘ठीक है अब चलो’
भगत सिंह को जब जेल के अधिकारियों ने यह सूचना दी कि उनकी फांसी का समय आ गया है तो उन्होंने कहा था- ‘ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले. फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले – ‘ठीक है अब चलो’.
मेरा रंग दे बसन्ती चोला, मेरा रंग दे
मेरा रंग दे बसन्ती चोला
माय रंग दे बसंती चोला
ऐसे थे भगत सिंह
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था. यह कोई सामान्य दिन नहीं था, बल्कि इसे भारतीय इतिहास में गौरवमयी दिन के रूप में जाना जाता है. अविभाजित भारत की जमीन पर एक ऐसे शख्स का जन्म हुआ जो शायद इतिहास लिखने के लिए ही पैदा हुआ था. जिला लायलपुर (अब पाकिस्तान में) के गांव बावली में क्रांतिकारी भगत सिंह का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था. भगत सिंह को जब ये समझ में आने लगा कि उनकी आजादी घर की चारदीवारी तक ही सीमित है तो उन्हें दुख हुआ. वो बार-बार कहा करते थे कि अंग्रजों से आजादी पाने के लिए हमें मांगने की जगह रण करना होगा.
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