लाख भाजपा द्वारा समाजवादी पार्टी के विवादित बोलों के लिए चर्चित नरेश अग्रवाल को पार्टी में लिए जाने पर आलोचना हो रही हो, लेकिन जब सियासती शतरंज बिछ चुकी हो, वज़ीर को मात देने की बात हो, तो त्रिमूर्ति "मोदी-योगी-अमित" कहाँ पीछे रहने वाली। साम, दाम, दण्ड, भेद अपना कर प्यादों को मात देने में तल्लीन है ये त्रिमूर्ति। राज्य सभा चुनाव के लिए ऐसी बिसात बिछा दी हैं, जहाँ प्यादे अपने आपको बचाने में लग गए। नरेश अग्रवाल का ईंट, चिड़ी, पान और हुकम के इक्के की तरह इस्तेमाल हो रहा है। और नरेश अग्रवाल की साँप छछूंदर वाली स्थिति हो गयी है।
यूपी में राज्यसभा की दस सीटों के लिए हो रहे चुनाव में बीजेपी की आठ और सपा की एक सीट पक्की है, लेकिन दसवीं सीट के लिए बीजेपी की दावेदारी ने पहले के समीकरण ध्वस्त कर दिए हैं. वैसे तो बीजेपी के 11 उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय का कहना है कि चुनाव में नौ ही रहेंगे. दो का नाम वापस हो जाएगा. बीजेपी के पास अतिरिक्त 28 विधायकों के मत बच रहे हैं और उसे जीत के लिए नौ और मतों की जरूरत होगी. इसके लिए बीजेपी ने ऐसा चक्रव्यूह रचा है कि विरोधी भी गणित समझ नहीं पा रहे हैं.
एक सीट के लिये 37 विधायकों के मतों की है जरूरत
विधानसभा में सहयोगी दलों समेत इस समय बीजेपी के पास 324 (बिजनौर के नूरपुर के बीजेपी विधायक लोकेंद्र सिंह के निधन से एक संख्या घटी) हैं. एक सीट के लिए औसत 37 विधायकों के मत की जरूरत है. सदन में निर्दलीय रघुराज प्रताप सिंह और अमन मणि त्रिपाठी तथा निषाद के विजय मिश्र हैं. बीजेपी के एक दिग्गज इन तीनों मतों पर अपना ही दावा करते हैं. यह माना जा रहा है कि रघुराज प्रताप सिंह अगर बीजेपी के पक्ष में हुए तो कई विधायकों को अपने साथ जोड़ सकते हैं.
दसवीं सीट पर होगी टसल
राज्यसभा चुनाव की शुरुआत में सपा-बसपा के साथ गठबंधन के बाद नई सियासी पारी शुरू हुई. सपा ने जया बच्चन को उम्मीदवार बनाया और बसपा को समर्थन देने का एलान किया. बसपा की ओर से भीमराव अंबेडकर उम्मीदवार बनाए गए. कांग्रेस ने भी भीमराव को समर्थन देने की घोषणा कर दी. अगर विधायकों के मत को देखें तो टसल 10वीं सीट पर ही है. जया बच्चन के मत आवंटित करने के बाद सपा के दस वोट बच रहे हैं. बसपा के 19, सपा के 10, कांग्रेस के 7 और रालोद के एक वोट मिलाकर कुल 37 हो रहे हैं. सपा-बसपा का दावा है कि उनके वोट पूरे हो रहे हैं, इस बीच बीजेपी ने सपा सांसद नरेश अग्रवाल को पार्टी में शामिल कर अपना दांव दिखा दिया है.
नरेश के भाजपाई बनते ही बदल गये हैं समीकरण
समाजवादी पार्टी के महासचिव रहे नरेश अग्रवाल के पुत्र नितिन अग्रवाल सपा के विधायक हैं. नरेश के भाजपाई बनते ही समीकरण बदल गया है. वैसे तो नितिन सोमवार को विधानसभा सत्र में नहीं आए और अभी चुप्पी साधे हैं, लेकिन माना यही जा रहा है कि वह बीजेपी के खेमे में होंगे. नरेश तो अब बीजेपी के खुले पत्ते हैं, लेकिन विपक्ष में कई विधायक बीजेपी के पाले में जा सकते हैं.
क्रॉस वोटिंग का खतरा है बरकरार
खतरा सिर्फ विपक्ष के लिए ही नहीं है. बीजेपी के रणनीतिकार चौतरफा चौकन्ना हैं. बीजेपी और सहयोगी दलों के बीच कहीं सेंध न लग जाए, इसलिए भी एक-एक विधायक पर नजर रखी जा रही है. विपक्ष की निगाह बीजेपी के कुछ असंतुष्टों के अलावा उनके सहयोगी दलों पर भी है. विधायकों के समूह की निगरानी के लिए पदाधिकारियों और मंत्रियों को जिम्मेदारी भी सौंपी गई है. किस उम्मीदवार को कौन-कौन विधायक वोट देंगे, बीजेपी इसका भी आवंटन करेगी.
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