यह बात अपने आप में चौंकाने वाली है की बसपा सुप्रीमो मायावती के दादा जी उनके मार्गदर्शक व आदर्श थे।और अपने पिता से नफरत करती थी और उनकी बातों को अनसुना कर दिया करती थीं। मायावती की मां रामरती ने लगातार 3 बेटियों को जन्म दिया था। बेटा न होने की वजह से मायावती के पिता प्रभुदास अपनी पत्नी को ताने दिया करते थे। यही नहीं, पड़ोसियों और रिश्तेदारों के दबाव में आकर उन्होंने वारिस के लिए दूसरी शादी तक करने का मन बना लिया था। मायावती के दादाजी ने प्रभुदास को दूसरी शादी करने से रोका था। वो कहते थे देखना ये बेटियां ही हमारा कुल आगे बढ़ाएंगी। यही वजह थी कि मायावती अपने पिता से नफरत और दादाजी से बेहद प्यार करती थीं।मायावती के पहले आइडल थे उनके दादाजी मंगलसेन। मंगलसेन अंग्रेजी सेना में सिपाही थे। सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान उन्होंने अंग्रेजों के लिए इटली में लड़ाई लड़ी थी।
इनका पैतृक गांव बादलपुर है जो उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले में स्थित है। बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने दिल्ली के कालिन्दी कॉलेज से एलएलबी किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने बीएड भी किया। अपने करियर की शुरुआत दिल्ली के एक स्कूल में एक शिक्षिका के रूप में की। उसी दौरान उन्होंने सिविल सर्विसेस की तैयारी भी की। वह अविवाहित हैं और अपने समर्थकों में ‘बहनजी’ के नाम से जानी जाती हैं।
साल 1984 में काशीराम ने बहुजन समाज पार्टी की शुरुआत की. मायावती ने उसी समय बीएसपी पार्टी ज्वाइन कर ली. मायावती ने अपने पूरे करियर के दौरान सरकारी और निजी सेक्टर में आरक्षण की मांग करती रहीं.भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हाराव ने मायावती के राजनीतिक करियर को लोकतंत्र का चमत्कार बताया था. साल 1995 को मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं. उस समय वो इतिहास में किसी भी राज्य की सबसे युवा महिला मुख्यमंत्री थीं. उस समय वो पहली महिला दलित मुख्यमंत्री बनी थीं.
राजनीतिक जीवन में चन्द्रावती से नामकरण हुआ मायावती
- मायावती का असली नाम चन्द्रावती था और इसी नाम से उनकी पढ़ाई-लिखाई हुई थी। लेकिन जब वे कांशीराम के संपर्क में आईं और सक्रिय राजनीति में भाग लेने लगीं तब कांशीराम ने उनका नाम मायावती रख दिया।
- 1977 में मायावती, कांशीराम के सम्पर्क में आयीं। वहीं से उन्होंने एक नेता बनने का निर्णय लिया। कांशीराम के संरक्षण में 1984 में बसपा की स्थापना के दौरान वह कांशीराम की कोर टीम का हिस्सा बनीं।
- मायावती ने अपना पहला चुनाव उत्तर प्रदेश में मुज़फ्फरनगर के कैराना लोकसभा सीट से लड़ा था। 3 जून 1995 को मायावती पहली बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। वे पहली दलित महिला हैं जो भारत के किसी राज्य की मुख्यमन्त्री बनीं। उन्होंने 18 अक्टूबर 1995 तक राज किया।
- बतौर मुख्यमंत्री इनका दूसरा कार्यकाल 21 मार्च 1997 से 21 सितंबर 1997 तक, तीसरा कार्यकाल 3 मई 2002 से 29 अगस्त 2003 तक और चौथी बार 13 मई 2007 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद ग्रहण किया। उन्होंने पूरे पांच साल तक राज किया, लेकिन 2012 में समाजवादी पार्टी से हार गयीं।
- कु. बहन मायावती ने जब से राजनीति में कदम रखा, तब से आज तक कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मायावती के आगे बढ़ते हुए राजनीति में उस समय के कुछ बसपा नेता जो बसपा के अन्दर ही रहकर मायवती से जलन रखने लगे तथा इनकी शिकायत कांशीराम से करने लगे।
- कांशीराम मायावती के क्रांतिकारी स्वभाव को जान चुके थे, इसलिये वे बिना परवाह किये बहन मायावती को बराबर आगे बढ़ाते गये।
- इससे चिढ़कर कुछ बसपा समर्थक नेता पार्टी तक छोड़ गये। मायावती तमाम विरोधों को झेलते हुए आगे बढ़ती गयी, जिससे इनका आत्मविश्वास बढ़ता गया और इनमें संघर्ष करने की क्षमता भी बढ़ती गयी।
- जिससे इनके विचार लौह की तरह मजबूत हो गये। जिसका परिणाम है कि पूरे भारत में नहीं बल्कि पुरे विश्व में बहनजी लोह महिला (आयरन लेडी) के रुप में स्थापित हो चुकी है।
- मायावती को पहली बार देश के सबसे बड़े राज्य उ.प्र. की मुख्यमंत्री बनने का अवसर प्राप्त है। भारतीय इतिहास एवं परंपरा को झूठा साबित करते हुए प्रथम दलित महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त किया। हिन्दू धर्म के अनुसार कोई दलित शासक बन ही नहीं सकता, वह केवल सेवा करने के लिए पैदा होता है। यह धारण भी सवर्णों की टूट गयी, मनुवादियों के पैर के नीचे से जमीन खिसक गयी।
- अछूतों के योग्यता पर हमेशा प्रश्न चिन्ह लगते थे कि दलित शासक नहीं बन सकता और नही अच्छा।
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