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समलैंगिक था बाबर!


आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
आज से 25 साल पहले 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित बाबरी मस्जिद के ढांचे को कार सेवकों ने ढहा दिया था। उसके बाद देश भर में साम्प्रदायिक दंगे हुए, जिसमें सैकड़ों लोगों की जान गई और कई लोग घायल हुए। कार सेवकों और हिन्दू संगठनों का मानना है कि जिस जगह बाबरी मस्जिद का ढांचा था, वह हिन्दुओं के आराध्यदेव श्रीराम की जन्मस्थली है। हालांकि, अभी तक यह विवाद नहीं सुलझ सका है। मामला सुप्रीम कोर्ट में है। 8 फरवरी, 2018 से सुप्रीम कोर्ट उस विवादित जगह के मालिकाना हक पर रोजाना सुनवाई करेगा।
अवलोकन करिये:--

ऐय्याश अकबर को महान बताने वाले इतिहासकारों का बहिष्कार हो
पिताश्री एम.बी.एल. निगम श्री केवल रतन मलकानी अस्सी के दशक में विश्व चर्चित पत्रकार श्री केवल रतन मलकानी, मुख्य सम्पादक और सम्पा...
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BY AGNIVEER - August 22, 2010 Babur was not a Muslim in first place. He would long have been stoned to death if he were to liv...
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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार बॉलीवुड के मशहूर गीतकार और पूर्व राज्यसभा सांसद जावेद अख्तर ने मुगलों को देशद्रोही बताने वालों पर जमकर हम...
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क्या आप जानते हैं कि ‘गाज़ी’ एक पदवी है जो किसी काफिर को मारने से मिलती है ! जानिए कि ‘अकबर’ ने यह ‘गाज़ी’ पदवी कैसे प्राप्त की और इतिहासकार...
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इस बीच, बाबरी मस्जिद और उसके तथाकथित निर्माता और हिन्दुस्तान में मुगल शासन की स्थापना करने वाले मुगल शासक बाबर के समलैंगिक होने का दावा किया जा रहा है। ‘द हिन्दू’ में छपे जिया उस सलाम के लेख में दिलीप हीरो की किताब ‘बाबरनामा’ का हवाला देते हुए मुगल शासक बाबर के बारे में लिखा गया है, “वह पढ़ सकता था, वह लिख सकता था, वह प्यार कर सकता था, वह वासना कर सकता था और वह लड़ भी सकता था!”
60 के दशक में एक हिन्दी फिल्म का यह गीत "रातभर का है मेहमान अँधेरा, किसके रोके रुका है सवेरा", और फिल्म "असली नकली" का यह गीत "लाख छुपाओ छुपना सकेगा, राज ये इतना गहरा, दिल की बात बता देगा, असली नकली चेहरा" आज दोनों ही गीत चरितार्थ हो रहे है। चाँदी के चंद टुकड़ों की खातिर इतिहासकारों ने अपना ज़मीर बेच कुर्सी के भूखे नेताओं ने गौरवशाली हिन्दू सम्राटों के इतिहास को धूमिल कर मुग़ल शासकों को महान बताया गया। मुग़लों के नाम के आज भी कसीदे पढ़े जाते हैं। ताकि मुसलमान तत्कालीन भारतीय जनसंघ यानि वर्तमान भारतीय जनता पार्टी को लोग मुस्लिम विरोधी समझ कांग्रेस को वोट देते रहे।
देश का दुर्भाग्य है कि वास्तविक इतिहास की बात करने वालों को फिरकापरस्त, दंगाई, साम्प्रदायिक और न जाने कितने नामों से सम्बोधित किया जाता रहा है। लेकिन भारत में सत्ता परिवर्तन ने भारत का ऐसा समय परिवर्तित कर रहा है कि समाचार-पत्रों ने मुग़लों के वास्तविक इतिहास को टटोलना प्रारम्भ कर दिया है। दोपहर को ऐसे ही रामजन्मभूमि पर कुछ तथ्य एकत्रित करने का प्रयास कर रहा था कि "Babur and Babri" लेख हाथ लग गया और अब कुछ और तलाश रहा था कि जनसत्ता ने The Hindu में प्रकाशित बाबर की काली करतूतों पर लेख अध्ययन करने को मिल गया। अब मुग़लों के कसीदे पढ़ने वाले वाले राष्ट्र को बताएं कि किस हैसियत से अय्याश मुगलों का गुणगान किया गया। मैंने अपने पिछले लेख "कसम राम की खाते हैं, कोर्ट को धोखा देने वालों को सजा नहीं दिलवाएंगे" में लिखा कि जिस तरह राम आतताइयों का अंत कर अयोध्या लौटे थे, लगता है उसी प्रवित्ति के लोगों को दण्डित करने उपरान्त ही अयोध्या में भव्य राम मन्दिर का पुनः निर्माण होगा और बाबरी मस्जिद के नाम पर कहीं शायद ही कोई जगह नहीं मिल पाएगी। लेकिन अकबर के बाद अब बाबर का भी काला चिट्ठा सामने आ गया। कहाँ है मुगलों को महान बताने वाले?   
बाबर ने ही अपनी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ लिखी थी जो उसके जीवनवृत को उद्घाटित करता है। यह रचना चगतई भाषा में है जिसका बाद में कई विद्वानों ने अनुवाद किया था। दिलीप हीरो ने भी बाबरनामा का संक्षिप्त अनुवादित रूप ‘बाबरनामा’ लिखा था। इसमें बताया गया है कि बाबर ने कैसे भारत में मुगल शासन की स्थापना की थी। एक जगह इस बात के संकेत भी दिए गए हैं कि बाबर कैसे युवा और किशोर लड़कों पर मुग्ध था।
बाबर ने अपनी स्मृतियों को ताजा करते हुए अपनी मातृभाषा तुर्किश या पर्शियन में घटनाओं का विवरण लिखा है। बाबर ने खुद इस बात को स्वीकार किया है कि वह बाबरी नाम के एक किशोर लड़के पर मुग्ध था। वह इस युवा लड़के के आकर्षण से इतना प्रभावित था कि उसने उसके लिए एक दोहा भी बनाया था, जो इस तरह से है, “रहने की शक्ति ही नहीं थी, न ही भागने की शक्ति थी, मैंने तुम्हें जो बनाया, मेरे दिल का चोर हो गया।”
बाबर भले ही बाबरी नाम के लड़के के सम्मोहन में रहा हो लेकिन उसकी कई बीवियां थीं और उनसे कई बच्चे भी थे। कई इतिहासकारों का भी मानना है कि बाबर समलैंगिक था। शायद इसी वजह से उसने बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया था। हालांकि, बाबरी मस्जिद के इतिहास की मूल कहानी अनुवादों में लुप्त हो चुकी है और ऐसे में दोनों पक्ष अपना-अपना दावा ठोक रहे हैं।
अयोध्या मसले का हल बाबरी मस्जिद का अयोध्या से स्थानान्तरण था! मुस्लिम उलेमाओं ने हिन्दुओं के साथ भाईचारे का बड़ा अवसर गंवाया।
अरब में मस्जिदों के स्थानान्तरण के कई उदाहरण मौजूद हैं। अरब देशों में जब बड़े पैमाने पर बुनियादी ढ़ांचे के निर्माण का कार्य शुरु हुआ तो निर्माण कार्य में विभिन्न स्थानों पर जैसे राजमार्ग, हवाई अड्डे के रास्ते में बनीं अनेक मस्जिदें आ रही थीं। इस पर अरबी नेतृत्व उलेमाओं के पास पहुंचे कि इस हालत में क्या किया जाए? उलेमाओं ने इस्लामी शरियत को सामने रखते हुए यह फतवा दिया कि मस्जिदों का स्थानान्तरण किया जा सकता है।
सवाल यह है कि भारत के मुस्लिम उलेमाओं ने अयोध्या विवाद को सुलझाने के  लिए ऐसा फैसला लेने से मना क्यों कर दिया? आखिर उनकी ओर से किस आधार पर यह कहा जाता रहा कि यह भारत है अरब नहीं? बेशक यह भारत है, लेकिन इस्लाम चाहे अरब में हो या भारत में, वह तो नहीं बदल सकता। जब देश निर्माण हेतु अरब देशों में मस्जिद का स्थानान्तरण सम्भव है तो भाईचारे के लिए भारत में क्यों नहीं सम्भव हो सका? भारत में मस्जिदों का स्थानान्तरण बिल्कुल सम्भव था और है।
ताली दो हाथ से बजती है। यदि भारत का मुस्लिम नेतृत्व मस्जिद स्थानान्तरण के लिए तैयार हो जाता तो वह दुनियाभर में आपसी भाईचारे की एक मिसाल कायम करता।
मुगलों द्वारा भारत में लूट 
नादिर शाह ने सन् 1739 में हमला किया था। उसने दो महींने तक दिल्ली को जमकर लुटा और लुट के रुप में कोहेनुर हीरा, बादशाह का तख्ते ताऊस सिंहासन, बीस करोड़ नकद, सत्तर करोड़ की संपत्ति, हजारों हाथी, घोड़े तथा ऊंट सोने-चांदी व पदार्थों से लदे हुए और हजारों लड़कियां अपने साथ लेकर चल दिया।
इन लड़कियों को अफगानिस्तान के बाजारों में टके-टके के भाव बेचा जाना था। उसी वक्त गलतफहमी के कारण नादिर शाह के कुछ सिपाही मार दिये गये जिसके बाद नादिर शाह ने अपनी तलवार निकालकर कत्लेआम का आदेश दे दिया। पूरी दिल्ली में एक लाख से ज्यादा लोगों को कत्ल कर दिया गया, चारों तरफ लाशें बिछा दी गई, मुगल फौज ने हर घर-गली-मौहल्ले को जि'भर के लुटा क्योंकि रोकने वाला, विरोध करने वाला या लड़ने वाला तो कोई था ही नहीं (उस समय बहुत से परिवारों ने लड़ने की जगह अपनी जवान बेटियों को घरों में ही कत्ल कर दिया ताकि उनको मुगल सिपाहियों से बचाया जा सके)।
सभी का खून ठंडा पड़ गया था, लोग डर के कारण अपनी बहु-बेटियों को अपने ही सामने बाजारों में बिकने के लिए भेज रहे थे। लेकिन गुरू के शेर, गुर के सिंघ सुरमें भले ही संख्या में कम थे, जंगलों में छिपकर रहते थे, पत्ते आदि खाकर गुजारा करते थे, परंतु फिर भी सिखों के होते हुए कोई हमलावर यहां से बेटियों को कैसे ले जा सकता था।
जैसे ही नादिर शाह वापिस जाने लगा सिख अखनूर के पास नादिर शाह के उपर भूखे शेरों की तरह टूट पडे़ और उसे घेर लिया। सिंघों ने उस समय आसमान और धरती को भी हिला दिया। गुरू के बहादुर सिख पलों के अंदर ही ज्यादातर लड़कियों तथा कुछ लूट के सामान को भी अपने साथ छुड़ाकर ले गये और सिख जंगलों में वापिस चले गये।
उस समय में सिख संख्या में कम होते थे इसलिये वे हिंदु बहु-बेटियों की इज्जत बचाने के लिए रात को उस समय हमला करते थे जब सारे सिपाही आराम से सो जाते थे तथा बहु-बेटियों को छुड़ाकर, उनके साथ होने वाले अत्याचार से बचाते थे और घर वापिस छोड़कर आते थे। रात के इन हमलों के कारण से सर्दी में भी रात के समय मुगलों के पसीने छूटने लगते थे और वे कहते थे कि बाहर बजने वाले हैं, सिखों के आने का समय हो गया है। उस समय सिख हिंदुओं की लड़कियों को बचाने आया करते थे, अपनी जान गंवा कर, तलवारें, गोलियां खाकर इज्जत की रक्षा करते थे।
आज सिखों का मजाक उड़ाने पर उन सभी लड़कियों, माताओं, बहनों की आत्मा को ठेस अवश्य ही पहुंचती होगी जो उस समय रात के बारह बजने और सिखों के आने का इंतजार किया करती हाेंगी, जो उस समय सोचती होंगी कब 12 बजेगें और सिख हमें बचाएंगे।
नादिर शाह ने पूछा कि मुझे बताओ कि ये कौन हैं जिन्होंने नादिर शाह को भी लूटा है, मैं इनके घर-शहर को राख में बदल दुंगा। जकरीया खान ने जवाब दिया कि इनका नाम सिख है, मजहब खालसा है, ये पराई स्त्री को माता कहते हैं, चोरी निंदा नहीं करते, सौ-सौ किलोमीटर घोड़ों पर लगातार दौड़ते ही चले जाते हैं, ये अपने घोड़ों पर ही सो जाते हैं, सारा दिन गर्मीयों में बिना पानी तथा सर्दीयों में बिना आग के रहते हैं। आप इनके घर-शहर को राख कैसे करोगे इनके तो घर ही नहीं हैं, ये तो जंगलों में ही रहते हैं इसलिये इनको पकड़ना नामुमकिन है।
जिन लड़कियों के रखड़ी बंधवाने वाले भाई भी मुसिबत में उनका साथ छोड़ देते थे, सिख उन बहनों को रात के 12 बजने के बाद छुड़ाकर वापिस इज्जत के साथ घर छोड़कर आते थे। लेकिन आज बेशर्मी की हद हो गई है क्योंकि आज सिखों इस बहादुरी, दिलेरी व हिम्मत की कहानी को मजाक के रुप पेश किया जाता है, सिख बच्चों को 12 बज गये कहकर मजाक उड़ाया जाता है।
**यह लेख पुस्तक "सिखी: कल, आज और कल" से लिया गया है, यह एक नई तरह पुस्तक है जिसमें सिख इतिहास, गुरबाणी, गुरमत व आज के हमारे वर्तमान समय के विषय में बहुत से विचार हैं

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To write on general topics and specially on films;THE BLOGS ARE DEDICATED TO MY PARENTS:SHRI M.B.L.NIGAM(January 7,1917-March 17,2005) and SMT.SHANNO DEVI NIGAM(November 23,1922-January24,1983)

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