आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
दुनिया भर के वैज्ञानिक अब यह मानने को विवश हैं कि भारत और श्रीलंका के बीच स्थित प्राचीन एडम्स ब्रिज यानी रामसेतु असल में मानव निर्मित है. भारत के रामेश्वरम के करीब स्थित द्वीप पमबन और श्रीलंका के द्वीप मन्नार के बीच 50 किलोमीटर लंबा अद्भुत पुल कहीं और से लाये पत्थरों से बनाया गया है. अमेरिकी पुरातत्ववेत्ताओं ने विज्ञान चैनल डिस्कवरी के एक शो के प्रोमो में यह जानकारी दी है. यह शो बुधवार को सुबह 7.30 बजे दिखाया गया. प्रोमो को सोशल मीडिया पर 16 घंटों में 11 लाख से अधिक लोग देख चुके हैं. इस कार्यक्रम में सैटेलाइट चित्र के जरिये रामसेतु की अंतरिक्ष से नजर आने वाली तस्वीर दिखाई गई है. वैज्ञानिकों का मानना है कि सैटेलाइट में नजर आने वाली आकृति दरअसल गहरे समुद्र में तैरते छिछले और सपाट चूना पत्थर हैं. 83 किलोमीटर लंबे गहरे जल क्षेत्र में चूना पत्थर की चट्टानों का नेटवर्क असल में मानव निर्मित है.रामसेतु यानि वो पुल या सेतु जो भारत और श्रीलंका के बीच बनाया गया। इस रामसेतु को लेकर भारत में हमेशा से ही बहस छिड़ती आ रही है। कई लोग रामसेतु के अस्तित्व को सच मानते हैं तो कई झूठ। हालांकि अब इस रामसेतु को लेकर एक अमेरिकी टीवी चैनल ने नया खुलासा और दावा किया है।इंसान ने बनाया रामसेतु
भू वैज्ञानिकों का दावा है कि भारत और श्रीलंका के बीच बना हुआ रामसेतु प्राकृतिक नहीं बल्कि मानव का बनाया हुआ है।
अमेरिका के साइंस चैनल ने अपने सांइस आधारित प्रोग्राम 'व्हाट ऑन अर्थ' ने रामसेतु के होने का दावा किया है। कुछ आर्कियोलॉजिस्ट और भूगर्भ वैज्ञानिकों ने सेटलाइट के जरिए मिली रामसेतु की तस्वीरों, वहां की मिटटी और बाकी चीजों की स्टडी की और पाया की रामसेतु असल में था। इसी के आधार पर अमेरिकी टीवी चैनल ने एक प्रोग्राम बनाया है जो आज टेलिकास्ट किया जाएगा।
इस वीडियो में दिख रहा है कि भू वैज्ञानिक भारत में भी इसी तरह के एक पुल के होने का जिक्र कर रहे हैं। रिसर्च करने पर इन भू वैज्ञानिकों को पता चला की बलुई धरातल पर ये मौजूद पत्थर कहीं और से लाए गए हैं और ये बलुई धरातल से भी बहुत पुराने हैं।वहीं सूचना और प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने अमेरिकी टीवी चैनल के इस ट्वीट को रीट्वीट किया और 'जय श्रीराम' लिखा।रामसेतु पर विवादश्रीलंका के मन्नार द्वीप से लेकर भारत के रामेश्वरम के बीच पत्थरों की एक चेन है जिसे भारत में रामसेतु और दुनियाभर में adam's bridge कहा जाता है।
पुराणों में रामसेतु
हिंदु पुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस पुल का निर्माण अयोध्या के राजा श्रीराम ने करवाया था। रामसेतु का निर्माण नल और नील नाम के दो वानरों ने किया था राम की सेना में थे। इसका जिक्र रामायण में भी मिलता है। माना जाता है कि इसी रामसेतु के जरिए भगवान राम अपनी पत्नी सीता को लाने लंका गए थे, जहां लंकापति रावण ने सीता को कैद करके रखा था।
सेतुसमुद्रम परियोजना
साल 2005 में भारत सरकार ने सेतुसमुद्रम परियोजना की घोषणा की जिसके तहत तमिलनाडु को श्रीलंका के साथ जोड़ा जाना था। साथ ही इस रामसेतु का कुछ हिस्सा तोड़ा भी जाना था ताकि तमिलनाडु में छोटे-छोटे 13 एयरपोर्ट बनाए जा सकें। हालांकि इस परियोजना पर भी सालों से बहस छिड़ी है। एक वर्ग इसके पक्ष में है तो वहीं दूसरा विपक्ष में।
पुराणों में रामसेतु
हिंदु पुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस पुल का निर्माण अयोध्या के राजा श्रीराम ने करवाया था। रामसेतु का निर्माण नल और नील नाम के दो वानरों ने किया था राम की सेना में थे। इसका जिक्र रामायण में भी मिलता है। माना जाता है कि इसी रामसेतु के जरिए भगवान राम अपनी पत्नी सीता को लाने लंका गए थे, जहां लंकापति रावण ने सीता को कैद करके रखा था।
सेतुसमुद्रम परियोजना
साल 2005 में भारत सरकार ने सेतुसमुद्रम परियोजना की घोषणा की जिसके तहत तमिलनाडु को श्रीलंका के साथ जोड़ा जाना था। साथ ही इस रामसेतु का कुछ हिस्सा तोड़ा भी जाना था ताकि तमिलनाडु में छोटे-छोटे 13 एयरपोर्ट बनाए जा सकें। हालांकि इस परियोजना पर भी सालों से बहस छिड़ी है। एक वर्ग इसके पक्ष में है तो वहीं दूसरा विपक्ष में।
क्या खतरा है परियोजना से
सेतुसमुद्रम परियोजना से देश की सुरक्षा को लेकर खतरा है और इसकी आशंका कोस्ट गार्ड के एक अफसर भी जाहिर कर चुके हैं। उनके मुताबिक, इस सेतुसमुद्रम परियोजना का इस्तेमाल आतंकवादी कभी भी कर सकते हैं।
सरकार की महत्वाकांक्षी सेतुसमुद्रम नहर परियोजना के चलते रामसेतु के अस्तित्व पर ही संकट आ गया था. अति प्राचीन सेतु को नहर के लिये रोड़ा बताये जाते हुये इसकी चट्टानों को तोड़ने की तैयारी थी. इसी सिलसिले में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन यूपीए-1 की सरकार ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कोहराम मचा दिया था. रामसेतु का मुद्दा देश में तभी से गर्माया है. तत्कालीन यूपीए-1 सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया था कि कोई सुबूत नहीं हैं कि रामसेतु कोई पूज्यनीय स्थल है. साथ ही सेतु को तोड़ने की इजाजत मांगी गई थी. बाद में कड़ी आलोचना के बीच तत्कालीन सरकार ने यह हलफनामा वापस ले लिया था. इस परियोजना की इसलिये भी कड़ी आलोचना हुई थी कि इससे हिंदू महासागर की जैव विविधता प्रभावित होगी.
सरकार की महत्वाकांक्षी सेतुसमुद्रम नहर परियोजना के चलते रामसेतु के अस्तित्व पर ही संकट आ गया था. अति प्राचीन सेतु को नहर के लिये रोड़ा बताये जाते हुये इसकी चट्टानों को तोड़ने की तैयारी थी. इसी सिलसिले में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन यूपीए-1 की सरकार ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कोहराम मचा दिया था. रामसेतु का मुद्दा देश में तभी से गर्माया है. तत्कालीन यूपीए-1 सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया था कि कोई सुबूत नहीं हैं कि रामसेतु कोई पूज्यनीय स्थल है. साथ ही सेतु को तोड़ने की इजाजत मांगी गई थी. बाद में कड़ी आलोचना के बीच तत्कालीन सरकार ने यह हलफनामा वापस ले लिया था. इस परियोजना की इसलिये भी कड़ी आलोचना हुई थी कि इससे हिंदू महासागर की जैव विविधता प्रभावित होगी.
सोशल मीडिया में मचा हुआ है तहलका
अमेरिका की इंडियाना यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ नार्थवेस्ट, यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो और सदर्न ओरीगन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया है कि बलुई परत भले ही प्राकृतिक हो, लेकिन उसके नीचे बिछे विशाल चूना पत्थर कतई प्रकृति की देन नहीं है. यह कहीं और से लाये गये हैं. कार्यक्रम में बताया गया है कि पुल की चट्टानें सात हजार साल, जबकि उस पर बिछी बालू की परत चार हजार साल पुरानी है. सदर्न ओरीगन यूनिवर्सिटी की इतिहास की पुरातत्ववेत्ता चेल्सिया रोज ने कहा कि बालू पर बिछी चट्टानें अपेक्षाकृत कम पुरानी हैं. चैनल इस बात का समर्थन करता है कि पुल प्राचीन होने के बावजूद मानव निर्मित है. सोशल मीडिया में तहलका मचा रही इस रिपोर्ट पर एक ट्विटर यूजर ने कहा है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) इस मामले को सुलझाने के लिये क्यों कुछ नहीं करता.
अभी काम शुरू होना है बाकी
भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद ने विगत मार्च में जल के अंदर शोध करने की घोषणा की थी. उसकी रिपोर्ट भी नवंबर में आ जानी थी, लेकिन पुरातत्ववेत्ता व एएसआइ के पूर्व निदेशक आलोक त्रिपाठी ने कहा कि अभी काम शुरू होना बाकी है. इस योजना का प्रस्ताव करने वाले त्रिपाठी कहते हैं कि अभी फील्डवर्क ही नहीं किया गया है. इस प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिये कुछ औपचारिकताओं को पूरा करना बाकी है. उन्होंने बताया है कि हमारा निष्कर्ष हमारे शोध के नतीजों पर ही निर्भर करेगा.
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