शाहबानो निर्णय से तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी को डराने वाले अकबर, नरेंद्र मोदी के आगे बने भीगी बिल्ली
शाहबानो निर्णय को बदलवाने वाले एम जे अकबर आखिर किस दबाव में तीन तलाक़ पर सहमत हुए? क्या राज है, सत्ता का मोह? आखिर वो कौन से कारण थे, कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी को सुप्रीम कोर्ट का निर्णय बदलवाने के विवश किया और आज ट्रिपल तलाक़ के मुद्दे पर "संसद में इस्लाम खतरे में" की आवाज़ लगने पर सरकार के समर्थन में खड़े हो गए? जो किसी न किसी गुप्त मंत्रणा की साज़िश का स्पष्ट संकेत दे रहे हैं।
जिस समय तीन तलाक का मुद्दा कोर्ट में लम्बित था, सत्ता के गलियारों में यह चर्चा बहुत गर्म थी कि "शाहबानो प्रकरण दोहराया जाएगा?" क्योकि उस समय एम.जे.अकबर कांग्रेस में थे और आज भाजपा में। लगता है, वर्तमान सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सख्त व्यवहार के कारण अकबर अपना मुँह खोलने में पूर्णरूप से असमर्थ रहे और संसद में "इस्लाम खतरे में है" की उठी आवाज़ को कुचलने में सरकार के पक्ष में खड़े हो गए। वास्तव में समय बड़ा बलवान होता है।
अकबर ने कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने कहा था कि वह मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधार नहीं करा सके क्योंकि वह समय उपयुक्त नहीं था। फिर भी कांग्रेस सरकारों ने संसद में पूर्ण बहुमत के बावजूद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में कोई सुधार नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधार का यही उपयुक्त समय है। संभव है कि कानून बहुत अच्छा न बना हो लेकिन आदर्श स्थिति के लिए हमें किसी अच्छी चीज को नहीं छोड़ना चाहिए।
एम जे अकबर के तीन तलाक के पैरोकार होने के दावे को पूर्व सूचना आयुक्त और अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष वजाहत हबीबुल्लाह ने झुठलाया है। उन्होंने ‘द हिन्दू’ में लिखे एक आलेख में एम जे अकबर की तीन तलाक पर अलग तस्वीर पेश की है। बतौर हबीबुल्लाह एम जे अकबर तीन तलाक के कट्टर समर्थक रहे हैं। उन्होंने लिखा है कि तब अकबर कांग्रेसी हुआ करते थे। उन्होंने लिखा है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक के खिलाफ शाह बानो के पक्ष में फैसला दिया था, तब एम जे अकबर ने अपनी दलील और पैरवी से तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलटवा दिया था।
18 अक्टूबर, 2016 को लिखे इस आलेख में हबीबुल्ला ने लिखा है, “एक दिन जब मैंने प्रधानमंत्री राजीव गांधी के चेंबर में प्रवेश किया तो वहां राजीव गांधी के सामने एमजे अकबर को बैठा पाया। मैंने देखा कि अकबर, राजीव गांधी को इस बात पर राजी करा चुके थे कि अगर केंद्र सरकार शाहबानो मामले में हस्तक्षेप नहीं करती है तो पूरे देश में ऐसा संदेश जाएगा कि प्रधानमंत्री मुस्लिम समुदाय को अपना नहीं मानते हैं।” बतौर हबीबुल्लाह इसके बाद राजीव गांधी सरकार ने शाहबानो केस में 1985 में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मुस्लिम महिला (तलाक के अधिकार का संरक्षण) विधेयक-1986 लाकर पलट दिया था।
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खुलासा: शाह बानो मामले पर एमजे अकबर ने पलटवाया था फैसला
सर्वोच्च न्यायालय ने तब अपने फैसले में कहा था कि CRPC की धारा 125, जो परित्यक्त या तलाकशुदा महिला को पति से गुजारा भत्ता का हकदार कहता है, मुस्लिम महिलाओं पर भी लागू होता है, क्योंकि सीआरपीसी की धारा 125 और मुस्लिम पर्सनल लॉ के प्रावधानों में कोई विरोधाभास नहीं है। हालांकि तब मुस्लिम धर्मगुरूओं और कई मुस्लिम संगठनों ने अदालत के फैसले को शरिया में हस्तक्षेप कहकर इसका पुरजोर विरोध किया था और सरकार से हस्तक्षेप करने की मांग की थी। हबीबुल्लाह उस समय प्रधानमंत्री कार्यालय में निदेशक के पद पर नियुक्त थे और अल्पसंख्यक मुद्दों को देखते थे। समाचार-पत्र द हिंदू में मंगलवार को प्रकाशित अपने स्तंभ में हबीबुल्लाह ने कहा है, मैं अपनी मेज पर ऎसी याचिकाओं और पत्रों का अंबार पाया जिसमें अदालत के फैसले की आलोचना की गई थी और सरकार से हस्तक्षेप कर अदालत का फैसला पलटने की मांग की गई थी। वह आगे लिखते हैं,तब मैंने सुझाव दिया था कि हर याचिकाकर्ता से कहा जाए कि वे सर्वोच्च न्यायालय में समीक्षा याचिका दायर करें। एक बार तो ऎसा लगा कि मेरा सुझाव मान लिया गया, हालांकि मुझे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
हबीबुल्ला कहते हैं, तभी एक दिन जब मैंने प्रधानमंत्री राजीव गांधी के चेंबर में प्रवेश किया तो वह राजीव गांधी के सामने एमजे अकबर को बैठा पाया। मैंने देखा कि अकबर, राजीव गांधी को इस पर राजी कर ले गए थे कि यदि केंद्र सरकार शाह बानो मामले में हस्तक्षेप नहीं करती है तो पूरे देश में ऎसा संदेश जाएगा कि प्रधानमंत्री मुस्लिम समुदाय को अपना नहीं मानते। उल्लेखनीय है कि पत्रकारिता से राजनीति में आए एमजे अकबर 1989-91 में बिहार के किशनगंज से कांग्रेस सांसद चुने गए थे। वह कांग्रेस के आधिकारिक प्रवक्ता भी रह चुके हैं। कभी नरेंद्र मोदी की भर्त्सना करने वाले एमजे अकबर ने बाद में दल बदल करते हुए भाजपा से हाथ मिला लिया और नरेंद्र मोदी की मौजूदा केंद्र सरकार में मंत्री पद पाया। राजीव गांधी सरकार द्वारा तब कानून में किए गए बदलाव को कांग्रेस पार्टी की आधुनिक विचारधारा में पतन के तौर पर देखा गया था।
गौरतलब है कि मौजूदा केंद्र सरकार ने समान आचार संहिता पर नए सिरे से बहस शुरू की है, जिस पर मुस्लिम नेताओं का विरोध शुरू हो गया है और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने समान आचार संहिता पर चर्चा के लिए गठित विधि आयोग का बहिष्कार करने का फैसला किया है। उल्लेखनीय है कि इस बीच तीन तलाक का मामला भी सर्वोच्च अदालत में विचाराधीन है। (आईएएनएस) (साभार:
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पत्रकारिता के रास्ते राजनीति में आए एम जे अकबर पहले कांग्रेस में थे। 1989 में उन्होंने बिहार के किशनगंज से लोकसभा का चुनाव लड़ा था और वहां से लोकसभा सांसद चुने गए थे। वह कांग्रेस के प्रवक्ता भी रह चुके हैं। अकबर नरेंद्र मोदी के कट्टर आलोचक भी रह चुके हैं। बाद में बीजेपी की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए एम जे अकबर ने दल बदल कर 2014 में भाजपा का दामन थाम लिया। फिलहाल वो राज्यसभा सदस्य हैं और केंद्र सरकार में मंत्री हैं।
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