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क्या रघुराम राजन राज्य सभा जाएंगे?

आम आदमी पार्टी इन दिनों किन्हीं बाहरी व्यक्तियों को राज्य सभा भेजने के लिए विचार कर रही हैं। इनमें एक नाम आरबीआई के पूर्व गवर्नर और नोटबंदी के विरोधी रधुराम राजन का भी शामिल है। दिल्ली से तीन राज्य सभा सांसद मनोनीत होने हैं और अपार बहुमत की वजह से तीनों सीटें आम आदमी पार्टी को तय करनी हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार अलग-अलग क्षेत्रो के विशेषज्ञों को राज्य सभा उम्मीदवार बनाने पर गंभीरता से विचार चल रहा है। इनमें से ऐसा ही एक नाम पूर्व गवर्नर राजन का भी बताया जाता है। गौरतलब है जब रघुराम राजन आरबीआई के गवर्नर थे तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे नोटबंदी के लिए विचार मांगा था। वहीं आरबीआई के प्रमुख के रूप में दूसरे कार्यकाल में उनकी रुचि के बावजूद, उनका कार्यकाल प्रधान मंत्री मोदी के शासनकान नहीं बढ़ाया गया। वहीं खबरों की मानें तो राज्य सभा में बाहरी व्यक्तियों को भेजने पर आम आदमी पार्टी की गुटबाजी में भी रोक लगेगी।
पार्टी नेता नेता कुमार विश्वास पहले ही खुलकर अपने लिए राज्य सभा सीट मांग चुके हैं। ऐसे में अगर पार्टी बाहर के लोगों को मनोनीत करने का फैसला लेती है, तो उनके लिए भी खुद के लिए दबाव बनाना मुश्किल हो जाएगा। पिछले ही हफ्ते कुमार विश्वास ने आरोप लगाया था कि उनकी पार्टी के कुछ नेता राज्यसभा का टिकट पाने के लिए विधायकों के साथ सांठगांठ कर रहे हैं। कुमार विश्वास इस बात से भी नाराज हैं कि उनको भाजपा का एजेंट कहने वाले विधायक अमानतुल्लाह खान का निलंबन वापस कर लिया गया है।
गौरतलब है कि रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने पद छोड़ने के एक साल बाद नोटबंदी पर अपनी चुप्पी तोड़ी थी। राजन ने अपनी किताब में साफ किया था कि उन्होंने नोटबंदी का समर्थन नहीं किया। क्योंकि उनका मानना था कि इससे अल्पकाल में होने वाला नुकसान लंबी अवधि में इससे होने वाले फायदों पर भारी पड़ेगा। राजन ने अपनी नई किताब ‘आई डू व्हाट आई डू’ में इस बात का ज्रिक विस्तार से किया है। यह आरबीआई गवर्नर के तौर पर विभिन्न मुद्दों पर दिए गए उनके भाषणों का संग्रह है।
आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने शायद यह तय कर लिया है कि पार्टी का कोई भी सदस्य राज्यसभा नही जाएगा. जनवरी’18 में बल्कि तीन गैर राजनीतिक व्यक्ति राज्यसभा जाएंगे. अर्थविद व आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के अलावा एक विशिष्ठ कानूनविद और एक विशिष्ठ समाजसेवी. रघुराम राजन से अनुरोध भी किया गया है कि इस प्रस्ताव को स्वीकार लें. हालांकि रघुराम राजन ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है.
आम आदमी पार्टी के प्रस्ताव पर जब मीडिया ने उनका पक्ष मांगा, तो उनकी तरफ से बयान जारी करके कहा गया कि प्रोफेसर राजन बहुत से शिक्षागत कामों से जुड़े हुए हैं. उनका शिकागो यूनिवर्सिटी में पूर्णकालिक पढ़ाने की नौकरी छोड़ने का कोई प्लान नहीं है. ऐसे में अब राजन की जगह किसी अन्य को चुना जा सकता है. बहरहाल यदि ऐसा होता है तो संजय सिंह, आशुतोष और कुमार विश्वास नहीं जा पाएंगे राज्यसभा. यह अरविंद केजरीवाल का जबरदस्त मास्टरस्ट्रोक होगा. पहला, इससे पार्टी में नेताओं के मध्य असंतोष तो होगा लेकिन कोई दरार नही पड़ेगी. दूसरा, राज्यसभा का भी सम्मान बढ़ेगा आखिर इसे अपर हाउस और हाउस ऑफ एल्डर्स कहा जाता है.
कुमार विश्वास ही हैं बिखराव की वजह
पांच साल पहले आम आदमी पार्टी के तीन ही आकर्षण थे तीन अभिन्न मित्र अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और कुमार विश्वास. लेकिन पांच साल बाद यह तिकड़ी टूटती दिखाई दे रही है. अब इतने कम समय में ही इनके बीच विचारों की इतनी गहरी खाई दिखाई देने लगी है कि इनका एक साथ भविष्य में दिखाई देना लगभग असंभव सा प्रतीत होने लगा है. एक ओर हैं कवि से नेता बने कुमार विश्वास और दूसरी ओर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया हैं. दोनों गुटों के सूत्रों का मानना है कि दोस्ती में इस हद तक कड़वाहट आ चुकी है कि उनके बीच दोबारा मेल होने की आशा नहीं दिखाई देती. हाल ही में पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में यह बात दिखाई भी दी थी. कुमार विश्वास ने आरोप लगाया कि पहली बार वह इस उच्च स्तरीय बैठक में वक्ताओं में शामिल नहीं थे.

कुमार विश्वास ने बाद में आप नेताओं पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि मुझे लगता था कि केवल कांग्रेस और बीजेपी ही मुझसे भयभीत हैं. कुमार विश्वास के करीबियों का मानना है कि यह दरार उस मंडली ने पैदा की है जो कि केजरीवाल के करीब हैं. उनका कहना है कि ये लोग विश्वास के खिलाफ हैं. कुमार विश्वास का भी मानना है कि पार्टी नेतृत्व ने उनकी अनदेखी की है. दरअसल, विवाद की मुख्य वजह राज्य सभा सीट को लेकर संघर्ष ही है. गौरतलब है कि दिल्ली विधानसभा में 67 सदस्यों वाली आप तीन सदस्यों को ऊपरी सदन में जनवरी’18 में भेज सकती है. अरविंद केजरीवाल के करीबी माने जाने वाले नेता व विधायक अमानतुल्ला खान का कहना है कि राज्य सभा सदस्य बनने के बाद अगर कुमार विश्वास पार्टी पर ही हमले करने शुरू कर दें तो फिर क्या होगा ?

कुमार विश्वास का आप से विश्वास डगमगाने की वजह राज्यसभा है

या आशुतोष की एंट्री

डॉ. कर्ण सिंह, जनार्दन द्विवेदी और परवेज हाशमी फिलहाल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से कांग्रेस के राज्यसभा सांसद हैं, लेकिन दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस का सूपड़ा साफ होने के बाद इनका दिल्ली से राज्यसभा पहुंचना अब नामुमकिन है. आम आदमी पार्टी की दिक्कत यह है कि 70 में 67 विधायक अपने होने के कारण यह तीनों सीट आप की झोली में जाएगी. ऐसे में यह किसे राज्यसभा भेजे और किसे नाराज करे, यही सबसे बड़ी दिक्कत है. पत्रकार आशुतोष व कवि कुमार विश्वास में एक ही जा सकते हैं. आशुतोष के पक्ष में पलड़ा झुका देख कुमार विश्वास का आप से विश्वास डगमगाने लगा है. आप के नेता कुमार विश्वास के अनुसार पार्टी में हर बार राष्ट्रीय परिषद की बैठक में उनको मुख्य वक्ता बनाती थी, लेकिन अब स्थिति ऐसी है कि केवल कुल 5 वक्ताओं का बोलना तय किया है, जिनमें उनका नाम शामिल नहीं है. ऐसे में कुमार विश्वास ने कहा है  कि अगर पार्टी उनको बैठक में  बोलने का मौका नहीं देगी तो वह बाहर आकर अपनी बात कहेंगे, पार्टी छोड़ भागेंगे नहीं. कुमार विश्वास ने यह भी कहा है कि जहां तक राज्यसभा जाने की बात है तो वह उसके लिए बेहतर उम्मीदवार हैं. पार्टी की तरफ़ से राज्यसभा जाने की बात करने में कुछ भी ग़लत नहीं है.
2018 में बदल जाएगी राज्यसभा की तस्वीर
2018 में होने वाले राज्यसभा चुनाव से सदन की तस्वीर बदलने वाली है. 68 सांसदों में से 58 सांसद अप्रैल’18 में रिटायर हो जाएंगे. इनमें से 10 सांसद उत्तर प्रदेश से हैं, मायावती के इस्तीफे से एक सीट पहले ही खाली हो चुकी हैं. खाली हो रही इन नौ में से फिलहाल 6 सीट पर समाजवादी पार्टी के सांसद हैं. उनमें जया बच्चन, नरेश अग्रवाल, किरणमय नंदा, चौधरी मुनव्वर सलीम भी शामिल हैं लेकिन यूपी विधानसभा में सपा की संख्या बल इतनी नहीं है कि वो एक से ज्यादा सदस्य को राज्यसभा भेज सके. एक सांसद उत्तराखंड से है. दिल्ली, केरल, मध्य प्रदेश, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, बिहार, गुजरात और तेलंगाना से भी राज्यसभा की सीटें खाली हो रही हैं. भाजपा शासित राज्यों से एनडीए को बेहतर परिणाम मिल सकते हैं. अप्रैल’18 में चार नामित सांसदों का कार्यकाल भी खत्म होने के बाद एनडीए सरकार अपने मुताबिक राज्यसभा के लिए सांसदों का चयन कर सकती है. क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर और अभिनेत्री रेखा का कार्यकाल अप्रैल’18 में समाप्त हो रहा है. बहरहाल, मौजूदा समय में राज्यसभा में एनडीए के 73 सांसद हैं जबकि यूपीए के पाले में 71 सांसद हैं. संख्या बल के हिसाब से यूपीए से एनडीए आगे है मगर बहुमत के आंकड़े (123) से एनडीए अभी भी बहुत पीछे है.
परेशानी व बेचैनी कांग्रेस में अधिक है
दिल्ली से डॉ. कर्ण सिंह और जनार्दन द्विवेदी के अलावा उत्तर प्रदेश से कांग्रेस के प्रमोद तिवारी का चुनकर राज्यसभा पहुंचना बेहद मुश्किल लग रहा है. पार्टी अधिकतम तीन नेता को ही कर्नाटक से राज्यसभा भेज सकती है. इनमें से एक सांसद केआर रहमान पहले से दावेदार हैं. यानी दो नए चेहरे को वहां से भेजा सकता है. पंजाब में फिलहाल राज्यसभा की सीटें खाली नहीं होने वाली हैं. मध्य प्रदेश से कांग्रेस के सत्यव्रत चतुर्वेदी का भी कार्यकाल अगले साल अप्रैल में खत्म हो रहा है. झारखंड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप बालमुचु की भी सदस्यता खतरे में है. झारखंड विधानसभा में कांग्रेस के केवल 6 विधायक हैं. जेएमएम के भी एक सांसद का टर्म अप्रैल’18 में पूरा हो रहा है. ऐसी स्थिति में कांग्रेस, जेएमएम और जेवीएम मिलाकर किसी एक शख्स को राज्यसभा भेज सकती है. चूंकि जेएमएम के पास कुल 19 विधायक हैं, इसलिए कांग्रेस की जगह जेएमएम की दावेदारी पहले बनेगी. हरियाणा से राज्यसभा के लिए एक सीट खाली हो रही है, फिलहाल कांग्रेस के शादीलाल बत्रा वहां से सांसद हैं. अगले साल उनकी भी सदस्यता जा सकती है, क्योंकि 90 सदस्यों वाले हरियाणा विधानसभा में बीजेपी 47 विधायकों के साथ नंबर वन पर है.

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