आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि राहुल गांधी कांग्रेस के वंशवाद की परम्परा को ही आगे बढ़ाने का काम करेंगे। उनके अध्यक्ष बनने से भाजपा की राह और आसान हो जाएगी। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौंपने की खबरों के बीच मंगलवार को गोरखपुर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान यह बातें कहीं। वह अभी गोरखपुर के चार दिवसीय दौरे पर हैं।उन्होंने कहा, “अच्छा ही है कि कांग्रेस राहुल गांधी को जल्दी से पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा दे। उनके पार्टी अध्यक्ष बनने से भारतीय जनता पार्टी को कांग्रेस मुक्त भारत अभियान में सफलता हासिल करने में आसानी होगी।”
गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कांग्रेस वंशवादी पार्टी है और इसी को आगे बढ़ाया जा रहा है। उन्होंने संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती को लेकर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। फिल्म को लेकर हो रहे विरोध पर योगी ने कहा कि निर्देशक संजय लीला भंसाली को लोगों की भावनाओं से खेलने का कोई अधिकार नहीं है। अगर लोग विरोध कर रहे हैं तो उन्हें दर्शकों की भावनाओं को समझना ही होगा। योगी ने कहा कि नगर निकायों को अधिक समर्थवान और जवाबदेह बनाया जाएगा।
उन्होंने कहा कि नगर निकायों को आर्थिक रूप से इतना मजबूत किया जाएगा कि वह बड़ी से बड़ी परियोजना पर स्वयं निर्णय ले सकें। उन्होंने कहा कि बसपा और सपा सरकार ने नगर निकाय को कमजोर करने के लिए अध्यादेश लाने की कोशिश की थी लेकिन राज्यपाल राम नाईक की सहमति न मिलने की वजह से वे अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सके थे। हमारी पूरी कोशिश है कि नगर निकायों को इतना मजबूत कर दिया जाए कि उन्हें किसी कार्य के लिए ऊपर ना देखना पड़े।
कल तक जो मन्दिर जाने वालों पर कटाक्ष करता था, आज मन्दिरों के चक्कर काट रहा है, मस्जिद, दरगाह और चर्च सब भूल गया। रामजन्मभूमि पर कोर्ट को भ्रमित कर मुद्दे को उलछा दिया, राम और रामसेतु मिथ्या है,आदि आदि। इस्लामिक आतंकवादियों को बचाने जिस पार्टी ने हिन्दू आतंकवाद का भ्रम प्रसारित और प्रचार किया, बेगुनाह हिन्दू साधु, संत और साध्वियों को गलत आरोपों में जेलों में डाल, हिन्दू धर्म को कलंकित किया, अब किस आधार और विश्वास पर मन्दिरों के चक्कर काटे जा रहे हैं? अब कोई नहीं बोल रहा "मौत का सौदागर", "खून का दलाल" आदि आदि। वैसे भी राहुल ने जितना प्रचार किया है, उससे पार्टी का अहित ज्यादा हुआ है बनिस्बत हित के। उत्तर प्रदेश में देख लीजिए, क्या हाल हुआ? बस एक पंजाब को छोड़, अन्य राज्यों में भी लगभग वही स्थिति। एक बात और ध्यान देने की है, चुनावी रैली में जितने राहुल सक्रिय है, सोनिया और प्रियंका सब गायब।
वास्तव में लोकसभा चुनाव 2014 की हार इतनी बड़ी थी कि कांग्रेस मुक्त भारत बनाने के भाजपा की मुहिम को चुनौती देने का साहस शायद ही देश की सबसे पुरानी सियासी पार्टी के किसी नेता में बचा हो। पिछले तीन सालों में कांग्रेस में बेचैनी और अफरा-तफरी का माहौल रहा है। नोटबंदी को शुरुआती समर्थन देना कांग्रेस की ऐतिहासिक भूल थी,जिसे सोनिया और राहुल गांधी की रणनीतिक समझ के घोर अभाव के रूप में हमेशा देखा जाएगा। लोकसभा चुनाव में 44 सीटों पर सिमटी कांग्रेस का आत्मविश्वास इस कदर डोला हुआ था कि संसद में विपक्ष के नेता का नाम भी खबरों में बिरले ही आता था। कांग्रेस पार्टी की इस विफलता का सबसे बड़ा खामियाजा इस देश के उन लोगों ने ङोला जिन्होंने कांग्रेस पार्टी की सेक्युलर,लिबरल,मेलजोल और राष्ट्र-प्रेमी राजनीति पर हमेशा यकीन किया था।
तीन साल पहले सत्ता में आते ही भाजपा ने नोटबंदी के जरिये जिस आर्थिक वायरस को अर्थव्यवस्था में छोड़ा,उसने धीरे-धीरे पूरे देश की नींव को चाट लिया। मीडिया, वस्तुस्थिति को लगातार नकारने और पूरे देश में गुलाबी तस्वीर बनाए रखने के लिए उल्टे सिर खड़ी हो गई। इससे मजबूर और हताश लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वह सपना खरीद लिया कि जल्द ही नोटबंदी के जरिये बड़े-बड़े धन्ना सेठों का काला धन पकड़ा जाएगा और उनके अच्छे दिन शुरू हो जाएंगे जिसकी आस में उन्होंने मोदी को अपनी नेता चुना था। इन सबके बीच उन लोगों की स्थिति बेहद हास्यास्पद बन गई जिन्होंने मोदी के सपने को आशंका और गैरयकीनी से देखा। दरअसल यह पूरा घटनाक्रम इतना अतार्किक था, जहां कदम-दर-कदम लोकतांत्रिक प्रक्रिया का माखौल बना दिया गया।
अवलोकन करिए:--
राहुल गाँधी को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का स्पष्ट प्रमाण है, कि समस्त पार्टी केवल एक ही परिवार की गुलाम है, जबकि पार्टी में एक से बढ़कर एक धुरन्दर विराजमान है, जो जनता में राहुल से कहीं अधिक प्रभावी हैं। स्वतन्त्रता संग्राम में पार्टी ने जरूर संघर्ष किया, लेकिन परिवार से स्वतंत्रता के लिए नहीं। वही हाल समाजवादी और राष्ट्रीय लोक दल का है, पार्टी अध्यक्ष होगा परिवार से, क्यों? जब पार्टी किसी अन्य पर विश्वास नहीं कर सकती, देश का चलाएंगे? अच्छा है, जितनी जल्दी हो राहुल गाँधी को अध्यक्ष बनाया जाए, पार्टी उतनी जल्दी धरातल पर आएगी। वैसे भी पार्टी में अब शेष कुछ बचा भी नहीं है, इसीलिए पार्टी का भविष्य अंधकार में देख आम आदमी पार्टी का गठन कर दिया गया था, और भाजपा से कहीं अधिक कांग्रेस को इस पार्टी ने सबसे ज्यादा नुकसान किया है। इस सच्चाई से कोई इंकार नहीं कर सकता।
दरअसल राहुल गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाना एक परिघटना की आधिकारिक उद्घोषणा भर है। इसका होना लोकतंत्र के वायरल बुखार से वापसी का सकारात्मक संकेत जैसा कुछ है। राहुल गांधी इस बुखार की दवा बन पाएंगे यह कहना मुश्किल है पर इससे लड़ने लायक हौसला वापस पाना भी उम्मीद का एक चिराग है।
कल तक जो मन्दिर जाने वालों पर कटाक्ष करता था, आज मन्दिरों के चक्कर काट रहा है, मस्जिद, दरगाह और चर्च सब भूल गया। रामजन्मभूमि पर कोर्ट को भ्रमित कर मुद्दे को उलछा दिया, राम और रामसेतु मिथ्या है,आदि आदि। इस्लामिक आतंकवादियों को बचाने जिस पार्टी ने हिन्दू आतंकवाद का भ्रम प्रसारित और प्रचार किया, बेगुनाह हिन्दू साधु, संत और साध्वियों को गलत आरोपों में जेलों में डाल, हिन्दू धर्म को कलंकित किया, अब किस आधार और विश्वास पर मन्दिरों के चक्कर काटे जा रहे हैं? अब कोई नहीं बोल रहा "मौत का सौदागर", "खून का दलाल" आदि आदि। वैसे भी राहुल ने जितना प्रचार किया है, उससे पार्टी का अहित ज्यादा हुआ है बनिस्बत हित के। उत्तर प्रदेश में देख लीजिए, क्या हाल हुआ? बस एक पंजाब को छोड़, अन्य राज्यों में भी लगभग वही स्थिति। एक बात और ध्यान देने की है, चुनावी रैली में जितने राहुल सक्रिय है, सोनिया और प्रियंका सब गायब।
वास्तव में लोकसभा चुनाव 2014 की हार इतनी बड़ी थी कि कांग्रेस मुक्त भारत बनाने के भाजपा की मुहिम को चुनौती देने का साहस शायद ही देश की सबसे पुरानी सियासी पार्टी के किसी नेता में बचा हो। पिछले तीन सालों में कांग्रेस में बेचैनी और अफरा-तफरी का माहौल रहा है। नोटबंदी को शुरुआती समर्थन देना कांग्रेस की ऐतिहासिक भूल थी,जिसे सोनिया और राहुल गांधी की रणनीतिक समझ के घोर अभाव के रूप में हमेशा देखा जाएगा। लोकसभा चुनाव में 44 सीटों पर सिमटी कांग्रेस का आत्मविश्वास इस कदर डोला हुआ था कि संसद में विपक्ष के नेता का नाम भी खबरों में बिरले ही आता था। कांग्रेस पार्टी की इस विफलता का सबसे बड़ा खामियाजा इस देश के उन लोगों ने ङोला जिन्होंने कांग्रेस पार्टी की सेक्युलर,लिबरल,मेलजोल और राष्ट्र-प्रेमी राजनीति पर हमेशा यकीन किया था।
तीन साल पहले सत्ता में आते ही भाजपा ने नोटबंदी के जरिये जिस आर्थिक वायरस को अर्थव्यवस्था में छोड़ा,उसने धीरे-धीरे पूरे देश की नींव को चाट लिया। मीडिया, वस्तुस्थिति को लगातार नकारने और पूरे देश में गुलाबी तस्वीर बनाए रखने के लिए उल्टे सिर खड़ी हो गई। इससे मजबूर और हताश लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वह सपना खरीद लिया कि जल्द ही नोटबंदी के जरिये बड़े-बड़े धन्ना सेठों का काला धन पकड़ा जाएगा और उनके अच्छे दिन शुरू हो जाएंगे जिसकी आस में उन्होंने मोदी को अपनी नेता चुना था। इन सबके बीच उन लोगों की स्थिति बेहद हास्यास्पद बन गई जिन्होंने मोदी के सपने को आशंका और गैरयकीनी से देखा। दरअसल यह पूरा घटनाक्रम इतना अतार्किक था, जहां कदम-दर-कदम लोकतांत्रिक प्रक्रिया का माखौल बना दिया गया।
अवलोकन करिए:--
राहुल गाँधी को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का स्पष्ट प्रमाण है, कि समस्त पार्टी केवल एक ही परिवार की गुलाम है, जबकि पार्टी में एक से बढ़कर एक धुरन्दर विराजमान है, जो जनता में राहुल से कहीं अधिक प्रभावी हैं। स्वतन्त्रता संग्राम में पार्टी ने जरूर संघर्ष किया, लेकिन परिवार से स्वतंत्रता के लिए नहीं। वही हाल समाजवादी और राष्ट्रीय लोक दल का है, पार्टी अध्यक्ष होगा परिवार से, क्यों? जब पार्टी किसी अन्य पर विश्वास नहीं कर सकती, देश का चलाएंगे? अच्छा है, जितनी जल्दी हो राहुल गाँधी को अध्यक्ष बनाया जाए, पार्टी उतनी जल्दी धरातल पर आएगी। वैसे भी पार्टी में अब शेष कुछ बचा भी नहीं है, इसीलिए पार्टी का भविष्य अंधकार में देख आम आदमी पार्टी का गठन कर दिया गया था, और भाजपा से कहीं अधिक कांग्रेस को इस पार्टी ने सबसे ज्यादा नुकसान किया है। इस सच्चाई से कोई इंकार नहीं कर सकता।
दरअसल राहुल गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाना एक परिघटना की आधिकारिक उद्घोषणा भर है। इसका होना लोकतंत्र के वायरल बुखार से वापसी का सकारात्मक संकेत जैसा कुछ है। राहुल गांधी इस बुखार की दवा बन पाएंगे यह कहना मुश्किल है पर इससे लड़ने लायक हौसला वापस पाना भी उम्मीद का एक चिराग है।




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