संकट के दिनों में कल की चर्चित गायिका मीना कपूर को किसी ने नहीं पूछा |
आर.बी.एल.निगम, फिल्म समीक्षक
अपने स्कूली दिनों से दिलों पर राज करने वाली बीते वर्षों की चर्चित गायिका मीना कपूर मौत के वक्त गुमनामी में जीवन जीने को बाध्य थी। मेरी जान संडे के संडे और रसिया रे मन बसिया रे जैसे सुपरहिट गीतों की गायिका मीना कपूर का कोलकाता में नवम्बर 23 को निधन हो गया।
मीना कपूर पिछले कुछ सालों से बीमार चल रही थी। उनको लकवा मार गया था. उनके निधन की पुष्टि बेटी शिखा वोरा ने की। उन्होंने बताया कि हमें मौत के कारणों का पता नहीं चल पाया है। वह पिछले कई सालों से लकवा से जूझ रही थी। जब से वह कोलकाता में रहने लगी थीं, वह हमारे संपर्क में नहीं थीं। इसलिए हमें उनकी हालत के बारे में कोई जानकारी नहीं।
गुमनामी की हालत में मृत्यु की गोद में विश्राम करने वाली मीना कपूर पहली महिला नहीं है, एक लम्बी सूची है। एक शेर है :
जब तक थे अहमक की जेब में पैसे
लोग कहते अजी आप हैं ऐसे वैसे
जब जेब में नहीं रहे पैसे
वही लोग कहते कौन थे आप वैसे तैसे
गुमनामी की हालत में मृत्यु की गोद में विश्राम करने वाली मीना कपूर पहली महिला नहीं है, एक लम्बी सूची है। एक शेर है :
जब तक थे अहमक की जेब में पैसे
लोग कहते अजी आप हैं ऐसे वैसे
जब जेब में नहीं रहे पैसे
वही लोग कहते कौन थे आप वैसे तैसे
आज तो फिल्मों में गीत लिखे जाते हैं, जो भावरहित होने के कारण असमय लुप्त हो जाते हैं, जबकि बीते वर्षों में लिखे गीत आज भी और कल भी अमर रहेंगे। गीतकार प्रदीप के किसी भी गीत को देख लें, लगता है आज के माहौल को देख गीत की रचना की गयी है। संक्षेप में इतना कहना है, फिल्म गोपी का एक गीत सुख के सब साथी, दुःख में पूछे कोई...फिल्म जगत पर ही शत-प्रतिशत चरितार्थ हो रहा है।
फिल्मों एक धनी का अभिनय करने वाले रहमान की नई दिल्ली में स्पोर्ट्स क्लब में एक गरीब की तरह हुई। अलमारी में रखे उनके संदूक से निकले चंद पुराने कुर्ते-पाजामें। यानि जब तक कोई कलाकार धन-सम्पन्न होता है, सभी उसके इर्द-गिर्द मंडराते हैं, कंगाली के दिनों में कोई साथ नहीं देता।
ऐसा ही व्यक्तिगत अनुभव भी है, जब पिताश्री एम.बी.एल.निगम, जिनका नाम 50 के दशक में एक चर्चित फिल्म वितरक(Premier Pictures) थे, सब इनके चारों तरफ खूब चक्कर काटते रहते थे, लेकिन एक फिल्म के प्रदर्शन ने इनके ऑफिस में प्रदर्शन के दिन, शुक्रवार को ही ताला डलवा दिया। कर्जे में डूबे पिताश्री का साथ देने कोई नहीं आया। केवल कमाल अमरोही, अभिनेता,निर्माता-निर्देशक कुमार इनके साथ खड़े रहे। फिल्म वितरक के समय से यही इनके मित्रों में से थे। कोई हम भाई-बहनों से यह तक नहीं पूछता था कि तुम्हारे घर चूल्हा जला है या नहीं। लोग फिल्म वालों की चकाचौंध से प्रभावित तो होते हैं, लेकिन संकट के समय सब कोसों मील दूर भाग जाते हैं।
फिल्मों एक धनी का अभिनय करने वाले रहमान की नई दिल्ली में स्पोर्ट्स क्लब में एक गरीब की तरह हुई। अलमारी में रखे उनके संदूक से निकले चंद पुराने कुर्ते-पाजामें। यानि जब तक कोई कलाकार धन-सम्पन्न होता है, सभी उसके इर्द-गिर्द मंडराते हैं, कंगाली के दिनों में कोई साथ नहीं देता।
50 के दशक के चर्चित फिल्म वितरक पिताश्री एम.बी.एल.निगम |
125 गाने गाये थे
बॉलीवुड में छोटे से करियर में ही उन्होंने 125 गाने गाएं जिनमें से कई हिट रहे. उनका गाया गाना ‘रसिया रे मन बसिया रे, (फिल्म परदेसी, 1957), ‘एक धरती है एक ही गांव ‘(फिल्म अधिकार, 1954) और ‘कुछ और जमाना कहता है’ (फिल्म छोटी छोटी बातें, 1965) आज भी संगीत प्रेमियों की जुबान पर है.
स्कूल में ही फेमस हो गयी थीं
मीना कपूर जब स्कूल में थीं, तभी संगीतकार नीनू मजूमदार ने उनकी गायिकी के टैलेंट को पहचान लिया था. उन्होंने फिल्म ‘पुल’ के लिए अपना पहला गाना रिकॉर्ड किया. पर फिल्म ‘आठ दिन’ (1946) में गाया गया उनका गाना पहले रिलीज हुआ. एसडी बर्मन और मीना कपूर के पिता बिक्रम कपूर अच्छे दोस्त थे.
गीता दत्त की सहेली थीं
इंडस्ट्री में मीना कपूर और गीता दत्त की दोस्ती के किस्से काफी मशहूर हैं. इन दोनों लोकप्रिय गायिकाओं की मुलाकात 1952 में हुई जब दोनों ने फिल्म ‘घायल’ के लिए डूएट गाना रिकॉर्ड किया. गीता दत्त को मीना कपूर की आवाज ने प्रभावित किया. रिहर्सल के दौरान ही दोनों की दोस्ती हो गई. मीना कपूर ने संगीतकार अनिल बिश्वास से 1959 में शादी की. इन दोनों के कोई बच्चे नहीं थे, लेकिन पहली शादी से अनिल के चार बच्चे थे. 1963 में पति की नौकरी ऑल इंडिया रेडियो में लग गई जिसके बाद वह उनके साथ दिल्ली चली गईं. साल 2003 में पति की मौत के बाद वह कोलकाता शिफ्ट हो गईं.
परवीन बॉबी को कौन नहीं जानता। किस तरह फिल्म जगत ने ही शादी करने के सब्जबाग दिखा कर इनके यौवन का आनन्द लिया। विवाहित जीवन जीने की लालसा में फिल्मों से दूर होती गयीं, लेकिन नींबू की तरह निचुड़ने वाली परवीन न घर की रहीं और न ही घाट की।
फिल्मों में माँ की भूमिका करने वाली अचला सचदेव की चर्चित फिल्मों को भुलाया नहीं जा सकता। लेकिन ठलती आयु में जब फिल्मे बंद हो गयीं, इनके धन पर मौज-मस्ती करने वालों तक ने इनका साथ छोड़ दिया। किन परिस्थितियों में इनकी मृत्यु हुई? बहुत लम्बी सूची है।
विमी
न जाने कितनी गीता दत्त हैं। मुंबई के नानावती अस्पातल में 22 अगस्त 1977, विमी की जिंदगी का आखिरी दिन। बीमार विमी जनरल वार्ड में बिस्तर पर पड़ी थीं। वहीं उन्होंने आखिरी सांसें लीं। अपने करियर में विमी ने सिर्फ 9 फिल्में कीं। लेकिन दौर था, जब उनकी फिल्म आते ही हिट हो जाती थी। कहा जाता है कि आखिरी दिनों में उनके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि उनकी शव यात्रा निकाली जाए। कोई मदद को आगे नहीं आया तो आखिर में उनकी लाश को एक ठेले पर डालकर ले जाना पड़ा। यही नहीं, उनकी अंतिम यात्रा में बस चार-पांच लोग ही थे।परवीन बॉबी को कौन नहीं जानता। किस तरह फिल्म जगत ने ही शादी करने के सब्जबाग दिखा कर इनके यौवन का आनन्द लिया। विवाहित जीवन जीने की लालसा में फिल्मों से दूर होती गयीं, लेकिन नींबू की तरह निचुड़ने वाली परवीन न घर की रहीं और न ही घाट की।
फिल्मों में माँ की भूमिका करने वाली अचला सचदेव की चर्चित फिल्मों को भुलाया नहीं जा सकता। लेकिन ठलती आयु में जब फिल्मे बंद हो गयीं, इनके धन पर मौज-मस्ती करने वालों तक ने इनका साथ छोड़ दिया। किन परिस्थितियों में इनकी मृत्यु हुई? बहुत लम्बी सूची है।
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