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हिन्दुओं पर एक और कुठाराघात की तैयारी

पिछली युपीए सरकार ने लगता है, हिन्दू विरोधियों को निर्णायक पदों पर नियुक्त कर हिन्दू विरोधी मुहिम को अंजाम देने का काम करके गयी है। दिवाली पर आतिशबाज़ी पर आए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय उपरान्त त्रिपुरा के गवर्नर तथागत रॉय ने जो व्यंगात्मत बात कही, उस पर राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) अपनी मोहर लगाने को तत्पर है। और इन सब निर्णयों की मार पड़ेगी, हिन्दुवादी प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी पर और उनकी सरकार पर। हिन्दू भाजपा से नाराज होकर अलग हो जाएगा और अगले चुनाव में युपीए पुनः सत्ता में आ जाएगी। 
सेवानिर्वित उपरान्त एक हिन्दी पाक्षिक को सम्पादित करते अपनी आमुख लेख में स्पष्ट लिखा था, कि सोनिया गाँधी 2014 चुनाव की बजाए 2015 के चुनाव की तैयारी में हैं, क्योकि उनको गैर-युपीए की खिचड़ी सरकार की उम्मीद थी। लेकिन भाग्य ने साथ नहीं दिया, और पूर्ण बहुमत से मोदी सरकार का गठन हो गया और नॉस्त्रेदमूस की भविष्यवाणी को देखते हुए, भविष्य में दूर तक किसी अन्य सरकार नहीं दिखती। ये समस्त हिन्दू विरोधी गतिविधियों में व्यस्त बहुत जल्द मुँह के बल गिरने वाले हैं। यह शुभ कार्य कब होगा, यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है। लेकिन नॉस्त्रेदमस को अध्य्यन करने वालों के लिए यह सब नए काम नहीं हैं, इन हिन्दू विरोधियों को एक दिन एकजुट होकर बाहर आना ही था। 
दिवाली पर दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का कई जगह विरोध हो रहा है।त्रिपुरा के गवर्नर तथागत रॉय ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध किया है। रॉय ने यहां तक कह दिया कि आगे-आगे तो हिंदुओं की चिता जलाने पर भी याचिका कोर्ट पहुंच सकती है। 


गवर्नर ने ये बात ट्वीट के जरिए कही. उन्होंने कहा, 'कभी दही हांडी, आज पटाखा, कल हो सकता है प्रदूषण का हवाला देकर मोमबत्ती और अवॉर्ड वापसी गैंग हिंदुओं की चिता जलाने पर भी याचिका डाल दें। 
कभी दही हांडी,आज पटाखा ,कल को हो सकता है प्रदूषण का हवाला देकर मोमबत्ती और अवार्ड वापसी गैंग हिंदुओ की चिता जलाने पर भी याचिका डाल दे !
अक्टूबर 10 को राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने हिंदुओं के शवों को जलाने की पुरानी परंपरा पर प्रश्न चिह्न लगाते हुए कहा कि खुले इलाके में मानव अवशेषों के दाह संस्कार की प्रक्रिया वायु प्रदूषण की ओर बढ़ती है और बाद में यह प्राकृतिक जल संसाधनों को भी प्रभावित करता है। 
प्रदूषण के बढ़ते स्तर को ध्यान में रखते हुए, विशेषकर राष्ट्रीय राजधानी में, ट्रिब्यूनल ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और दिल्ली सरकार से अंतिम संस्कार के वैकल्पिक विकल्प उपलब्ध कराने के लिए कार्यक्रम शुरू करने को कहा है। 
परंपरागत व्यवस्था का एक संक्षिप्त दृष्टिकोण, हिंदू धर्म के अनुसार, एक व्यक्ति के मरने के बाद, शरीर को परंपरा के अनुसार परिवार के सदस्यों और घनिष्ठ मित्रों द्वारा धोया जाता है और बाद में, धार्मिक प्रक्रियाओं के कुछ दो चरणों के बाद इसका अंतिम संस्कार किया जाता है। 
हिंदुओं का मानना है कि मृत व्यक्ति की आत्मा पूरी तरह से शरीर और भौतिक दुनिया से अलग होनी चाहिए, ताकि उसका फिर से पुनर्जन्म हो सके। इसके लिए, खुले में अंतिम संस्कार की आवश्यकता होती है ताकि आत्मा को आसानी से मुक्ति मिल सके, जैसे ही शरीर को लकड़ी के बड़े ढेर के ऊपर जला दिया जाता है। 
कई लोगों को मौत के बाद जलाने के लिए चंदन की लकड़ी का भी इस्तेमाल किया जाता है। 
इस के साथ ही अस्थियान या शरीर के अवशेष तब जाकर गंगा में प्रवाहित होते है. जिसे एक पवित्र नदी माना जाता है। 
अवलोकन करें:--


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एनजीटी के निर्देश, पर्यावरण के कारक को इंगित करते हुए न्यायमूर्ति यूडी साळवी की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने कहा कि पर्यावरण के अनुकूल तरीके जैसे बिजली या सीएनजी के इस्तेमाल से शवों का अंतिम संस्कार करना चाहिए। क्या सीएनजी या बिजली से दाह-संस्कार करने पर पर्यावरण पर प्रभाव नहीं पड़ेगा।उन्होंने आगे कहा कि, इस मसले में विश्वास और परिस्थितियों का प्रश्न शामिल है जिसमें लोग रहते है।इसलिए, उन लोगों की जिम्मेदारी है, जो विशेष रूप से धर्म के नेता बनते है। एक दिशा में विश्वास को चलाने के लिए ताकि वे लोगों की मानसिकता को बदल सकें, विश्वास और उन तरीकों को अपनाने के लिए बोले जो पर्यावरण के अनुकूल हो। 
राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को यदि वास्तव में पर्यावरण की इतनी चिन्ता है, सर्वप्रथम अपने कार्यालय और कारों से तुरन्त रेफ्रिजिरेटर, ए सी हटाने के आदेश दे, फिर उस क्षेत्र में देखिये कितना प्रदुषण कम होता है। जब से देश में वातानुकूलित कमरों, मकानों, दफ्तरों और कारों का चलन प्रारम्भ हुआ है, तभी से पर्यावरण हो या प्रदुषण का शोर जरुरत से ज्यादा हो रहा है। तपती धूप में वहाँ चलिए जहाँ एक भी पेड़ न हो और वहाँ भी चलिए जहाँ वातानुकूलित मकान और दफ्तर/दुकानें हो, जहाँ बिजली जाने पर जेनेरेटर चल रहे हों, अन्तर अपने आप सामने आ जाएगा। कड़कती गर्मी में सूट पहनकर वातानुकूलित दफ्तरों में बैठकर युगों पुरानी दाह-संस्कार प्रथा निर्णय लेना कितना उचित है? 
अगर देखा जाये तो यह एक और हमला है हिन्दू संस्कृति पर। अब समय आ गया है, जब समस्त हिन्दू समाज को पार्टीबाजी छोड़ एकजुट होकर हिन्दुओं पर हो रहे कुठाराघातों का विरोध करें। अभी तो दाह-संस्कार की बात आयी है, फिर अंतिम संस्कार उपरान्त घरों में होने वाले हवन पर भी पाबन्दी लगाई जाएगी।  ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब हिन्दू धर्म ही खत्म होने की कगार पर आ जाएगा। 

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