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मुस्लिम देश ने ही मुसलमानों पर लगा दी पाबन्दियाँ

आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
एक भारत जैसा सबसे महान देश जिसे कांग्रेस ने सेक्युलर बना दिया है। लेकिन फिर भी हामिद अंसारी जैसे लोग भारत को मुस्लिमों के लिए असुरक्षित देश बताते हैं, जबकि वह खुद लम्बे वक़्त से उपराष्ट्रपति पद पर आसीन रहे। लेकिन जब डीएसपी अय्यूब पंडित को मस्जिद के बाहर पीट पीटकर मार दिया जाता है तब ऐसे लोग मौन व्रत धर लेते हैं। 
चीन कर रहा मुस्लिमों पर अत्याचार लेकिन असुरक्षित है भारत
अभी चीन ने हाल ही में मुस्लिमों पर कई प्रतिबन्ध लगाए, यहां तक की उनकी नमाज़ की चटाई और कुरान तक जब्त कर ली गयी। यही नहीं उसके बाद होटलों में उईगुर मुस्लिमों के रहने पर प्रतिबन्ध लगा दिया।लेकिन कोई मानवाधिकार वालों का मुँह नहीं फूटा ना ही किसी लेखक ने अवार्ड लौटाए और ना ही कोई वामपंथी मीडिया ने खबर दिखाई। लेकिन अब तो इससे भी ज़्यादा हैरान करने वाली खबर आ रही है खुद इस कट्टर मुस्लिम देश ने ही मुसलमानों के खिलाफ हैरतअंगेज़ फरमान सुना दिया है। 
इस मुस्लिम शहर में ही मुसलमानों के खिलाफ सुनाया हैरतंगेज़ फैसला !
अभी मिल रही बहुत बड़ी खबर के मुताबिक दुबई जैसे इस्लामिक शहर में भी मुसलमानों के सड़क किनारे गाड़ी रोककर नमाज़ पढ़ने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है. इस पर और सख्ती से लगाम लगाई जाएगी। अगर किसी मुसलमान को सड़क किनारे नमाज़ पढता पाया गया तो उससे 500 दिरहम यानी 8800 रुपए का जुर्माना वसूला जाएगा। इस हिसाब से तो सबसे ज़्यादा असहिष्णु दुबई हुआ, लेकिन लगता है वहां कोई हामिद अंसारी नहीं है जो आवाज़ उठाने की जुर्रत कर सके। 
हालाँकि भारत में भी आप सड़कों, हाईवे पर, स्टशनों पर, रेल की पटरियों पर रेल रोक कर नमाज पढ़ते देख सकते हैं।ऐसा फैसला सोचिये अगर भारत में मोदी सरकार ले लेती तो क्या चीख पुकार मचती, सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट फिर, कुछ दोगले पत्रकार, फिर अवार्ड वापसी गैंग, तो वामपंथी दल, जेएनयू यूनिवर्सिटी में बैठे 35/40 साल के छात्र सब मोदी पर टूट पड़ते। अरे हाँ मानवाधिकार आयोग को कैसे भूल सकते हैं वो भी तो भारत पर नज़रें गड़ाए रहता है, ऐसे में कांग्रेस भी बहती गंगा में अपने हाथ धो लेती, लेकिन क्योकि ये फैसला दुबई ने लिया है इसलिए सब अंधे, गूंगे, बहरे हो गए हैं। 
नमाज़ पढ़ रहे लोगों को रौंदता चला गया ट्रक !
दरअसल दुबई ने ऐसा फैसला इसलिए लिया क्योकि दो दिन पहले ही दुबई में एक बड़ा दर्दनाक हादसा हो गया। अक्टूबर 22 को शहर के व्यस्त इलाकों में से एक शेख मोहम्मद जायद रोड से होकर एक बस गुजर रही थी, इसी बीच नमाज का समय हो गया। यात्रियों ने नमाज के लिए मौके पर ही बस रुकवा दी और उतरकर बीच सड़क पर ही नमाज पढ़ने लगे। इसी बीच वहां से गुजर रहे एक ट्रक का टायर फट गया, जिसके बाद ये ट्रक बेकाबू होकर सड़क पर नमाज़ पढ़ रहे मुस्लिमों को रौंद गया। इस दर्दनाक हादसे में 4 लोगों की मौत हो गयी और 15 लोग बुरी तरह घायल हो गए।  इससे पहले ट्रैफिक पुलिस भी कई बार लोगों से अनुरोध कर चुकी है कि वो सड़क किनारे नमाज पढ़ने से बचें, लेकिन किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। 
सड़क के किनारे गाड़ी पार्किंग करना और नमाज पढ़ना दुबई में बड़ी समस्या का विषय बन चुका है। आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल 23,763 वाहन चालकों पर सड़क किनारे पार्किंग करने पर जुर्माना लगाया गया था। अबू धाबी में पहले से ही इस नियम का सख्ती से पालन किया जा रहा है। 
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दुबई ने लगाया नमाज़ पढ़ने पर प्रतिबन्ध
दुबई ट्रैफिक डिपार्टमेंट के डायरेक्टर ब्रिगेडियर सैफ मुहैर अल मजरुई ने कहा, "शहर में कहीं भी सड़क के किनारे गाड़ी रोककर नमाज़ पढ़ना अपराध है। ये हादसे का कारण बनता है। अब ऐसे नमाज़ पढता जो भी दिखा उस पर जुर्माना लगाया जाएगा। शहर में कई मस्जिदें हैं, वहां नमाज़ अदा कीजिए।" धार्मिक क्रिया अलग जगह है ट्रैफिक नियम का भी पालन कीजिए। अगर किसी भी गाड़ी को दो बार पकड़ा गया तो उसका लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा। 

वोट डालना है तो बुर्का उतारो वर्ना दफा हो जाओ

Image result for voting in burqaमिस्र एक इस्लामिक देश है। हाल ही में इस देश की एक मुस्लिम सांसद आमना नासिर ने एक बयान दे कर पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया। असल में इन्होंने कहा कि मुस्लिम महिलाओं द्वारा खुद को सर से पैर तक ढकने की ये प्रथा इस्लामिक नहीं बल्कि यहूदियों की है। 
आमना नासिर मिस्र की एक सांसद और अल-अज़हर यूनिवर्सिटी में क़ानून की प्रोफ़ेसर भी हैं। उन्होंने कहा कि क़ुरान में महिलाओं को उनका सर ढक कर रखने की बात कही गयी है। उन्होंने कहा कि महिलाओं का खुद को सर से पैर तक ढके रखना एक यहूदी परंपरा है और इस्लाम यहूदियों की संस्कृति और परंपराओं के खिलाफ है। इसीलिए बुर्का पहनना वास्तव में गैर-इस्लामिक है।
वैसे कई गैर-मुस्लिम देश पहले ही बुर्का, हिजाब, दाढ़ी, टोपी पहनना, और अज़ान आदि पर पाबन्दी लगा चुकी हैं।  
बुर्का पहना है तो वोट नहीं
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भारत में बुर्का पहन वोट डालने पर पाबन्दी
लगाने पर मीडिया में होता विधवा-विलाप 
मिस्र में आजकल बुर्का पहनने पर प्रतिबन्ध लगाने की अटकलें चल रही हैं। सरकार का कहना है कि हाल ही में कट्टर लोगों द्वारा किये गए आतंकी हमलों को देखते हुए वो इस पर प्रतिबन्ध लगाने को मजबूर हैं। उनका कहना है कि वो कट्टरवाद को नहीं बल्कि आधुनिकता को बढ़ावा देना चाहते हैं। मिस्र की सरकार ने एक आदेश पारित करते हुए कहा है कि अक्टूबर में होने वाले चुनाव में सिर्फ वो ही महिलाएं वोट डाल पाएंगी जो बुर्का पहन कर नहीं आएँगी। जो महिलाएं बुर्का पहन के आएँगी उन्हें वोट डालने नहीं दिया जायेगा।
मिस्र की 90% से ज्यादा आबादी मुस्लिम है। मिस्र द्वारा उठाये जाने वाले इस कदम ने पूरी दुनिया के कट्टरपंथियों की बोलती बंद कर दी है। जहाँ एक ओर भारत में बात-बात पर फतवे जारी कर दिए जाते हैं, फतवा क्या हो गया, सितम की आग हो गया। वही दूसरी ओर मिस्र में इस आदेश के खिलाफ किसी तरह का कोई फतवा जारी नहीं किया गया। न ही इस्लाम को कोई खतरा, लेकिन भारत में ऐसा होते ही, सबको इस्लाम खतरे में नज़र आने लगेगा। प्रश्न होता है कि "क्या भारत में रह रहे मुसलमानों का और भारत से बाहर रहने वाले मुसलमानो के इस्लाम में फर्क है?" 
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समोसा खाने पर प्रतिबन्ध
आपको बता दें कि हाल ही में भारत में कुछ मुस्लिम संगठनो ने योग और सूर्य-नमस्कार को गैर-इस्लामिक बताया था और कुछ ही वक़्त पहले सोमालिया के एक मुस्लिम संगठन नें समोसे खाने को भी इस्लाम के खिलाफ बताया था। भारत में बीफ खाने और अवैध बुजड़खानों पर पाबन्दी लगने पर कितना सियापा मचा था, लेकिन सोमालिया में समोसे पर प्रतिबन्ध लगने पर कोई विधवा-विलाप करने वाला नहीं, कोई क्या खाना चाहिए और क्या नहीं जैसे आदेश देने वाली कोई कोर्ट नहीं। और न ही कोई मौलाना यह कहने वाला "इस्लाम मुल्क से ऊपर है।" कोई मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, देवबन्दी किसी कुरान, हदीस या शरिया की बात बोलने का साहस करने वाला। यानि मुल्क का कानून सर्वोपरि है।   
यह बातें सिद्ध करती हैं कि भारत में किस तरह इस्लाम का दुरूपयोग किया जा रहा है। क्योकि भारत में नेताओं ने तुष्टिकरण नीति अपनाकर इस्लाम को मात्र अपना वोट-बैंक बनाकर रख दिया है, जिसके लिए मुसलमान खुद ज़िम्मेदार हैं।   

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