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ताजमहल को मौहब्बत की निशानी बताने वाले मौहब्बत का अर्थ ही नहीं जानते !!!

आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
अवलोकन करिये मेरे स्तम्भों का, जो
इस पाक्षिक को सम्पादित करते
लिखे थे। मुख्य संपादक-प्रकाशक-स्वामी
द्वारा इस पाक्षिक को तत्कालीन हर मंत्री
से लेकर प्रधानमन्त्री डॉ मनमोहन सिंह एवं
सरकारी अधिकारी को प्रेषित किया जाता था।
  
ताज महल को मौहब्बत की निशानी बताने वाले क्या मौहब्बत का अर्थ जानते हैं? या बस मौहब्बत शब्द सुन, मौहब्बत  मौहब्बत चिल्लाना शुरू कर दिया? क्या कोई अय्याश मौहब्बत कर सकता है? अगर शाहजहाँ को मुमताज़ से मौहब्बत थी, तो मौहब्बत की निशाने बताने वालों जवाब दो:--
1. शाहजहाँ के कुल कितनी बीवियाँ थीं?
2. मुमताज़ की मौत के बाद, शाहजहाँ ने किससे निकाह किया?
3. मुमताज़ की मौत के कितने दिनों बाद शाहजहाँ ने निकाह किया था? क्या इसी को मौहब्बत कहते हैं?       4.अगर मुमताज़ से इतनी मौहब्बत थी, तो मुमताज़ के मरने के बाद निकाह क्यों किया?
5. शाहजहाँ के हरम में कितनी औरतें/लड़कियाँ थीं?
मुमताज का असली नाम अर्जुमंद-बानो-बेगम” था और यह शाहजहाँ की पहली पत्नी नही थी।इसके अलावा शाहजहाँ की 6 और पत्नियां भी थी। 
ताजमहल को मोहब्बत की निशानी बताने वालों कोई अय्याश अपनी हवस मिटाये बिना नहीं रह सकता। मोहब्बत की निशानी बता कर मोहब्बत का नाम बदनाम मत करो। एक मन्दिर को कब्रिस्तान बना दिया और कहते हो मोहब्बत की निशानी, शर्म करो, इसे मोहब्बत की निशानी बताने वालों। सच्चाई जाननी है, तो खुलवाओ इसके बंद कमरे। क्यों नहीं सरकार को बाध्य करते कि बंद कमरों को खोले? जिस दिन इतने वर्षों से बंद खुलेंगे, मोहब्बत की निशानी और शाहजहां द्वारा निर्मित कहने वाले दीवार से सिर पीट-पीट कर अपनी मौत मर जाएंगे। यही नहीं, जिन इतिहासकारों ने इसे शाहजहाँ द्वारा निर्मित बताया है, उन पर देश के वास्तविक इतिहास को अपमानित करने के विरुद्ध केस दर्ज़ कर, उन्हें दण्डित किया जाए।
पद्मनाभन मन्दिर से स्वर्ण मुद्राएँ लेने वहाँ के बन्द कक्षों को खुलवाने जब तत्कालीन युपीए सरकार कोर्ट जा सकती थी, ताजमहल में बन्द कमरों को खुलवाने क्यों नहीं गयी, डर था अपनी कुर्सी जाने का।

लेकिन जब ताजमहल को लेकर एक बार फिर से बड़ा विवाद छिड़ गया है तो क्या ये सही नहीं है इसके बन्द तहखानों को खोल दिया जाए ताकि देश के सामने सब सच आ जाए, ऐसा क्या राज उन तहखानों में है जिसे रहस्य बनाकर रखा जा रहा है, और क्यों? इसमें किसको फ़ायदा हो रहा है ?
ताजमहल की सच्चाई के संबध में ताजमहल के कई तहखानों में कई रहस्य दफन हैं, लेकिन इस इतिहास और इन रहस्यों पर कोई और नही बल्कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ही पर्दा डालने की कोशिशों में जूटा है। 
आज भाजपा नेता विनय कटियार ने भी बयान दिया है की ताजमहल शिव मंदिर था जिसको तोड़ दिया गया और उसके ऊपर मक़बरा बना दिया गया था। यहाँ कटियार को अपने शब्दों में शालीनता लाने की बहुत जरुरत है। उनको ज्ञान होना चाहिए कि किसी मुग़ल बादशाह में हिन्दू सम्राटों द्वारा निर्मित भवन या दुर्ग तोड़ने का साहस ही नहीं था। मन्दिरों की मूर्तियाँ खंडित कर या तो वहीँ ज़मीन में दबा दी या नदियों में डाल कर, उन आतताइयों ने बस अरबी में आयतें लिखने का काम किया है। 
बात निकली है, तो बहुत दूर तक जाएगी। रामजन्मभूमि और ताजमहल पर विधवा विलाप करने वालों, राष्ट्र को बताओ : 1, दिल्ली में औरंगज़ेब के भाई दारा शिकोह का महल कहाँ है? 2. दिल्ली जामा मस्जिद के निकट बाजार मटिया महल है, इसका नाम मटिया महल क्यों पड़ा? यहाँ मुगलों के बनाए मिट्टी के महल कहाँ गए? इन जगहों पर किसका कब्ज़ा है? ये वह महल थे, जहाँ गर्मी के दिनों में मुग़ल बादशाह अपनी बेगमों के साथ यहाँ रहते थे। 3. ऐसा क़ुतुब पर क्या घटित हुआ था, कि उस मामले को दाबने के लिए रामजन्मभूमि के बंद ताले खोल दिए गए? 4. ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि कोर्ट को शिलान्यास करने का आदेश देना पड़ा? 5. कोई किसी जगह पर शिलान्यास कब करता है, क्या कोई किसी की ज़मीन पर शिलान्यास कर सकता है? इसके बावजूद मुक़दमे को लम्बित रखना, क्या हिन्दुओं को प्रताड़ित करना सिद्ध नहीं करता?
विश्व हिन्दू प्रारम्भ से कह रहा है, "हमें हमारे ये तीन तीर्थ अयोध्या,मथुरा और काशी दे दो, बाकी 2997 पर से अपना हक़ छोड़ देंगे। अब ये जो ताजमहल की आवाज़ उठी है, इसने अब 3000 हिन्दू मन्दिरों, दुर्ग और सूर्य स्तम्भ(जिसे क़ुतुब मीनार कहते हैं) को वापस लेने का बिगुल बजा दिया है। अब इस विवाद को समाप्त करने का एक ही विकल्प है, अयोध्या, मथुरा और काशी से जितनी जल्दी संभव हो,अपना अधिकार छोड़ें ही नहीं, उन मस्जिदों के कही किसी अन्य स्थान पर बनाने का विचार भी त्यागना होगा। जनता को वास्तविकता से अवगत करवाना होगा। सच्चाई को बिना संकोच जनता को बतानी  होगी।
दिल्ली पुरानी सब्ज़ी मंडी में देसी घी के व्यापारी डॉ गणेशी लाल वर्मा ने आर्गेनाइजर साप्ताहिक में 1986/87 में एक श्रृंखला "मुग़ल युग में कितने मन्दिरों को खण्डित कर कब्रिस्तान, मकबरा या मस्जिदें बनाई गयीं और कितने विशाल दुर्गों और स्तम्भों पर अपना नाम अंकित किया गया।" इस श्रृंखला को डॉ वर्मा ने एक पुस्तक में संग्रहित कर, इतिहासकारों की नींद हराम कर दी थी।   
अवलोकन करिये :--


2014 में केन्द्र में सत्ता के परिवर्तन से बहुत कुछ ऐसा सार्वजानिक हो रहा है, जिसकी शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी।दिल्ली की जामा मस्ज...
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प्रस्तुत है दैनिक सनातन प्रभात रपट  
'ताजमहल' वास्तु मुसलमानों की नहीं, अपितु वह मूलतः हिंदुओं की है। वहां इससे पूर्व भगवान शिवजी का मंदिर था, यह इतिहास सूर्य के प्रकाश के जितना ही स्पष्ट है। मुसलमानों ने इस वास्तु को ताजमहल बनाया । ताजमहल इससे पूर्व शिवालय होने का प्रमाण पुरातत्व विभाग के अधिकारी, अन्य पुरातत्वतज्ञ, इतिहास के अभ्यासक तथा देश विदेश के तज्ञ बताते हैं। मुसलमान आक्रमणकारियों की दैनिकी में (डायरी) भी उन्होंने कहा है कि ताजमहल हिंदुओं की वास्तु है। तब भी मुसलमान इस वास्तु पर अपना अधिकार जताते हैं। शिवालय के विषय में सरकार के पास सैकडों प्रमाण धूल खाते पडे हैं। सरकार इस पर कुछ नहीं करेगी। इसलिए अब अपनी हथियाई गई वास्तु वापस प्राप्त करने हेतु यथाशक्ति प्रयास करना ही हिंदुओं का धर्म कर्तव्य है। ऐसी वास्तुएं वापस प्राप्त करने हेतु एवं हिंदुओं की वास्तुओं की रक्षा के लिए ‘हिंदु राष्ट्र’ अनिवार्य है !
मुसलमान आक्रमणकारियों ने भारत के केवल गांव एवं नगरों के ही नामों में परिवर्तन नहीं किया, अपितु वहां की विशाल वास्तुओं को नियंत्रण में लेकर एवं उसमें मनचाहा परिवर्तन कर निस्संकोच रूप से मुसलमानों के नाम दिए। मूलतः मुसलमानों को इतनी विशाल एवं सुंदर वास्तु बनाने का ज्ञान ही नहीं था। परंतु हिंदुओं ने इस्लाम पंथ की स्थापना से पूर्व ही अजिंटा तथा वेरूल के साथ अनेक विशाल मंदिरों का निर्माण कार्य किया था। मुसलमान आक्रमणकारियों को केवल भारत की वास्तुकला के सुंदर नमुने उद्ध्वस्त करना इतना ही ज्ञात था। गजनी द्वारा अनेक बार उद्ध्वस्त श्री सोमनाथ मंदिर से लेकर अभी कुछ ही वर्ष पूर्व अफगानिस्तान में उद्ध्वस्त बामयान की विशाल बुद्ध मूर्ति तक का इतिहास मुसलमान आक्रमणकारियों की विध्वंसक मानसिकता के प्रमाण है।

आक्रमणकर्ताओं की दैनिकी में ताजमहल के विषयमें सत्य !

ताजमहल वास्तु की भी कहानी इसी प्रकारकी है। डॉ. राधेश्याम ब्रह्मचारी ने ताजमहल का तथाकथित निर्माता शाहजहाँ के ही कार्यकाल में लिखे गए दस्तावेजों का संदर्भ लेकर ताजमहल का इतिहास तपास कर देखा है। अकबर के समान शाहजहां ने भी बादशहानामा ऐतिहासिक अभिलेख में अपना चरित्र एवं कार्यकाल का इतिहास लिखकर रखा था। अब्दुल हमीद लाहोरी ने अरेबिक भाषा में बादशहानामा लिखा था, जो एशियाटिक सोसायटी ऑफ बेंगाल ग्रंथालय में आज भी उपलब्ध है। इस बादशहानामा के पृष्ठ क्रमांक 402 एवं 403 के भाग में ताजमहल वास्तु का इतिहास छिपा हुआ है। इस भाग का स्वच्छंद भाषांतर आगे दिया है ।
'शुक्रवार दिनांक 15 माह जमदिउलवल को शाहजहाँ की पत्नी मुमताजुल जामानि का पार्थिव बुरहानपुर से आगरा में (उस समय का अकबराबाद) लाया गया। यहां के राजा मानसिंह के महल के रूप में पहचाने जाने वाले अट्टालिकामें गाडा गया। यह अट्टालिका राजा मानसिंह के नाती राजा जयसिंह के मालिकी की थी । उन्होंने यह अट्टालिका शाहजहाँ को देना स्वीकार किया। इसके स्थान पर राजा जयसिंह को शरीफाबाद की जागीरी  दी गई । यहां गाडे गए महारानी का विश्व को दर्शन न होने हेतु इस भवन का रूपांतर दर्गा में किया गया ।

मुमताजुुल की मृत्यु !

शाहजहाँ की पत्नी का मूल नाम था अर्जुमंद बानू। वह 18 वर्षों तक शाहजहाँ की रानी थी। इस कालावधि में उसे 14 बच्चे हुए । बरहानपुर में अंतिम बच्चा जन्म देते समय उसकी मृत्यु हो गई । उसका शव वहीं पर अस्थायी रूप से गाडा गया ।

ॐ का शिल्प

ताजमहल शिवालय होनेका सरकारी प्रमाण !

ताजमहलसे ४ कि.मी. दूरीपर आग्रा नगरमें बटेश्वर नामक बस्ती थी । वर्ष १९०० में पुरातन सर्वेक्षण विभागके संचालक जनरल कनिंघमद्वारा किए गए उत्खननमें वहां संस्कृतमें ३४ श्लोकमें मुंज बटेश्वर आदेश नामक पोथा पाया गया, जो लक्ष्मणपुरीके संग्रहालयमें संरक्षित है । इसमें श्लोक क्रमांक २५, २६ एवं ३६ महत्त्वपूर्ण हैं । इनका स्वच्छंद भाषांतर आगे दिया है ।
'राजाने एक संगमरवरी मंदिरका निर्माणकार्य किया । यह भगवान विष्णुका है । राजाने दूसरा शिवका संगमरवरी मंदिरका निर्माण कार्य किया । ' यह अभिलेख विक्रम संवत १२१२ माह आश्विन शुद्ध पंचमी, शुक्रवारको लिखा गया । (वर्तमान समयमें विक्रम संवत २०७० चालू है । अर्थात शिवालयका निर्माणकार्य कर लगभग ८५० वर्षोंकी कालावधि बीत गई है ।) (यह कालावधि लेख लिखनेके समयका अर्थात वर्ष १९०० के संदर्भके अनुसार है – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )

शिवालयके प्रमाणको पुरातत्व शास्त्रज्ञोंका समर्थन !

१. प्रख्यात पुरातत्वशास्त्रज्ञ डी.जे. कालेने भी उपरोक्त दस्तावेजको समर्थन दिया है । उनके संशोधनके अनुसार राजा परमार्दीदेवने २ विशाल संगमरवरी मंदिरोंका निर्माणकार्य किया, जिसमें एक श्रीविष्णुका तो दूसरा भगवान शिवजीका था । कुछ समय पश्चात मुसलमान आक्रमणकर्ताओंने इन मंदिरोंका पावित्र्य भंग किया । इस घटनासे भयभीत होकर एक व्यक्तिने दस्तावेजको भूमिमें गाडकर रखा होगा । मंदिरोंकी पवित्रताका भंग होनेके कारण उनका धार्मिक उपयोग बंद हो गया । इसीलिए बादशहानामाके लेखक अब्दुल हमीद लाहोरीने मंदिरके स्थानपर महल ऐसा उल्लेख किया होगा ।
२. प्रसिद्ध इतिहासकार आर.सी. मुजुमदारके अनुसार चंद्रात्रेय (चंदेल) राजा परमार्दिदेवका दूसरा नाम था परमल एवं उसके राज्यका नाम था बुंदेलखंड । आज आग्रामें दो संगमरवरी प्रासाद हैं, जिसमें एक नूरजहांके पिताकी समाधि (श्रीविष्णु मंदिर) है एवं दूसरा (शिवमंदिर) ताजमहल है ।

ताजमहल हिंदुओंका शिवालय होनेके और भी स्पष्ट प्रमाण !

प्रसिद्ध इतिहासकार आर.सी. मुजुमदारके मतका समर्थन करनेवाले प्रमाण आगे दिए हैं ।
१. ताजमहलके प्रमुख गुंबजके कलशपर त्रिशूल है, जो शिवशस्त्रके रूपमें प्रचलित है ।
२. मुख्य गुंबजके उपरके छतपर एक संकल लटक रही है । वर्तमानमें इस संकलका कोई उपयोग नहीं होता; परंतु मुसलमानोंके आक्रमणसे पूर्व इस संकलको एक पात्र लगाया जाता था, जिसके माध्यमसे शिवलिंगपर अभिषेक होता था ।
३. अंदर ही २ मंजिलका ताजमहल है । वास्तव समाधि एवं रिक्त समाधि नीचेकी मंजिलपर है, जबकि २ रिक्त कबरें प्रथम मंजिलपर हैं । २ मंजिलवाले शिवालय उज्जैन एवं अन्य स्थानपर भी पाए जाते हैं ।
४. मुसलमानोंकी किसी भी वास्तुमें परिक्रमा मार्ग नहीं रहता; परंतु ताजमहलमें परिक्रमा मार्ग उपलब्ध है ।

वैदिक पद्धतीका वास्तुनिर्माण
५. फ्रांस देशीय प्रवासी तावेर्नियारने लिखकर रखा है कि इस मंदिरके परिसरमें बाजार भरता था । ऐसी प्रथा केवल हिंदु मंदिरोंमें ही पाई जाती है । मुसलमानोंके प्रार्थनास्थलोंमें ऐसे बाजार नहीं भरते ।

ताजमहल शिवालय होनेकी बात आधुनिक वैज्ञानिक प्रयोगद्वारा भी सिद्ध

वर्ष १९७३ में न्यूयार्कके प्रैट संस्थाके प्राध्यापक मर्विन मिल्सद्वारा ताजमहलके दक्षिणमें स्थित लकडीके दरवाजेका एक टुकडा अमेरिकामें ले जाया गया । उसे ब्रुकलिन महाविद्यालयके संचालक डॉ. विलियम्सको देकर उस टुकडेकी आयु कार्बन-१४ प्रयोग पद्धतिसे सिद्ध करनेको कहा गया । उस समय वह लकडा ६१० वर्ष (अल्प-अधिक ३९ वर्ष) आयुका निष्पन्न हुआ । इस प्रकारसे ताजमहल वास्तु शहाजहानसे पूर्व कितने वर्षोंसे अस्तित्वमें थी यह  सिद्ध होता है ।

शिवालय (अर्थात तेजोमहालय) ८४८ वर्ष पुराना !

यहांके मंदिरमें स्थित शिवलिंगको 'तेजोलिंग' एवं मंदिरको तेजोमहालय कहा जाता था । यह भगवान शिवका मंदिर अग्रेश्वर नामसे प्रसिद्ध था । इससे ही इस नगरको आग्रा नाम पडा । मुंज बटेश्वर आदेशके अनुसार यह मंदिर ८४८ वर्ष पुराना है । इसका ३५० वां स्मृतिदिन मनाना अत्यंत हास्यजनक है ।
(संदर्भ : साप्ताहिक ऑर्गनायजर, २८.११.२००४)

Comments

Unknown said…
great sodh mai chahunga ki aap jase budhijivi mujhe margdrshan aur sath de

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