आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
कांग्रेस ने असम का क्या हाल कर रखा था, ये इन आंकड़ों से पता चलता है की असम की 3 करोड़ की जनसँख्या में 31 लाख तो अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिये है, यानि असम की जनसँख्या में 10% तो घुसबैठिये है, जिन्हे कांग्रेस ने राजनीतिक लाभ के लिए असम में घुसा दिया, और असम में मुस्लिम आबादी 36% हो गयी। अब असम में बीजेपी की सरकार है, अवैध घुसपैठिये को बाहर करना इतना भी आसान नहीं है। चूँकि इनके पास पिछली सरकार की मदद से आधार कार्ड, वोटर कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र इत्यादि सब कुछ है, इसलिए इनकी पहचान करना और इन पर कार्यवाही करना बहुत मुश्किल है क़ानूनी पेंच भी है।
असम की सरकार ने अब तक 31 लाख अवैध घुसपैठिये की पहचान कर ली है, जिनके पास वोटर कार्ड, आधार कार्ड इत्यादि सब कुछ है, पर ये लोग 1971 से पहले असम में अपनी मौजूदगी का सबूत नहीं दे सके, यानि इनके बाप दादा 1971 से पहले असम में रहते थे, उसका इनके पास कोई सबूत है ही नहीं, 1971 के बाद असम में बांग्लादेश से आने वाले ये सभी अवैध घुसपैठिये है, और इनके दस्तावेज भी फर्जी तरीके से वोट बैंक की लालची कांग्रेस सरकार ने बनाये हैं।
असम में इतने बांग्लादेशी घुसाए गए थे कि धुबरी जैसे कई जिले तो मुस्लिम बहुल है, बीजेपी की सरकार ने 31 लाख बांग्लादेशियों की पहचान की है, और 31 दिसंबर 2017 को पूरी लिस्ट भी रखी जाएगी जिसके बाद इन अवैध घुसपैठिये को बाहर करने की कार्यवाही शुरू होगी। पर वो भी इतना आसान नहीं है क्योकि देश में बहुत से छद्दम धर्म-निरपेक्ष और वामपंथी PIL याचिका लेकर कोर्ट में इसके खिलाफ जायेंगे, ये लोग 4 लाख रोहिन्यों के लिए इतना जी जान लगा रहे है, तो ये भी तय है की 31 लाख बांग्लादेशियों पर जब कार्यवाही की बात आएगी तो ये लोग उसके लिए दंगे भी करा दें, तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।
यदि भारत की कोई भी कोर्ट इन छद्दमों द्वारा दायर किसी भी याचिका को स्वीकार करने पूर्व अन्यथा कोर्ट याचिकाकर्ता से ही पूछे "क्या यह अवैध रूप से विश्व के किसी भी देश में रह सकते हो, चाहे वह बांग्लादेश व पाकिस्तान ही क्यों न हो? इसके आलावा केन्द्र सरकार को जल्दी से जल्दी अवैध बांग्लादेशियों को असम ही नहीं समस्त भारत से बाहर निकले।" और अगर स्वीकार करती है, तो इसका अर्थ यही होगा कोर्ट देशहित नहीं बल्कि छद्दमवाद को बढ़ावा दे रही है। उस स्थिति में केन्द्र सरकार को एक निश्चित और बहुत ही अल्प समय पर निर्णय देने के लिए कोर्ट को बाध्य करना होगा और यदि कोर्ट छद्दमों एवं वामपंथियों के प्रभाव में आकर कोई निर्णय देती है तो संसद के माध्यम से उसे निरस्त करना होगा।
असम में आल असम स्टूडेंड यूनियन का गठन असम में आए बांग्लादेशियों के ही कारण हुआ था। बांग्लादेशियों को प्रदेश से निकालने के AASU ने बहुत संघर्ष किया था। परिणामस्वरूप आगामी चुनावों में जनता ने तत्कालीन सरकार को बाहर का रास्ता दिखाकर AASU के हाथों सत्ता सौंप दी। और जब तक इन पर कार्यवाही शुरू की, तुष्टिकरण अपनाने वाले नेताओं ने उनके काम में अड़चने डाल काम नहीं करने दिया। वास्तविकता से अज्ञान जनता वापस पुरानी सरकार को सत्ता में ले आयी। सम्भव है, ये वोट के भूखे नेता कुछ भी असम्भव कार्य को अंजाम देने से पीछे नहीं हटेंगे। लेकिन सरकार को देशहित में इस सब से निपटने के लिए यदि कठोर कदम भी उठाने पड़ें तो संकोच नहीं करे। देश पहले है, राजनीति बाद में।
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