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हम किसी के दबाव में आकर आतंकियों को दुबारा म्यांमार में नहीं घुसने देंगे --- आंग सान सू

aung-san-suu-kye-said-myanmar-will-not-take-rohingya-muslims-backम्‍यांमार के रोहिंग्‍या मुसलमानों के मुद्दे पर इस वक्‍त वहां की नेता आंग सान सू की निशाने पर है। ताजा मामले में पिछले 25 अगस्‍त को रोहिंग्‍या विद्रोहियों ने कई पुलिस पोस्‍ट और आर्मी बेस पर हमला कर दिया।उसके बाद हिंसा भड़क गई और सेना की कार्रवाई में अब तक 400 लोग मारे गए है। तब से खौफजदा हजारों रोहिंग्‍या बांग्‍लादेश और भारत जैसे मुल्‍कों में शरणार्थी बनकर पहुंच रहे है। दरअसल बहुसंख्‍यक बहुसंख्‍यक बौद्ध आबादी वाले म्‍यांमार के रखाइन प्रांत में रोहिंग्‍या मुसलमानों की अच्‍छी-खासी तादाद है। इस प्रांत में इनके खिलाफ पिछले पांच वर्षों से सांप्रदायिक हिंसा की खबरें आ रही है। ताजा हिंसा के बाद मानवाधिकारों की चैंपियन रहीं नोबेल शांति पुरस्‍कार विजेता और म्‍यांमार की स्‍टेट काउंसलर आंग सान सू ने खामोशी अख्तियार कर रखी है। सितम्बर 18  को नोबेल विजेता मलाला युसूफजई ने सू की से अपनी चुप्‍पी तोड़ने की अपील की।. और उसी दिन म्‍यांमार में बांग्‍लादेश की सीमा के निकट बम विस्‍फोट में कई लोगों के हताहत होने की खबरे है।  
अवलोकन करें :--

स्‍टेट काउंसलर आंग सान सू की ने पहली बार रोहिंग्‍या मुसलमानों के पलायन के मुद्दे पर बोलते हुए कहा है कि म्‍यांमार हिंसाग्रस्‍त रखाइन प्रांत...
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रोहिंग्‍या मुसलमान? 
ये म्‍यांमार के रखाइन प्रांत में अल्‍पसंख्‍यक रोहिंग्‍या मुसलमानों की आबादी तकरीबन 10 लाख है। जातीय रूप से ये भारत-बांग्‍लादेश के इंडो-आर्यन लोगों के अधिक करीब है। इस लिहाज से ये म्‍यांमार की सिनो-तिब्‍बत जातीय समूह से भिन्‍न लगते है।  इनके बोलचाल में बांग्‍ला भाषा का पुट अधिक है। म्‍यांमार की सरकार इनको विदेशी प्रवासी कहती है। 1982 में इनको नागरिकता से वंचित कर दिया गया। हालांकि एमनेस्‍टी इंटरनेशनल के मुताबिक ये आठवीं सदी से रखाइन तटीय इलाके में रह रहे है। हालांकि ब्रिटिश औपनिवेशिक दौर में अच्‍छी-खासी मुस्लिम आबादी यहां पहुंची। नागरिकता से वंचित होने के कारण ये तमाम सरकारी सुविधाओं से वंचित हो गए है। कहा जाता है कि सांप्रदायिक आधार पर इनके साथ लंबे समय से भेदभाव हो रहा है और पिछले पांच वर्षों से ये सांप्रदायिक हिंसा का लगातार शिकार हो रहे है।  इसके चलते करीब दो लाख रोहिंग्‍या मुसलमान म्‍यांमार छोड़कर बांग्‍लादेश, थाईलैंड, मलेशिया और भारत में शरणार्थी बनकर पहुंचे हैं।  
आंग सान सू की
म्यांमार में तकरीबन 50 साल सैन्‍य तानाशाही रही। हालिया दौर में 25 वर्ष बाद पिछले साल म्‍यांमार में आम चुनाव हुए। इस चुनाव में नोबेल विजेता आंग सान सू की की पार्टी नेशनल लीग फोर डेमोक्रेसी को भारी जीत मिली। नतीजतन वर्षों की नजरबंदी के बाद आंग सान को आजादी मिली। हालांकि सैन्‍य तानाशाही के दौर में बने संवैधानिक कानूनों के तहत वह चुनाव जीतने के बाद भी राष्ट्रपति नहीं बन सकीं। लिहाजा उनके एक विश्‍वस्‍त करीबी को राष्‍ट्रपति बनाया गया और आंग सान स्टेट काउंसलर बनी। हालांकि यह माना जाता है कि सत्‍ता की वास्तविक कमान आंग सान के हाथों में हैं। संभवतया इसीलिए अंतरराष्ट्रीय जगत में उनकी आलोचना हो रही है। सवाल उठ रहे हैं कि मानवाधिकारों की चैंपियन होने के बावजूद आंग सान इस मसले पर खामोश क्‍यों हैं? 
मानवाधिकारों की चैंपियन रहीं नोबेल शांति पुरस्‍कार विजेता और म्‍यांमार की स्‍टेट काउंसलर आंग सान सू के लिए चुनौती 
म्‍यांमार: नोबेल विजेता आंग सान रोहिंग्‍या मुसलमानों पर चुप क्‍यों हैं? हालांकि वास्‍तविकता यह भी है कि देश की सुरक्षा सेना के पास है। ऐसे में यदि यदि सू की अंतराष्ट्रीय दवाब में रखाइन प्रांत के मसले पर कोई सख्‍त स्‍टैंड लेती हैं तो उन्हें आर्मी से टकराव का जोखिम उठाना पड़ सकता है और उनकी सरकार पर संकट के बादल मंडरा सकते है। क्योकि रोहिंग्या मुसलमान वहाँ केवल बौद्धों के नहीं, बल्कि समस्त राष्ट्र के लिए एक संकट या दूसरे अर्थों में कहा जाए कि खतरा बन रहे थे। आंग सान द्वारा चुप्पी तोड़ने का अभिप्राय यह न लिए जाए कि आंग अपने देश की सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं करेंगी। यदि किसी अंतर्राष्ट्रीय दबाव में कोई ऐसा कदम उठाती है, वह देश में किसी भी गृह युद्ध को खुला निमन्त्रण दे देंगी, जिसमे आर्मी भी सम्भवतः जनता के साथ खड़ी हो। यह भी सम्भव है कि वह गृह युद्ध अन्य मुसलमानों पर भी भारी न पड़ जाए, और अगर ऐसा हो गया, उस  स्थिति में मानवाधिकारों की चैंपियन रहीं नोबेल शांति पुरस्‍कार विजेता और म्‍यांमार की स्‍टेट काउंसलर आंग सान सू अपने आपको कहाँ खड़ा पाएंगी?   
अभी-अभी प्राप्त समाचारों के अनुसार जिस बात पर उपरोक्त शंका व्यक्त कि गयी है, आंग ने भी गम्भीर चिन्तन उपरान्त स्पष्ट बोल दिया है कि किसी भी अंतर्राष्ट्रीय दबाव में देश की सुरक्षा से खिलवाड़ नहीं किया जाएगा। और किसी भी कीमत पर म्यांमार रोहिंग्या मुसलमानों को वापस नहीं लेगी। ये लोग देश में आतंक फैला रहे हैं। इनके आतंकवादियों से सम्बन्ध हैं। म्यांमार इन्हे आतंकवादी घोषित कर चूका है। 
म्यांमार ने इन्हे संरक्षण दिया और इन्होने  आतंकवादी हमले कर इस्लामिक स्टेट की मांग शुरू कर दी। अगर ये लोग समझते हैं कि हम इनको इस्लामिक स्टेट देंगे ऐसा किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं। क्या देश में अन्य धर्म के लोगों को रहने का अधिकार नहीं? जो लोग म्यांमार वापस आना चाहते हैं तो उनका रीफिउजी वेरिफिकेशन किया जाएगा। 





    

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