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| चीन के शियामेन में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन-2017 में मंच पर मौजूद सभी सदस्य देशों के राष्ट्र प्रमुख। (फोटो-रायटर्स) |
BRICS में चीन की नहीं चली, भारत की बड़ी जीत: पहली बार घोषणा पत्र में पाकिस्तानी आतंकवाद और जैश का जिक्र
मेजबान चीन के ना चाहते हुए भी आखिरकार ब्रिक्स के सभी पांचों सदस्य देशों ने पहली बार संयुक्त घोषणा पत्र में पाकिस्तान से संचालित आतंकी संगठनों की चर्चा की है।
ब्रिक्स में भारत आतंकवाद के मुद्दे पर बहुत बड़ी जीत हुई है। पाकिस्तान को चौतरफा आलोचना तो झेलनी पड़ी ही। साथ ही पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों पर बैन भी लग गया।
मेजबान चीन के ना चाहते हुए भी आखिरकार ब्रिक्स के सभी पांचों सदस्य देशों ने पहली बार संयुक्त घोषणा पत्र में पाकिस्तान से संचालित आतंकी संगठनों की चर्चा की है।
ब्रिक्स में भारत आतंकवाद के मुद्दे पर बहुत बड़ी जीत हुई है। पाकिस्तान को चौतरफा आलोचना तो झेलनी पड़ी ही। साथ ही पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों पर बैन भी लग गया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए चीन में हैं। चीन ने तो भारत को इस सम्मेलन में पाकिस्तान के खिलाफ आतंकवाद का मुद्दा ना उठाने की नसीहत दी थी, लेकिन ब्रिक्स के घोषणापत्र में आतंकवाद का मुद्दा उठाया गया है। ज्ञातव्य है कि ब्रिक्स का 9वां सम्मेलन चीन के श्यामन में हो रहा है। ब्रिक्स में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका देश शामिल हैं।आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत के अभियान को एक बड़ी जीत उस वक्त मिली जब सितम्बर 4 को ब्रिक्स देशों ने लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) जैसे पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों का नाम अपने घोषणापत्र में शामिल किया और इनसे तथा इनके जैसे तमाम आतंकवादी संगठनों से निपटने के लिए व्यापक दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया। ऐसा कहा जाता है कि गोवा में बीते साल हुए आठवें ब्रिक्स सम्मेलन में चीन ने घोषणापत्र में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों को शामिल करने का विरोध किया था। शियामेन घोषणापत्र में कहा गया है, “हम क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति पर और तालिबान, इस्लामिक स्टेट (आईएस), अलकायदा और इससे संबद्ध संगठन ईस्टर्न तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट, इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान, हक्कानी नेटवर्क, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, टीटीपी और हिज्बुल-तहरीर द्वारा की गई हिंसा पर चिंता व्यक्त करते हैं।” इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, ब्राजील के राष्ट्रपति मिशेल टेमर और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जुमा ने शिरकत की।
ब्रिक्स घोषणापत्र में आतंकवाद का जिक्र करते हुए इस पर कडी चिंता जताई गई है। ब्रिक्स घोषणापत्र के 48वें पैराग्राफ मेें आतंकवाद पर कडी चिंता जताते हुए लिखा गया है कि हम लोग आस पास के इलाके में फैल रहे आतंकवाद और सुरक्षा की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हैं। इस घोषणापत्र में कई आतंकी संगठनों का जिक्र किया गया है। घोषणापत्र में लिखा है कि इन इलाकों में तालिबान, आईएसआईएल और अलकायदा से खतरा बताया गया है। इसमें पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर ए तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिज्बुल मुजाहिदीन की भी कडी निंदा की गई है। यह घोषणापत्र इसलिए भी अहम है क्योंकि चीन कई बार जैश-ए-मोहम्मद चीफ मसूद अजहर पर यूएन द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने की दिशा में अडंगा लगा चुका है।
वहीं ईस्टर्न तुर्कीस्तान इस्लामिक मूवमेंट, इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उजबेक्सितान, हक्कानी नेटवर्क, जैश-ए-मोहम्मद, टीटीपी और हिज्बुल उत तहरीर का भी जिक्र किया गया है। ब्रिक्स के घोषणापत्र में पाक समर्थक आतंकी संगठनों का ब्रिक्स के घोषणापत्र में जिक्र होना और उनकी कडी निंदा होना भारत के लिए बडी सफलता है।
जेईएम प्रमुख मसूद अजहर को भारतीय सेना के प्रतिष्ठानों पर घातक सीमापार हमलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। भारत ने अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र का रुख किया था लेकिन चीन ने बार-बार इस प्रस्ताव की राह में रोड़ा अटकाया है। 2008 के मुंबई आतंकी हमलों के लिए लश्कर ए तैयबा जिम्मेदार है। इसमें 166 भारतीयों और विदेशी नागरिकों की मौत हो गई थी।
शियामेन घोषणापत्र में ब्रिक्स देशों सहित दुनियाभर में हुए सभी आतंकवादी हमलों की निंदा की गई है। घोषणापत्र में कहा गया, “आतंकवाद की सभी रूपों में निंदा की जाती है। आतंकवाद के किसी भी कृत्य का कोई औचित्य नहीं है।” पाकिस्तान का नाम लिए बगैर घोषणापत्र में कहा गया है, “हम इस मत की पुष्टि करते हैं कि जो कोई भी आतंकी कृत्य करता है या उसका समर्थन करता है या इसमें मददगार होता है, उसे इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।” ब्रिक्स देशों का कहना है कि आतंकवाद करने वाले और इसमें सहयोग देने वालों को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
घोषणापत्र में आतकंवाद को रोकने और इससे निपटने के लिए देशों की प्राथमिक भूमिका और जिम्मेदारी को रेखांकित करते हुए जोर दिया गया कि देशों की संप्रभुता और उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने का सम्मान करते हुए आतंक के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने की जरूरत है। घोषणापत्र में कहा गया है, “हम आतंकवादी हमलों की निंदा करते हैं, जिस वजह से निर्दोष अफगान नागरिकों की मौत हुई है। इस हिंसा को तत्काल खत्म करने की जरूरत है। हम अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के तहत अफगानिस्तान में शांति की बहाली और राष्ट्रीय सुलह के लिए लोगों को सहयोग देने की प्रतिबद्धता जताते है। हम आतंकवादी संगठनों से निपटने के लिए अफगान सुरक्षाबलों के प्रयासों का समर्थन करते हैं।”
घोषणापत्र में कहा गया, “हम सभी देशों से आतंकवाद से निपटने, कट्टरपंथ का खात्मा करने, आतंकवादी संगठनों में भर्तियों (विदेशी लड़ाकों सहित) को रोकने, आतंकवाद का वित्तपोषण बंद करने के लिए व्यापक दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान करते हैं। इनमें धनशोधन, हथियारों की आपूर्ति, नशीले पदार्थो की तस्करी और अन्य आपराधिक गतिविधियां रोकने, आतंकवादी अड्डों को ध्वस्त करना, आतंकवादियों द्वारा नवीनतम सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकियोंके जरिए सोशल मीडिया सहित इंटरनेट का दुरुपयोग रोकना शामिल हैं।”
घोषणापत्र में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से व्यापक अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद रोधी गठबंधन की स्थापना करने और इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र की समन्वयक की भूमिका के लिए समर्थन जताने का आह्वान किया गया है। घोषणापत्र में कहा गया है, “हम जोर देकर कहते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार होनी चाहिए। इसमें संयुक्त राष्ट्र का घोषणापत्र, अंतर्राष्ट्रीय शरणार्थी और मानवीय कानून, मानवाधिकार और मौलिक स्वतंत्रता भी शामिल हैं।

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