वैसे तो रखाइन प्रांत पिछले पांच वर्षों से सांप्रदायिक हिंसा का शिकार है। लेकिन हाल में 25 अगस्त को रोहिंग्या चरमपंथियों के एक सैनिक चौकी पर हमले के बाद सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई। तब से इस बौद्ध बहुसंख्यक आबादी वाले देश में हिंसा का दौर जारी है, और बड़े पैमाने पर रोहिंग्या मुसलमानों का पलायन हो रहा है। इस हिंसा के बाद नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान द्वारा खामोशी अख्तियार करने से उनकी अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में आलोचना होती रही है।
आंग सान ने कहा कि म्यांमार की सामाजिक संरचना जटिल है। इन सबके बीच लोग हमसे कम से कम समय में सभी चुनौतियों से निपटने की अपेक्षा करते है। तकरीबन 70 साल के आंतरिक संघर्ष के बाद म्यांमार ने शांति और स्थायित्व हासिल किया है। हम किसी भी प्रकार के मानवाधिकारों के उल्लंघन की निंदा करते है।हम शांति और कानून के राज के लिए प्रतिबद्ध है। म्यांमार को किसी भी प्रकार की अंतरराष्ट्रीय जांच का भय नहीं है। हम हिंसाग्रस्त रखाइन प्रांत के टिकाऊ समाधान के लिए प्रतिबद्ध है।
आंग सान ने बढ़ती अंतरराष्ट्रीय आलोचना पर कहा कि संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव डॉ कोफी अन्नान के नेतृत्व में एक कमीशन को आमंत्रित किया है, जो हिंसाग्रस्त क्षेत्र की समस्याओं के समाधान के लिए हमारी मदद करेगा। इसके साथ ही पलायन करने वाले जो लोग वापस आना चाहते हैं तो इससे संबंधित शरणार्थी सत्यापन प्रक्रिया को शुरू करने के लिए भी म्यांमार तैयार है।
हालांकि ताजा हिंसा का उल्लेख करते हुए आंग सान ने कहा कि 25 अगस्त को 30 पुलिस पोस्ट पर हमला किया गया। उसके बाद अराकान रोहिंग्या सेल्वेशन आर्मी को आतंकी संगठन घोषित किया गया। इसके साथ ही जोड़ा कि म्यांमार को हम धार्मिक या जातीय आधार पर विभाजित नहीं होने देना चाहते।
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