स्वतन्त्रता संग्राम से लेकर आज तक किस तरह भारतीय जनता भ्रमित होती रही है, मंथन करने पर नेताओं पर ग्लानि होती है। जिस तरह आज अरविन्द केजरीवाल कभी इस प्रान्त कभी उस प्रान्त जा-जाकर जनता को भ्रमित कर रहे हैं, उसे विचारने उपरांत शंका होती है, कि “केजरीवाल कहीं जवाहर लाल नेहरू और महात्मा गाँधी के वंशज तो नहीं है।”
दिल्ली को किस तरह भ्रमित कर मँझधार में छोड़ पंजाब के मुख्यमंन्त्री बनने के स्वप्न देख रहे हैं। पूर्व मुख्यमन्त्री शीला दीक्षित ने दिल्ली को जिस राह पर छोड़ा था, केजरीवाल ने दिल्ली को उतना ही पीछे धकेल दिया। अगर शीला सरकार घोटाले और भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं होती, दिल्ली में हुआ विकास सिर चढ़कर बोल रहा होता, लेकिन उस विकास पर घोटाले और भ्रष्टाचार ने ऐसी चादर डाली , जिसे उजागर करने में कांग्रेस और शीला सरकार पूर्णरूप से असफल रही। फिर विनाश काले विपरीत बुद्धि।

मोदी को रोकने के चक्कर में केजरीवाल को सूली पर चढ़ा दिया। और भारतीय जनता पार्टी से कहीं अधिक नुकसान पार्टी को अपने ही बुने जाल यानि आम आदमी पार्टी से हुआ। स्वतन्त्रता संग्राम में कहा जाता था “स्वतन्त्र भारत में दूध की नदियाँ बहेंगी”… पिताश्री एम.बी.एल.निगम बताते थे ब्रिटिश युग में 4 पैसे सेर दूध बिकता था। आज बिक रहा है 40 रूपए लीटर, वह भी शुद्ध नहीं।
यकीन मानिए कि आपके बच्चे रोज सुबह दूध के नाम पर जहर पी रहे हैं। इस कठोर सच्चाई को खुद केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्द्धन ने पिछले दिनों लोकसभा में स्वीकार किया कि देश में बेचा जाने वाला 68 प्रतिशत दूध भारत के खाद्य नियामक द्वारा निर्धारित शुद्धता पर खरा नहीं उतरता, यानी देश दूध के नाम पर जहर गले के नीचे से उतार रहा है। डॉ. हर्षवर्द्धन ने माना कि अमृत को मिलावटखोर विष बना रहे हैं।
दूध में पानी की मिलावट सबसे ज्यादा होती है, जिससे इसकी पौष्टिकता कम हो जाती है। अगर इस पानी में कीटनाशक और भारी धातुएं मौजूद हों तो ये सेहत के लिए खतरा हैं। सामान्यतः मिलाया जाने वाला पानी शुद्ध न होने से पेट सम्बंधी रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
सरकार सुनिश्चित करना चाहती है कि दूध में होने वाली मिलावट बंद हो जाए। इसी क्रम में उनके विभाग ने एक ‘क्षीर स्कैनर’ तैयार किया है तो 40 सेकंड में दूध में मिलावट का पता लगा लेता है। इसमें एक जांच में मात्र 50 पैसे के लगभग खर्च आता है। उन्होंने सांसदों को उनकी सांसद निधि से अपने क्षेत्र के लिए यह स्कैनर खरीदने का सुझाव भी दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने मिलावटी दूध तैयार करने और इसकी बिक्री करने वालों को उम्रकैद की सजा देने की हिमायत करते हुए अपने एक फैसले में राज्य सरकारों से कहा है कि इस सम्बंध में कानून में उचित संशोधन किया जाए। इस अपराध के लिए खाद्य सुरक्षा कानून में प्रदत्त 6 महीने की सजा अपर्याप्त है। मिलावट हमारे देश के राष्ट्रीय चरित्र का अभिन्न हिस्सा बन गई है।
खाद्य नियामक द्वारा कराये गये सर्वे के मुताबिक 5 राज्यों से आये दूध के सभी सैम्पलों में मिलावट थी, जबकि उत्तर प्रदेश के 88 फीसदी मिलावटी थे। हिन्दी पट्टी में मिलावटी दूध के गुनहगार मौज कर रहे हैं। अपने बैंगलोर एवं हैदराबाद प्रवास में वहां के चर्चित दूध हेरिटेज के अलावा खूब प्रसारित अमूल दूध का प्रयोग किया, लेकिन जो दूध उबालने पर मलाई दिल्ली में आती है, वहाँ नहीं। जो पतली मलाई आती भी है, उसे फ्रिज में रखिये या बाहर, थोड़ी देर में सूखी पपड़ी सी बन जाएगी। अब समझना मुश्किल है कि दिल्ली में मिलने वाला दूध शुद्ध है या बंगलुरु या हैदराबाद में मिलने वाला दूध। कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ तो है?
पहले गाये एवं भैंस को खिलाया जाता था बिनौला, आज अधिक दूध की लालसा में दूध निकलने से कुछ समय पूर्व पिलाई जाती है एक तेल की बोतल। दूध में ताकत कहाँ से आएगी?
स्वतन्त्रता उपरान्त मिलावटखोरों की होती चांदी
अब देखिए दूध के बाद स्वतन्त्रता पूर्व और स्वतन्त्रता उपरान्त खाद्य पदार्थों में होती मिलावट को। नमक 1 पैसे सेर था, महात्मा गाँधी के “नमक” आन्दोलन ने 4 पैसे सेर कर दिया। और आज नमक मिल रहा है 18 रूपए किलो। लेकिन क्या 18 रूपए किलो बिकने वाला नमक शुद्ध है? क्या सरकार या खाद्य पदार्थों को शुद्धता का प्रमाण देने वाली संस्था जनता को बताएगी? एक अफवाह में वही नमक 100 रूपए बिकने लगता है, क्या है यह सब तमाशा?
क्या शुद्ध घी शुद्ध है?

दो दशक पूर्व तक देसी घी का डिब्बा खुलते ही घर महक जाता था, दाल या सब्जी छोकने पर पडोस महक जाता था, और आज देसी घी की दुकान या देसी घी की मिठाई दुकान के पास से गुजरने पर भी घी की महक तक नहीं आती। क्यों? इतना ही नहीं, भ्रष्टाचार इतना अधिक प्रभावी है और मासूम जनता भी मिलावटखोरों के चुंगल में फंस जाती है।
त्यौहारों के अवसर पर नामी मिठाई वालों की दुकानों पर बैनर लग जाते हैं “शुद्ध देसी घी से निर्मित बर्फी” ; अब कोई इन हलवाइयों से पूछने वाला है कि “जब खोये में ही घी होता है, फिर यह बैनर क्यों?”
फिर हिन्दू त्यौहारों पर नकली दूध और खोया समाचारों में खूब चर्चा बटोरता है, क्यों? क्या इन निरिक्षको को केवल त्यौहारों पर ही मिलावट नज़र आती है? क्या सरकार या न्यायालय ने इस बात पर मनन किया? क्या किसी न्यूज़ चैनल ने इस गम्भीर मुद्दे पर चर्चा करने का साहस किया कि सरकार केवल त्यौहारों पर ही क्यों इतनी सतर्क दिखती है? क्यों वर्ष के अन्य दिनों में मिलावट नहीं होती?
कच्ची धानी तेल भी मिलावटी
दिल्ली में कोडिया पुल स्थित कनोडिया की दुकान के आगे से निकलने पर आँखों से पानी निकल आता था, घर में तेल को पकाओ, घर तो क्या पड़ोसियों की आँखों से पानी निकल आता था, और आज लाख बाबा रामदेव भी इस बात का प्रचार करें कि पतंजलि का कच्ची धानी का शुद्ध तेल है।
जो कच्ची धानी तेल युवा काल में खा लिया, वह आज नसीब नहीं। मेरी आयु का कोई इन बात से इंकार नहीं कर सकता। फिर लिख रहा हूँ, मेरी और प्रधानमंत्री मोदी की आयु में केवल लगभग दो वर्ष का अंतर है।
कुछ वर्ष पूर्व खुला तेल बिकने पर बहुत विवाद हुआ, कई नमूने फेल हुए, कितनो को सजा हुई? सीलबंद तेल बिकना शुरू हो गया, दुर्भाग्य से वह भी मिलावटी।
जिन दिनों यह विवाद अपनी चरम सीमा पर था, एक नामी कंपनी के सीलबंद तेल को फेल कर मुकदमा दर्ज कर दिया गया, जो दो/तीन तारीखों में ख़त्म हो गया।
जब कंपनी के स्वामी ने कोर्ट में न्यायाधीश से एक आग्रह किया कि “मैं इसी फ़ेल किये गए सैम्पल को पास करवा दूंगा। अगर इनका मुँह-माँगा पैसा इनके मुँह पर फैंक दूँ।” क्या हुआ? भ्रष्टाचार का नाम आते ही, कोर्ट भी पस्त और सरकार भी पस्त। यानि भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार का रक्षक है।
इतना ही नहीं, आज रिफाइंड तेल को स्वास्थ्यवर्धक बताकर खाने को कहा जाता है। क्या सरकार इस तेल की वास्तविकता बताने का साहस कर पाएगी?
साबुत मसाले महँगे और पिसे मसाले सस्ते ?
दो दशक पूर्व तक साबुत मसाले सस्ते होते थे, लेकिन आज स्थिति एकदम विपरीत है। आज पिसे मसाले साबुत मसालों से सस्ते हैं। कहते हैं, मिठाई के पुल पर खारी बावड़ी से सस्ती दालें और मसाले मिलते हैं। जनवरी 20 को पहुंचे मिठाई का पुल, जहाँ पिसी लाल मिर्च 100 रूपए किलो और साबुत 130 रूपए, खारी बावरी में 160 रूपए साबुत और पिसी 100 रूपए, धनिया साबुत 100 रूपए और पिसा 90 रूपए, जबकि खारी बावड़ी में साबुत 120 और पिसा 100 रूपए, काला चना 100 रूपए और खारी बावड़ी में 120; चने की दाल मिठाई पुल पर 90 रूपए और खाड़ी बावड़ी में 100 रूपए। चने की दाल काले चने को ही पीस कर बनती है, मजे की बात यह है कि दाल सस्ती है और साबुत चना महंगा। क्या साबुत और पिसे मसालों के दामों में अंतर को देख स्पष्ट होता है, मिलावट का प्रमाण। लेकिन इस गंभीरता पर कोई नहीं देता ध्यान। जो सिद्ध करता है कि भ्रष्टाचार का कितना बोलबाला है।
गुड़
गुड़ जिसे अक्सर जनता शुद्ध समझती है। वह भी शुद्ध नहीं। एक तरफ किसान रोता है, गन्ना खरीदने को कोई मिल तैयार नहीं ,किसान भूखा मर रहा है, कर्जे में डूबा हुआ है, आत्महत्या को मजबूर हो रहा है। गुड़ तो किसान ही बनाता है। फिर भी मिलावटी। क्या बाजार में बिकने वाला गुड़ असली है?
बात 1973/74 की है, सक्रिय राजनीति में थे। दादरी ज़िला बुलन्दशहर में उप-चुनाव में जाना पड़ा। सप्ताह भर एक गाँव में रहना पड़ा था। मतदान के बाद, जब गाँव से दिल्ली को रवाना होने पर ग्रामवासियों ने इतना गुड़ दिया, दिल्ली में सबको इतना स्वादिष्ट लगा कि 5/6 किलो के लगभग गुड़ कब ख़त्म हो गया पता ही नहीं चला। उस गुड़ की चाय भी इतनी स्वादिष्ट जिसका जवाब नहीं। वैसा गुड़ आज तक नसीब नहीं। खैर, झुलसती गर्मी में खेतों में प्रचार करते, तीन तरह के गुड़ बनते देखा। एक अपने निजी प्रयोग, दूसरा, अपने शहर और आसपास के लिए और तीसरी किस्म का गुड़ शहर से बाहर बिकने के लिए।
वास्तव में मिलावट बहुत ही गम्भीर मुद्दा है, जिससे दवाएं तक प्रभावित हैं, और जिसे भ्रष्टाचार की जादुई छड़ी ने दाब रखा है। जनता है कि आईएसआई मार्के को शुद्धता का प्रतीक मान विश्वास कर लेती है। आज जितनी महंगाई बढ़ रही उतनी ही खाद्य पदार्थों की शुद्धता का स्तर गिर रहा है। जब कभी दालों के सैम्पल चेक करने निरीक्षक बाजार में आते हैं, उनके आने से पूर्व ही दुकानें बन्द हो जाती है। दुकानें बन्द देख निरीक्षकों की ड्यूटी पूरी हो गयी। वेतन पक्का। कार्यक्षमता उत्तम। मजे बात यह है कि निरीक्षक आते है परजुन की दुकान पर, जबकि होलसेल में दालें बेचने वाला शान से आलीशान गद्दी पर बैठ अपना धंधा चला रहा है। जब भी सरकार पकड़ती है , छोटे और निर्धन को ही। जनता भी सरकार की इन भ्रमित चालों में फंस, सरकार की प्रशंसा करने लगती है।
कलाकार करते भ्रमित प्रचार
मध्य प्रदेश के जबलपुर के उपभोक्ता फोरम ने महानायक अमिताभ बच्चन और नवरत्न तेल निर्माता कंपनी इमामी के भ्रामक प्रचार को लेकर दायर किए गए परिवाद पर सुनवाई शुरू करते हुए जवाब-तलब किया है। उनसे पूछा गया है कि नवरत्न ठंडा-ठंडा, कूल-कूल कैसे है। जबलपुर निवासी पी.डी. बाखले ने जिला उपभोक्ता फोरम में परिवाद दायर कर नवरत्न के विज्ञापन को भ्रामक प्रचार बताया। इस परिवाद पर फोरम अध्यक्ष सुनील कुमार श्रीवास्तव ने अमिताभ बच्चन व इमामी कंपनी को समन जारी करते हुए जवाब तलब किया है।
बाखले के अधिवक्ता ओ.पी. यादव ने बुधवार को संवाददाताओं को बताया कि अमिताभ बच्चन द्वारा नवरत्न तेल का भ्रामक प्रचार किया जा रहा है, जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के प्रावधानों के विरुद्ध है।
आवेदक का कहना है कि तेल का प्रचार करते हुए अमिताभ बच्चन कहते हैं कि यह तेल ठंडा-ठंडा, कूल-कूल है, मगर यह नहीं बता रहे हैं कि ऐसा क्यों है। यह भी नहीं बताया जा रहा है कि इस तेल में कौन कौन सी कितनी मात्रा में जड़ी बूटियां है। यह तेल न तो पंजीबद्ध है और न ही इसके निर्माण का लाइसेंस है। इस विज्ञापन में सिरदर्द, बदन दर्द से राहत दिलाने की बात कही जाती है। इस तरह यह तेल न होकर औषधि है। आवेदक ने विज्ञापन पर रोक लगाने के साथ मानसिक व शारीरिक क्षति होने पर 15 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति दिलाने की मांग की है।
2 अगस्त को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की एक अदालत ने शेविंग क्रीम का भ्रामक प्रचार करने को लेकर दिए गए आवेदन पर फिल्म अभिनेता शाहरुख खान सहित तीन अन्य को नोटिस जारी कर 26 अगस्त को अपना जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। खान पर आरोप है कि वे एक शेविंग क्रीम का भ्रामक प्रचार कर रहे हैं।
याचिकाकर्ता राजकुमार पांडे ने संवाददाताओं को बताया, “उन्होंने एक शेविंग क्रीम का उपयोग किया, जिसका विज्ञापन करते हुए शाहरुख खान उसे सबसे अच्छी क्रीम बताते हैं।” पांडे ने इस क्रीम का उपयोग किया तो उनके चेहरे पर छाले पड़ गए। पांडे ने इस भ्रामक प्रचार और अपने चेहरे पर पड़े छालों का हवाला देते हुए न्यायाधीश काशीनाथ सिंह की अदालत में आवेदन दिया, जिसमें कहा गया है कि शाहरुख खान जिस क्रीम को देश की नंबर वन क्रीम बता रहे हैं, उसका उपयोग करने से उनके चेहरे पर छाले पड़े, उसका उन्होंने अस्पताल में इलाज कराया।


Comments