11 जनवरी 1969 को दिल्ली में जन्मी अनु अग्रवाल ने मॉडलिंग से कॅरियर शुरू किया। 1990 में महेश भट्ट ने अपनी 'आशिकी' से अनु को पहला ब्रेक दिया था।
महज 21 साल की उम्र में अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने वाली अनु अपने बहेतरीन अभिनय और मासूम चेहरे के बूते दर्शकों की पसंदीदा अदाकाराओं में शुमार हो गई थीं। लेकिन उनका स्टारडम आगे मिली फिल्में फ्लॉप होने की वजह से गर्त में चला गया।
1990 की सबसे सुपरहिट फिल्म आशिकी को कौन भूल सकता है। इस फिल्म के गाने आज भी लोगों की जुबान पर हैं। राहुल रॉ़य और अनु अग्रवाल की इस फिल्म को उस समय की सबसे रोमांटिक फिल्म का खिताब मिला था।
फिल्म तो सुपरहिट हो गई लेकिन राहुल राय भी न फिल्मों में चल पाए न ही हीरोइन को वो पहचान मिली जिसकी वो हकदार थी। आशिकी में बेहद मासूम भोली सूरत की दिखने वाली हीरोइन अनु को आज आप देखना भी पसंद नहीं करेंगे।
अनु की जो हालत हुई है उसे देखकर बॉ़लीवुड से नफरत हो जाती है। दरअसल जब आशिकी 2 भी हिट हो गई तो लोगों को पहली वाली आशिकी की हीरोइन की याद आ गई तो पता चला कि वह तो बीमार है।
अनु करीब हाल ही में अनु अपनी आत्मकथा 'अनयूजवल: मेमोइर ऑफ ए गर्ल हू केम बैक फ्रॉम डेड' को लेकर सुर्खियों में बनी हुई हैं। अनु के साथ ऐसी दुर्घटना हुई कि वह करीब कई महीनों तक कोमा में रही हैं। वह मौत के मुंह से बाल-बाल बची हैं।
ऐसे चली गई याददाश्त
उनका शरीर का निचला हिस्सा पैरलाइज्ड हो चुका था। लंबे इलाज के बाद डॉक्टर ने उन्हें स्वस्थ्य घोषित किया।
अचानक हुए इस हादसे ने उनकी जिंदगी उलट दी। अनु ने मौत को हरा दिया लेकिन बॉलीवुड किसका सगा है। बॉलीवुड ने उगते सूरज को सलाम किया और बीमार अनु की लोगों ने मदद भी न की।
अनु ने किताब में लिखा कि बीमारी से ठीक होना उनका दूसरा जन्म हैं। ठीक होने के बाद वह एक नवजात की तरह महसूस कर रही थी।
अब सब कुछ गरीबों में दान कर बैठी
अनु एम टीवी वीजे भी रहीं हैं। 1997 में अनु ने योगा सीखा और आज वह बस्ती के गरीब बच्चों को फ्री में पढ़ाती भी हैं और 'अनुफन योगा सेंटर' में योगा भी सिखाती हैं।
योगा टीचर के तौर पर वह एक स्टार की चकाचौंध भरी दिखावे की जिंदगी से दूर एक आम इंसान की तरह जिंदगी जी रही हैं।
अनु ने अपना सबकुछ दान में दे दिया है। उन्होंने अपनी किताब में खुलासा किया कि बॉलीवुड ने उन्हें मरा हुआ मान लिया था।
अनु जैसी न जाने कितनी अभिनेत्रियाँ और अभिनेता फ़िल्मी जगत में अपना नाम छोड़ गए। आज के फ़िल्मी जगत में न कोई देव आनन्द है और न ही कोई राज कपूर, अभिनेता कुमार और न ही कोई कमाल अमरोही। जो अपने कलाकारों की यदाकदा आर्थिक सहायता करते रहते थे।
पत्रकारिता का श्रीगणेश अस्सी के दशक में फिल्म लेखों से ही किया था। पिताश्री एम.बी.एल.निगम पचास और साठ के दशक में नामी फिल्म वितरक एवं प्रदर्शक(exhibitor) होने के कारण उनसे फिल्म संसार के अनेको ऐसे हादसे सुनने को मिलते थे, जिनकी फ़िल्मी पत्र-पत्रिकाओं में चर्चा तक नहीं होती थी, क्योकि आर्थिक तंगी से गुजर रहा कलाकार किस पत्रकार का बटुआ भारी करने की स्थिति में नहीं होता। अपनी पुस्तक "भारतीय फिल्मोद्योग -- एक विवेचन" में सम्मिलित लेख "मृतक कंगाल फ़िल्मी हस्तियां" में अनेकों ऐसे कलाकारों का उल्लेख किया है।
देव आनन्द निर्मित फिल्म " तेरे मेरे सपने" के कहानीकार विजय कौल जब कंगाली की हालत में हॉस्पिटल में पलंग पर लेटे "कैमरा ऑन, लाइट्स ऑफ, लाइट्स ऑन" आदि करते रहते थे। अचानक एक दिन अभिनेता जानकी दास उनकी दयनीय स्थिति देख जब देव आनन्द के पहुंचने पर देव को कौल की स्थिति से अवगत करवाया, देव ने कोई विलम्भ किये बिना रूपए लेकर हॉस्पिटल पहुंचे, लेकिन खुद्दार कौल ने रूपए लेने से मना कर दिया। लेकिन देव ने कहा "कौल साहब ये आपकी मेहनत के बाकी के रुपये हैं।" और उनके तकिये के नीचे रख दिए। बस अंतिम समय यही पूंजी उनके पास थी।
फिल्म वितरक पिताश्री के अपने व्यवसाय के दिनों में अभिनेता, निर्माता एवं निर्देशक कुमार, चर्चित सम्वाद लेखक, निर्माता एवं निर्देशक कमाल अमरोही से अच्छे सम्बन्ध होने के कारण, जब पिताश्री का व्यवसाय फिल्म प्रसारित यानि शुक्रवार के ही दिन ऑफिस में ताला पड़ने स्थिति हो गयी, व्यवसाय साझेदार धोखा देकर फिल्म रिलीज़ होने से पूर्व ही बैंक से पैसा निकाल बम्बई(वर्तमान मुंबई) चला गया, कमाल और कुमार साहब आदि के समझाने का उस पर लेशमात्र भी असर नहीं हुआ। कुमार साहब निर्मित कई फिल्में पिताश्री के कार्यालय प्रीमियर पिक्चर्स से ही रिलीज़ होने के कारण दिल्ली, यू पी, पंजाब के वितरक होने के कारण पिताश्री को कुमार साहब ने उन फिल्मों को बेच कर्जा चुकता करने को कहा। और कमाल साहब ने उनको बम्बई आकर प्रोडक्शन सँभालने के लिए बुला लिया। जी.पी. सिप्पी की देव आनन्द और निम्मी अभिनीत असफल फिल्म "सजा" को सफल और चर्चित बनाने का श्रेय कमाल साहब और पिताश्री एम.बी.एल.निगम को ही जाता है। खैर, अब सब इतिहास बन गया। संक्षेप में इतना ही कहना है कि कल के फिल्म जगत और आज के फिल्म जगत में बहुत अंतर आ गया है।
देव आनन्द निर्मित फिल्म " तेरे मेरे सपने" के कहानीकार विजय कौल जब कंगाली की हालत में हॉस्पिटल में पलंग पर लेटे "कैमरा ऑन, लाइट्स ऑफ, लाइट्स ऑन" आदि करते रहते थे। अचानक एक दिन अभिनेता जानकी दास उनकी दयनीय स्थिति देख जब देव आनन्द के पहुंचने पर देव को कौल की स्थिति से अवगत करवाया, देव ने कोई विलम्भ किये बिना रूपए लेकर हॉस्पिटल पहुंचे, लेकिन खुद्दार कौल ने रूपए लेने से मना कर दिया। लेकिन देव ने कहा "कौल साहब ये आपकी मेहनत के बाकी के रुपये हैं।" और उनके तकिये के नीचे रख दिए। बस अंतिम समय यही पूंजी उनके पास थी।
| पिताश्री एम.बी.एल.निगम |
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